Shri Bappa Raval - 3 in Hindi Biography by Bappa Rawal books and stories PDF | श्री बप्पा रावल - 3 - सिन्धी गुप्तचर दल

Featured Books
Categories
Share

श्री बप्पा रावल - 3 - सिन्धी गुप्तचर दल

द्वितीय अध्याय 
सिन्धी गुप्तचर दल 

हिन्द-सेना ब्राह्मणाबाद के किले की रक्षा में सफल हो चुकी थी। पूरे नगर के सबसे ऊँचे किले की चोटी पर हिन्द-सेना के गौरव का प्रतीक केसरिया ध्वज वायु के बहते प्रवाह के समक्ष अपना सर ऊँचा किये यूँ लहरा रहा था मानों चारों दिशाओं को अपने प्रभुत्व का संकेत भेज रहा हो। 

शीघ्र ही किले का विशाल द्वार खुला और पुष्प वर्षा से सभी प्रमुख वीरों का स्वागत हुआ। सिंध नरेश महाराज दाहिर, कन्नौज नरेश नागभट्ट, मेवाड़ नरेश मानमोरी के साथ कंधे से कंधा मिलाता हुआ कालभोज (बप्पा रावल) गर्व से सीना ताने किले के भीतर चला आ रहा था। अपने सेनापति को अपने बराबरी का सम्मान मिलता देख मानमोरी के कलेजे पर सर्प लोट रहा था, किन्तु वो जानते थे कि परिस्थिति अनुसार अभी मौन रह जाना ही श्रेष्ठ था। 

राजस्त्रियों का एक दल आरती की थाल लिए महाराज दाहिर के स्वागत के लिए पहुँचा। दल का नेतृत्व कर रही दो स्त्रियों ने राजा दाहिर के निकट आकर उनका राज तिलक करके बारी-बारी से चरण स्पर्श किये। राजा दाहिर ने मुस्कुराते हुए उनके समक्ष हाथ जोड़े, “महारानी ‘मैनाबाई’, और महारानी ‘लादी’। हमें वास्तव में आप दोनों पर बहुत गर्व है।” 

छोटी रानी लादी ने मुस्कुराते हुए महाराज दाहिर के प्रसन्नचित नेत्रों की ओर देखा, “इसका श्रेय केवल हमारा नहीं है, अपितु आपके पुत्र वेदान्त के साथ सेनापति स्याकर को भी जाता है।” कहते हुए महारानी ने मुख पर मुस्कान लिए बाईं ओर दस गज की दूरी पर खड़े दो योद्धाओं की ओर संकेत किया। 

दोनों योद्धाओं ने महाराज दाहिर के निकट आकर उन्हें प्रणाम किया। सर्वप्रथम दाहिर ने पगड़ी पहने रौबीली मूँछ वाले योद्धा की ओर देखा। हाथ पर गुदे घावों के चिन्ह और मुख से अनुभव स्पष्ट झलक रहा था। राजा दाहिर ने उसकी प्रशंसा करते हुए कहा, “अद्भुत कार्य किया आपने सेनापति स्याकर, दस सहस्त्र की सेना लेकर आपने तीन मास तक पचास सहस्त्र के अरब सैन्यदल को देखकर भी आपने समर्पण नहीं किया। आप वास्तव में सिंधुदेश का गौरव हैं।” 

स्याकर अपने साथ खड़े नवयुवक योद्धा की ओर देख मुस्कुराया और उसकी पीठ थपथपाते हुए कहा, “ना केवल धनुर्धरों की टुकड़ी, अपितु गुप्तचर विभाग का नेतृत्व भी आपके इस पुत्र ने किया है। मुझसे अधिक श्रेय तो राजकुमार वेदान्त को जाता है। इतनी कम आयु में ही जो अद्भुत रणनीति इस युवक ने दिखाई है उससे हमें विश्वास हो गया है कि सिंधु देश का भविष्य सुरक्षित हाथों में है। और आलोर के किले की रक्षा कर रहे युवराज जयशाह की तो जितनी प्रशंसा की जाये उतनी कम है। उन्होंने भी महीनों से साठ सहस्त्र की अरब सेना को किले में प्रवेश नहीं करने दिया। फिर जब बहुत से अरबी सैनिकों का साहस टूट गया, फिर जय ने बजील नाम के अरबी हाकिम और उसकी पंद्रह सहस्त्र की सेना को महज चार सहस्त्र घुड़सवारों को लेकर पराजित कर उसका वध कर दिया। हालांकि आलोर के किले को अब भी सहस्त्रों अरबियों ने घेर रखा है, किन्तु रसद और जल की कमी अब उनका मनोबल तोड़ रही है।” 

