राजीव एक बेहद होशियार और मेधावी छात्र था। उसका सपना था कि वह एक दिन देश का सबसे बड़ा वैज्ञानिक बने और अपने माता-पिता का नाम रोशन करे। छोटे से गाँव से निकलकर उसने शहर के सबसे बड़े इंजीनियरिंग कॉलेज में दाखिला लिया था। माता-पिता की आंखों में सपनों की चमक थी और राजीव के चेहरे पर आत्मविश्वास।
राजीव का गाँव उत्तर प्रदेश के एक छोटे से जिले में था। वहाँ शिक्षा के संसाधन सीमित थे, लेकिन राजीव ने कभी हार नहीं मानी। उसके गुरुजी हमेशा कहते थे, "यह लड़का एक दिन बड़ा नाम करेगा।" और सच में, उसने राष्ट्रीय स्तर की प्रतियोगी परीक्षा JEE टॉप करके इंजीनियरिंग कॉलेज में दाखिला लिया।
कॉलेज की शुरुआत बहुत उत्साहजनक थी। राजीव ने पहले ही दिन तय कर लिया था कि वह हर विषय में अव्वल रहेगा। वह हर क्लास में सबसे आगे बैठता, प्रोफेसरों से सवाल पूछता, और लाइब्रेरी में घंटों बैठकर अध्ययन करता। लेकिन उसे नहीं पता था कि कॉलेज की दीवारों के भीतर एक अंधकार भी छिपा है—रैगिंग का अंधकार।
पहले हफ्ते ही कुछ सीनियर छात्रों ने उसे हॉस्टल में बुलाया। राजीव ने सोचा कि शायद वे उसे दोस्ती का हाथ बढ़ाने आए हैं, लेकिन असलियत बहुत अलग थी। उन्होंने उसे तरह-तरह के बेहूदे काम करने के लिए मजबूर किया। उसे अपमानित किया गया, उसकी प्रतिभा का मजाक बनाया गया और उसे शारीरिक और मानसिक रूप से प्रताड़ित किया गया।
एक रात सीनियरों ने उसे ज़बरदस्ती डांस करने को कहा और उसका वीडियो बना लिया। जब उसने इनकार किया, तो उसे पीटा गया। उसकी किताबें फाड़ दी गईं, उसके कमरे में तोड़फोड़ की गई। वह अपने माता-पिता को कुछ नहीं बता सकता था क्योंकि वह उन्हें चिंता में नहीं डालना चाहता था।
राजीव ने विरोध करने की कोशिश की, लेकिन उसे धमकाया गया कि अगर उसने कुछ कहा तो उसके करियर को खत्म कर दिया जाएगा। डर और शर्म ने उसकी आवाज को बंद कर दिया। वह दिन-ब-दिन टूटता गया। जो लड़का हर समय किताबों में डूबा रहता था, वह अब अकेले कमरे में बैठा रोता रहता था।
उसके कुछ सहपाठियों ने उसकी हालत पर गौर किया। उन्होंने कई बार उसे समझाने की कोशिश की, लेकिन राजीव का आत्मविश्वास इतना गिर चुका था कि वह किसी से आंख मिलाकर बात भी नहीं कर पाता था। कक्षा में उसके प्रदर्शन पर इसका गहरा असर पड़ा। जो लड़का हमेशा टॉप करता था, वह अब परीक्षा में फेल होने लगा। प्रोफेसर भी उसकी बदलती हालत को देखकर हैरान थे, लेकिन राजीव ने कभी किसी से कुछ नहीं कहा।
एक बार उसकी माँ ने फोन पर उसकी आवाज सुनी और चिंतित हो गईं। लेकिन राजीव ने कहा, "अम्मा, बस थोड़ी पढ़ाई का दबाव है। आप चिंता मत कीजिए।" माँ की ममता ने सब समझ लिया था लेकिन वह कर भी क्या सकती थीं?
