उस आकाशवाणी को सुनने के बाद दक्ष को अपना संदेश मिल गया था उसे संदेश को पाकर दक्ष बहुत ही खुश होता है और प्रश्न होते हुए उस आकाशवाणी को हाथ जोड़कर धन्यवाद करता है कि" आप जो भी हैं आपको मेरी तरफ से हाथ जोड़कर प्रणाम "
दक्ष की आवाज सुनकर वह आवाज दक्ष को आशीर्वाद देती है
" विजई भव:"
इतना कहने के बाद वह आवाज गायब हो जाती है
तभी ठंडी हवा का झोंका आता है और दक्ष शरीर को छू जाता है और अगले ही पल उसके दाहिने हाथ की उंगली में एक अंगूठी आ जाती है दक्ष उस अंगूठी को घूर-घूर कर देख रहा था इस बीच उस घर में सामान पैक कर रही पन्ना के हाथ से एक कटोरा फिसल गया और दक्ष का ध्यान भटकता है और वह हड़प्पटाते हुए चारों तरफ देखा है तो वह देखता है कि वहां पर भानुमति पन्ना और एक और नौकर तीनों सामान पैक कर रहे थे
"यह सपना है या सच है?"
दक्ष के मन में बहुत सारे सवाल गूंज रहे थे "क्या होगा यदि इतना वर्षों की कैद के बाद मेरी आत्मा रिहा हो जाए और यहां पर बधे हैं तो कौन बांधेगा
और मैं बंधा हुआ था तो इस कैद से मुझे मुक्त करने के लिए किसने मेरी मदद की है..??"
दक्ष अपने हाथ की तरफ देखा है तो वह हैरान रह जाता है "यह मेरे हाथ में अंगूठी यह पहले तो नहीं थी"
भानुमति दक्ष के पास आती है तब दक्ष उस अंगूठी को बड़ी ही गौर से देख रहा होता है
दक्ष अपनी अंगूठी को देख रहा होता है तभी भानुमति दक्ष को कहती है कि "यह अंगूठी तुम्हारे हाथ में कैसे आई???"
भानुमति आश्चर्यचकित होते हुए दक्ष से पूछती है
भानुमति की बात सुनकर दक्ष इधर-उधर देखने लगता है क्योंकि दक्ष के पास इसका जवाब नहीं था वह सोच रहा था कि अब वह अपनी मां को क्या जवाब दे दरअसल यह अंगूठी 800 साल पहले भी उसके साथ थी और अंगूठी कब और किसने डाली यह इसका पता अब तक नहीं चल सका
हां दक्ष को इतना पता था कि उसके पिता हमेशा कहते थे कि इस अंगूठी को अपने हाथ से कभी भी मत उतारना
और यह बहुत ही ताजू की बात है कि यह अंगूठी उसके सपने में आ गई और सच में उसके हाथ में आ गई तभी दक्ष हड़बड़ा कर बोलता है" यहां पर इस बिस्तर के नीचे मिल गई और यह मुझे पसंद आ गई तो मैंने यह अंगूठी पहन ली "
"शायद हो सकता है कि हमसे पहले यहां पर कोई आया होगा और उसके अंगूठी यहां रह गई
इस तरह से किसी और की अंगूठी पहनना आपके लिए अच्छा नहीं है
चलो यह अंगूठी मुझे दे दो हम इसको जिसकी है उसको लौटा देते हैं"
भानुमति दक्ष की तरफ हाथ बढ़ा देती है अंगूठी लेने के लिए तभी दक्ष अपनी मां का बड़ा हुआ हाथ देखकर अपने हाथ को पीछे कर लेता है
"नहीं माँ यह अब मेरी अंगूठी है मैं नहीं दूंगा इसे"
भानुमति दक्ष को कुछ नहीं करती है और चुपचाप रहती हैं क्योंकि दक्ष ने पहली बार कोई जिद की थी फिर भानुमति दक्ष से कहती हैं" चलो तैयार हो जाओ प्रतियोगिता में चलते हैं"
इधर अखाड़े में इष्ट देवता की पूजा करके चंद्रा बाहर आती है और बाहर आते ही वहां पर जितने भी लोग मौजूद थे सभी चंद्रा की जय जयकार करने लगते हैं
इसके बाद चंद्रा वहां पर प्रज्वलित अग्नि को प्रणाम करती है और प्रणाम करने के लिए जब वह झुकती है तो आग एकदम से भड़क जाती है और ऊपर की तरफ फूट जाती है
