Tere ishq mi ho jau fana - 22 in Hindi Love Stories by Sunita books and stories PDF | तेरे इश्क में हो जाऊं फना - 22

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तेरे इश्क में हो जाऊं फना - 22

कबीर, दानिश के केबीनेट में

ऑफिस के केबिन में हल्की रोशनी फैली हुई थी। लैपटॉप की स्क्रीन पर लगातार बदलते ग्राफ और नंबरों के बीच दानिश की उंगलियां तेजी से कीबोर्ड पर चल रही थीं। इसी बीच, किसी के कदमों की आहट सुनाई दी। बिना देखे ही, दानिश हल्की मुस्कान के साथ बोला,

"आज ऑफिस आने की कैसे सोची?"

पीछे से आवाज आई, "कुछ खास नहीं, मॉम की वजह से... कल से मुझे परेशान कर रही थीं कि मुझे आपका हाथ बंटाना चाहिए। आपकी कितनी फिक्र करती हैं वो। वैसे, आपको बिना देखे कैसे पता चला कि मैं हूँ?"

दानिश ने सिर उठाए बिना जवाब दिया, "इस ऑफिस में अब तक कोई ऐसा नहीं है जो बिना नॉक किए मेरे केबिन में आ सके। और घर पर भी तुम बिना नॉक किए मेरे कमरे में आते हो, तो बस अंदाजा लगाना मुश्किल नहीं था। ऐसा ज़रूर मेरा छोटा भाई ही कर सकता है।"

कबीर मुस्कुराया, "क्यों? ऐसा करने का क्या मुझे हक नहीं?"

दानिश ने हल्का सा सिर उठाया और जवाब दिया, "अगर ऐसा होता तो बिना नॉक किए केबिन में घुसने पर अब तक मैंने तुम्हें शूट कर दिया होता।"

कबीर ठहाका मारकर हंसा, "अच्छा! तो आप ऑफिस में भी गन रखते हैं?"

दानिश की आंखों में हल्की गंभीरता झलकने लगी। उसने लैपटॉप बंद किया और कुर्सी से टिकते हुए बोला, "कबीर, तुम अच्छे से जानते हो कि हमारा काम कितना खतरनाक है। कोई नहीं जानता कि कब और कहां से गोली चल जाए। ऐसे माहौल में गन रखना ज़रूरी हो जाता है।"

कबीर की आंखों में एक चमक आ गई। उसने तुरंत जवाब दिया, "फिर तो मुझे भी अपनी एक गन चाहिए, और मैं 'ना' सुनने वाला नहीं हूँ।"

दानिश ने गहरी सांस ली और अपने छोटे भाई की जिद्द को समझते हुए कुछ सोचने लगा।

दानिश और कबीर सिर्फ दो भाई नहीं थे, वे एक-दूसरे की जान थे। बचपन से ही दोनों ने साथ मिलकर मुश्किलों का सामना किया था। जब उनके पिता का देहांत हुआ, तब दानिश ही था जिसने घर को संभाला। कबीर के लिए वह सिर्फ एक बड़ा भाई नहीं, बल्कि पिता समान था।

कबीर हमेशा दानिश के पीछे-पीछे चलता था, उसकी हर बात ध्यान से सुनता और सीखता था। लेकिन अब वह बड़ा हो चुका था और दानिश की परछाईं से बाहर निकलना चाहता था। वह खुद को साबित करना चाहता था, 

कबीर ने दानिश से गन लेने के बाद उसे गौर से देखा, हाथों में घुमाया और ट्रिगर को हल्के से दबाया, जैसे उसकी पकड़ को महसूस कर रहा हो। वह गन देखकर इतना खुश था कि बार-बार उसे उलट-पलट कर देख रहा था। दानिश मुस्कुरा रहा था, अपने छोटे भाई की दीवानगी देखकर। लेकिन कबीर अचानक ही गम्भीर हो गया और दानिश से बोला,

"आज आप ऑफिस बाइक से आए थे?"

कबीर की आँखों में हल्का सा संदेह झलक रहा था। दानिश ने उसकी बात को टालते हुए कहा,

"हाँ, कभी-कभी यह भी कर लेता हूँ।"

लेकिन कबीर की नजरें अभी भी दानिश पर टिकी थीं। वह जानता था कि दानिश कभी बेवजह बाइक से ऑफिस नहीं जाता, जब तक कि कोई ज़रूरी बात न हो।

क्लासरूम का एक अनोखा मोड़

समीरा अपनी किताबों में सिर झुकाए बैठी थी, लेकिन उसका ध्यान कहीं और था। ब्लैकबोर्ड पर प्रोफेसर कुछ महत्वपूर्ण विषय समझा रहे थे, लेकिन समीरा की आंखें उनके शब्दों का पीछा करने के बजाय खिड़की से बाहर बादलों को निहार रही थीं। उसकी आंखों में एक अजीब-सी उदासी थी, शायद कोई विचार, कोई याद, या कोई अनसुलझी उलझन उसे घेरे हुए थी।

प्रोफेसर की नजर अचानक समीरा पर पड़ी। वह समझ गए कि वह ध्यान नहीं दे रही है। उनके लिए यह असहनीय था कि क्लास में कोई छात्र पढ़ाई को गंभीरता से न ले। उन्होंने खड़े होकर जोर से उसका नाम पुकारा, "समीरा!"

