Kafla yu hi Chlta Raha - 3 in Hindi Motivational Stories by Neeraj Sharma books and stories PDF | काफला यूँ ही चलता रहा - 3

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काफला यूँ ही चलता रहा - 3

काफला यूँ ही चलता रहा... (3)

उपन्यास मे लिखना जरूरी बनता है, मुठी कस कर बंद कर लो, फिर खोलो.... ये क्रोध को भगाने का तरीका है,

अगर गुस्सा आये ही न... तो तुम आपने आप को नपुस्क ही समझो।

                 दुनिया कैसे समझेगी, ये मत सोचो। ये सोचो तुम कया सोच रहे हो...

जम कर मिले, खूब मिले, चितामनी बहुत खुश था, अशोक दा आया था, मिलने को।

" लोडियाबाज़ी छोड़ दी" चितामनी ने टिचर की ...

" बहुत कर लीं... हम जैसा कोई जमा है, कोई कहे तो कहे, तुम कहते अच्छे नहीं लगे। " चिंतामनी ने सुन कर जोर का दहाका लगा दिया।

"एक है लोडिया, कलकते से है... मछली खाये है... खसबू  भी  मछली की... दादा हाजिर करू "  चिंतामनी ने तलवे पे बीड़ा अंगूठा से घिसता बोला था।

" तुमने अब भी दलाली छोड़ी नहीं कया... कब से कर रहा है याद है न... बसी राजा के जहाज पे शुरू किया...

मेरे से कैसे पहचान मिला "

अब पीछे चले थोड़ा सा..... पता चले सब को, ये और आज और कल कैसा था इनका। पता लेना लाज़मी है।

स्क्रिप्ट कुछ इस तरा से.....

" बसी राजा ज़िंदाबाद.... "

"कैसे सरकार !  ये नाहरे किस ख़ुशी मे लगे "  

जहाजो की बंदरगाह मे, बम्बे मे, बसी राजा 75 वोटो से जीता... लीडर बना.. सब मजदूरों का।

" बादशाह नहीं आया तो ताश का सिस्टम खराब होता है"

"----इंतज़ार तो बनता ही है " ललन ने कहा था।

" छोड़ो बादशाह... कमबख्तो इका है चला लो बात। "

ललन बोला ---" जोकर को बादशाह नहीं बना सकते.."

सब मजदूर हस पड़े।

उसे बहुत हतक और बेचती समझी।

" ललन तेरी जुबा बड़ी खुलती है... बतीस के बीच... जानता है न, हकूमत बसी राजा की चलेगी। "

" तभी बात आगे बढ़ती ----" कूद पड़ा बादशाह  " कया बोले मेरे प्यारे भाईयों... बईमान मुसाफिरो ने अपुन को फिर हरा दिया... मजदूर एकता जिंदाबाद। "

"

तुमाहरा बाद शाह कभी तुमको छोड़ कर नहीं जायेगा...

रोटी की भूख अपुन ने देखी है, मजदूर का बच्चा हूँ, शतराज नहीं, खेलनी नहीं आती,  राजनितिक कोई घर मे नहीं, किसे देखता, ये मजबूर मजदूर, कि हकूमत करनी नहीं आती... आप ही करते मजदूर भाईयों... चलो छोड़ो, अतीत का झंडा। "

किसी ने ललन कि ओर इशारा किया...." ललन इसे गांड मे ले लो "

"अबे , मादर जात इलाकत से बोलना सिखाऊंगा "

उसने खींच लिया... कालर पकड़ कर... वो मुरमत की, पूछो मत।

फिर बादशाह ने मुँह धोएया.. एक टूटी से बाल्टी से।

सब और घंगोर चुप थी, सब खमोश...

ये हरकते यहां नहीं चलेगी... अपुन की मानो चिड़िया घर चले जाओ "

ये कहा था मुस्करा कर। "आज वेतन की तारीख है... सब मजदूर भाई एक एक का हिसाब लेगे... ये पेटिया कोई खून वाला ही उठा सके, पानी वाला नहीं.. हमें मिलता कया है... 10 रूपये.. कयो ले।"

काफला मजदूरों का इकठा होकर चल पड़ा। आपने हको की लड़ाई के लिए.. "किस्मत ने मजदूरी लिखी है, तो ये भी दिखायो लिखा कि कम क़ीमत पे हमें कयो खरीदा जाये। कयो ??  यही  सोच थी...उस बादशाह की... खार की तरा चुबता था बसी राजा को कमबख्त।पर कया कर सकता था, "मौत लेकर ही निकलता था, बादशाह..." डरना वो जानता नहीं था... अक्सर एक शेर ही रह सकता है जंगल मे..... "

सूर्य आसमान मे खड़ा था समय के मुगबिक 4 वजे थे।

(चलदा ) -------------------- नीरज शर्मा।