दक्ष का शरीर बहुत ही कमजोर हो गया था वह अपनी मां की मदद करना भी चाहता था लेकिन चाह कर भी नहीं कर सकता था तभी पन्ना भानुमति से कहती है कि "आप लोग यहां पर मेरी झोपड़ी में कैसे रहोगे???
आप यहां पर कैसे रहोगी महारानी यहां पर तो कोई भी सुख सुविधा नहीं है"
भानुमति पन्ना से कहती है कि" अभी तो हम यहां पर आए हैं और चिंता मत करो
एक-एक करके हम सब चीज ठीक कर लेंगे"
और भानुमति मुस्कुरा देती है भानुमति की बात सुनकर पन्ना वहां से उठकर जाते हुए कहती है कि"ठीक है मैं मदद के लिए किसी को बुला लूंगी और साथ ही साथ खाने के लिए भी बंदोबस्त कर दूंगी"
दक्ष दूर बैठकर कुछ सोच रहा था तभी भानुमति दक्ष के पास जाती है और उसको पानी देते हुए बोलती है
"बेटा किस बारे में सोच रहे हो तुम???अब जाकर आराम कर लो थोड़ी ही देर में वैध जी आने वाले हैं"
भानुमति की तरफ देखते हुए दक्ष भानुमति से कहता है कि" मैं बिल्कुल ठीक हूं मां
मुझे कुछ नहीं हुआ है आप चिंता मत कीजिए!!"
भानुमति और दक्ष दोनों बात कर ही रहे थे कि तभी उनको ढोल बजाने की आवाज आती है
वह ढोल नगाड़े इस बात का संकेत देने के लिए बज रहे थे कि कुछ ही समय में उसे पवित्र ताबीज के लिए प्रतियोगिता शुरू होने वाली है
ढोल नगर की आवाज सुनकर दक्ष ठान लेता है कि वह इस प्रतियोगिता में जाएगा
भानुमति को थोड़ा सा डर लगता है और वह तक उसको रोकते हुए कहती है कि" बेटा तुम मत जाओ वहां पर....
तुम्हें क्या लगता है वहां पर जाकर अपमानित होना उचित है?? "
भानुमति की बात सुनकर दक्ष भानुमति से कहता है कि "नहीं माँ कुछ भी हो लेकिन मुझे इस बार जाना है और जीत कर ही आना है......
और मुझे यह पवित्र ताबीज चाहिए और इसे मैं हासिल करके ही रहूंगा"
इस बार दक्ष का विश्वास और उसका जोश कुछ अलग ही था और यह विश्वास और जोश था 800 साल पहले मर चुके राजकुमार दक्ष का
800 साल पहले युवराज दक्ष अपने साथ इस पवित्र ताबीज को लेकर जन्मे थे
जब राजकुमार दक्ष अपनी मां के गर्भ में थे तब उनकी माँ एक प्रतियोगिता देखने के लिए गई थी
और उनकी मां का गर्भ उस दिव्य प्रकाश के संपर्क में आ गया पहले उस समय पर उनमें कोई बदलाव नहीं आया था लेकिन जब उन्होंने देखा कि जब राजकुमार ने जन्म लिया तो उसके ऊपर उस दिव्य प्रकाश का निशान बना हुआ था
राजकुमार दक्ष बचपन से ही अलग-अलग कलाओं में पूर्ण था
इसलिए राजकुमार तक के गुरु उनसे काफी खुश थे
और दक्ष की कलाओं को देखकर उसके गुरु और शिक्षक आश्चर्यचकित होते रहते थे
आश्चर्यचकित हो भी क्यों ना क्योंकि उसे समय पृथ्वी पर ऐसा कोई भी नहीं था जो युवराज दक्ष से जीत सके
अभी दक्ष को एक ही विश्वास है कि वह किसी के भी शरीर को अपने वश में कर सकता है इसके अलावा एक विश्वास यह भी था कि यदि वह प्रतियोगिता में जाता है और उसकी जीत लेता है तो वह अपने पुराने जन्म की सारी शक्तियां क़ो इस शरीर में ले पाएगा
दक्ष का ऐसा जोश देखकर उसकी मां भानुमति बहुत ही ज्यादा खुश हो जाती है
और सोचती है कि" अब तक की सबकी लोगों के सामने इज्जत होगी और उसकी भी इज्जत होगी"
और युवराज दक्ष उस समय अपनी आंखें बंद कर लेता है और सोचने लगता है
"क्या मैं यह प्रतियोगिता जीत पाऊंगा???यदि मैं प्रतियोगिता में चला गया और यह शरीर उस प्रतियोगिता को जीतने के लायक ही नहीं हुआ तो मैं क्या करूंगा और मैं प्रतियोगिता जीत नहीं सका तो क्या मैं मां भानुमति का दर्द देख पाऊंगा???"