महाराज दाहिर ने प्रेम से वेदान्त के मस्तक पर हाथ फेरा और उसे हृदय से लगाते हुए अपनी बड़ी महारानी मैनाबाई की ओर दृष्टि डाली, “विषम परिस्थियों में शत्रु के विरुद्ध रणनीति निश्चित करने का ज्ञान तो हमारे पुत्रों को उनकी माता से ही मिला है।” फिर वो महारानी मैनाबाई के निकट आये, “बहुत समय हो गया, हमें अपनी पुत्रियों के दर्शन नहीं हुए ?”

महारानी मैनाबाई ने मुस्कुराते हुए कहा, “सूर्य और प्रीमल को तो हमारी ही भाँति शस्त्रों से अधिक प्रेम है। वो तो अपने ज्येष्ठ भ्राता के साथ आलोर में ही हैं। हाँ, कमल को नृत्य में रुचि थी, इसलिए वो यहाँ ही रह गई।” 

“महीनों बाद महल लौट के आने का अवसर मिला है। सबसे बारी-बारी भेंट की जायेगी। किन्तु अभी हमारे अतिथियों को स्वागत की अधिक आवश्यक है।” कहते हुए महाराज दाहिरसेन महाराज मानमोरी और कन्नौज नरेश नागभट्ट से सबका परिचय कराते हुए कालभोज की ओर मुड़े, “और ये हैं..।”

“वही जिन पर हरित ऋषि की असीम अनुकंपा है।” कहते हुए वेदान्त कालभोज की ओर बढ़ा, “रणभेरी से उठे नाद ने स्वयं आपके पराक्रम की व्याख्या कर दी है, महाबली कालभोज। आप वास्तव में भारत भूमि का गौरव हैं, और ये मेवाड़ की मिट्टी का सौभाग्य है जो उसने आप जैसे वीर को जन्म दिया है।” 

मैनाबाई ने भी अपने पुत्र का समर्थन करते हुए कहा, “हमारी रसद सामग्री समाप्त होने को थी, वास्तव में यदि आप लोग समय पर न आये होते तो न जाने क्या होता।” 

कालभोज ने मुस्कुराते वेदान्त की ओर देखा, “हमने तो बराबर की सेना से युद्ध किया, राजकुमार। अधिक विनाश न हो बस इसलिए कुछ समय के लिए अपनी शक्ति को क्षीण दिखाया और विजय प्राप्त कर ली। किन्तु आप..।” कहते हुए कालभोज ने चारों ओर दृष्टि घुमाकर किले का विश्लेषण करने का प्रयास किया, “इतना विशाल किला जहाँ से शत्रु प्रवेश करने के कई मार्ग खोज सकता है। आप लोगों ने केवल दस सहस्त्र योद्धाओं को लेकर स्वयं से चार गुनी अरबी सेना को इसमें प्रवेश करने से रोके रखा..? अद्भुत। कैसे किया आपने ये ?” 

वेदान्त ने मुस्कुराते हुए महाराज दाहिर की ओर देखा, उनकी सहमति का संकेत मिलने पर वो कालभोज की ओर मुड़ा, “सिंध के नगरों पर अरबियों का ये तेरहंवा आक्रमण था, मित्र। इसीलिए हमने उसी अनुसार वर्षों से अपने गुप्तचर दलों को तैयार किया है। हमारी सीमाओं पर तो वो अरबी वर्षों से अपनी चौकियाँ बना रहे हैं, तो हम भला मौन कैसे रह सकते थे?” 

“अद्भुत..। इसका अर्थ है कि आपके गुप्तचर आरम्भ से ही अरबियों की सेना में थे, और हर समय आपको ये संदेश मिल जाता था कि वो किले के किस भाग पर आक्रमण करने वाले हैं।” 

“निसंदेह।” वेदान्त ने मुस्कुराते हुए स्याकर की ओर संकेत करते हुए गर्व से कहा, “शेष कार्य हमारे विशिष्ट धनुर्धर दल ने किया। साथ ही दूसरे दल का नेतृत्व करते हुए हमारी माता महारानी मैनाबाई ने किया और तीसरे दल का नेतृत्व करते हुए सेनापति स्याकर ने अरबियों के दाँत ऐसे खट्टे किये कि उनका किले के भीतर प्रवेश करने का प्रसंग ही उत्पन्न नहीं हुआ।” 

