shadows of unspoken relationships in Hindi Short Stories by Shailesh verma books and stories PDF | अनकहे रिश्तों की परछाईं

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अनकहे रिश्तों की परछाईं

शब्दशैली: सामाजिक, मनोवैज्ञानिक, भावनात्मकमुख्य

विषय: यौनिकता (Sex) पर आधारित एक गहरी, संजीदा और प्रभावशाली कथा

ध्यान दें: यह कहानी समाज, मन और शरीर के द्वंद्व को उजागर करती है, अश्लीलता नहीं है।---

भूमिका:

यह कहानी है स्मृति की — एक युवा महिला जो समाज की मर्यादाओं और अपनी देह की चाहतों के बीच फंसी हुई है। यह कहानी प्रेम की है, वासना की है, अपराधबोध की है — और सबसे बढ़कर, पहचान की है।---

(1) पहला दृश्य – शहर की धड़कनशाम का वक्त था। दिल्ली की सड़कों पर गाड़ियों का शोर था और लोगों की भागती ज़िंदगी। एक कॉफी शॉप के कोने में बैठी थी स्मृति — अकेली, अपने फोन में खोई हुई।

वेटर: "मैम, आपका अमेरिकानो।"स्मृति (मुस्कराते हुए): "थैंक यू।"उसे इंतज़ार था अर्जुन का — वही जो पिछले तीन महीनों से उसकी ज़िंदगी में आया था, जैसे बंजर ज़मीन पर पहली बारिश।स्मृति (फोन पर अर्जुन को टेक्स्ट करती है): "कब तक पहुंचोगे?"अर्जुन: "10 मिनट और… बस थोड़ा ट्रैफिक है।"स्मृति (मन में सोचते हुए): "काश, ये रिश्ता भी इतना आसान होता जितना कॉफी का ऑर्डर…"---

(2) दूसरा दृश्य – पहली मुलाक़ात की यादस्मृति को याद आया, जब उसने पहली बार अर्जुन को एक पुस्तक मेले में देखा था। उसकी आँखों में जिज्ञासा थी, और बातों में खुलापन। लेकिन जो सबसे अलग था — वो था उसका स्त्रियों को लेकर दृष्टिकोण।अर्जुन: "मैं मानता हूँ कि औरत की देह उसकी निजी संपत्ति है। कोई उसके निर्णय पर उंगली नहीं उठा सकता।"वो शब्द, स्मृति के दिल में उतर गए थे। बचपन से उसने अपने शरीर को एक बोझ की तरह महसूस किया था — कभी स्कूल में लड़कों की नज़रों से, तो कभी घर में मौन मर्यादाओं से।---

(3) तीसरा दृश्य – देह और मन की उलझनस्मृति और अर्जुन अब अक्सर मिलने लगे। बातचीत अब छूने में बदल गई थी। एक दिन, जब अर्जुन ने उसका हाथ थामा और उसे अपने पास खींचा…स्मृति (धीरे से): "क्या हम सही कर रहे हैं?"अर्जुन: "अगर मन और शरीर दोनों राज़ी हों… तो क्या गलत है?"उस दिन उन्होंने पहली बार एक-दूसरे को पूरेपन में महसूस किया — देह की सीमाओं से परे, आत्मा के स्पर्श तक।लेकिन अगली सुबह…स्मृति (मन में): "क्या मैंने खुद को गिरा दिया? या खुद को खोज लिया?"---

(4) चौथा दृश्य – समाज की दीवारेंजब उसकी एक दोस्त नेहा को ये बात पता चली…नेहा (आश्चर्य से): "तुमने बिना शादी के…?"स्मृति (कड़वाहट से): "हाँ, किया। क्योंकि मैंने चाहा। क्या चाहतों पर भी संस्कारों की ज़ंजीर डालनी चाहिए?"नेहा: "लेकिन दुनिया…?"स्मृति (कटाक्ष से): "दुनिया तो बलात्कार पर चुप रहती है, लेकिन प्रेम पर उंगलियाँ उठाती है।"---

(5) पाँचवां दृश्य – अर्जुन की सच्चाईएक दिन अर्जुन ने उसे बताया…अर्जुन: "मैं शादीशुदा हूँ, स्मृति। लेकिन मेरी शादी सिर्फ नाम की है… मेरे और मेरी पत्नी के बीच कोई रिश्ता नहीं।"स्मृति (निस्तब्ध): "तो मैं सिर्फ एक खालीपन की पूर्ति हूँ?"अर्जुन: "नहीं! तुम वो हो जिसने मुझे जीना सिखाया…"लेकिन स्मृति अब टूट चुकी थी। उसने खुद को उस रिश्ते से अलग कर लिया।---

(6) छठा दृश्य – आत्ममंथनवो दिन आए, जब स्मृति ने खुद को आईने में देखा — बिना शर्म, बिना अपराधबोध।स्मृति (अपने आप से): "मैं सिर्फ एक शरीर नहीं हूँ। मैं वो अनुभव हूँ जो प्रेम और इच्छा के बीच बसा है।"उसने अपने लेखों में, अपने ब्लॉग में, अपनी कहानियों में, यौनिकता की सच्चाई को जगह दी।---

(7) सातवां दृश्य – नई पहचानअब स्मृति एक लेखिका थी। उसके लेख 'देह की भाषा', 'अपराधबोध से मुक्ति', और 'मेरी इच्छाएँ, मेरा अधिकार' लाखों लोगों तक पहुँच चुके थे।एक कॉलेज में हुए सेमिनार में…स्टूडेंट: "मैम, आपने इतनी हिम्मत कहाँ से पाई?"स्मृति (मुस्कराते हुए): "जब औरत अपनी देह से दोस्ती कर ले, तो पूरी दुनिया से लड़ सकती है।"---

समाप्ति:

स्मृति अब अकेली नहीं थी। उसने खुद को खोज लिया था —

ना किसी पुरुष की छाया में, ना किसी समाज के भय में। उसकी कहानी उन लाखों लड़कियों की आवाज़ बन गई, जिन्हें अपनी इच्छाओं से डराया गया था।---

संक्षेप में संदेश:

"सेक्स केवल शरीर का नहीं, आत्मा का भी संवाद है। इसे अपराध नहीं, अधिकार समझिए।"--


Writer:- Shailesh Verma