एक दिन रैगिंग का सिलसिला इतना बढ़ गया कि सीनियर छात्रों ने उसे आधी रात को उठाकर हॉस्टल के छत पर बुलाया और उसे जबरदस्ती शराब पिलाई। नशे की हालत में उन्होंने उसका वीडियो बना लिया और उसे धमकाया कि अगर उसने किसी से कुछ कहा तो वह वीडियो सोशल मीडिया पर डाल देंगे।
इसके बाद उसके लिए कॉलेज नरक बन गया। वह मानसिक रूप से अवसाद में चला गया। उसे नींद नहीं आती थी, खाने का मन नहीं करता था। उसके अंदर एक गहरा अंधकार भरता जा रहा था। उसने काउंसलिंग का सोचा, लेकिन सीनियरों का डर उसे रोकता रहा।
एक दिन, जब कॉलेज के अन्य छात्र अपने-अपने क्लास में थे, राजीव ने हॉस्टल की छत से कूदकर आत्महत्या कर ली। उसके कमरे से एक सुसाइड नोट मिला जिसमें उसने रैगिंग की पूरी कहानी लिखी थी। उसने लिखा था कि वह अब और सहन नहीं कर सकता। वह अपने माता-पिता से माफी मांगते हुए गया था, और उसने लिखा था कि उसकी मौत के जिम्मेदार वे सीनियर छात्र हैं जिन्होंने उसकी जिंदगी नर्क बना दी।
राजीव की मौत ने पूरे कॉलेज को झकझोर कर रख दिया। मीडिया में यह खबर आग की तरह फैल गई। कॉलेज प्रशासन पर दबाव बढ़ा और आखिरकार दोषी छात्रों को गिरफ्तार किया गया। लेकिन राजीव तो वापस नहीं आ सकता था।
राजीव के माता-पिता टूट गए थे। उनका इकलौता बेटा, जिसे उन्होंने बड़े अरमानों से पढ़ने भेजा था, अब कभी वापस नहीं आएगा। उन्होंने सरकार से मांग की कि रैगिंग को जड़ से खत्म किया जाए और कॉलेजों में सख्त कानून लागू किए जाएं। उनके गाँव में एक सभा हुई, जहाँ लोगों ने मोमबत्तियाँ जलाकर राजीव को श्रद्धांजलि दी।
राजीव की कहानी उन हजारों छात्रों की कहानी बन गई जो हर साल रैगिंग का शिकार होते हैं लेकिन चुपचाप सहन करते हैं। उसकी मौत ने समाज को यह सोचने पर मजबूर कर दिया कि कब तक हम इस अमानवीय प्रथा को नजरअंदाज करते रहेंगे।
सरकार ने उस घटना के बाद एक जांच समिति बनाई और राष्ट्रीय स्तर पर रैगिंग विरोधी कानूनों को और कड़ा किया गया। कई कॉलेजों में हेल्पलाइन नंबर और काउंसलिंग सेंटर खोले गए। लेकिन ये कदम राजीव जैसे अनगिनत छात्रों को वापस नहीं ला सकते।
राजीव चला गया, लेकिन उसकी आत्मा हर उस छात्र में जीवित है जो किसी न किसी रूप में रैगिंग का सामना कर रहा है। उसकी कहानी एक चेतावनी है, एक पुकार है कि अब बहुत हो चुका। अब हमें रैगिंग के खिलाफ खड़ा होना ही होगा, वरना और भी राजीव इस अमानवीयता की बलि चढ़ते रहेंगे।
