चंद्रा जैसे ही उस पेटी को खोलती है तो उसमें से 1000 साल पुरानी किताब निकलती है वह किताब निकाल कर चंद्रा कुछ मंत्र पढ़ने लगती है जैसे ही चंद्रा मंत्र पढ़ने लगती है वैसे ही वह किताब बोलने लगती है
बताओ चंद्रा 800 साल बाद तुम्हें मेरी कैसे याद आई
अब यह बताओ तुम कौन सी माया पाना चाहती हो इस किताब के द्वारा
चंद्रा गुस्से में उसे किताब की तरफ देखती है और कहती है
जितना तुमसे पूछा जाए उसका ही जवाब देना
अब यह बताओ कि इस दसवें ताबीज का अर्थ क्या है
और जिसे वह ताबीज मिलती है उसे कौन सी शक्तियां प्राप्त होती है
चंद्रा की बात सुनकर किताब से एक डर भरी आवाज आती है और वह एकदम से चौक कर बोलता है कि दसवा ताबीज यह कैसे हो सकता है यह ताबीज तो
उस आवाज में ऐसा दर देखकर चंद्रा के चेहरे पर भी डर छा गया और उसके चेहरे पर डर की रेखाएं साफ दिखाई देने लगी
और चंद्रा अपना खंजर निकालती हैं और किताब के ऊपर दिखाते हुए कहती है
जल्द से जल्द बताओ वरना अंजाम बुरा होगा
चंद्रा का ऐसा गुस्सा देखकर किताब में जल्दी से अपने पन्ने पलटे और उस किताब में से जिस पन्ने में दसवें ताबीज के बारे में लिखा हुआ था वह अपना चंद्रा के सामने रख दिया
जैसे ही चंद्रा ने उस ताबीज और उसे प्राप्त होने वाली शक्तियों के बारे में पढ़ा तो चंद्रा के पैरों के नीचे से तो जैसे ही जमीन खिसक गई
और चंद्रा जोर से चिल्लाती है
नहीं यह मुमकिन नहीं हो सकता
चंद्रा वहां से निकलती उससे पहले ही पूरे के पूरे तहखाना में अंधेरा छा गया और अंधेरे में चंद्रा को कुछ दिखाई देता है जिसको देखते ही चंद्रा के होश उड़ जाते हैं
और तभी अंधेरे में एक आवाज आई
तुमने अमृत का वरदान तो पा लिया चंद्रा लेकिन उस वरदान के साथ तुम्हें एक श्राप भी मिला है और जिसका अंजाम क्या होगा उसके बारे में तुम बिल्कुल भी नहीं जानती
इतना कहने के बाद वह आवाज तेज तेज हंसने लगती है
और अंधेरे में गायब हो गई और उसे आवाज के गायब होते ही तहखाना में रोशनी वापस आती है और वहां अपने सामने एक ऐसा नजारा देखा जिसको देखकर चंद्रा वहीं पर बेहोश हो जाती है
और उसके बाद वहां पर क्या होता है यह सिर्फ और सिर्फ चंद्रा को पता था
(यह किस तहखाने की बात कर रहे हैं कहीं वह तहखाना यही तो नहीं है
तभी उसका दोस्त कहता है कि चल ना चलते हैं यहां से मुझे बहुत ज्यादा डर लग रहा है
नहीं हम यहां से नहीं जा सकते मुझे इस कहानी के बारे में आगे की जानना है
तू पढ़ना इसको आगे )
अगले दिन दक्ष क़ो पवित्र ताबीज मिल गई थी लेकिन भानुमति को यह बिल्कुल भी समझ नहीं आ रहा था कि इस ताबीज का इस्तेमाल आगे चलकर किस तरह के प्रशिक्षण के लिए किया जाएगा इसी बीच चंद्रा अपने महल में घूम रही थी और घूमते घूमते वह दक्ष के बारे में सोच रही थी दक्ष का चेहरा बार-बार उसकी आंखों के सामने आ रहा था और उसके दिमाग में एक ही ख्याल आ रहा था
