Kurbaan Hua - Chapter 26 in Hindi Love Stories by Sunita books and stories PDF | Kurbaan Hua - Chapter 26

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Kurbaan Hua - Chapter 26

अवनी ने हिचकिचाते हुए कहा, "नहीं, हम बस से चले जाएंगे।"

लेकिन विशाल ने समझाते हुए कहा, "रात ज्यादा हो चुकी है। इस सुनसान सड़क पर अकेले चलना सुरक्षित नहीं है। मुझ पर भरोसा रखो।"

लड़कियों ने एक-दूसरे को देखा, फिर धीरे-धीरे कार में बैठ गईं। कार स्टार्ट हुई और सड़क पर दौड़ने लगी। मगर इस सफर में भी एक बेचैनी थी। क्या अजय सच में पीछा कर रहा था? क्या संजना का केस यहीं खत्म हो जाएगा? या फिर यह रात कोई नया राज़ खोलने वाली थी? विशाल अपनी कार में बैठा गहरी सोच में डूबा हुआ था। उसने संजना की सहेलियों को बंगले के अंदर भेज दिया था, लेकिन खुद वहीं कार में बैठा रह गया। उसके दिमाग में कई सवाल घूम रहे थे, जो अब तक अनसुलझे थे।

वह खिड़की से बाहर देख रहा था, बंगले के बाहर लगी स्ट्रीट लाइट की हल्की रोशनी में सब कुछ शांत और स्थिर लग रहा था, लेकिन उसके मन में उठते सवालों की लहरें थमने का नाम नहीं ले रही थीं। उसने स्टीयरिंग व्हील पर अपनी उंगलियों को हल्के से दबाया और गहरी सांस ली।

"क्या मुझे संजना की सहेलियों से और ज्यादा पूछताछ करनी चाहिए?" उसने खुद से सवाल किया।

पार्टी वाली रात की बातें तो वे लड़कियां बता ही चुकी थीं, लेकिन क्या वे और कुछ जानती थीं? क्या उनमें से किसी को अंदाजा था कि संजना की कोई दुश्मन भी हो सकती है? स्कूल में किसी से झगड़ा, कोई पुरानी रंजिश, या फिर कोई ऐसा व्यक्ति जो संजना से नफरत करता हो?

विशाल के माथे पर शिकन पड़ गई। उसने एक और महत्वपूर्ण बात पर ध्यान दिया—अंकित।

"वही अंकित जिसके घर के बाहर वो काली कार खड़ी थी..."

विशाल की आंखों के सामने वो नज़ारा तैर गया—अंधेरी रात, संजना का अपहरण, और वो कार जो अंकित के घर के बाहर खड़ी थी। क्या ये सब सिर्फ एक इत्तेफाक था? या फिर अंकित का इस मामले से कोई गहरा संबंध था?

उसका मन अचानक बेचैन हो उठा। जैसे-जैसे केस उलझता जा रहा था, वैसे-वैसे विशाल की चिंताएं भी बढ़ती जा रही थीं। उसके मन में हज़ारों सवाल थे, लेकिन जवाब एक भी नहीं।

वह सोचने लगा कि अगर वह संजना की सहेलियों से और गहराई से बात करे, तो शायद कोई सुराग मिल जाए। हो सकता है कि वे किसी छोटी-सी बात को नज़रअंदाज़ कर रही हों, जो इस केस को सुलझाने में अहम साबित हो सकती है।

विशाल ने कार के गियर पर हाथ रखा, लेकिन उसने तुरंत गाड़ी स्टार्ट नहीं की। वह एक बार फिर सोच में डूब गया।

"क्या मैं सही दिशा में सोच रहा हूँ? या फिर यह सिर्फ मेरा शक है?"

उसकी नज़र बंगले के अंदर जलती-बुझती लाइट्स पर गई। अंदर संजना की सहेलियां बैठी होंगी, शायद वे कुछ और जानकारी दे सकें।

विशाल ने एक ठंडी सांस ली। उसे अब और वक्त बर्बाद नहीं करना था। उसने कार का दरवाजा खोला और बंगले की ओर बढ़ने लगा। अब उसे सच जानना था—हर हाल में।वही बंगले में जब विशाल अंदर गया तो देखा कि तीनों लडकिया डिनर कर रही थी, सुषमा मासी उन्हें खाना दे रही थी विशाल को देख बोली", अरे विशाल बेटा तुम भी आकर खाना खा लो ठंडा हो रहा है खाने क़ इंतजार करना ठीक नहीं | मासी ने इतने अच्छे से विशाल को खाना खाने के लिए कहा, जिसे सून विशाल को अपनी मां कि याद आ  गई और अपनी मां को याद करने लगा विशाल का एक पुराना दर्द से भरा वक्त था जोकि उसकी मां से जूडा था उस वक्त को जब वो याद करता तो वो कठोर दिखने वाला इंसान एकदम ही नरम पड जाता था | विशाल कि अतीत कि बात यहां कोई नहीं जानता था जानते थे तो बस लोग यहां उसे एक डिटक्टीव के लिहाज से जोकि संजना के पिताजी ने  उसे यहां किडनैप हुई संजना को तलाश ने के लिए भेजा था | इससे ज्यादा कोई भी विशाल के बारे में नहीं जानता था |