वहीं दूसरी तरफ प्रतियोगिता के कार्यक्रमों की तैयारियां जोर-शोर से चल रही थी
जिसमें चंद्रा के अलावा दूसरे राज्यों से भी लोग आ रहे थे
क्योंकि चंद्रा तो पहले ही वहां पर पहुंच चुकी थी और उसने बड़ी रानी के महल में ही रुकना उचित समझा था इसलिए वह बड़ी रानी के महल में रुकी हुई थी
और इसीलिए सभी सिपाही और सारी की सारी सी बड़ी ही सावधानी से हर चीज की जांच कर रहे थे
कई मां-बाप इस बात को लेकर संसय में थे कि उनके बच्चों को पवित्र ताबीज मिलेगी या नहीं
दूसरी तरफ चंद्रा की सेना ने उस जगह को पूरी तरह से अपनी वश में कर लिया था और अपने नियमों के अनुसार बांध लिया था वहां पर उसके सारे आंतरिक सिपाही वहां पर जितने भी लोग आ रहे थे उनको एक-एक करके गिद्ध की दृष्टि से देख रहे थे
थोड़ी ही देर में प्रतियोगिता शुरू होने वाली थी
महारानी चंद्रा पिंडारी सिटी के सबसे बड़ी रानी की साथ उनके ही कक्षा में बात कर रही थी
अभी चंद्रा पिंडारी सिटी के बड़ी रानी से पूछती है कि "मैंने सुना है कि आपके राज्य में हाल ही में कुछ अलग ही परिस्थितियों उत्पन्न हुई है "महारानी चंद्रा की बात सुनकर बड़ी रानी कहती कि "हां आपने सही सुना है क्योंकि कुछ लोग हमारे खिलाफ होने की कोशिश कर रहे थे और हम उन्हें बड़ी ही शांति से चुप कर दिया"
बड़ी रानी के बात सुनकर चंद्रा कहती है कि" यह आपने सही नहीं किया बड़ी रानी "
बड़ी रानी चंद्रा का गुस्सा देखकर डर जाते हो डरते हुए महारानी चंद्रा से पूछता है कि "लेकिन इतनी छोटी सी बात पर आप इतना क्यों गुस्सा हो रही है और आप अपना समय क्यों बर्बाद कर रही हैं??"