क्या सचमुच में वह सिर्फ दक्ष जैसा है या फिर मुझे ही कोई भरम हो रहा है
चंद्रा के दिमाग में यह सब चल ही रहा था कि तभी चंद्रा की नजर उससे कुछ दूरी पर खड़ी एक दासी पर जाती है
चंद्रा दासी को देखते हुए पूछती है कि क्या हुआ यहां पर तुम क्या कर रही हो
चंद्रा की बात सुनकर वह दासी से घबरा जाती है और घबराते हुए बोलती है की महारानी बड़ी रानी को आपसे कुछ बात करनी है
चंद्रा दक्ष के ख्यालों से बाहर नहीं आना चाहती थी इसलिए वह कुछ अनमने ढंग से बोलती है कि मैं नहीं आऊंगी
जब चंद्रा यह सब बोलती हैं तभी बड़ी रानी चंद्र के सामने आकर खड़ी हो जाती है
बड़ी रानी के चेहरे पर डर साफ झलक रहा था और उसके पैर कंा प रहे थे
तभी चंद्रा कहती है कि क्या बात है कैसा है वह
तब बड़ी रानी कहती है कि वैध ने कहा है कि कोई बड़ी समस्या नहीं है उन्हें ठीक होने में दो-तीन दिन और लगा सकते हैं
चंद्रा बिना बड़ी रानी की तरफ देखे हुए हां में अपनी गर्दन हिला देती है
लेकिन बड़ी रानी अभी भी डरी हुई वहां पर खड़ी थी क्योंकि शायद वह चंद्रा से कुछ कहना चाह रही थी और चंद्रा ने इस बार बड़ी रानी की तरफ मुड़कर देखा और उसे कुछ ठीक नहीं लगा उसने कहा
क्या हुआ सब ठीक तो है ना
आपके यहां से चले जाना चाहिए कल सुबह आपके यहां से जाने की सारी व्यवस्था हो जाएगी
कुछ दिनों के लिए आप यहां से दूर
इससे पहले की बड़ी रानी अपनी बात को पूरी कर पाती चंद्रा तभी जवाब देती है कोई और बात
बड़ी रानी समझ गई थी कि चंद्रा क्या चाहती है तो बड़ी रानी है हिम्मत करते हुए आगे कहती है मैं सारी की सारी व्यवस्था देख लूंगी शुभ रात्रि
बड़ी रानी इतना कहने के बाद वहां से जाने को लगती है और वहां से जा पाती इससे पहले ही चंद्रा बोलती है
रुक जाओ
चंद्रा बड़ी रानी के एकदम पास आते हुए धीरे से बोलती है
मुझे दक्ष की एक तस्वीर चाहिए
बड़ी रानी को पहले तो कुछ भी समझ नहीं आता है और वह हैरान होते हुए चंद्रा की तरफ देखने लगती है फिर वह हैरान होकर चंद्रा से पूछती है क्या दक्ष की तस्वीर
चंद्रा कुछ सख्ती से कहती है हां उसी की तस्वीर चाहिए
कोई परेशानी है तुम्हें
बड़ी रानी कुछ सोचते हुए बोलती है और फिर कहती है कि नहीं
वो
दक्ष सालों से बिस्तर पर था वह कभी अपने कमरे से बाहर ही नहीं निकला था और इसी वजह से मुझे नहीं लगता कि उसकी कोई तस्वीर होगी
बड़ी रानी की ना सुनने के बाद चंद्रा के चेहरे पर क्रोध साफ चलने लगा था
तभी बड़ी रानी कुछ याद करते हुए कहती है
शायद पिछले वर्ष कार्तिक पूर्णिमा के अवसर पर पूरा परिवार इकट्ठा हुआ था
शायद दक्ष भी वहां मौजूद थे उस वक्त जो तस्वीर ली गई थी उन तस्वीरों में से शायद कोई दक्ष की भी तस्वीर मिल जाए मैं अभी पता करती हूं
बड़ी रानी की बात सुनते ही चंद्रा के चेहरे का रंग बदल जाता है और बोलती है
ठीक है मुझे उसे आयोजन के सारे की सारी तस्वीर चाहिए
ठीक है महारानी इतना कहने के बाद बड़ी रानी वहां से चली जाती है