सीतापुर गाँव राजस्थान के एक कोने में बसा एक छोटा सा, शांत गाँव था। वहाँ के लोग सीधे-सच्चे, मेहनती और प्रकृति से गहरे जुड़े हुए थे। गाँव में पक्की सड़कें नहीं थीं, न ही मोबाइल टावर, लेकिन हर किसी के दिल में एक-दूसरे के लिए अपनापन भरा था।
लेकिन यहां जिंदगी बिताना आसान नहीं था। गाँव में खेती थी पर कभी सूखा पड़ता तो कभी बाढ़ आ जाती। सरकार के वादे सिर्फ भाषणों में होते थे।
इसी गाँव में पैदा हुआ था राजू, एक साधारण किसान परिवार में। बचपन से ही राजू का जीवन कठिनाइयों से भरा रहा। उसके पिता हर दिन खेतों में काम करते, माँ घर पर गाय-भैंस सम्भालती और राजू स्कूल के बाद खेतों में हाथ बँटाता।
राजू के भीतर बचपन से ही एक अलग सी चमक थी — सपने देखने की हिम्मत। वह जब भी खुले आसमान के नीचे लेटता, तारों को देखता और मन ही मन सोचता, "काश मैं भी कुछ बड़ा कर पाता... अपने गाँव को कुछ ऐसा दे पाता, जिससे सबका जीवन बदल जाए।"
एक दिन बरसात का मौसम आया। बादल गरज रहे थे, हवा तुफानी थी। राजू खेत में फसल देखने गया था। तभी अचानक, एक भयानक बिजली कड़कती हुई गिरी, सीधी राजू के ऊपर!
गाँव वाले दौड़े। खेत में धुआँ सा उठ रहा था, और बीच में राजू बेहोश पड़ा था। सबने सोचा, "गया... अब नहीं बचेगा।" लेकिन जब राजू को घर ले जाकर पलंग पर रखा गया, तो चमत्कार हुआ — राजू की साँसें चल रही थीं।
तीन दिन तक राजू बेहोश रहा। माँ ने मन्नतें माँगीं, पिताजी ने हर मंदिर में घण्टे चढ़ाए। चौथे दिन राजू ने आँखें खोलीं।
लेकिन अब वह पहले जैसा नहीं था। उसके भीतर कुछ जाग चुका था। एक अजीब-सी गर्मी उसकी नसों में दौड़ रही थी, और उसे ऐसा लग रहा था जैसे वह हवा को महसूस कर सकता है, पेड़ों की आवाजें सुन सकता है।कभी-कभी उसे लगता जैसे वह जमीन के अंदर की हरकतें भी जान सकता है।
शुरुआत में तो राजू खुद डर गया लेकिन एक दिन, गुस्से में उसने एक पत्थर पर लात मारी — और वह पत्थर हवा में उड़कर दूर जाकर गिरा।
धीरे-धीरे उसने समझ आने लगा कि उसे असीम ताकत मिल गई थी।
उसकी गति हवा से भी तेज हो गई थी।
वह धरती से बात कर सकता था।
राजू ने किसी को कुछ नहीं बताया। उसे डर था — कहीं लोग उसे भूत-प्रेत न समझ लें। उसने चुपचाप रातों को खेतों में जाकर अपनी शक्तियों का अभ्यास करना शुरू किया।
एक रात गाँव पर संकट आ गया। डकैतों का एक गिरोह गाँव में आ धमका। वे लाठियों, बंदूकों से लैस थे। मकसद साफ था — लूटपाट और दहशत फैलाना।
गाँव के लोग डर के मारे घरों में छिप गए। पर राजू ने फैसला किया — अब वह पीछे नहीं हटेगा। उसने चुपचाप अपने शरीर को ज़ोर से समेटा और बिजली की तरह दौड़ पड़ा।
डकैतों के बीच पहुँचते ही उसने पहले लाठियों को दो टुकड़ों में तोड़ डाला। फिर डकैतों को को हवा में उछाल दिया।
गाँव वाले हैरान थे — "ये क्या हो रहा है?"