जैसे ही आग भड़कती है तो चंद्रा अपने कदम को पीछे खींच लेती है और वहां पर जितने भी लोग थे इस हादसे को देखकर एकदम से आश्चर्यचकित रह जाते हैं
"कोई बात नहीं चलिए प्रतियोगिता शुरू कीजिए" चंद्रा इतना कहकर अपनी जगह पर जाकर बैठ जाती है
और फिर वहां पर बैठकर सोचने लगी "पहले वह सपना और अब यह अग्नि का ऐसे ऊपर की तरफ उठाना
यह हादसा यह सब ऐसे तो नहीं हो सकता कोई ना कोई कारण जरूर है "
चंद्रा यह सब सोच रही थी तभी वह मंदिर की तरफ देखती है तो मंदिर में चंद्रा से पहले उसे कुछ लोग वहां पर पूजा कर रहे थे इष्ट देवता की और वह सभी अग्निकुंड के चारों तरफ परिक्रमा भी लगा रहे थे
और वह बलि देने के लिए तैयार थे
जब वह प्रतियोगिता के लिए वहां पर बैठी थी तभी भानुमति और दक्ष वहां पर आते हैं दक्ष को देखते ही चंद्रा के होश उड़ जाते हैं और उसका सारा का सारा ध्यान उसका जो सारा का सारा अभी भविष्य था और वर्तमान था वह 800 साल पहले भूतकाल में चला जाता है
इस पवित्र ताबीज की प्रतियोगिता में चंद्रा आखिरी दिन के समय आई थी और उसने जैसे ही दक्ष को दिखा तो चंद्रा ने दक्ष को आवाज़ लगाई चंद्रा की आवाज सुनकर दक्ष की आंखों में आप गुस्सा भर आया और वह चंद्रा की तरफ देखते हुए गुस्से में देखा है और दक्ष की मुठिया बीच जाती है तभी चंद्रा अपने साथ में बैठी वहां पर महारानी से कहती है कि "यह कौन है??"तब महारानी रहती है
"यह मेरा सौतेला बेटा है चंद्रा महारानी "
"मुझे ऐसा क्यों लग रहा है कि मैं इसको पहले कभी देखा है मुझे कुछ याद नहीं है" चंद्रा उसको कहती है तभी रानी कहती है कि" यह इस प्रतियोगिता में आता रहता है
लेकिन आप उस समय वहां मौजूद नहीं रहती थी
लेकिन आपको पता है यह हमेशा से एक मरीज था लेकिन मैं भी आज इसको पहली बार चलते हुए देख रही हूं"
बड़ी रानी चंद्रा को बताती है और भानुमति और दक्ष दोनों जाकर के बड़ी रानी को प्रणाम करती हैं लेकिन दक्ष चंद्रा की तरफ बिना पलक झपक गुस्से में देख रहा था उसने चंद्रा को प्रणाम भी नहीं किया था
और जब भानुमति यह सब देखती है तो वह अपने बेटे दक्ष के पास चली जाती है और जाकर के वह दक्ष को महारानी चंद्रा को प्रणाम करने के लिए कहती है
दक्ष ने अपनी मां भानुमति की तरफ देखा और इसके बाद चंद्रा की तरफ देखा फिर थोड़ा सा मुस्कुरा देता है और दोनों हाथ जोड़कर चंद्र से बोलता है कि "प्रणाम चंद्रा जी "
कहते हुए वह रुका और सीधी महारानी चंद्रा की आंखों में देखते हुए बोलता है
दक्ष के मुंह से ऐसी बात सुनकर सभी के सभी लोग हैरान थे क्योंकि 8 सालों में ऐसा पहली बार हुआ था जब किसी ने चंद्रा का नाम अपने मुंह से लिया था
800 साल पहले चंद्र सोचने लगती है कि" उसे समय भी दक्ष ऐसे ही नाम लिया करता था यह कैसा संयोग है कि वही नाम और वही आवाज अब इस लड़के में मुझे सुनने को मिल रही है "तभी चंद्रा 800 साल से निकलकर वर्तमान में आती है और दक्ष से पूछती है कि" तुम्हारा नाम क्या है"
"दक्ष............. "
जैसे ही दक्ष अपना नाम लेता है तो उसके आवाज चारों तरफ फैल जाती है और गुंजा ने लगती है दक्ष नाम सुनकर चंद्रा एकदम से अपनी आंखें बड़ी कर लेती है और एकदम हैरान रह जाती है
दक्ष की बात सुनकर चंद्रा को एकदम से पसीना आ जाता है और उसको यकीन नहीं हो रहा होता है कि दक्ष उसके सामने खड़ा है