“बड़ा अद्भुत गुप्तचर विभाग है आपका।” कहते हुए कालभोज महाराज नागभट्ट की ओर मुड़ा और साथ में मानमोरी को भी संबोधित करते हुए बोला, “ब्राह्मणाबाद और आलोर सिंध के सबसे महत्वपूर्ण भाग हैं। यदि विदेशी आक्रान्ताओं ने इन पर विजय पाली, तो भारतवर्ष के कई राज्य संकट में पड़ जायेंगे। मेरा सुझाव है कि हिन्दसेना की एक और विशिष्ट सैन्य टुकड़ी यहाँ इस नगर में तैनात किया जाये, और आलोर में अरबियों से संघर्ष करते युवराज जयशाह को सैन्य सहायता भेजी जाये। किन्तु इसके लिए आप दोनों की सहमति की आवश्यकता है।” 

नागभट्ट ने बिना संकोच किये एक क्षण में समर्थन दे दिया, “निसंदेह, कालभोज। हमें कोई आपत्ति नहीं है।” कहते हुए वो मानमोरी की ओर मुड़े, “आपका क्या मन्तव्य है मेवाड़ नरेश ?” 

मानमोरी को भी मन मसोस कर सहमति जतानी पड़ी, “भला मुझे क्या आपत्ति हो सकती है, महाराज?” 

यह सुन दाहिर भाव विभोर होकर मानमोरी और नागभट्ट के निकट गये, “आप दोनों का बहुत बहुत आभार। हम सदैव आपके ऋणी रहेंगे।” 

नागभट्ट ने मुस्कुराते हुए दाहिर के कंधे पर हाथ रखा, “ऋण का तो प्रश्न ही नहीं उठता, महाराज। ये उत्तम निर्णय कालभोज का है, और हमें भी इसमें समग्र भारतवर्ष के सुरक्षित भविष्य की कुंजी दिखाई देती है।” 

“हाँ, क्यों नहीं। आखिर हरित ऋषि का शिष्य जो ठहरा।” मानमोरी ने भी बेमन से ही सही किन्तु अपना समर्थन प्रदर्शित किया। 

दाहिर ने मुस्कुराते हुए महल की ओर संकेत किया, “पहले भीतर आकर हमें अपनी आवभगत का अवसर तो दें। फिर इस विषय पर भी गंभीरता से चर्चा करेंगे।” 

नागभट्ट और मानमोरी ने सहमति में सिर हिलाया और आगे बढ़े। भीतर जाने से पूर्व कालभोज भी वेदान्त के निकट आया, “यदि आपको हम पर विश्वास हो, तो हम आपके गुप्तचर विभाग के प्रमुख लोगों से अवश्य भेंट करना चाहेंगे, राजकुमार।” 

वेदान्त ने मुस्कुराते हुए कालभोज के नेत्रों में देखा, “हरित ऋषि के सर्वश्रेष्ठ शिष्य का आग्रह भला कौन ठुकरा सकता है। सूर्यास्त होते ही हम आपको वहाँ ले चलेंगे।” 
****** 

संध्या भोज के समय मानमोरी, नागभट्ट और दाहिर साथ में भोज पर बैठे। तभी कालभोज भी उनके साथ भोजन करने आया। उसका यूँ अपने बराबरी में बैठना मानमोरी को तनिक भी न सुहाया। फिर भी उन्होंने अपने क्रोध को दबाकर भोजन का निवाला किसी प्रकार निगला। 

बातों ही बातों में मानमोरी ने वार्ता छेड़ने का प्रयास किया, “संघर्ष अभी सम्पूर्ण नहीं हुआ है, महाराज दाहिर। सिंध के कई नगरों में अब भी अरबियों की चौकियाँ स्थित हैं, जिन्हें आपने तीन माह का समय दिया है।” श्वास भरते हुए मानमोरी ने कालभोज की ओर देखा, “अब विडंबना ये है इसके दो परिणाम हो सकते हैं। या तो वो हमारी चेतावनी से भयभीत होकर सिंध से चले जायेंगे, या अपनी शक्ति कई गुना बढ़ाकर पुनः आक्रमण करेंगे।” 

