"जीद... जीद... कहां सपनों में खो गई?"
अचानक माही की आवाज़ सुनकर जीद उठी और आंखें मसलते हुए बोली, "आज तो छुट्टी का दिन है न!"
"हां, लेकिन उसी छुट्टी के दिन तो तुझे किसी से मिलने जाना है। तुझे याद तो है न?" माही की बात सुनते ही जीद बोली, "अरे... हां! मैं तो भूल ही गई।" फिर अपने बेड पर ही बैठ गई।
"हां तो मैडम, आज कौन से कपड़े पहनकर जाने का इरादा है?" माही बोली।
"आज..." बोलकर जीद सोचने लगी।
जीद ने शायद कपड़ों की पसंद नहीं की थी, ऐसा लगता माही ने उसे चिढ़ाते हुए कहा, "एक काम कर, हमारे ऑफिस की यूनिफॉर्म पहनकर जा!"
जीद झूठा गुस्सा दिखाते हुए अपनी नाक फुला रही थी और अचानक उसे याद आया तो जीद बोली, "अरे हां, उसने मुझे वाइट ड्रेस पहनकर आने को कहा था।"
"ओहो! लवस्टोरी तो बेरंगीन सफेद पन्ने जैसी है अभी।"
माही की बात सुनकर जीद अब बेड से मुस्कुराते हुए उठने लगी। "शरमाती चुड़ैल कितनी प्यारी लगती है।" बोलकर माही ज़ोर से हंसने लगी। उसके साथ मीठा झगड़ा करती जीद बोली, "तू चुड़ैल... तू। मैं नहीं।"
"हां, तेरी चुड़ैल को तो विनय ने मंदिर में ही भगा दिया था न!" माही बोली और फिर हंसने लगी।
जीद ने उससे झगड़ना छोड़ दिया और अब थोड़ा चिढ़ा हुआ चेहरा बनाकर फ्रेश होने के लिए चल दी। उसने अपने हाथ में तौलिया लिया और अपने बाल खोलते हुए नहाने चली गई। माही अब नीचे अपनी मम्मी की मदद करने चली गई।
जीद को विनय के साथ बिताए हर पल याद आ रहे थे। वो कैसे मिले, कैसे विनय उसका दीवाना बनकर उसकी ऑफिस तक आ गया और सबसे अहम बात यह थी, जब चंद्रताला मंदिर में विनय ने जीद को थप्पड़ मारा। मतलब उस समय तो जीद ने यही जताया कि उसे अच्छा नहीं लगा। लेकिन मन ही मन सोच लिया कि विनय किसी और लड़की को इस तरह मारता है? जब उसे पता चला कि वो मैं थी, तब उसका चेहरा कैसे भीगी बिल्ली जैसा हो गया था।
जीद विनय के ख्यालों में खोई नीचे आई। सफेद ड्रेस, खुले बाल, हाथ में पर्स और चेहरे पर वही धीमी मुस्कान। माही ने जीद को देखा और अपनी मम्मी को सीढ़ी की तरफ मोड़ते हुए उसके कंधे पर हाथ रखते हुए बोली, "देखो, आज दिन में भी चांद निकल आया।"
उसकी मम्मी भी उतनी ही प्यार से जीद को देख रही थी। जैसे जीद से नजर हटाने का मन ही न हो। जीद को पास आते देख माही की मम्मी बोली, "जब तेरी मम्मी मुझे पहली बार मिल गई थी, तब भी मुझे ऐसी ही लगी थी। एकदम राजकुमारी जैसी। मैं तो पहले सोच में पड़ गई थी कि इतनी सुंदर औरत अकेली क्यों?" फिर फिसली हुई ज़ुबान पर काबू पाते हुए बात बदलने के लिए माही की मम्मी बोली, "हां तो आज तू और माही अकेली ही कलकत्ता घूमने जा रहे हो?"
माही की मम्मी के आखिरी शब्दों के ख्यालों से बाहर निकलकर जीद बोली, "हां आंटी, क्यों?"
