Taam Zinda Hai - 7 in Hindi Detective stories by Neeraj Sharma books and stories PDF | टाम ज़िंदा हैं - 7

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टाम ज़िंदा हैं - 7

टाम ज़िंदा है।---------------(7)

दो दिन बाद भी त्रिपाठी के बेटे को कोई होश नहीं था, हाँ वो कोई बेहोश भी नहीं था.. उसके नन्हें नन्हें हाथों ने सिर को पकड़ा हुआ था। त्रिपाठी पता नहीं उसको कैसे देख रहा था... अन्दर से टुटा हुआ बाप और माँ का हाल ऐसा था... कि पूछो मत.. वो बस रोये जा रही थी।

घर पर पड़ोसी आ चुके थे कुछ स्टॉफ मेंबर भी... और कमीशनर भी।

भवानी सिंह के साथ त्रिपाठी दोनों गए थे बेटे को साथ लेकर नीरो सर्जन को दिखाने... उसकी रिपोर्ट मे MR करने के बाद हैरत अंगेज बात आयी थी।

दिमाग़ के बड़े हिस्से को बड़े किसे औजार से चोट पुहच आयी गयी थी.. इसके इलावा कुछ भी।

नीरो सर्जन का कहना था ----" ये चोट आप देख रहे है, हमारी किताबों के मुताबिक ये बड़े चार क्रेक है " फिर डॉ थोड़ा रुक कर बोला, " किसी से आपकी दुश्मनी। "

" हाँ डॉ ने फिर कहा " बच्चे का ऑपरेशन कभी मत कराना, ये क्रेक्स ऐसे ही रहेंगे। जो हम शरीर पर किसी भी चीज का स्पर्श पा लेते है ये नहीं पा सके गा... हाँ एक बात और असीम दर्द होंगी कभी कभी.. ज़ब खून की सप्लाई टूट कर मिलेगी... तो ये दर्द मे कहारे गा। और इसलिए मेरी राये है, खून अंदर जमने से बहुत प्रोभल्म ख़डी हो जाएगी। " डॉ ने फिर त्रिपाठी की भरी भरी आँखो मे देखा... " सिम्पली तौर पर आप मजबूर बाप नहीं तगड़े होकर साथ दें उसका प्ल्ज़। "

" कुछ दवाई जो लगातार आप दो साल तक खिलाये... हाँ एक और बात, भविष्य मे ये कुछ अजीब हरकते कर सकता है, इसलिए इसकी शादी मत करना। " फिर थोड़ा सोचने के बाद बोला... " जरूरी नहीं, कि ये ठीक न हो, किताबों के मुताबिक ही मैंने आप को बताया है। ये बहुत रेयर करिटीकल कंडीशन है, यानी आपके दुश्मन को पता था, या वो नॉलेज रखता था,कहा चोट कठन मारी जाये। "

--------- रुक कर त्रिपाठी ने कहा " डॉ साहब मे तो जीते जी उजड़ गया हूँ, मै उन बंद बड़े वीरान कमरों का उदाहरण बन गया हूँ... अब वहा परिंदे वास करेंगे। " भवानी सिंह ने कहा -----" अब मै तुम्हारे साथ हूँ, त्रिपाठी... जंगल खोखले कर देंगे.. आग मर्जी से लगाएंगे। " ---" डॉ साहब आपकी बहुत बहुत मेहरबानी "

तीनो जा चुके थे।

तीसरा दिन -------

मोबाइल की घंटी वजी " हेलो "

"कौन बोल रहे है। "

"मिसबम " आवाज दूसरी ओर से आयी।

" मेरे शेयर डूब रहे है जनाब "

"---भाई मै तो इस को नहीं जानता, ये कया बला है। "

"---ज्योति मिल सकती है, साहब "

मै उसका भाई हूँ... वो मद्रास टूर पर ही गयी है, बताया तो यही था... " मोबाइल कट गया।

मिसबम उठा लिया गया। बिना वरंट के ----- वो दुहाई ओर चीखता रहा।

एक हफ्ते बाद ----------

ज्योति खुद थाने आयी... रिपोर्ट दर्ज़ कराने को।

वो भवानी सिंह के सामने चेयर पर बैठी थी... मोबाइल पर बिज़ी थी।

----" साहब आप को एसएसपी यादव जी ने याद किया है---" फिर रुक कर मिसिंग मिसबम की रिपोर्ट ले कर जाना, साहब। "

"ओके ----" भावानी ने कहा।

तभी --------

त्रिपाठी की एंट्री होती है। कोई भी चेहरे पे शिकन नहीं थी। ज्योति देख रही थी। दो कारण होते गे... एक सब परमात्मा पर छोड़ दिया।

दूसरा :- भय खा गया होगा।

" हेलो ज्योति "

"आप मुझे जानते है ----" उसने हैरानी से पूछा।

हाजी, आपको जानता हूँ, आपके काम भी जानता हूँ... डुबा ने के बाद आप शेयर मार्किट से कैसे निकाल लेती है आपना कलाइट। " त्रिपाठी ने बे झिझक कहा।

"हाँ, हम तो आपना काम ढंग से ही करते है, कुछ है जो क़ानून से नहीं चलते।" उसने आपनी शर्ट का उपरला बटन इस लिए खोला कि पसीना आ रहा था। फिर से उसकी गोरी चमड़ी झाकने लगी थी... बेहद गहरायी के साथ। वो होंगी 25-27 के करीब लगभग। जवानी लगती थी, जैसे फुट चुकी होंगी... गदरे जैसा शरीर था उसका।

शाम का सूर्य ढल जाने को तैयार खड़ा था... एक बदली उसके आगे आ गयी लगती थी... हवा खास तौर पर बंद ही थी... क्लॉक पर सात वज रहे थे शाम के।

(चलदा )--------------------------- नीरज शर्मा