"जब मैंने यह कहानी लिखनी शुरू की थी, तब मेरे पास इसके दो अलग-अलग अंत थे। मैंने सोचा था कि किसी एक दिशा में कहानी को आगे बढ़ाऊंगा, लेकिन मैं तय नहीं कर पाया कि कौन-सा अंत बेहतर है। इसलिए, मैं यहां दोनों अंत प्रस्तुत कर रहा हूं और यह निर्णय मैं आप पर छोड़ता हूं कि इनमें से कौन-सा अंत कहानी के लिए अधिक उपयुक्त है।"
कोचिंग वाला प्यार : A
सीकर, राजस्थान का एक छोटा सा शहर है जहाँ हर साल हज़ारों बच्चे आँखों में एक सपना लेकर आते हैं — जेईई पास करने का सपना, नीट क्लियर करने का सपना या सरकारी नौकरी पाने का सपना।
सीकर की सर्द सुबहें किसी तपस्वी की साधना जैसी होती हैं। गलियों में उठती भाप जैसी चाय की महक, साइकिलों की घंटियाँ और कोचिंग सेंटरों के बाहर जुटी भीड़ एक अलग ही दुनिया बनाती हैं। इन्हीं में एक चेहरा था – अंकित।
अंकित, एक साधारण ग्रामीण परिवेश से आया लड़का, जिसके चेहरे पर गहराई थी और आँखों में एक स्पष्ट उद्देश्य – राजस्थान के सरकारी स्कूल में शिक्षक बनना। उसके पिता का देहांत बचपन में ही हो गया था। माँ ने अपने छोटे-से खेत और दूसरों के खेतों में काम करके उसे बड़ा किया था। माँ की उम्मीद और गाँव की गरीबी दोनों उसकी आँखों में बसी थीं।
वह सीकर आया – एक छोटे-से किराए के कमरे में रहने लगा, जहाँ खिड़की से सिर्फ दीवार दिखती थी, पर सपनों की उड़ान के लिए काफी जगह थी। सुबह-सुबह शर्मा सर की कोचिंग के लिए भागता, दोपहर में बच्चों को ट्यूशन पढ़ाता, और रात में खुद पढ़ाई करता।
वह जिस कोचिंग में जाता था वहां पहली बार वह उसे देखता है – प्रियांका।
उदयपुर से आई हुई लड़की। खुले बाल, चेहरे पर आत्मविश्वास, हर सवाल का जवाब देने वाली। उसकी आवाज़ जैसे क्लासरूम की गंभीरता में चहक घोल देती। अंकित उस दिन से उसे देख रहा था जब वह पहली बार कोचिंग आई थी। लेकिन वह कुछ बोल नहीं पाया।
दिन बीतते गए। वह हर दिन उसकी एक झलक देखता, और उसके लिए कोचिंग जाना अब सिर्फ पढ़ाई नहीं, एक आदत बन गई थी – उस मुस्कान को देखने की आदत।
एक दिन प्रियांका ने अंकित से कहा, “तुम पॉलिटी में बहुत अच्छे हो ना? मेरे कुछ डाउट्स हैं।”
अंकित जैसे ठहर सा गया, और वहीं से दोनों की दोस्ती शुरू हुई।
इसके बाद दोनों मिलने लगे – कभी-कभी नोट्स शेयर करते, कभी लाइब्रेरी में साथ बैठते। लेकिन अंकित अब भी नहीं बोल पाया। उसका दिल कहता था, “कह दो,” पर उसकी जुबान हमेशा चुप रह जाती।
प्रियांका बहुत खुली किताब थी – वह अपनी बातें शेयर करती, अपने परिवार की बातें, अपने सपनों की बातें – पर अंकित सिर्फ सुनता रहता।
अंकित को डर था कि अगर उसने अपने मन की बात कही, तो यह सब खत्म हो जाएगा।
एक दिन बारिश हो रही थी। दोनों कोचिंग के बाहर छत के नीचे खड़े थे। प्रियांका ने कहा, “अजीब है ना, सीकर में भी बारिश होती है। मैं तो सोचती थी यहाँ सिर्फ धूल उड़ती है।”
