शैली: सामाजिक, भावनात्मक, यथार्थवादी, ग्रामीण परिवेश पर आधारित
मुख्य पात्र:रमेश यादव: 38 वर्षीय गांव का प्रधान, गंभीर, ईमानदार पर भावनात्मक रूप से उलझा हुआकुसुम देवी: रमेश की पत्नी, पारंपरिक और त्यागमयीनीलम: 26 वर्षीय स्कूल शिक्षिका, जो शहर से गांव पढ़ाने आई, और जिसके जीवन में बहुत अकेलापन हैसुरेश: नीलम का पूर्व प्रेमी, जो उसे धोखा दे चुका हैप्रस्तावना: गांव का चेहरा और नकाब
उत्तर प्रदेश के एक छोटे से गांव नरवर में सब कुछ शांत था — खेत, पगडंडियाँ, चौपाल, और मंदिर की घंटियाँ। पर गांव की शांति के पीछे कई रिश्तों के तूफान पल रहे थे।
रमेश यादव, गांव के प्रधान, एक जिम्मेदार इंसान थे। लेकिन उनकी जिंदगी में कुछ अधूरा था। उनकी पत्नी कुसुम, धार्मिक, सीधी-सादी, और घरेलू जीवन में रमी हुई महिला थी। रमेश का सामाजिक जीवन बहुत व्यस्त था, लेकिन निजी जीवन बेहद सूखा।
इसी गांव में कुछ महीनों पहले एक नई शिक्षिका आई — नीलम। वह शहर की लड़की थी, जिसे ट्रांसफर के तहत गांव भेजा गया था। नीलम में शहर की चमक नहीं थी, पर एक रहस्यमयी उदासी थी, जो रमेश को उसकी ओर खींचती जा रही थी।अध्याय 1: पहली मुलाकात
नीलम पहली बार प्रधान जी से गांव के सरकारी स्कूल की स्थिति को लेकर मिलने आई। उनके बीच बातचीत शुरू हुई — पहले शैक्षिक मुद्दों पर, फिर धीरे-धीरे व्यक्तिगत बातों पर।
रमेश को लगा कि नीलम उसे समझती है — वह बातें जो उसकी पत्नी कुसुम कभी नहीं समझ सकी। नीलम को भी रमेश का स्थायित्व भाया। उसे वह सहारा दिखा जो उसे वर्षों से किसी पुरुष से नहीं मिला था।
धीरे-धीरे दोनों की मुलाकातें बढ़ने लगीं। पंचायत भवन, स्कूल का निरीक्षण, और फिर मंदिर की सीढ़ियों तक। यह एक अलिखित रिश्ता बनता जा रहा था, जिसे दोनों पहचानने से डरते थे।अध्याय 2: अंतरंगता का आरंभ
एक दिन बारिश हो रही थी। स्कूल जल्दी बंद हो गया। रमेश स्कूल गया तो नीलम अकेली मिली। भीगते हुए दो लोग एक ही छत के नीचे आए। संवाद गहराया, मौन लंबे हुए, और फिर… एक लम्हा, जिसमें दोनों ने सारी सीमाएं पार कर दीं।
वह संबंध शारीरिक भी था, लेकिन उससे कहीं ज़्यादा भावनात्मक। नीलम ने पहली बार किसी पुरुष की बाहों में सुरक्षित महसूस किया। रमेश ने पहली बार खुद को खुला हुआ पाया। पर उसी पल पछतावे की चुभन दोनों के भीतर पनपने लगी।अध्याय 3: गिल्ट की गठरी
रमेश को हर दिन घर लौटकर कुसुम की आंखों में अपने अपराध दिखते थे। वह कुछ नहीं कहती, लेकिन उसकी नज़रें बहुत कुछ कह जातीं। नीलम भी आत्मग्लानि से घिरी रहती। वह जानती थी कि रमेश एक शादीशुदा आदमी है, एक जिम्मेदार इंसान है — और यह रिश्ता कहीं से भी जायज़ नहीं।