समीरा चौंक गई और जल्दी से खड़ी हो गई। पूरा क्लास उसकी ओर देखने लगा।

"क्या तुम बता सकती हो कि मैंने अभी क्या समझाया?" प्रोफेसर ने सख्त आवाज में पूछा।

समीरा ने अपनी किताब को देखा, लेकिन वह कुछ भी नहीं बोल सकी। उसके शब्द गले में ही अटक गए।

"ध्यान कहां है तुम्हारा? क्लास में बैठे हो या सपनों में खोए हो?" प्रोफेसर की आवाज तेज हो गई।

समीरा की आंखें झुक गईं। उसकी हालत देख कर कई छात्रों के चेहरे पर हल्की मुस्कान आ गई, लेकिन एक लड़का, जो हमेशा सही के साथ खड़ा रहता था, यह सब चुपचाप देख रहा था। वह आगे बढ़ा और अचानक बोल उठा,

"सर, आप सिर्फ समीरा को क्यों लैक्चर दे रहे हैं? हम भी तो यहां हैं। अगर कोई गलती कर रहा है, तो पूरे क्लास को समझाइए। ऐसा नहीं होना चाहिए कि आप अकेले उसी को टारगेट करें।"

पूरा क्लास चौंक गया। प्रोफेसर भी कुछ पल के लिए चुप हो गए। उन्होंने उस लड़के को गौर से देखा। उसके चेहरे पर आत्मविश्वास था, और वह दृढ़ता से अपनी बात रख रहा था।

प्रोफेसर ने एक गहरी सांस ली और कुछ सोचने लगे। कुछ ही क्षणों में उनका गुस्सा शांत होने लगा। उन्होंने समीरा की ओर देखा, फिर उस लड़के की ओर।

"ठीक है, बात तो सही है," प्रोफेसर ने कहा, "शिक्षा का उद्देश्य सबको समान अवसर देना होता है। मैं मानता हूं कि मुझे गुस्से में समीरा पर ज्यादा ध्यान नहीं देना चाहिए था।"

समीरा ने आश्चर्य से उस लड़के की ओर देखा। उसकी आंखों में आभार था। वह हल्के से मुस्कुराई और सिर हिलाकर उसे धन्यवाद कहा।

अब क्लास में माहौल पहले से हल्का हो चुका था। प्रोफेसर ने फिर से पढ़ाना शुरू किया, लेकिन इस बार उनका तरीका थोड़ा नरम था। समीरा ने अपनी किताब को खोला और ध्यान से सुनने लगी।

उस लड़के की हिम्मत ने न सिर्फ समीरा की मदद की थी, बल्कि पूरी क्लास को यह सिखाया था कि हर किसी के साथ समान व्यवहार किया जाना चाहिए। शायद यही असली शिक्षा थी – ज्ञान के साथ न्याय और समानता की सीख।

समीरा की बगल में बैठी उसकी सबसे करीबी दोस्त,रिया , ने धीरे से उसका हाथ हिलाया और फुसफुसाकर पूछा,

"क्या हुआ समीरा? आज तेरा ध्यान किधर है? पहले तो कभी ऐसा नहीं हुआ।"

समीरा ने उसकी ओर देखा, लेकिन उसकी आँखों में कोई खास प्रतिक्रिया नहीं थी। वह कुछ पल चुप रही, फिर हल्की आवाज़ में बोली,

"कुछ नहीं, बस यूँ ही…"

रिया ने भौंहें चढ़ाईं, उसे यकीन नहीं हुआ। "सच-सच बता, सब ठीक है न?"

समीरा ने जबरदस्ती मुस्कुराने की कोशिश की और सिर हिलाया। "हाँ, सब ठीक है।"

रिया समझ गई कि कुछ तो है, लेकिन जब समीरा कुछ बताना ही नहीं चाहती, तो ज़बरदस्ती करने का कोई फायदा नहीं था। वह जानती थी कि जब भी समीरा तैयार होगी, खुद ही सब बताएगी। इसलिए उसने कोई और सवाल नहीं किया और वापस ब्लैकबोर्ड की ओर देखने लगी।

समीरा ने एक गहरी सांस ली और किताब पर नजरें गड़ा लीं। वह दिखाना नहीं चाहती थी, लेकिन सच तो यह था कि उसका मन किसी और जगह था—किसी ऐसे ख्याल में जो उसे खुद भी ठीक से समझ नहीं आ रहा था।