अंकित मुस्कुराया, “सीकर की बारिश भी उतनी ही सच्ची होती है, जितना इसका सपना।”
प्रियांका ने उसे देखा और मुस्कुरा दी। वह मुस्कान अंकित के लिए बहुत कुछ कह गई, पर वह अब भी चुप रहा।
एक दिन प्रियांका ने उसे अपने हाथ से लिखा हुआ कार्ड दिया – “मेरे सबसे अच्छे दोस्त के लिए – तुम बहुत खास हो अंकित।”
उस रात अंकित सो नहीं पाया। उसकी आँखों से आँसू बहते रहे – वह जानता था कि यह ‘दोस्ती’ शब्द उसके लिए एक दीवार बन चुका है।
पर वह तो बस देख सकता था, चाह सकता था, कह नहीं सकता था।
कुछ दिनों बाद, कोचिंग में अफवाह उड़ी कि प्रियांका अब वापस उदयपुर जा रही है – कुछ पारिवारिक कारणों से।
अंकित टूट गया। उसने पहली बार खुद को हारते हुए पाया। वह स्टेशन गया, उसे आखिरी बार देखने। वह चुपचाप दूर खड़ा रहा, और बस चुपचाप एक चिठ्ठी उसकी किताब में रख आया – “मैं तुम्हें चाहता हूँ, लेकिन शायद अब कहने में बहुत देर हो गई है।”
प्रियांका ट्रेन में चली गई। अंकित ने उसे जाते हुए देखा – एक आखिरी बार।
फिर वो समय आया – परीक्षा का। अंकित ने खुद को किताबों में डुबो दिया। वह जानता था कि अब कुछ बचा है तो सिर्फ माँ का सपना।
परीक्षा दी, और फिर इंतज़ार करने लगा। एक-एक दिन भारी लगता, लेकिन वह पढ़ाने में खुद को व्यस्त रखता।
एक दिन रिजल्ट आया – अंकित का चयन हो गया था। वह सरकारी शिक्षक बन गया था। माँ की आँखों में आँसू थे – गर्व के आँसू।
अगले दिन, वह उदयपुर गया – प्रियांका को बताने, शायद अब भी कुछ बाकी हो। पर वहाँ जो सुना, उसने उसके पैरों तले ज़मीन खींच ली।
प्रियांका अब इस दुनिया में नहीं थी। एक सड़क हादसे में उसकी मृत्यु हो चुकी थी।
अंकित वहीं बैठ गया – सड़क के किनारे, जहाँ धूप छांव से खेल रही थी। उसके आँसू रुक नहीं रहे थे। उसकी जेब में वह पत्र था, जो उसने प्रियांका को देने के लिए फिर से लिखा था – लेकिन अब लेने वाला कोई नहीं था।
उसे बस एक पुरानी डायरी मिली, जो प्रियांका ने छोड़ी थी, उसके लिए । उसमें एक पन्ने पर लिखा था:
“शब्दों से इज़हार ज़रूरी नहीं होता। कभी-कभी आँखों की भाषा ही काफी होती है। अंकित, अगर तुम ये पढ़ रहे हो, तो शायद तुम्हारा सपना पूरा हो गया होगा। तुम एक अच्छे इंसान हो – तुम्हारे जैसा कोई नहीं।”
अंकित उस दिन से बदल गया। उसने अपने दिल में उस प्यार को संजो लिया – जो कभी कह नहीं पाया, पर जो अब हमेशा के लिए उसका हिस्सा था।
आज वह एक सरकारी स्कूल में शिक्षक है। सुबह-सुबह जब वह बच्चों को पढ़ाता है, तो उनकी आँखों में वह खुद को देखता है। और हर साल, रिजल्ट के दिन, वह एक चिट्ठी अपने स्कूल की लाइब्रेरी में छोड़ आता है – उन बच्चों के लिए, जो कभी कुछ कह नहीं पाए।
उसके टेबल पर आज भी एक डायरी रखी रहती है – वही डायरी जिसमें लिखा है – “कोचिंग वाला प्यार।”
दोस्तों, कभी-कभी ज़िंदगी दो लफ़्ज़ों की देर से बदल जाती है। इसलिए अगर दिल में किसी के लिए कुछ है, तो कह दीजिए - वक्त का कोई भरोसा नहीं। क्योंकि कुछ बातें अगर दिल में ही रह जाएँ, तो उम्रभर उनका सन्नाटा साथ चलता है।