"नहीं, बस यूं ही।" माही की मम्मी बोली।
जब माही और उसकी मम्मी इस तरह टकटकी लगाए देखती हैं, तो जीद थोड़ी शरमा रही थी।
"देख, अगर मेरी माही की जगह बेटा होता, तो मैं तेरी शादी उसी से कर देती।" माही की मम्मी फिर बोली।
उसकी बात सुनते ही उसे टोकते हुए माही बोली, "मम्मी!"
फिर सबने नाश्ता किया और उठ गए। रामबागन चौराहे के आगे वाली कंपनी बाग में जाने निकले हैं। वहां विनय उनका इंतज़ार कर रहा था।
कुछ देर में जीद और माही कंपनी बाग के सामने वाली अभेदानंद रोड पर आ गई। उनकी निगाहें कंपनी बाग में घूमने लगीं और जीद की नजर विनय पर पड़ी। अचानक ही उसकी पीछे से एक आवाज़ आई।
"ये गाड़ी तो उन्नीस सौ पचपन का मॉडल है। मुझे लगा कि वी ने अभी-अभी नई ली है। खुली विंटेज कार में घूमने ले जाएगा। एक नंबर का कंजूस और मख्खीचूस आदमी है।" रोम जीद के बगल में आते हुए बोला।
जीद थोड़ा मुस्कुराई। उसके बगल में खड़ी माही विनय के लुक को देख रही थी। विनय भी सफेद शर्ट पहनकर आया था। वह जैसे कोई राजकुमार लग रहा था।
अब विनय की नजर भी बाग के सामने वाले फुटपाथ पर पड़ी। उसने अपनी ओर आने का इशारा किया और गाड़ी का दरवाज़ा खोलकर अंदर बैठ गया। जीद और माही विनय के पास जाती हैं। रोम पीछे से नाश्ता लेकर आ रहा है। माही और जीद गाड़ी में बैठती हैं और रोम भी आकर बैठ जाता है। फिर रोम बोलता है, "हां तो, कहां जाना है?"
"कहां जाना मतलब! वही चंद्रताला मंदिर जाना है।" विनय पीछे की सीट की ओर देखकर बोला। फिर अभेदानंद रोड पर आगे जाकर बाएं की तरफ रविंद्रसरणी रोड पर मुड़ गए।
"हां, तो हम लालपुर से जवाहर रोड पर क्यों नहीं जाते!" रोम को जैसे पहले से ही सब पता हो, वो बोल उठा।
"हां, मतलब... नहीं। हम उसी रास्ते जाएंगे। क्यों, तुझे कोई दिक्कत है?" विनय जैसे कुछ छुपा रहा हो, उस तरह से बात बदलने लगा।
"न रे... ना। मुझे और दिक्कत को तो सात जन्मों की दूरी है। तू चल, जैसे भी चल। और अगर ऐसा ही लग रहा है, तो बीच में इंडियन म्यूज़ियम भी आता है, वहां भी ले चल। फिर भी मैं तुझे नहीं कहूंगा कि तू तो चंद्रताला जाने निकला था और कहां आकर खड़ा हो गया।"
विनय की प्लानिंग की धज्जियां उड़ाते हुए रोम बोला।
विनय तो कुछ बोल ही नहीं सका। मन ही मन रोम को साथ लाने के लिए पछता रहा था। पीछे बैठी माही भी अब समझ गई थी कि विनय इस तरफ क्यों आ रहा है। तो माही भी रोम का साथ देते हुए बोली, "हां रोम भैया, सही कह रहे हो। आप वहां थोड़ी देर जाना चाहते हो, तो हमें कोई दिक्कत नहीं है।"
जीद थोड़ी शर्मा रही थी। लेकिन रोम के कानों में माही के मुंह से निकला "भैया" सुनते ही वह चौंका और बोला, "मैं और भैया! विनुड़ा, रोक... रोक..."
