खौफनाक वैयर हाउस
संजना वैयर हाउस में अकेली थी और हाल में बैठकर टीवी देख रही थी। मगर टीवी का शोर भी उसके मन में उठ रहे विचारों को शांत नहीं कर पा रहा था। हर चैनल बदलने के बाद भी उसे कुछ भी अच्छा नहीं लग रहा था। ऊब कर उसने रिमोट टेबल पर पटका और गहरी सांस ली। बाहर अंधेरा घिर आया था, हवाएं सरसराने लगी थीं, और चारों ओर एक अजीब सन्नाटा पसरा हुआ था।
उसके मन में फिर वही सवाल उठने लगे—हर्षवर्धन बार-बार उसे अकेला छोड़कर कहां चला जाता है? उसने खुद से बड़बड़ाते हुए कहा, "कैसा किडनैपर है ये? मुझे अगवा तो कर लिया, लेकिन अब खुद ही गायब हो जाता है। इसे ज़रा भी डर नहीं है कि मैं भाग सकती हूँ! या फिर इसे भरोसा है कि इसके खतरनाक भाई-बहन मुझे जिंदा नहीं छोड़ेंगे?"
संजना ने कई बार सोचा था कि भागने की कोशिश करेगी, लेकिन बाहर का घना जंगल, दूर-दूर तक फैले अंधेरे पेड़ और रात को गूंजने वाली अजीब आवाज़ें उसे डरा देती थीं। उसे याद आया कि पिछली बार जब उसने भागने की कोशिश की थी, तो हर्षवर्धन के जनवार ने उसे पकड़ लिया था और चेतावनी दी थी, "अगर अगली बार भागने की कोशिश की, तो जंगल में घूम रहे भेड़िए ही तुझे खा जाएंगे!"
संजना को समझ नहीं आ रहा था कि उसे डरना चाहिए या हिम्मत रखनी चाहिए। वह अब तक यही सोच रही थी कि अचानक उसे कुछ आवाजें सुनाई दीं। उसने कान लगाकर सुना, ऐसा लगा जैसे कोई चल रहा हो। "कहीं हर्षवर्धन वापस तो नहीं आ गया?" उसने सोचा। लेकिन जब काफी देर तक दरवाज़ा नहीं खुला, तो उसे एहसास हुआ कि आवाज़ बाहर से आ रही थी।
अब उसका मन और भी बेचैन होने लगा। बैठना उसे भारी लगने लगा, इसलिए वह उठकर खिड़की की ओर बढ़ गई। खिड़की का शीशा पुराना था और धूल से भरा हुआ था। उसने अपने हाथ से शीशा साफ किया और बाहर झाँकने लगी।
बाहर का खौफनाक नज़ारा
बाहर का दृश्य देखकर उसकी सांसें अटक गईं।
वैयर हाउस के बाहर हल्की-हल्की चाँदनी फैली थी, लेकिन पेड़ों के झुरमुटों के कारण जगह-जगह घना अंधेरा था। संजना की नजरें तेजी से चारों ओर घूमने लगीं। तभी उसकी नजर एक परछाई पर पड़ी!
किसी लंबी और डरावनी आकृति का अक्स चाँदनी में झलक रहा था। वह एक जगह खड़ा था, लेकिन फिर अचानक हिलने लगा। संजना के रोंगटे खड़े हो गए। "यह कौन हो सकता है?" उसका गला सूखने लगा।
तभी अचानक तेज़ हवा का झोंका आया और खिड़की ज़ोर से चरमराने लगी। वह डर से पीछे हट गई, लेकिन उसकी नजरें अब भी उसी जगह टिकी हुई थीं। उसने सोचा कि शायद यह उसका भ्रम हो सकता है।
"नहीं! यह कोई इंसान ही है..." उसने खुद को यकीन दिलाया।
लेकिन तभी... वह परछाई अचानक गायब हो गई!
खतरे की आहट
अब तो संजना का दिल और जोर से धड़कने लगा। वह सोचने लगी, "क्या मुझे बाहर जाकर देखना चाहिए? कहीं हर्षवर्धन ही तो नहीं है? या फिर... कोई और?"
उसे अपने पिछले अनुभव याद आए। इस जंगल में पहले भी शेर से उसका सामना भी हो चूका था ।
वह तुरंत खिड़की से हटकर पीछे हो गई और हॉल में इधर-उधर देखने लगी। कोई हथियार खोजने के इरादे से उसने टेबल पर पड़ी एक लोहे की रॉड उठा ली। अब वह तय कर चुकी थी कि अगर कोई अचानक सामने आया, तो वह खुद की रक्षा करेगी।
लेकिन उसके कदम खुद-ब-खुद दरवाजे की ओर बढ़ने लगे। वह सोच रही थी, "क्या यह मेरा मौका हो सकता है भागने का? अगर सच में बाहर कोई अजनबी है, तो शायद वह मेरी मदद कर सके!"
वह धीरे-धीरे दरवाजे के करीब पहुंची। लेकिन जैसे ही उसने दरवाजे का हैंडल पकड़ा...
धड़ाम!
कोई ज़ोर से दरवाजा खटखटा रहा था!
संजना के हाथ कांपने लगे।
"कौन है वहाँ?" उसने कांपती आवाज़ में पूछा।