महारानी चंद्रा अपनी आंखें बड़ी करते हुए कहती है कि "इससे कोई फर्क नहीं पड़ता की चीज छोटी है या बड़ी
अगर कुछ भी दिखाई दे तो उसको तुरंत नहीं काटना चाहिए उसे पर कुछ समय के लिए नजर रखो और खोजो कि उसका सर कहां पर है और फिर उसे सर को काट दो"
बड़ी रानी को चंद्रा की कुछ भी बात समझ नहीं आ रही थी और चंद्रा की बातों को बड़ी रानी समझ भी नहीं पा रही थी फिर बड़ी रानी बिना कुछ सोचे समझे कहती है
"ठीक है महारानी चंद्रा मैं आज से ही आपकी बात का पालन करूंगी"
तभी उन्हें महल से बाहर किसी के चलने की आवाज आती है चलने की आवाज सुनकर दोनों एकदम से चुप हो जाते हैं तभी देवदत्त आता है
"सारे इंतजाम कर दिए गए हैं"
देवदत्त चोरी छुपे अपनी नजरों को बचाते हुए महारानी चंद्रा को देखने की कोशिश कर रहा था
उसे देखकर महारानी चंद्रा बड़ी रानी की तरफ मुड़ती है और कहती है कि" क्या यह तुम्हारी बहन का बेटा है?? "तभी बड़ी रानी कहती कि "हां महारानी
यह बहुत ताकतवर है और एक मुक्के से ही किसी को भी गिर सकता है
यदि यह एक मुक्के से हाथी को मार दे तो हाथी भी गिर सकता है
यह बहुत ही ज्यादा बुद्धिमान है और इस राज्य के भावी राजा भी "
महारानी की चंद्रा बड़ी रानी के बात सुनकर देवदत्त की तरफ मुड़ती है जब उसमें सुना कि यह है भावी सेना नायक होने वाला है तो चंद्रा अपनी मुठिया बांध लेती है और बड़ी रानी से कहती है कि" चलो देखते हैं कि यह किस लायक है"
इसके बाद महारानी चंद्रा देवदत्त की तरफ देखती है और हल्का सा मुस्कुरा देती इसके बाद तीनों प्रतियोगिता के मैदान की तरफ चलते हैं वहीं दूसरी तरफ दक्ष आंखें बंद करके बैठा हुआ था और बैठ बैठ वह नींद में चला जाता तभी उसे एक फिर से अजीबोगरीब सपना आता है
उसको अपनी आंखों के सामने आग लपेट नजर आने लगी और वह आग के गोले और लोहे की क्षणों में जकड़ा हुआ था और उसके सामने चंद्रा खड़ी हुई थी जिसको देखकर तक चिल्लाता है
जब तक चिल्लाता और रोता है तो उसको ऐसा करते हुए देखकर चंद्रा उसके जवाब में मुस्कुरा देती है
अभी दक्ष चिल्ला कर कहता है कि" मुझे जवाब चाहिए तुमसे
"
लेकिन चंद्रा की तरफ से कोई भी जवाब नहीं आता है
तभी दक्ष अपनी आंखें बंद कर लेता और कहता है कि "मुझे जाने दो"
इतना बोलकर दक्ष अपने हाथों और पैरों से हथकड़ियां को छुड़ाने की कोशिश करता है तब तक आग की लटपे हर तरफ फैल चुकी थी और दक्ष उसमें से निकलने की कोशिश करने लग गया
तभी दक्ष को एक आवाज सुनाई देती है और इसी आवाज के साथ ही तक छटपटाना बंद कर देता है और इधर-उधर देखने लग गया और वहां पर कोई नहीं था
"आग बदला नफरत क्रोध यह सारी चीज सब चीजों खत्म कर देती इसीलिए आपको पता नहीं चलता कि इनमे कितनी ताकत है इस बंधन से निकलने के लिए आपको शांति से विचार करना होगा अब आपके चारों तरफ आग है और अब आपकी मानसिक स्थिति और इन बंधन के बीच मानव मंथन है
जब आप इन पर अपना नियंत्रण कर लेंगे और अपना जवाब ढूंढ लेंगे तभी आपको सफलता मिलेगी"
दक्ष उन शब्दों को बहुत ही ध्यान से सुना और फिर उसने सोचा तो उसको अब उत्तर मिल चुका था जो वह चाहता था फिर तक एक गहरी सांस लेता है और अपनी आंखें बंद कर लेता है
कुछ ही क्ष
णों में उसके चारों ओर की बेड़िया गायब हो गई और आग का गोला था वह भी खत्म हो गया था