नीलम ने खुद को पीछे खींचना शुरू किया, लेकिन रमेश अब उससे जुड़ चुका था। वह मोह नहीं — एक भावनात्मक निर्भरता थी।अध्याय 4: भेद खुलने की आशंका
गांव में कानाफूसी शुरू हो चुकी थी। रमेश और नीलम की मुलाकातें अब नज़रों में आने लगी थीं। कुछ ने बात कुसुम तक पहुंचा दी। कुसुम ने न कुछ पूछा, न टोका — बस रमेश की आंखों में देखती रही, और एक रात चुपचाप रोती रही।
कुसुम का मौन रमेश के भीतर ज़ोर से गूंजने लगा। वह अब खुद को घृणा करने लगा। उसने नीलम से मिलना कम कर दिया। पर दिल का रिश्ता टूटा नहीं।अध्याय 5: नीलम का अतीत
नीलम का अतीत सामने आया। कभी वह एक पत्रकार सुरेश से प्यार करती थी, जिसने उसे शादी का झांसा देकर शारीरिक संबंध बनाए और फिर छोड़ दिया।
तब से नीलम ने पुरुषों से दूरी बना ली थी। लेकिन रमेश में उसे वह अपनापन और जिम्मेदारी दिखी, जिसकी उसे सालों से तलाश थी। अब वह फिर से टूटी हुई थी — रमेश का मोह भी उसे एक बार फिर अकेला छोड़ने लगा था।अध्याय 6: समाज का थप्पड़
एक दिन किसी ने दोनों की तस्वीरें वायरल कर दीं। गांव में पंचायत बैठी। विरोधियों ने प्रधान रमेश को घेर लिया। उन्हें पद से हटाने की बात उठी। मीडिया तक खबर पहुंची।
रमेश ने खुद ही पद छोड़ने का ऐलान किया और अपने अपराध को स्वीकार किया। गांव में हड़कंप मच गया। कुछ ने साथ दिया, कईयों ने निंदा की।अध्याय 7: कुसुम का निर्णय
रात को रमेश घर आया तो देखा — कुसुम पूजा कर रही थी। उसने कुछ नहीं कहा, बस थाली में दिया रख रमेश के पास लाई और बोली:
"सिर्फ पति-पत्नी का रिश्ता शरीर का नहीं होता, आत्मा का होता है। पर जब आत्मा भटक जाए, तो देह रोक नहीं सकती। मैं तुम्हें आज़ाद करती हूँ रमेश।"
रमेश फूट-फूट कर रोने लगा। पहली बार उसने जाना कि कुसुम के मौन में कितनी गहराई थी। वह अब तक जिसे कमज़ोर समझता था, वही सबसे बड़ी शक्ति निकली।अध्याय 8: नीलम की विदाई
नीलम को स्कूल से ट्रांसफर का आदेश मिला। जाते वक्त वह रमेश से मिलने आई। उसके चेहरे पर सुकून था — जैसे वह जानती थी कि यह अंत है, लेकिन एक स्वस्थ अंत।
"हमारी कहानी अधूरी रही, लेकिन शायद पूरी होकर भी अधूरी ही रहती। शुक्रिया उन कुछ महीनों के लिए… जिनमें मैंने खुद को जाना।"
नीलम चली गई। रमेश वहीं बैठा रहा, बहुत देर तक।समापन: रिश्तों का असली अर्थ
समय बीता। रमेश अब फिर से पंचायत का सदस्य बना। कुसुम के साथ उसका रिश्ता फिर से संवरने लगा — इस बार ईमानदारी के धागे से। नीलम शहर में एक बालिका गृह चलाने लगी, और एक नई पहचान गढ़ी।
अवैध संबंध किसी की ज़रूरत होते हैं, पर वह ज़रूरत अक्सर मौन, उपेक्षा, अकेलेपन से पैदा होती है। अगर रिश्तों में संवाद हो, तो शायद किसी को रास्ता भटकना न पड़े।
"रिश्तों की सबसे बड़ी परीक्षा — मोह नहीं, समझदारी है।"
[समाप्त]
लेखक:-शैलेश वर्मा