"पर क्यों?" विनय गाड़ी चलाते हुए बोला।
"मैंने तुझसे कहा न!" रोम अब विनय की तरफ घूरते हुए देख रहा था।
"हां, ले सामने है म्यूज़ियम... बस।" विनय ने जो सोचा था, वो हो गया था, इसलिए सामने ही गेट के पास गाड़ी रोक दी।
रोम का चेहरा उतरी हुई कढ़ी जैसा हो गया और अगले ही पल उसने उस एयरहोस्टेस को देखा। वो चमक गया और माही की तरफ देखकर बोला, "देख माही, अब तूने मुझे भाई बना दिया है। देख, मुझे पसंद तो नहीं आया। लेकिन अब तू मेरी छोटी बहन है। तो चल, छोटी... तेरी भाभी ढूंढ़ते हैं।"
माही तो चकित होकर बोगस लगते रोम को आंखें फाड़कर देखती रह गई।
रोम ने इतनी ही देर में परफ्यूम लगाया। स्प्रे की खुशबू गाड़ी में ज्यादा देर तक टिक नहीं सकी क्योंकि वह खुली थी।
रोम ने गाड़ी के शीशे में अपना चेहरा देखा, मस्त हेयरस्टाइल किया। जैसे वह रोम हो ही न, इतना स्मार्ट लगने लगा और गाड़ी का दरवाजा खोलकर अपना बायां पैर नीचे रखा। जैसे ही वह गाड़ी से स्टाइल में खड़ा होने गया कि उसकी नज़र बूट की खुली वाधरी (जूते के फीते) पर पड़ी। एंट्री दिखाए उससे पहले ही फिर से गाड़ी में बैठ गया।
“क्या हुआ रोमियो रोम?” विनय बोला।
रोम अब भी ब्लैक एंड वाइट फिल्म के किसी एक्शन हीरो की तरह एंट्री में अपना बायां पैर अपने दाएं घुटने पर रखे बैठा था। फिर बोला, “तेरी भाभी को पता ना चले ऐसे बूट के फीते बाँध दे।”
माही को अब हैरानी कम हो रही थी क्योंकि रोम अपना लुक तो बदल सकता है लेकिन स्वभाव नहीं। इसलिए माही बोली, “भइया अब तो शू लेसिस बाँधना सीखिए।”
रोम ने एकदम फिल्म के खलनायक की तरह नज़र घुमाई और माही की तरफ देखकर बोला, “हाँ तो उसे अभी हाँ नहीं बोली। इसलिए मैं अब भी कुंवारा हूँ। हमें कुंवारों को ये सब नहीं आता।”
जीद हँस पड़ी, उसका हँसने का मतलब विनय से था। विनय समझ गया और रोम अभी उनके रोमांस में आड़े आए उससे पहले ही उसके बूट के फीते बाँध दिए।
रोम माही का हाथ पकड़कर ले गया और चलते-चलते बोलता जा रहा था, “देख, वैसे तो मेरी कोई बहन नहीं इसलिए मुझे कोई राखी नहीं मिलती। पर मैं तुझे रक्षाबंधन में महंगा गिफ्ट नहीं दूँगा।”
“हाँ! तो भाई होना ही मेरे लिए बड़ी खुशी है।” माही बोली।
दोनों आगे निकल गए थे। अब विनय गाड़ी को पार्क करके जीद को गाड़ी से बाहर निकलने के लिए हाथ देता है। विनय और जीद दोनों ही हल्के-हल्के मुस्कुरा रहे थे। फिर विनय अपनी शर्ट ठीक करता हुआ बोला, “तो चलें हम भी म्यूज़ियम?”
