द न्यू अवतार....... (Pehla kadam )
यह कैसे संभव है इसका मतलब है कि जो चीज अब तक इतने वर्षों से नहीं हुई थी वह अब कैसे होने की संभावना है अब यह कैसा संकेत है
तब बड़ी रानी ने संदेह से कहा कि शायद वह जानती है कि उसको यह पवित्र ताबीज मिलने वाला
वह ताबीज लेकर आया है
यह सुनकर भानुमति क्रोधित हो जाती है
तभी राजपुरोहित जी कहते हैं कि ऐसी कोई संभावना नहीं है लेकिन यह बात सच है कि इष्ट देवता दक्ष को एक मोहर दे रहे है
लेकिन यह एक नई ताबीज है मैं इसके बारे मे जान नहीं पा रहा
चंद्रा राजपुरोहित जी की बातचीत सुन रही थी और दक्ष की तरफ देख रही थी और इधर दक्ष भी बिना किसी वजह के चंद्रा की तरफ देख रहा था
तभी बड़ी रानी कहती है कि यदि कोई नई ताबीज आई है तो उसका कोई भी मोल नहीं है या फिर उसके बारे में हम नहीं जानते हैं
चंद्रा ने बड़ी रानी की बात को बहुत ही ध्यान से सुना और सोचा फिर वह थोड़ी देर सोचती है और वह सोचती है कि अब इसमें शामिल होना और ज्यादा ठीक नहीं है
ऐसा भी तो हो सकता है कि इष्ट देवता हमारे दक्ष को पहले दसवीं ताबीज में ही प्रकट की है
दक्ष जैसे कमजोर इंसान को इस प्रतियोगिता में कामयाबी कैसे मिल सकती है वह भी इतनी आसानी से,,क्योंकि दक्ष तो कभी चल ही नहीं सकता था ढंग से लेकिन यह प्रतियोगिता जीत कैसे गया और यह है प्रतियोगिता जीत गया वह बात अलग है लेकिन इसको जो ताबीज़ मिली है वह कुछ भी नहीं है और इस ताबीज का कोई मोल नहीं है
बिना पहचान के इस ताबीज के बारे में कुछ भी बात करना बेकार है
बड़ी रानी गुस्से में बोलती है
तभी राज परिवार भी बड़ी रानी की बात में हां में हां मिला देता है तभी भानुमति थोड़ी सी कठोरता से पूछती है कि आप यह निर्णय कैसे ले सकती हैं
और कैसे निर्णय करूं बड़ी रानी अब ऊंची आवाज में भानुमति से पूछता है
और राजपुरोहित की तरफ देखा
राजपुरोहित जी क्या आपके पास इस समस्या का कोई समाधान नहीं है
उस शब्द के साथ राजपुरोहित ने सोचा
मां मैं जानता हूं कि मेरे पूर्वजों ने भी मुझसे कभी ऐसी बात नहीं कही अगर हमारे पास अभी भी पवित्र पुस्तक है तो आईए देखते हैं की किताब में इसके बारे में क्या लिखा है
राजपुरोहित ने कहा
उस पवित्र पुस्तक में नौ ताबीज के बारे में और उनसे मिलने वाली शक्तियों के बारे में उनसे मिलने वाले प्रशिक्षण के बारे में
ऐसे सभी अच्छी और बुरी बातें लिखी हुई है
उस पुस्तक को राज्य की प्रजा वह पवित्र पुस्तक के तरह मानती थी
इस पवित्र पुस्तक को इष्ट देवता के चरणों में रखा जाता है तब राजपुरोहित ने उसके बारे में बताया तब बड़ी रानी
ने कहा
तो फिर तुरंत वह किताब निकाल कर दिखाइए
ठीक है माँ
इतना कहने के बाद राजपुरोहित मंदिर के अंदर चला जाता है और पवित्र पुस्तक को लेकर आ जाता है
सभी लोगों की नजर राजपुरोहित पर थी और सभी लोग इंतजार कर रहे थे कि अब राजपुरोहित जी क्या कहेंगे
