यक्ष का उत्पात
श्रावस्ती नगर के अड़विक गाँव में एक बड़ा दुर्दात यक्ष रहता था, श्रावस्ती एक पीपल वृक्ष के ऊपर जिसका वास था। वह नित्य एक प्राणी की जान लेता था। लोग उसके भय से क्रमवार व्यक्ति को उसके पास भेजते थे।
प्रभु गौतम जनता के हित में उस दुष्ट से पीछा छुड़ाने के लिए एक बार उस गाँव में गए। लोगों ने उनको यक्ष के बारे में विस्तार से बताया। प्रभु ऐसा सुन वहाँ पर गए जहाँ उसका वास था। तथागत ने उसी पीपल वृक्ष के नीचे अपना आसन लगा लिया और बैठ गए।
उसने प्रभु को वहाँ बैठा देखा तो समझ गया कि मेरा आहार आ गया। वह वृक्ष के नीचे उतरा और कटार लेकर प्रभु को मारने दौड़ा। ज्यों ही उसकी दृष्टि प्रभु के मुख की ओर गई, वह उसी समय प्रभु के चरणों में गिर पड़ा और गौतम के उपदेश से उसने हमेशा के लिए हिंसा का त्याग कर दिया।
साधु का नुस्खा
एक समय गौतम बुद्ध अपने शिष्यों के साथ भ्रमण कर रहे थे। भ्रमण करते समय सभी एक स्थान पर विश्राम के लिए बैठ गए। समय बिताने के लिए भगवान् बुद्ध ने अपने शिष्यों को एक कथा सुनाई-
किसी नगर में एक व्यक्ति रहता था। उसने परदेश के साथ व्यापार किया। मेहनत फली, कमाई हुई और उसकी गिनती सेठों में होने लगी। महल जैसी हवेली बन गई। वैभव और बड़े परिवार के बीच उसका जीवन बड़े आनंद से बीतने लगा।
एक दिन किसी दूसरे नगर से उसका एक संबंधी आया। बातचीत के बीच उसने बताया कि उसके यहाँ का सबसे बड़ा सेठ गुजर गया। बेचारे की लाखों की धन-संपत्ति पड़ी रह गई।
बात सहज भाव से कही गई थी, पर उस आदमी के मन को डगमगा गई। हाँ, उस सेठ की तरह एक दिन वह भी तो मर जाएगा। उसी क्षण से उसे बार-बार मौत की याद सताने लगी। हाय मौत आएगी, उसे ले जाएगी और सबकुछ यहीं छूट जाएगा। मारे चिंता के उसकी देह सूखने लगी। देखने वाले देखते कि उसे किसी चीज की कमी नहीं है, उस पर उसके भीतर का दुख ऐसा था कि किसी से कहा भी नहीं जा सकता था। धीरे-धीरे वह बिस्तर पर पड़ गया। बहुत इलाज कराया गया, लेकिन उसका रोग कम होने की बजाय बढ़ता ही गया। एक दिन एक साधु उसके घर पर आया। उस आदमी ने बेबसी से उसके पैर पकड़ लिए और रो-रोकर अपनी व्यथा उसे बता दी।
सुनकर साधु हँस पड़ा और बोला, "तुम्हारे रोग का इलाज तो बहुत ही सरल है।" उस आदमी के खोए प्राण मानो लौट आए। अधीर होकर उसने पूछा, "स्वामीजी, वह इलाज क्या है?"
साधु ने कहा, "देखो, मौत का विचार जब मन में आए, जोर से कहो, जब तक मौत नहीं आएगी, मैं जीऊँगा। इस नुस्खे को सात दिन तक आजमााओ, मैं अगले सप्ताह आऊँगा।"
सात दिन के बाद साधु महाराज आए तो देखते क्या हैं कि वह आदमी बीमारी के चंगुल से बाहर आ गया है और आनंद के गीत गा रहा है। साधु को देखकर वह दौड़ा और उसके चरणों में गिरकर बोला, "महाराज, आपने मुझे बचा लिया। आपकी दवा ने मुझ पर जादू का सा असर किया है। मैंने समझ लिया कि जिस दिन मौत आएगी, उसी दिन मरूँगा, उससे पहले नहीं।"
साधु ने कहा, "वत्स! मौत का डर सबसे बड़ा डर है। वह जितनों को मारता है, मौत उतनों को नहीं मारती।"