“हाँ क्यों नहीं!” जीद बोली।
“तू कितना जानती है इंडियन म्यूज़ियम के बारे में?” विनय ने जीद से बातचीत की शुरुआत सवाल से की।
“मैं ज़्यादा तो नहीं जानती। एक बार कॉलेज के प्रोफेसर ने कोलकत्ता के इंडियन म्यूज़ियम की बात की थी।” जीद भी बातचीत को आगे बढ़ाना चाहती थी जैसे बोल पड़ी।
“हम्म... मतलब कि पहली बार तू उस म्यूज़ियम को अपनी आँखों से देख रही है। जिसे तूने सिर्फ सुना था।” विनय खुश होते हुए बोला।
“हाँ, ये बात तो सच है।” जीद को आगे कुछ सूझा नहीं इसलिए उसने सिर्फ हाँ में जवाब दिया।
“हाँ तो अब मैं तेरा गाइड। हालाँकि यहाँ ज़्यादातर विदेशी गाइड का उपयोग करते हैं, लेकिन मुझे स्वदेशी गाइड बनना ज़्यादा पसंद आएगा।” विनय बोला।
“हम्म... ओके, मुझे भी नया जानना पसंद है। वो भी...” जीद रुक गई लेकिन उसकी आँखें साफ बोल रही थीं कि, “आपके साथ।” खैर, विनय वो जीद की स्माइल से समझ गया था।
“तो अब मैं तुझे इंडियन म्यूज़ियम के अंदर ले जा रहा हूँ।” जीद की तरफ देखकर विनय बोला और आगे बढ़ना शुरू किया।
चलते-चलते विनय म्यूज़ियम की बातें करना शुरू करता है।
“इंडियन म्यूज़ियम की शुरुआत दो फरवरी अठारह सौ चौदह में की गई थी। भारत का सबसे बड़ा और सबसे पुराना म्यूज़ियम यानी इंडियन म्यूज़ियम। जिसे हम कोलकत्ता वाले ‘जादूघर’ कहते हैं। हालाँकि अब तू भी...” विनय का रुकना जीद का ध्यान उसकी तरफ खींच गया।
“पर... क्या?” जीद ने रोमांस बढ़ाने के लिए सवाल किया।
“कोलकत्ता की हो गई है।” विनय ने जीद से बात करने का साहस बढ़ाया।
“हम्म... पर मुझे अब भी गुजरात ज़्यादा पसंद है।” विनय के रोमांस में थोड़ा दखल डालते हुए जीद बोली।
इसलिए विनय फिर म्यूज़ियम की बात पर आ गया। “इसके अंदर प्राचीन वस्तुएँ, जीवाश्म और मुग़ल चित्र ऐसे हैं जो कहीं और मिलना मुश्किल है। तो हम सबसे पहले चलेंगे शिवालिक जीवाश्म सेक्शन में, जहाँ मैमल गैलरी है। जिसमें हम प्राचीन जानवरों के कंकाल देखेंगे।”
जीद वो सुनते ही बोल पड़ी, “नहीं, मुझे वो नहीं देखना।” जैसे उसे उल्टी आ रही हो वैसे करने लगी।
आख़िरकार एक गुजराती स्त्री के लिए कोई कंकाल देखना आसान नहीं। क्योंकि जिसने अंडा देखकर ही उल्टी कर दी हो वो कंकाल देखने की ताकत नहीं रख सकती।
विनय उसकी बात से सहमत हुआ और फिर धीरे-धीरे दोनों पुरानी मूर्तियाँ देखने आर्कियोलॉजी गैलरी में चले जाते हैं।
दूसरी तरफ रोम और माही एयर होस्टेस के पीछे-पीछे मिस्र की ममी देखने जाते हैं।
रोम अब माही से एक क़दम आगे चल रहा था और एयर होस्टेस से थोड़ा ही दूर था।
वो अपनी फ्रेंड के साथ इंग्लिश में बातें करती-करती चल रही थी।
रोम दूर था इसलिए ज़्यादा समझ नहीं पा रहा था पर जब एयर होस्टेस ने पीछे मुड़कर देखा तो रोम फिर चिपक गया। वो मुस्कुराने लगी।