“तो कदाचित हमें भी अपनी शक्ति में वृद्धि करने का प्रयास करना चाहिए।” महाराज नागभट्ट ने सुझाव दिया, “और शीघ्रता से अपनी सैन्यदल बढ़ाने का बस एक ही उपाय है..।”
 
“चालुक्यों से संधि नहीं होगी, कन्नौज नरेश। यदि आप उनसे संधि करना चाहते हैं तो हमारे मध्य की संधि समाप्त समझिए।” मानमोरी ने कठोर स्वर में कहते हुए भोजन का निवाला मुख में डाला। 

मानमोरी के कथन पर बाकियों को मौन देख कालभोज ने मेवाड़ नरेश को समझाने का प्रयास किया, “किन्तु महाराज, यदि अगली बार अरबियों की संख्या कहीं अधिक हुई तो सहायता की आवश्यकता पड़ सकती है।” 

कालभोज का यूँ व्यवधान उत्पन्न करना मानमोरी से सहन न हुआ। उन्होंने मुठ्ठियाँ भींचते हुए अपने भांजे को घूरा, “स्मरण है न कि इस शत्रुता का कारण तुम्हारे पिता थे। तो उचित होगा कि अपनी मर्यादा लांघकर राजाओं की वार्ता में हस्तक्षेप करने का दुस्साहस न करो।” 

कालभोज ने सहमति में सर हिलाते हुए अपनी दृष्टि नीचे कर ली। नागभट्ट और दाहिर ने भी संधि का मान रखने हेतु कुछ नहीं कहा। वो जानते थे कि मानमोरी जैसे जड़ बुद्धि को समझाने का प्रयास करना मूर्खता होगी। 

वहीं परदों के पीछे से एक मृगनयनी कन्या कालभोज को बड़ी जिज्ञासा पूर्वक निहार रही थी। सहसा ही रावल की दृष्टि उस पर पड़ी, यह देख वो पल्लू से अपना अपना सर ढकेने को हुई वो जल्द ही परदे के पीछे छिप गयी। कालभोज ने उस पर अधिक ध्यान नहीं दिया, किन्तु वो कन्या अपने पीछे खड़े वेदांत की दृष्टि से बच ना पायी। उसने उस कन्या के निकट आकर धीरे से कहा, “वैसे वो कोई राजा या राजकुमार नहीं है, राजकुमारी ‘कमलदेवी’। आपकी मंशा यदि पिताश्री को ज्ञात हुई तो कदाचित वो रुष्ट हो जायेंगे।” 

“बस कीजिए भ्राता।” इठलाते हुए राजकुमारी कमल वेदान्त की ओर मुड़ी, सूर्यमुखी पुष्प समान कोमल मुख से उसकी आयु कालभोज जितनी ही लग रही थी। अपनी स्वर्णिम बालियों पर हाथ फेरकर उसने एंठते हुए अपने भ्राता से कहा, “वैसे भी, सुना है जन्म से वो भी नागदा के राजकुमार ही थे। और आप जानते हैं कि राज्य और संपदा के आगे हमने सदैव शौर्य को सराहा है। तो आप व्यवस्था कीजिए पिताश्री मनाने की, हमें नहीं पता।” अपना पल्लू संभाले कमल वहाँ से प्रस्थान कर गयी। वहीं वेदान्त ने मुस्कुराते हुए कालभोज की ओर देखा फिर वापस मुड़ गया। 
****** 

शीघ्र ही रात्रि का समय आया। घने वन के बीचों बीच तलवारों के प्रहार से झाड़ियों को अपने मार्ग से किनारे हटाते हुए वेदान्त और कालभोज बढ़े चले जा रहे थे। 
तभी एक कंटीली झाड़ी रावल के कंधे पर चुभी, उसे अपनी तलवार से किनारे करते हुए कालभोज ने वार्ता छेड़ने का प्रयास किया, “प्रतीत होता है। बहुत समय से इस मार्ग से कोई आया नहीं है, मित्र?” 

वेदान्त भी एक झाड़ी को काटकर गिराते हुए पलटा, “अनुमान उचित है आपका। पूरे चार वर्षों के उपरान्त कोई मनुष्य इस मार्ग से आ रहा है।” 

“तो क्या पिछले चार वर्षों से..?” कालभोज को थोड़ा आश्चर्य हुआ, “नहीं, एक क्षण रुकिए। इसका अर्थ है कि गुफा तक पहुँचने के और भी मार्ग हैं। अवश्य ही वो इससे भी दुष्कर हैं ?” 

