फिर हर्षवर्धन ने गहरी सांस ली और अपनी जेब से एक नोटबुक निकाली। उन्होंने एक-एक पुलिसवाले का नाम लिखा और आदेश दिया, "कल से हर पुलिसकर्मी की ड्यूटी का हिसाब लिया जाएगा। जिसे जहां भेजा जाएगा, उसे वही काम करना होगा। और अगर कोई शिकायत मिली, तो उसका अंजाम बुरा होगा।"
पुलिसकर्मियों की आँखों में अब गंभीरता थी। उन्हें समझ में आ चुका था कि अब से ऐश मौज के दिन खत्म हो चुके हैं।
डीसी हर्षवर्धन ठकराल के आते ही पुलिस स्टेशन की हालत बदल गई। अब वहां अनुशासन था, ईमानदारी थी, और सबसे बढ़कर, कानून का डर था।
पुलिस स्टेशन में तूफान
पुलिस स्टेशन में हलचल कम थी, तभी दरवाजे पर एक धमाका हुआ, जैसे कोई तेज़ी से अंदर घुसा हो। सभी की नज़रें दरवाजे की तरफ उठीं। एक लड़की हड़बड़ाते हुए अंदर आई, उसके चेहरे पर खौफ साफ झलक रहा था। उसका शरीर थरथरा रहा था, कपड़े अस्त-व्यस्त थे, और जगह-जगह चोट के निशान थे।
लड़खड़ाते कदमों से वह तेजी से बढ़ी और सीधे डीसी पी हर्षवर्धन से टकरा गई। हर्षवर्धन, जो अपनी टेबल पर कुछ फाइलें देख रहा था, अचानक इस टक्कर से चौंक उठा। उसने तुरंत लड़की को संभाला। लड़की की हालत देखकर उसकी भौहें तन गईं। लड़की कांप रही थी, उसकी सांसें तेज़ चल रही थीं, और आंखों में आंसू थे।
"क्या हुआ? कौन हो तुम? तुम्हारी ये हालत कैसे हुई?" हर्षवर्धन ने कड़क आवाज़ में पूछा।
लड़की ने घबराई आवाज़ में जवाब दिया, "साहब, मेरे पीछे कुछ बदमाश पड़े हैं... वो... वो मेरे साथ बदतमीज़ी कर रहे थे। बड़ी मुश्किल से बचकर यहां आई हूं। प्लीज, मुझे बचा लीजिए!"
हर्षवर्धन के चेहरे पर गुस्सा झलकने लगा। उसकी मुठ्ठियाँ भिंच गईं। तभी पुलिस स्टेशन के बाहर गाड़ियों के ब्रेक की आवाज़ आई। कुछ मोटरसाइकिलें आकर रुकीं और चार-पाँच बदमाश उतरकर सीधे अंदर चले आए। उनकी चाल में घमंड और चेहरे पर बेहयाई थी। वो बिना किसी डर के पुलिस स्टेशन में दाखिल हुए, मानो यह कोई उनका अड्डा हो।
जैसे ही उन्होंने लड़की को देखा, उनमें से एक बदमाश हँसते हुए बोला, "अरे रे, ये तो यहीं आ छुपी थी! हमने सोचा था कि ये ज्यादा दूर तक भागेगी, लेकिन ये तो खुद चलकर हमारे पास आ गई।"
दूसरे बदमाश ने हर्षवर्धन की ओर देखा और घमंड से कहा, "खाकी वाले, तू बीच में मत पड़। तेरा कोई काम नहीं है इसमें। लड़की को हमारे हवाले कर दे, वरना अच्छा नहीं होगा!"
लड़की ने डर से हर्षवर्धन की ओर देखा, उसकी आँखों में उम्मीद थी कि हर्षवर्धन उसे बचाएगा।
हर्षवर्धन ने अपने हाथों की उंगलियों को चटकाया और कुर्सी से धीरे-धीरे उठ खड़ा हुआ। उसकी आँखों में सख्ती थी, चेहरा गुस्से से लाल हो चुका था। वह उन बदमाशों की ओर बढ़ा।
"बदमाशों की इतनी हिम्मत कि पुलिस स्टेशन के अंदर आकर लड़की को ले जाने की बात कर रहे हो?" हर्षवर्धन की आवाज़ बिजली की तरह गूंज उठी।
बदमाश हंसने लगे। उनमें से एक ने कहा, "अरे, ज्यादा हीरो मत बन। बहुत देखे हैं तेरे जैसे पुलिसवाले। तू अकेला है, और हम पाँच... सोच ले, तुझे बचाएगा कौन?"
यह सुनते ही हर्षवर्धन मुस्कराया, लेकिन यह मुस्कान कोई आम मुस्कान नहीं थी। यह तूफान के आने से पहले की शांति थी।
"गलती कर दी तुम लोगों ने... बहुत बड़ी गलती।"
बिना एक पल गवाएं, हर्षवर्धन ने सामने खड़े एक बदमाश के चेहरे पर जोरदार घूंसा मारा। घूंसा इतनी ताकत से लगा कि वह सीधे दो कदम पीछे जाकर फर्श पर गिर पड़ा।
बाकी बदमाश गुस्से में आ गए और एक साथ उस पर टूट पड़े।
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