माही अपने भाई की मूर्ति को टकोरे मार कर खिसकाने लगी।
रोम की मूर्ति फिर निखरी और रोम घबरा कर एकदम बोला, “ए..य...” उसकी चीख थोड़ी ज़्यादा थी इसलिए आस-पास के लोगों की नज़र उस पर पड़ी।
पर रोम को उनकी कोई परवाह नहीं थी। वो फिर एयर होस्टेस के पीछे चलने लगा। अपने बाल ठीक कर रहा था, माही फिर उसके पीछे पर्स लेकर चलने लगी।
अब रोम और वो एयर होस्टेस और उसकी सभी फ्रेंड्स ममी देखने खड़े हुए।
उसी समय एक लड़की ने एयर होस्टेस के कंधे पर हाथ रखकर कहा, “आराध्या मुझे बहुत डर लग रहा है।”
और रोम उसी समय अचानक मिस्र की ममी देखकर डर गया और बम निकल गई। “आ...आ……” जिसकी वजह से आराध्या और उसकी फ्रेंड्स भी डर गए और इधर-उधर भागने लगे।
अभी आराध्या भाग ही रही थी कि वो फिसल कर ताबूत पर गिरने ही वाली थी कि रोम ने उसकी कमर पर हाथ रखकर उसे रोक लिया।
आराध्या रुक गई थी। माही का मुँह खुला रह गया।
रोम को ये सीन अब ज़िंदगी भर याद रहेगा और उसने धीरे से उसे सीधा किया।
उसकी सहेलियाँ वहाँ पहुँच गईं। रोमांटिक पल में खलल डालते हुए एक लड़की बोली, “यहाँ तो सब कुछ ठीक है, तो चीख किसने मारी थी?”
अब रोम समझ गया कि अब उसे यहाँ से निकलना पड़ेगा और फटाफट गायब हो गया।
***
**प्रेम का स्वीकार**
'ॐ श्रां श्रीं श्रौं चन्द्रमसे नम:।'
“एक सौ पूरे...” रोम अपनी उंगलियों की गाँठों से गिनते-गिनते बोला।
ब्राह्मण की नजर रोम पर पड़ी। उसके सामने ही यज्ञ में 108 बार हवन कर चुकी जिद पसीने से लथपथ हो गई। माही जिद के पास ही मंदिर के प्रांगण में बैठी थी। विनय अपनी घड़ी अपनी पैंट की दाईं जेब में रखते हुए रोम को रोकते हुए धीरे से बोला।
“धीरे रोम... धीरे।”
रोम ने उसे थोड़ी तल्खी से देखा। दोनों आँखें उसकी आँखों से मिल रही थीं और नाक मेढ़क की तरह फूलने लगी। तो विनय उसे शांत करते हुए बोला। “मतलब तू ऐसा मानता है कि, वो एयरहोस्टेस की सहेलियों से मैंने कहा था!”
“मैं मानता नहीं हूँ पर जानता हूँ।” रोम ने आवाज़ ऊँची की।
विनय उसे शांत करने फिर बोला। “अरे... रोम तुझे तेरे भाई जैसे भाईबंद पर विश्वास नहीं!”
“विश्वास! गले तक का विश्वास है कि, मेरी ज़िंदगी की पहली रोमांटिक पल तू ही और तू ही बिगाड़ सकता है।” रोम विनय की ओर उंगली करते हुए बोला।
हवन में बैठी जिद और माही हल्के-हल्के मुस्कुरा रही थीं। क्योंकि, रोम की रोमांटिक पल विनय ने बिगाड़ी ये बात माही ने जिद से कही थी। जो बात लेकर माही ने अपने नए भाई से कही। जो अभी ककड़ी की तरह लाल-पीला रंग का हो रहा है और जोर-जोर से साँस लेकर अखलान की तरह निकाल रहा है।
“अरे... ऐसे दोस्तों से तो दुश्मन ही अच्छे...