“अद्भुत बुद्धि पायी है आपने मित्र।” वेदान्त प्रभावित हुए बिना नहीं रह पाया, “हमारे साथ चलते रहिए, आपकी जिज्ञासा शीघ्र ही शांत हो जायेगी।” 

सहमति जताते हुए कालभोज वेदान्त के पीछे चल पड़ा। कुछ क्षणों तक चलने के उपरान्त अकस्मात ही कालभोज को पत्तों के हिलने का स्वर सुना। उसे आभास सा हुआ कि कोई उसके निकट से गुजरा है। उसने दृष्टि ऊपर उठाकर देखा तो एक पंक्ति के तीन वृक्षों के कुछ पत्ते झड़ते हुए दिख रहे थे। कालभोज कुछ पग आगे बढ़कर उन गिरे हुए पत्तों के निकट गया और उन्हें ध्यान से देखा। 

वहीं वेदान्त ने मुस्कुराते हुए प्रश्न किया, “क्या हुआ मित्र? रुक क्यों गये?” 

“कुछ लोग हमारा पीछा कर रहे हैं। तुमने पत्तों की सरसराहट नहीं सुनी?” 

वेदान्त ने इधर-उधर दृष्टि घुमाते हुए कहा, “वानर भी तो हो सकते हैं?” 

“नहीं, तीन सीधे वृक्षों पर कूदते हुए वानर इतना धीमा स्वर उत्पन्न करें, और केवल पाँच छे पत्ते ही झड़ें, इसकी संभावना ना के बराबर है।” 

कालभोज का विश्लेषण देख वेदान्त के मुख पर मुस्कान आ गयी, “आप अद्भुत हैं, मित्र। वास्तव में आज मुझे भान हुआ कि महर्षि हरित की आप पर इतनी अनुकंपा क्यों हैं?” कहते हुए उसने चुटकी बजाते हुए चीखते हुए आदेश दिया, “प्रस्थान।” 

अगले ही क्षण चारों ओर छाई शांति पत्तों की सरसराहट से अकस्मात ही भंग हो गयी। कालभोज ने चहुं ओर दृष्टि घुमाई। रस्सियों की सहायता से एक वृक्ष से दूसरे वृक्ष पर कुछ मनुष्य वानर की भाँति छलांग लगा रहे थे, वो भी उनसे बहुत कम स्वर उत्पन्न करने के साथ-साथ कम से कम पत्ते गिराते हुए। साथ ही अधिकतर समय उनके शरीर का नब्बे प्रतिशत भाग छिपा ही रहता। 

उन सबकी ओर देख कालभोज हतप्रभ सा रह गया, “इतनी तीव्र गति से एक वृक्ष से दुसरे वृक्ष पर कूदते हुए इतने धीमे स्वर उत्पन्न करना। ऐसे में तो इनके आसपास होने का अनुमान लगाना बहुत कठिन सिद्ध होगा। अद्भुत गुप्तचर टोली है आपकी, राजकुमार वेदान्त।” 

“वर्षों का प्रशिक्षण है, मित्र। किन्तु अब भी हमारा प्रयास है कि इस क्रिया में वृक्ष से जो पत्ते गिरते हैं वो न हो और हमारे शरीर का थोड़ा भी भाग न दिखे। क्योंकि इससे कोई चतुर शत्रु सतर्क भी हो सकता है।” 

कालभोज ने वेदान्त के निकट आकर उसके कंधे थपथपाये, “बहुत उत्तम पराक्रम है, मित्र। मैं भी शीघ्र ही इसका अभ्यास आरम्भ करूँगा। और आशा है कि अपनी इस विद्या को परिपक्व करने में आप भी शीघ्र ही सफल होंगे।” 

“प्रयास तो हमारा भी यही है। हमारे साथ आईए।” कहते हुए वेदान्त आगे बढ़ा। 

शीघ्र ही वो दोनों अंधकारमय वन के बीचों बीच स्थित एक कन्दरा के निकट आये। घासफूस से ढके कन्दरा के द्वार के निकट पहुँचते ही वेदान्त ने मुख से एक विचित्र सा स्वर निकाला। उसकी ये प्रतिभा देख कालभोज थोड़ा विस्मित हुआ। अगले ही क्षण कन्दरा के मुख पर रखा पत्थर हटा। जिसे भीतर से चार लोग मिलकर खिसका रहे थे। 

