किसी ने बहुत सही कहा है कि लालच इंसान का दूसरा नाम है। अगर हम अपने आसपास की दुनिया को ध्यान से देखें, तो पाएंगे कि हर इंसान किसी न किसी चीज़ के लिए लालायित है। यह लालच कभी दौलत का होता है, कभी शोहरत का, कभी प्यार का और कभी सम्मान का। एक बच्चा खिलौनों के लिए लालच करता है, एक युवा सफलता के लिए, एक बुजुर्ग सम्मान और प्रेम के लिए। हर उम्र, हर मोड़ पर यह भाव किसी न किसी रूप में हमारे जीवन में उपस्थित रहता है।
लालच एक ऐसी अग्नि है जो भीतर ही भीतर धधकती रहती है। जब तक कोई इच्छा पूरी नहीं होती, तब तक बेचैनी बनी रहती है और जैसे ही वह इच्छा पूरी हो जाती है, एक नई चाहत जन्म ले लेती है। यह एक अंतहीन चक्र है। उदाहरण के तौर पर जब कोई सोचता है कि "बस एक नौकरी मिल जाए", तो नौकरी मिलने के बाद वह सोचता है "अब प्रमोशन मिल जाए", फिर "अपना घर खरीद लूं", फिर "बड़ी गाड़ी ले लूं", फिर "समाज में नाम हो जाए" और फिर यह सिलसिला अनवरत चलता रहता है। इंसान की इच्छाएँ कभी समाप्त नहीं होतीं।
दिलचस्प बात यह है कि लालच हमेशा स्पष्ट रूप से सामने नहीं आता। यह कई बार बहुत सूक्ष्म रूप में भी हमारे जीवन में प्रवेश कर जाता है। जब हम सोशल मीडिया पर ज़्यादा लाइक्स और फॉलोअर्स के लिए व्याकुल होते हैं, जब हम चाहते हैं कि हमारे विचारों की सबसे ज्यादा सराहना हो, जब हम दूसरों से आगे निकलने के लिए खुद से भी होड़ लगाने लगते हैं, तब भी कहीं न कहीं यह लालच ही होता है जो हमें भीतर से संचालित कर रहा होता है। यह लालच कभी-कभी प्रेरणा का रूप ले लेता है, लेकिन जब यह संतुलन खो देता है तो व्यक्ति को थका देता है और जीवन से सुख-शांति छीन लेता है।
इंसानी समाज में तुलना की भावना इतनी गहरी जड़ें जमा चुकी है कि लालच को पहचानना भी मुश्किल हो गया है। हमें लगातार बताया जाता है कि सफलता का मापदंड दूसरों से ज़्यादा कमाना, ज़्यादा दिखाना और ज़्यादा पाना है। इस माहौल में संतोष को साधना किसी तपस्या से कम नहीं है। संतोष का भाव यह नहीं कहता कि आकांक्षा न रखो, बल्कि यह सिखाता है कि आवश्यकता और तृष्णा में फर्क करना सीखो।
जब हम अपने भीतर झांकते हैं तो समझ में आता है कि जो चीजें वास्तव में हमारे जीवन को सुखी बनाती हैं, वे बहुत साधारण हैं — प्यार, अपनापन, स्वास्थ्य, और आत्म-संतोष। लेकिन हम इन्हें भूलकर उन चीजों के पीछे भागते हैं जो क्षणिक संतोष देती हैं और फिर हमें और भी अधूरा कर देती हैं। लालच का यही स्वभाव है — वह तृप्त नहीं करता, बल्कि तृष्णा को और गहरा करता है।
इतिहास में हम असंख्य उदाहरण देख सकते हैं जहाँ लालच ने विनाश की पटकथा लिखी है। बड़े-बड़े साम्राज्य, जो अपार धन और शक्ति की चाहत में अंधे हो गए थे, अंततः पतन का शिकार हुए। व्यक्तिगत जीवन में भी यही नियम लागू होता है। लालच रिश्तों में दरार डालता है, मित्रता में स्वार्थ भरता है और प्रेम में अपेक्षाओं का जहर घोल देता है। जो संबंध निष्कलंक प्रेम पर टिके होते हैं, वे लालच के आते ही कमजोर पड़ने लगते हैं।