और अब भी अगर हम चुप रहे, तो हम भी उस पाप में सहभागी बन जाएंगे। इस कहानी को पढ़कर अगर एक भी छात्र या एक भी शिक्षक जागरूक हो जाए, तो शायद राजीव की आत्मा को शांति मिले। यही उसकी सच्ची श्रद्धांजलि होगी।राजीव एक बेहद होशियार और मेधावी छात्र था। उसका सपना था कि वह एक दिन देश का सबसे बड़ा वैज्ञानिक बने और अपने माता-पिता का नाम रोशन करे। छोटे से गाँव से निकलकर उसने शहर के सबसे बड़े इंजीनियरिंग कॉलेज में दाखिला लिया था। माता-पिता की आंखों में सपनों की चमक थी और राजीव के चेहरे पर आत्मविश्वास।
राजीव का गाँव उत्तर प्रदेश के एक छोटे से जिले में था। वहाँ शिक्षा के संसाधन सीमित थे, लेकिन राजीव ने कभी हार नहीं मानी। उसके गुरुजी हमेशा कहते थे, "यह लड़का एक दिन बड़ा नाम करेगा।" और सच में, उसने राष्ट्रीय स्तर की प्रतियोगी परीक्षा JEE टॉप करके इंजीनियरिंग कॉलेज में दाखिला लिया।
कॉलेज की शुरुआत बहुत उत्साहजनक थी। राजीव ने पहले ही दिन तय कर लिया था कि वह हर विषय में अव्वल रहेगा। वह हर क्लास में सबसे आगे बैठता, प्रोफेसरों से सवाल पूछता, और लाइब्रेरी में घंटों बैठकर अध्ययन करता। लेकिन उसे नहीं पता था कि कॉलेज की दीवारों के भीतर एक अंधकार भी छिपा है—रैगिंग का अंधकार।
पहले हफ्ते ही कुछ सीनियर छात्रों ने उसे हॉस्टल में बुलाया। राजीव ने सोचा कि शायद वे उसे दोस्ती का हाथ बढ़ाने आए हैं, लेकिन असलियत बहुत अलग थी। उन्होंने उसे तरह-तरह के बेहूदे काम करने के लिए मजबूर किया। उसे अपमानित किया गया, उसकी प्रतिभा का मजाक बनाया गया और उसे शारीरिक और मानसिक रूप से प्रताड़ित किया गया।
एक रात सीनियरों ने उसे ज़बरदस्ती डांस करने को कहा और उसका वीडियो बना लिया। जब उसने इनकार किया, तो उसे पीटा गया। उसकी किताबें फाड़ दी गईं, उसके कमरे में तोड़फोड़ की गई। वह अपने माता-पिता को कुछ नहीं बता सकता था क्योंकि वह उन्हें चिंता में नहीं डालना चाहता था।
राजीव ने विरोध करने की कोशिश की, लेकिन उसे धमकाया गया कि अगर उसने कुछ कहा तो उसके करियर को खत्म कर दिया जाएगा। डर और शर्म ने उसकी आवाज को बंद कर दिया। वह दिन-ब-दिन टूटता गया। जो लड़का हर समय किताबों में डूबा रहता था, वह अब अकेले कमरे में बैठा रोता रहता था।
उसके कुछ सहपाठियों ने उसकी हालत पर गौर किया। उन्होंने कई बार उसे समझाने की कोशिश की, लेकिन राजीव का आत्मविश्वास इतना गिर चुका था कि वह किसी से आंख मिलाकर बात भी नहीं कर पाता था। कक्षा में उसके प्रदर्शन पर इसका गहरा असर पड़ा। जो लड़का हमेशा टॉप करता था, वह अब परीक्षा में फेल होने लगा। प्रोफेसर भी उसकी बदलती हालत को देखकर हैरान थे, लेकिन राजीव ने कभी किसी से कुछ नहीं कहा।
एक बार उसकी माँ ने फोन पर उसकी आवाज सुनी और चिंतित हो गईं। लेकिन राजीव ने कहा, "अम्मा, बस थोड़ी पढ़ाई का दबाव है। आप चिंता मत कीजिए।" माँ की ममता ने सब समझ लिया था लेकिन वह कर भी क्या सकती थीं?