जो ना देख सके अपने ही दोस्त के बच्चे।”
रोम गुस्से में शायरी बड़बड़ाता था।
“बच्चे...!” बोलकर जिद और माही ठहाके मारकर हँसने लगीं। पुजारी ये सब नाटक देख रहा था और अपने सिर को खुजा रहा था। कोलकाता में हिंदी बोलनेवाला ब्राह्मण ढूंढ़ना बहुत ही मुश्किल काम था। जिसके सामने ये सब लोग गुजराती बोल रहे थे। उसका सिर खुजलाना स्वाभाविक था।
“मैं तुझसे बात नहीं करूँ।” रोम बोला। विनय आगे कुछ न बोले जिससे उसकी पोल खुल जाए। वह अब पंडित से बात करने लगा।
“पंडितजी पूजा पूरी हो गई! तो हम चलें यहाँ से।” विनय को जाने की जल्दी थी क्योंकि, उसे अभी स्नेहा का केस सॉल्व करना है।
जिद उठ गई। माही भी उसके पीछे-पीछे चंद्रदेव को हाथ जोड़ती उठी। जिद ने अपना पर्स उठाया और पंडितजी की ओर देखकर बोली। “पंडितजी कितनी दक्षिणा हुई?”
पंडित ने पहले विनय की तरफ देखा। विनय उसे इशारे में मना कर रहा था। तो पंडित ने धीरे से कहा। “कुछ नहीं बेटा हम तो चंद्रदेव के भक्त हैं। उनके लिए इतना तो कर ही सकते हैं।”
पंडित अभी पूरी बात बोला ही नहीं था कि रोम पीछे से बोल पड़ा। “क्या इशारे कर रहा है पंडित को?”
विनय मन ही मन बड़बड़ाया (आज तो ये मेरी वाट लगवाके ही रहेगा।)
“हाँ तो मेरी बरबादी करके। तू शांति से कैसे जी सकता है?” जैसे उसके मन की बात जान गया हो, वैसे रोम बोला।
विनय आश्चर्य से देखने लगा। फिर पंडित को दक्षिणा देकर सब वहाँ से निकल पड़े। माही, रोम और पंडित आगे गाड़ी के पास पहुँचे। उस समय विनय जिद का सामान पैक करने में मदद करने लगा। यज्ञ कुंड के पास ही एक पुस्तक पड़ी थी। विनय ने उसे अपने हाथ में ली और जैसे ही खोलने गया कि जिद ने तुरंत उसके हाथ से झटक ली। विनय चकित हो गया।
“क्या हुआ?” विनय बोला।
“कुछ नहीं। बस ऐसे ही मुझे मेरी चीज़ें किसी और को छूने देना पसंद नहीं।” जिद घबराहट में बोल उठी।
(दूसरे शब्द सुनते ही विनय निराश हो गया।) “सॉरी।” बोलकर विनय उठकर गाड़ी की तरफ चलने लगा। जिद को लगा कि घबराहट में ज़्यादा बोल गई। तो थोड़े ऊँचे स्वर में बोली। “सॉरी। मेरा कहने का मतलब वो नहीं था।”
विनय रुक गया और थोड़ी मुस्कान के साथ बोला। “मतलब हो या न हो, सच तो है ही।”
“नहीं, सच नहीं है।” जिद जैसे किसी बिजली का करंट लगा हो, वैसे बोली।
“हाँ तो बताओ मैं तुम्हारे लिए कौन हूँ। तुम्हें क्या लगता है मैं क्या हूँ तुम्हारा। कुछ भी नहीं!” विनय तड़प उठा।
“मेरा... मेरा...” जिद बोलने की हिम्मत नहीं कर पा रही थी। विनय भी टकटकी लगाए उसकी ओर ही देख रहा था। थोड़ी देर में जिद की आँखों में आँसू आ गए। जैसे उसके दिल से ज्वालामुखी फट पड़ा हो। विनय बात को समझते ही जिद से लिपट गया।
“माफ कर दो मुझे। मैं तो बस तुम्हारे मुँह से सुनना चाहता था। आई लव यू। लव यू सो मच।” विनय जिद को बाहों में समेटकर बोल रहा था।
जिद उसके साथ हमेशा रहना चाहती थी इसलिए वो बोली। “तो इस मंदिर की साक्षी में कसम खाओ। मुझे कभी नहीं छोड़ोगे।”
***