लालच का असर केवल भौतिक स्तर पर नहीं होता, बल्कि यह मानसिक और आत्मिक शांति को भी नष्ट कर देता है। जो व्यक्ति निरंतर कुछ पाने की दौड़ में लगा रहता है, वह कभी वर्तमान क्षण का आनंद नहीं ले सकता। उसकी दृष्टि हमेशा भविष्य पर टिकी रहती है — वह भविष्य जो कभी भी वर्तमान नहीं बनता। इस तरह, लालच एक ऐसी दौड़ है जिसमें कोई अंत नहीं है, कोई विजेता नहीं है, केवल थकान और असंतोष है।
यदि हम चाहते हैं कि हमारे जीवन में सच्चा सुख और शांति हो, तो हमें लालच को समझना और नियंत्रित करना सीखना होगा। इसके लिए सबसे पहले आत्म-मूल्यांकन आवश्यक है। हमें खुद से ईमानदारी से यह पूछना होगा कि हमारी कौन-सी इच्छाएँ वाकई में हमारी आवश्यकताएँ हैं और कौन-सी केवल हमारी तृष्णा का परिणाम हैं। ध्यान, आत्म-चिंतन और आभार प्रकट करना ऐसे शक्तिशाली उपकरण हैं जो हमें लालच से उबार सकते हैं।
जब हम जो कुछ हमारे पास है उसके लिए कृतज्ञता व्यक्त करते हैं, तब हम समझते हैं कि हम पहले से ही बहुत समृद्ध हैं। सेवा भाव अपनाकर जब हम दूसरों की मदद करते हैं, तो हमें अपने भीतर एक गहरी संतुष्टि का अनुभव होता है, जो किसी भी बाहरी उपलब्धि से कहीं अधिक स्थायी होती है। धीरे-धीरे, हम यह महसूस करते हैं कि जीवन का असली सुख पाने में नहीं, बल्कि साझा करने में है।
यह लेख जो आप पढ़ रहे हैं, वह भी मेरे अपने छोटे-छोटे लालच का परिणाम है। सच कहूं तो लेखन के कुछ पलों का लालच, अपनी रचना को लोगों तक पहुँचाने का लालच, पाठकों की प्रतिक्रिया पाने का लालच, और कहीं न कहीं सराहना का भी लालच। यह स्वाभाविक है। इंसान के भीतर यह स्वाभाविक प्रवृत्ति होती है कि वह अपनी रचनात्मकता को साझा करे और उसके प्रति प्रतिक्रिया पाए।
शायद इसी लालच ने मुझे इस लेख को विस्तार देने के लिए प्रेरित किया, ताकि आप तक मेरी भावनाएँ गहराई से पहुँच सकें। और अगर आप इस लेख को यहाँ तक पढ़ते आए हैं, तो इसका अर्थ है कि आपके भीतर भी कुछ अच्छा पढ़ने की, कुछ सच्ची भावनाओं को महसूस करने की इच्छा थी।
यही तो सुंदर पक्ष है इंसानी लालच का — जब यह हमें सृजन, प्रेम और साझा करने की दिशा में प्रेरित करे। अगर लालच हमें बेहतर इंसान बनने की ओर ले जाए, तो वह भी किसी वरदान से कम नहीं। लेकिन अगर यह हमें अंधी दौड़ में धकेल दे, तो यह सबसे बड़ा अभिशाप बन जाता है।
मैं आशा करता हूँ कि मेरी यह कोशिश आपको पसंद आई होगी। अगर हाँ, तो यह भी एक तरह का साझा 'लालच' पूरा करना होगा — आप मेरे शब्दों को पढ़ने का और मैं आपकी प्रतिक्रियाओं को पाने का। आखिर इंसान भी तो कहीं न कहीं, अपनी भावनाओं के आदान-प्रदान के लिए जीता है। अगर आपको यह लेख अच्छा लगा हो, तो मेरा छोटा-सा अनुरोध रहेगा कि इस सफर को आगे भी जारी रखें।
क्योंकि अंततः, अगर लालच हमें जोड़ रहा है, तो यह एक सुंदर लालच ही है।