राजू ने पहली बार खुलकर अपनी शक्तियों का इस्तेमाल किया। डकैतों को ज़मीन पर गिरा कर बाँध दिया और पुलिस को बुलाया। सुबह जब पुलिस आई, तो डकैत जकड़े हुए पड़े थे, और राजू गाँव के बच्चों के साथ मुस्कुरा रहा था।
उस दिन से लोग उसे "धरतीपुत्र" कहने लगे।
धीरे-धीरे राजू का नाम दूर-दूर तक फैल गया। लोग उसे देखने आने लगे। कुछ ने उसे भगवान का अवतार कहा, कुछ ने सुपरहीरो।
पर राजू जानता था — ये सिर्फ शुरुआत थी।
अब उसे अपनी शक्तियों पर नियंत्रण पाना था।
रात-रात भर वह जंगलों में दौड़ता, भारी पत्थर उठाता, पेड़ों के बीच छलांग लगाता।
उसने योग सीखा, साधना की — ताकि उसकी शक्तियों का दुरुपयोग न हो जाए।
लेकिन जहाँ रोशनी होती है, वहाँ अँधेरा भी होता है।
सीतापुर पर अब नज़र थी — एक खतरनाक बिल्डर और भ्रष्ट नेता की।
वे चाहते थे कि गाँव की ज़मीन हथिया लें — वहाँ मॉल और फैक्टरी बनवाएँ।
पैसे का लालच देकर, धमकी देकर, डराकर, उन्होंने गाँव के प्रधान को भी अपने साथ मिला लिया था।
राजू को जब ये बात पता चली, तो उसके अंदर आग जल उठी।
सबसे बड़ी लड़ाई दूसरों से नहीं, खुद से होती है।
राजू के भीतर दो आवाजें थीं:
एक कहती थी: "जा, सबको मार दे, जो गाँव के खिलाफ हैं।"
दूसरी कहती थी: "न्याय का रास्ता कठिन होता है, पर सही होता है।"
राजू ने संयम रखा। उसने सबूत इकट्ठा किए, गाँव वालों को एकत्र किया, और सबको सच्चाई दिखाई।
लेकिन माफिया चुप नहीं बैठा। उन्होंने गुंडों को भेजा — राजू को मारने के लिए।
उस रात पूरा गाँव जाग रहा था।
गुंडों ने चारों ओर से गाँव को घेर लिया था। हथियारों से लैस सैकड़ों आदमी।
लेकिन राजू अकेला नहीं था — पूरा गाँव उसके साथ था।
राजू ने अपनी शक्तियों का पूरा उपयोग किया — तेज गति से हमलों को रोका, दीवारें बनाईं, नदी का पानी मोड़ कर गाँव के चारों ओर बाढ़ जैसा बना दिया ताकि दुश्मन अंदर न घुस सकें।
गाँव के नौजवानों ने भी डंडे उठाए। महिलाएँ भी लाठी लेकर खड़ी हो गईं।
एक तरफ राजू — जिसकी ताकत धरती से जुड़ी थी। दूसरी तरफ लालच, डर और हिंसा का गठजोड़।
लंबी लड़ाई के बाद, गुंडे भाग खड़े हुए। नेता और बिल्डर को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया।
सीतापुर आजाद हो गया।
लड़ाई के बाद राजू ने गाँववालों से कहा,
"शक्ति जिम्मेदारी है। अगर हमने धरती का सम्मान नहीं किया, तो शक्ति भी हमारा साथ छोड़ देगी।"
गाँव में स्कूल खुला, अस्पताल बना, खेतों में नई तकनीकें आईं।
राजू ने अपने लिए कोई महल नहीं बनाया, कोई पुरस्कार नहीं लिया।
वह आज भी हर सुबह खेत में काम करता था, दोपहर को बच्चों को पढ़ाता था, और शाम को चौपाल पर सबके साथ बैठता था।
उसके लिए सबसे बड़ा सम्मान था — गाँववालों की मुस्कान।
सीतापुर अब सिर्फ एक गाँव नहीं था,
वह एक विचार था —
कि जब धरती से निकले एक साधारण बेटे को असाधारण शक्तियाँ मिलती हैं,
तो वह खुद नहीं बदलता,
बल्कि पूरी दुनिया को बदल देता है।
समाप्त।