Kafla yu hi Chlta Raha - 4 in Hindi Motivational Stories by Neeraj Sharma books and stories PDF | काफला यूँ ही चलता रहा - 4

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काफला यूँ ही चलता रहा - 4

काफला यूँ हीं चलता रहा ------- (4)

बेबसी बड़ी बीमारी है, हम कितने लाचार हो जाते है, इस बेबसी मे.... कभी कभी ज़िंदा रहने मे फ़र्क़ यही होता है, कोई खुश होकर, कोई गम मे बेबसी मे ज़िंदा रखती है। बस जिंदगी यूँ हीं चली जाती है।

हड़ताल पर थे सभी मजदूर.....

और बसी राजा सोच मे था, कि अब होगा तो कया होगा।

शर्ते थी.... 25 रुपए हो एक पेटी के।

कोई मर जाये तो जिस कपनी का काम है वो हर्जाना और खर्च दें।

हमारे लिए पक्के घर हो।

इन शर्तो ने बसी राजा का गला घुट दिया था। वो कया कर दें कोई नहीं जानता था... मजदूरी ठप थी। सब परेशान थे। बादशाह सब से आगे बैठा मुर्दाबाद के नारे लगा रहा था।

अब बसी राजा ने एक जाम कड़वा शराब का उगेला था अंदर अंदर मर रहा था.... काम का बोझ।

हड़ताल तीसरे दिन मे जा चुकी थी --------------

तभी बसी राजा ने तत्कालीन मीटिंग बुलाई। पाचो से तीन और ऊंचे लम्बे सडोल शरीर के दोनों मे से एक ----------

अमरीश ने कहा -: ऐसा इनका मुँह और बड़े गा.... कोई बात नहीं.. प्रधान को  बुलाओ, कहो --- बीस रूपये, और

कागज़ पे सिंगचर कराओ। और आगे हड़ताल करन पर जुर्म बना के अंदर कराओ सब को...... बसी राजा को तीनो की बात जची। "

ऐसा ही किया ------

प्रधान को बुलाया गया। सिगचर होने के बाद सब शर्तो को बसी राजा ने कहा, " बादशाह सुन बात मेरी, मजदूरों को क्यो बड़काया तूने, हमारे से जो अलग से हिस्सा ले, और मौज कर, काहे लफड़े मे पड़ते हो। "

बादशाह बोला ----: राजा सहाब, अपुन की लड़ाई कोई तुमाहरे से नहीं, उन गरीबो की झोपडी तो पक्की करा दो।

कितनी मेहनत करते है.... करते है या नहीं। "

" घर जल्द पक्के होंगे... उसने टकले सिर पर हाथ फेरा। "

तभी बादशाह बाहर आ चूका था... उची आवाज मे बोला,

" ---- भाईओ, हमारा मकसद पूरा हुआ, हमें 25 रुपए मिलेंगे, बड़ी बात ये हुई, झोपडी को घर बना दिया जायेगा पक्का।"

खूब हल्ला गुल्ला चला.. बादशाह जिंदाबाद... राजा बसी ज़िंदाबाद.......।

सूर्य ढल रहा था... धीरे धीरे डूब रहा था। तभी सास फुल गया था एक भागते हुए अजनबी से चेहरे का, करीब से देखा तो वो लड़की थी.... 

" तुम यहां -----" ललन ने कहा, किस से मिलना है... वो हफ़्ती हुई बोली --- " बादशाह से " ललन ने कहा... "ठहरो " तभी बादशाह उधर से आया.... " बादशाह औ बादशाह ----- " वो उच्ची आवाज़ वो भी गड़बड़ी भरपूर आवाज़ सुन कर आ टपका.... " कया ललन... " वो पकड़ कर सीधा ही उस पास ले गया... " बादशाह  --- उसने बाहो मे उसे भींच लिया... " कहो.... मैडम... कहो " बादशाह घबरा के बोला। ----------------- " अपुन तुम से बहुत प्यार करता है। " उसने निस्कोच कहा.... -"---ठीक है मैडम " सहम सा गया वो। " प्यार ठीक है.. पर आप कौन है.. ये तो बता दो हमें... " बादशाह ने जैसे खाब देखा हो।  ---- आप पहले ये तो बताये आप कौन है " बादशाह की बात सुन कर वो सहम गयी। "प्यार एक तरफा मत करना... बादशाह.. मै और बर्दाश्त नहीं कर सकती... तेरे बिन मर जाऊगी... अगर तुमने न किया " वो और घायल हो गया... उस पर। " "मै  -  मै  "थोड़ा रुक गयी , बसी राजा की बहन हूँ, तुमको छत पर चढ़ कर पता नहीं कितनी दफा देखा है.... मैं तुम से प्यार करती हूँ...." बादशाह के साथ ललन तो पहले ही नाम सुन घबरा गया था। बादशाह ने कहा " हम भी तुम्हे बहुत प्यार करते है... अब जाओ.. कल मिलेंगे.. वो खुद तुझे ललन बता कर जायेगा.... नाम तुम्हारा -- चमेली है न। " वो मुस्कराते मुस्कराते भाग रही थी... बादशाह खुश था..... सूर्य डूब चूका था... अंधेरे ने सारी बंदरगाह आपने आगोश मे ले लीं थी।

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(चलदा )                               नीरज शर्मा