पवित्र ग्रंथ के आरंभ से अंत तक राजपुरोहित जी ने उसको बहुत अच्छे से पढ़ा
परंतु उसमें सिर्फ नौ ताबीज के बारे में ही लिखा था
आब भानुमति थोड़ा सा उदास होकर राजपुरोहित जी से पूछती है
क्या यह दसवीं ताबीज के बारे में नहीं है
नहीं माँ इसमें कुछ भी नहीं है तभी राजपुरोहित ने कहा और बड़ी रानी तेज आवाज मे पुरोहित से कहती है
इस किताब में यदि दसवीं ताबीज के बारे में नहीं लिखा है तो मतलब यह है ताबीज बेकार है
तो इस मुद्रा का अब क्या मोल रह गया ऐसा कैसे हो सकता है
वह किताब थी किसी ने लिखी है
तभी 9 बुजुर्ग वहां पर आते हैं और उनको बताते हैं कि उन दिनों में नौ ताबीज आई थी और जो ताबीज़ के बारे में ही इस पुस्तक में लिखा गया है
दसवीं ताबीज नहीं आई होगी इसीलिए इस पुस्तक में तस्वीर ताबीज के बारे में कोई भी जिक्र नहीं है
और इस तस्वीर ताबीज का कोई मूल्य नहीं है
अब बड़ी रानी उनके शब्दों पर बहुत ही शांत होकर बोलती है
अब इस बारे में क्या सोच और क्या तर्क दे कि इस तर्क देने पर यह ताबीज का अर्थ या निरर्थक है
और इस ताबीज का क्या मूल्य है
और जब तक इस ताबीज के बारे में किसी को पता ना हो इसकी शक्तियों के बारे में किसी को पता ना हो तब तक दक्ष को भी इसकी प्रसिद्धि नहीं मिलनी चाहिए
बड़ी रानी की बात सुनकर भानुमति को गुस्सा आ जाता है और वह जैसे ही कुछ कहने के लिए थोड़ा आगे बढ़ती है तभी दक्ष भानुमति से कहता है
माँ
इतना ही बोलता है कि भानुमति दक्ष की बात सुनकर वहीं पर रुक जाती है
और इधर चंद्रा को तभी कुछ काम याद आता है और वह वहां से जाने लगती है और उसके मन में बहुत सारे सवाल चल रहे होते हैं
और चंद्रा के लिए अब यह जानना बहुत ज्यादा जरूरी हो गया था कि दक्ष को मिली दसवीं ताबीज क्या थी और कौन सी थी
चंद्रा को यहां से ऐसा जाते हुए देख कर सभी लोग डर जाते हैं
और इधर दक्ष अपनी खुशी में था कि आखिरकार उसकी जो चाहिए था वह उसको मिल गया है
चंद्रा अपने शाही महल में वापस आती है
और अपने कक्ष में आकर के वह वहां पर आराम करने लगती है महारानी चंद्रा के कक्ष में एक गुप्त दरवाजा था जो की एक तहखाना की तरफ जाता था और वह 800 सालों से बंद था 800 सालों से बंद होने की वजह से वहां पर कोई भी नहीं गया था और युवराज दक्ष की मौत के बाद वहां पर कुछ कैद किया हुआ था रानी चंद्रा की अपनी शक्तियों से
जैसे ही चंद्रा उस तहखाना की तरफ जाती है और उस तहखाने में नीचे की तरफ जाने लगती तो उसके कानों में कुछ-कुछ आवाज सुनाई देने लगती है
उन आवाज को सुनने के बाद उसके चेहरे पर डर साफ दिखाई दे रहा था जैसे-जैसे चंद्रा उस तहखाना में जा रही थी तो उसको अपने सारे जो छिपे हुए राज थे वह याद आ रहे थे 800 सालों से इस तहखाना में बहुत सारे राज छुपे हुए थे और उनमें से एक राज चंद्रा का भी था जो वह 800 सालों से वहां
पर छुपा कर रखे हुए थी
चंद्रा ने बिना देरी के एक पेटी को खोल...