एक दिन रैगिंग का सिलसिला इतना बढ़ गया कि सीनियर छात्रों ने उसे आधी रात को उठाकर हॉस्टल के छत पर बुलाया और उसे जबरदस्ती शराब पिलाई। नशे की हालत में उन्होंने उसका वीडियो बना लिया और उसे धमकाया कि अगर उसने किसी से कुछ कहा तो वह वीडियो सोशल मीडिया पर डाल देंगे।
इसके बाद उसके लिए कॉलेज नरक बन गया। वह मानसिक रूप से अवसाद में चला गया। उसे नींद नहीं आती थी, खाने का मन नहीं करता था। उसके अंदर एक गहरा अंधकार भरता जा रहा था। उसने काउंसलिंग का सोचा, लेकिन सीनियरों का डर उसे रोकता रहा।
एक दिन, जब कॉलेज के अन्य छात्र अपने-अपने क्लास में थे, राजीव ने हॉस्टल की छत से कूदकर आत्महत्या कर ली। उसके कमरे से एक सुसाइड नोट मिला जिसमें उसने रैगिंग की पूरी कहानी लिखी थी। उसने लिखा था कि वह अब और सहन नहीं कर सकता। वह अपने माता-पिता से माफी मांगते हुए गया था, और उसने लिखा था कि उसकी मौत के जिम्मेदार वे सीनियर छात्र हैं जिन्होंने उसकी जिंदगी नर्क बना दी।
राजीव की मौत ने पूरे कॉलेज को झकझोर कर रख दिया। मीडिया में यह खबर आग की तरह फैल गई। कॉलेज प्रशासन पर दबाव बढ़ा और आखिरकार दोषी छात्रों को गिरफ्तार किया गया। लेकिन राजीव तो वापस नहीं आ सकता था।
राजीव के माता-पिता टूट गए थे। उनका इकलौता बेटा, जिसे उन्होंने बड़े अरमानों से पढ़ने भेजा था, अब कभी वापस नहीं आएगा। उन्होंने सरकार से मांग की कि रैगिंग को जड़ से खत्म किया जाए और कॉलेजों में सख्त कानून लागू किए जाएं। उनके गाँव में एक सभा हुई, जहाँ लोगों ने मोमबत्तियाँ जलाकर राजीव को श्रद्धांजलि दी।
राजीव की कहानी उन हजारों छात्रों की कहानी बन गई जो हर साल रैगिंग का शिकार होते हैं लेकिन चुपचाप सहन करते हैं। उसकी मौत ने समाज को यह सोचने पर मजबूर कर दिया कि कब तक हम इस अमानवीय प्रथा को नजरअंदाज करते रहेंगे।
सरकार ने उस घटना के बाद एक जांच समिति बनाई और राष्ट्रीय स्तर पर रैगिंग विरोधी कानूनों को और कड़ा किया गया। कई कॉलेजों में हेल्पलाइन नंबर और काउंसलिंग सेंटर खोले गए। लेकिन ये कदम राजीव जैसे अनगिनत छात्रों को वापस नहीं ला सकते।
राजीव चला गया, लेकिन उसकी आत्मा हर उस छात्र में जीवित है जो किसी न किसी रूप में रैगिंग का सामना कर रहा है। उसकी कहानी एक चेतावनी है, एक पुकार है कि अब बहुत हो चुका। अब हमें रैगिंग के खिलाफ खड़ा होना ही होगा, वरना और भी राजीव इस अमानवीयता की बलि चढ़ते रहेंगे।
और अब भी अगर हम चुप रहे, तो हम भी उस पाप में सहभागी बन जाएंगे। इस कहानी को पढ़कर अगर एक भी छात्र या एक भी शिक्षक जागरूक हो जाए, तो शायद राजीव की आत्मा को शांति मिले। यही उसकी सच्ची श्रद्धांजलि होगी।
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