देवदत्त का विरोध
देवदत्त के मुख पर गहरे विषाद और क्षोभ के भाव थे। वह शीघ्रता से चलकर यशोधरा के पिता के पास पहुँचा और उनसे बोला, "राजन! आपने तो यह प्रतिज्ञा की थी कि जो भी वीर पुरुष अस्त्र-शस्त्र के संचालन में प्रतियोगिता का मुख्य विजेता रहेगा, उसी के साथ राजकुमारी यशोधरा का विवाह होगा।"
देवदत्त की बात सुनकर यशोधरा के पिता निरुत्तर हो गए। वास्तव में वे अपनी यह प्रतिज्ञा विस्मृत कर बैठे थे। अब उन्होंने तुरंत राजा शुद्धोधन से बात की और अस्त्र-शस्त्र की प्रतियोगिता आयोजित करने का अनुरोध किया। राजा शुद्धोधन ने अनुरोध स्वीकार कर लिया।
सभी जनों का विचार था कि राजकुमार सिद्धार्थ कोमल हृदय का और अहिंसा में विश्वास करने वाला राजकुमार है और वह इस प्रतियोगिता में सहज ही पराजित हो जाएगा; परंतु हुआ इसके विपरीत। राजकुमार सिद्धार्थ ने अपने सभी प्रतिद्वंद्वियों को पराजित करके प्रथम विजेता का पद प्राप्त किया।
राजकुमार सिद्धार्थ से पराजित होकर देवदत्त लज्जा से सिर झुकाकर वहाँ से चला गया। अपने राजकुमार की जीत पर राजा शुद्धोधन, रानी प्रजावती और सभी प्रजाजनों को आश्चर्य मिश्रित प्रसन्नता हुई। अब यशोधरा के पिता ने प्रसन्नतापूर्वक अपनी पुत्री का विवाह राजकुमार सिद्धार्थ के साथ कर दिया। यशोधरा सिद्धार्थ जैसा सुंदर, गुणवान और प्रतिभासंपन्न, वीर पति पाकर बड़ी प्रसन्न थी। इसी प्रकार सिद्धार्थ भी यशोधरा जैसी सुंदर, सुशील और सलज्ज अर्धांगिनी पाकर जैसे फूला न समाया था। यशोधरा को पाकर सिद्धार्थ जैसे स्वयं को भी भूल गया था। अपनी नवयौवना-नवविवाहित पत्नी के साथ वह प्रायः पुष्प वाटिका में घूमता रहता और उसके बालों में पुष्प सजाकर हँसता-मुसकराता रहता।
सत्य से परिचय
राजकुमार सिद्धार्थ को यशोधरा का सौंदर्य पाश भी अधिक समय तक
बाँधकर न रख सका।
एक दिन सिद्धार्थ के मन में नगर भ्रमण की इच्छा हुई। उसने अपने सेवक छंदक को घोड़ा तैयार करने का आदेश दिया। छंदक ने सिद्धार्थ का प्रिय घोड़ा कथंक तैयार कर दिया और राजकुमार को उस पर सवार कराकर नगर-भ्रमण के लिए चल दिया।
राजाज्ञा द्वारा ऐसा प्रबंध करा दिया गया कि मार्ग में कोई भी ऐसा कारुणिक या कष्टदायी दृश्य न दिखाई पड़े, जिससे राजकुमार सिद्धार्थ के हृदय पर कुप्रभाव पड़े। उस मार्ग पर युवा और सुंदर युवक-युवतियाँ खड़े हुए थे, जो राजकुमार के ऊपर पुष्प वर्षा कर रहे थे।
सहसा उस मार्ग से दूर एक अन्य मार्ग पर राजकुमार की दृष्टि पड़ी। वहाँ कोई वृद्ध व्यक्ति लाठी टेकता, कराहता हुआ धीरे-धीरे चल रहा था।
"छंदक!" सिद्धार्थ बोला, "वह व्यक्ति झुककर क्यों चल रहा है? उसके हाथ में डंडा क्यों है और वह इतना असुंदर क्यों है?"
छंदक ने एक क्षण उस वृद्ध व्यक्ति की ओर देखकर धीरे से कहा, "राजकुमार, वह व्यक्ति वृद्ध हो चुका है। अधिक आयु हो जाने के कारण
उसका शरीर निर्बल होकर झुक गया है। इसी कारण वह लाठी का सहारा लेकर चलता है। आयु ने उसका चेहरा झुर्रियों से भर दिया है। इसी कारण वह असुंदर लगता है, अन्यथा वह भी कभी बहुत सुंदर रहा होगा।"
छदक की बात सुनकर सिद्धार्थ बोला, "क्या सभी लोग वृद्ध हो जाने पर इसी प्रकार के हो जाते हैं?"
"हाँ राजकुमार! यही सत्य है।"
इस सत्य का परिचय पाकर राजकुमार सिद्धार्थ का अंतर्मन काँप उठा।
उसे अपने भविष्य की इस असहाय दशा की कल्पना से ही गहरा आघात लगा।
सिद्धार्थ ने नगर-भ्रमण करना निरस्त कर राजमहल लौट चलने की इच्छा प्रकट की।
महल में आकर जब छंदक ने राजा शुद्धोधन और रानी प्रजावती से मार्ग की घटना बताई तो उन्हें बड़ी चिंता हुई। उन्होंने राजकुमार के मनोरंजन के लिए नृत्य और गायन का आयोजन कराया और यशोधरा को राजकुमार का मन बहलाने के उपाय करने को कहा।