कालभोज और वेदान्त ने कन्दरा के भीतर प्रवेश किया। भीतर का क्षेत्र इतना विशाल था कि एक सहस्त्र मनुष्य बड़ी सरलता से उसमें समा जाए। सबसे आगे की पंक्ति में लाल पगड़ी, कंधे पर जनेऊ बांधे और सफेद धोती पहने हष्ट पुष्ट कद काठी वाले इक्कीस योद्धा खड़े थे। उनकी ओर संकेत करते हुए वेदान्त ने उनका परिचय देते हुए कहा, “बोधिसत्व दल, ये लोग समग्र संसार की सारी भाषाओं, आचार-विचार, युद्धकला और उनकी संस्कृति से न केवल भलीभाँति परिचित हैं, अपितु संसार के हर कोने में कम से कम एक माह का समय बिताकर आये हैं। इनका कार्य है हमारे गुप्तचर दल के समस्त सदस्यों को उनके अभ्यानुसार उनके गंतव्य की सारी भौगोलिक परिस्थितियों से परिचित कराकर उन्हें वहाँ की हर कठिनाइयों के लिए मानसिक रूप से तैयार करना।”
 
कालभोज ने चंद क्षणों तक उन इक्कीस मनुष्यों को ध्यान से देखा। उसके उपरान्त वेदान्त ने एक दल में इकठ्ठे हुए इक्यावन पुरुषों की ओर संकेत किया, जिनमें से कईयों के शरीर सतायें हुए श्रमिकों की भाँति दुर्बल लग रहे थे, कईयों के तो माँस से हड्डियाँ उभरी हुई दिखाई पड़ रही थी। कालभोज को उनकी इस जीर्ण शीर्ण दशा को देख आश्चर्य भी हुआ और कष्ट भी। उसने वेदान्त की ओर मुड़कर प्रश्न किया, “ये सब क्या है, राजकुमार?” 

“इनकी शक्ति और सामर्थ्य पर संदेह न करिये, मित्र। अद्भुत योगिक बल से इन्होंने अनंत संयम पाया है। ये वीर तीन दिवस में केवल एक बार भोजन करते हैं। किन्तु अपनी चपलता और युद्ध कला से अकेले ही दस अरबियों को धूल चटा सकते हैं।” 

कालभोज अब भी संशय में था। वेदान्त ने उसके निकट आकर समझाने का प्रयास किया, “जीर्ण शीर्ण अवस्था में ये अधिकतर लोगों को श्रमिक ही दिखाई देते हैं, इसीलिए इन पर संदेह होने की संभावना ना के बराबर होती है। 

‘श्रमिकधर्मा’ दल में जो भी आता है अपनी इच्छा से ही आता है। मातृभूमि की रक्षा का संकल्प लेने वालों पर शारीरिक कष्ट कभी हावी नहीं हो सकता।” 

कालभोज मुस्कुराया, मानों वेदान्त के दिए तर्क से सहमत हो। संतुष्ट होकर वेदान्त आगे बढ़ा और सामने सौ योद्धाओं को एक पंक्ति में खड़ा देख उनकी ओर संकेत करते हुए कहा, “शस्त्रसंताप दल। ये वो सौ विशिष्ट योद्धा हैं जिन्हें बोधिसत्व दल ने विभिन्न देशों की विशिष्ट युद्ध कलाओं में पारंगत बनाया है। कोई भी बोधिसत्व गुप्तचर यदि किसी यात्रा पर जाता है तो इनमें से तीन योद्धा उसके साथ अवश्य जाते हैं और उस राज्य, देश या नगर की शस्त्रविद्या और संस्कृति से परिचित होकर आवश्यकता अनुसार दूसरे अभियानों के लिए चुने जाते हैं।” 

इसके उपरान्त वेदान्त अंतिम पंक्ति की ओर बढ़ा, जिसमें तीन सौ योद्धा खड़े थे, “ये हमारे दल में प्रवेश करने वाले नये लोग हैं। ये सभी शस्त्र कला में निपुण हैं, किन्तु दो गुप्तचरी के अभियान से अधिक अनुभव किसी को नहीं है। आगे चलकर इनके समर्पण और योग्यता अनुसार ही इन्हें बोधिसत्व, श्रमिक धर्मा अथवा शस्त्रसंताप दल में प्रवेश मिलेगा।” 

कालभोज का मन प्रसन्न सा हो गया, “अद्भुत, वास्तव में अद्भुत। और मैं आपका धन्यवाद भी करना चाहूँगा मित्र। हमारी भेंट हुए एक दिन भी नहीं बीता और आपने मुझपर विश्वास करके अपनी गुप्तचर नीति से परिचित करवा दिया।”
 
“महर्षि हरित के कृपाधारी पर अविश्वास करने का तो प्रश्न ही नहीं उठता। किन्तु केवल यही कारण नहीं है जो मैं आपको यहाँ ले आया।” कहते हुए वेदान्त का स्वर गंभीर हो गया। 

“अर्थात? मैं समझा नहीं।” कालभोज को थोड़ा आश्चर्य हुआ। 

“मेरे साथ आइये।” वेदान्त श्वास भरते हुए आगे बढ़ा। 

शीघ्र ही दोनों कन्दरा के अंतिम छोर पर पहुँचे। वेदान्त ने निकट खड़े योद्धाओं को संकेत किया, उन्होंने द्वार पर पड़ा पत्थर हटाया। आगे से एक सुगम मार्ग स्पष्ट दिखाई दे रहा था। 

उस मार्ग की ओर देख वेदान्त ने कहा, “सिंधु देश पर अब तक तेरह आक्रमण हो चुके हैं, मित्र। और पिछले अठारह वर्षों में जन धन की बहुत हानि हुई है हमें। वो तो हिन्दसेना की कृपा थी जो हम इस बार विजयी हो गये। किन्तु परिस्थितियाँ कभी भी कोई भी मोड़ ले सकती हैं।” कहते हुए उसका स्वर मंद सा हो गया। 

“आपके मुख पर ये चिंतन का भाव मुझे विचलित कर रहा है, मित्र। बात क्या है?” 

अपनी मुठ्ठियाँ भींचते हुए वेदान्त ने साहस जुटाकर कठोर स्वर में कहा, “सम्भव है कि निकट भविष्य में मेवाड़ नरेश मानमोरी की मूर्खता से हिन्दसेना की अखण्डता भंग हो जाये। भले ही सिंध के पास भी एक शक्तिशाली सेना है, फिर भी हम पराजय की संभावनाओं को नकार नहीं सकते। इस मार्ग को कुछ इस प्रकार से तैयार किया गया है कि इसके द्वारा मेवाड़, कन्नौज और यहाँ तक कि दक्षिण के भी कई राज्यों तक बाकि मार्गों की तुलना में शीघ्रता से पहुँचा जा सकता है। किन्तु इस मार्ग पर कई बार वृक्षों से होकर जाना होगा, जिसमें हमारा ये गुप्तचर दल पारंगत है।” श्वास भरते हुए वेदान्त ने आगे कहा, “हमारे ये विशिष्ट गुप्तचर युद्ध में भाग नहीं लेते। इसलिए यदि सिंध पराजित हो गया तो हमारे गुप्तचर इसी मार्ग पर आपकी प्रतीक्षा करेंगे, या फिर स्थिति और विकट हो गयी तो कदाचित वो इसी मार्ग से आप तक पहुँच जायेंगे।” श्वास भरते हुए अपनी दृष्टि में आस लिए वेदान्त ने कालभोज की ओर देखा, “यदि सिंध में कोई अनिष्ट हो जाये, तो ऐसे में आपके अतिरिक्त ऐसा कोई नहीं जिस पर विश्वास कर सकें।” 

“आप..आपके कहने का अर्थ ये तो नहीं कि..” कालभोज को थोड़ी शंका हुई, “एक बार पुनः विचार कर लीजिये कुमार।”
 
अपने नेत्रों में दृढ़ता लिए वेदान्त ने मुस्कुराते हुए कहा, “यदि हमें अपने निर्णय पर तनिक भी संदेह होता, तो हमने आपको यहाँ लाया ही नहीं होता, मित्र। विश्वास रखिए, ये निर्णय महाराज दाहिर और युवराज जयशाह की सहमति के उपरान्त ही लिया गया।” कहते हुए वेदान्त का स्वर भारी सा हो गया, “यदि संकट समय आया तो अरबियों से पराजित होकर अपनी मातृभूमि का त्याग कर देने से उचित होगा कि हम रणभेरी के शंखनाद में अट्टाहस करते हुए वीरगति का आलिंगन करें। और यदि ऐसी स्थिति उत्पन्न हुई तो, हम सबकी इच्छा यही है कि सिंध के इस गुप्तचर दल का नेतृत्व आप करें।” 

कालभोज चकित रह गया, “मैं..ये आप क्या कह रहे हैं, मित्र ? मेरी आयु तो बस पंद्रह वर्ष की है।” 

“जिस वीर का चुनाव स्वयं महाऋषि हरित ने किया हो, उससे अधिक विश्वासपात्र और योग्य व्यक्ति और कोई हो ही नहीं सकता। और वो योद्धा जिसने चालुक्य सामंत गुहिलवंशी शिवादित्य जैसे दुर्जय योद्धा को परास्त कर दिया, उसके सामर्थ्य पर संदेह नहीं किया जा सकता।” वेदान्त ने कालभोज के कंधे पर हाथ रखते हुए कहा, “हमें विश्वास है कि एक दिन आप समग्र भरतखण्ड का गौरव बनेंगे।” 

“आपका ये विश्वास पाकर मैं गदगद हुआ, वीर। किन्तु चिंता मत करिए, हिन्दसेना की अखण्डता भंग नहीं होगी। साथ ही यदि तीन मास के भीतर अरबियों ने सिंध में अपनी सारी चौकियाँ नहीं हटाईं तो हिंदसेना के वीर उन्हें बगदाद तक खदेड़ कर आयेंगे।” कालभोज ने दृढ़ता से कहा।
 
“आशा तो यही है।” वेदान्त मुस्कुराया, “वैसे आपकी आगे की क्या योजना है ?” 

क्षणभर विचारकर कालभोज ने सामने के मार्ग की ओर देखा, “इच्छा तो ये है कि शीघ्र से शीघ्र सोमनाथ मन्दिर जाकर अपने आराध्य के दर्शन करूँ, फिर इसी मार्ग से अभी के अभी अपने गाँव नागदा चला जाऊँ। माता की चिता अभी प्रज्वल्लित ही की थी कि इस युद्ध का प्रसंग उत्पन्न हो गया।” कहते हुए रावल की आँखों में थोड़ी नमी सी आ गयी, “उनकी अस्थियाँ अब भी हमारे निवास पर विसर्जन की प्रतीक्षा कर रही है।” 

“देवी तारा वास्तव में एक महान स्त्री थी। वो जहाँ कहीं भी हैं, उन्हें आप पर अवश्य गर्व होगा।” वेदान्त ने रावल का मन हल्का करने का प्रयास किया। 

“हाँ, महान तो वो थी ही। अपनी संतान न होते हुए भी आरम्भ से उन्होंने मेरी रक्षा की, और मैं एक सर्पदंश से उनकी रक्षा न कर सका।” कहते हुए रावल का गला भर आया। 

वेदान्त ने रावल का कंधा पकड़ ढाँढ़स बँधाने का प्रयास किया, “कोई बात नहीं मित्र। लगा लीजिए स्वयं पर आरोप, किन्तु इससे आपकी पीड़ा कम नहीं होगी, अपितु हृदय के घाव और गहरे होते जायेंगे।”
 
वेदान्त का कथन सुन कालभोज कुछ क्षण मौन रहा, फिर उस मार्ग के द्वारा गुफा के बाहर आकर आकाश की ओर देखा, “ब्रह्ममुहृत आरम्भ होने को है। समय का पता ही नहीं चला।” 

“हाँ, मुझे ज्ञात है आप समय के कितने पाबंद हैं। आप चलिए, मैं इन लोगों से कुछ वार्ता करके अभी आता हूँ।” 

कालभोज ने आगे बढ़कर वेदान्त के नेत्रों में देखा, “अवश्य मित्र। और मेरी यही आशा है कि मुझे पुनः यहाँ लौटने की आवश्यकता न पड़े।” 

वेदान्त ने मुस्कुराते हुए सहमति में सिर हिलाया। कालभोज भी अभिवादन कर वहाँ से लौट गये। उसके जाने के कुछ क्षणों उपरान्त एक गुप्तचर दौड़ता हुआ वेदान्त के पास गया।
 
“कोई समाचार है ?” वेदान्त ने उसकी ओर आश्चर्य भाव से देखा। 

सहमति में सिर हिलाते हुए उसने कहा, “नए गुप्तचर दल से एक सदस्य गायब है, महामहिम।” 

वेदान्त के नेत्र आश्चर्य से फैल गये, “अर्थात उसे अरब सेना से दूर होने का अवसर नहीं मिला। और उसका अकेला शत्रुओं के मध्य फँस आना संकटकारी है। ये..ये उचित नहीं हुआ।”
 
******


To be continued..