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कोचिंग वाला प्यार : B
सीकर की सर्द सुबहें किसी तपस्वी की साधना जैसी होती हैं। गलियों में उठती चाय की महक, साइकिलों की घंटियाँ और कोचिंग सेंटरों के बाहर जुटी भीड़ एक अलग ही दुनिया बनाती हैं। इन्हीं में एक चेहरा था – अंकित।
अंकित, एक साधारण ग्रामीण परिवेश से आया लड़का, जिसके चेहरे पर गहराई थी और आँखों में एक स्पष्ट उद्देश्य – राजस्थान के सरकारी स्कूल में शिक्षक बनना। उसके पिता का देहांत बचपन में हो गया था और माँ ने खेतों में मेहनत कर उसे बड़ा किया।
वह सीकर आया – एक छोटे-से किराए के कमरे में रहने लगा। सुबह कोचिंग क्लास, दिन में बच्चों को ट्यूशन और रात को खुद की पढ़ाई।
इसी कोचिंग क्लास में वह पहली बार प्रियांका से मिला। जयपुर से आई एक आत्मविश्वासी लड़की। उसकी हँसी, बातों का अंदाज़ और पढ़ने का जुनून – सब कुछ अलग था। अंकित ने उसे पहली बार देखा तो मन ही मन कुछ महसूस किया, लेकिन वह हमेशा चुप रहा।
एक दिन प्रियांका ने उससे पॉलिटी के डाउट्स पूछे। वहीं से दोनों की दोस्ती शुरू हुई। धीरे-धीरे दोनों साथ पढ़ने लगे, चाय पीने जाने लगे और एक ही लाइब्रेरी मैं जाने लगे वह भी एक साथ।अंकित का संकोच अब भी वैसा ही था, पर प्रियांका की उपस्थिति उसमें कुछ नया भरोसा जगाने लगी थी।
एक शाम जब वे क्लास से बाहर निकले, प्रियांका ने कहा, “तुम बहुत शांत हो, लेकिन जब समझाते हो तो सब साफ़ हो जाता है। अच्छा लगता है तुम्हारे साथ पढ़ना।”
अंकित मुस्कुरा दिया। वह कुछ नहीं बोला, पर उसकी आँखें चमक उठीं।
समय बीतता गया। परीक्षा पास आ रही थी। दोनों ने खूब मेहनत की। एक-दूसरे को मोटिवेट किया, कमजोरियों पर काम किया। अंकित ने ठान लिया था कि चयन के बाद वह प्रियांका को अपने मन की बात बताएगा।
परीक्षा बीती। दोनों ने अच्छा प्रदर्शन किया। और जब परिणाम आया – अंकित और प्रियांका दोनों का चयन हो गया।
वह दिन खुशी का था। दोनों ने मंदिर जाकर प्रसाद चढ़ाया और फिर वही चाय की दुकान, जहाँ पहली बार साथ बैठे थे।
वहाँ, अंकित ने पहली हिचकिचाते हुए ही सही पर बोला, “प्रियांका, मैं कुछ कहना चाहता हूँ... बहुत समय से।”
प्रियांका ने मुस्कराकर कहा, “अगर तुम नहीं कहते तो मैं कहने वाली थी। मैं भी तुम्हें पसंद करती हूँ, अंकित।”
अंकित को इसकी उम्मीद नही थी। पहले तो उसे कुछ समझ में ही नहीं आया कि वह क्या प्रतिक्रिया दे। उसे लग रहा था जैसे उसने पूरी दुनिया जीत ली । वह बस मुस्कुरा सका - वही पहली बार की चुप मुस्कान, लेकिन इस बार आत्मविश्वास से भरी हुई।
आज अंकित और प्रियांका दोनों ही अलग-अलग गांवों के सरकारी स्कूलों में शिक्षक हैं, लेकिन दिल से हमेशा जुड़े हुए हैं। हर हफ़्ते वे मिलते हैं, बच्चों की कहानियां साझा करते हैं और अपने पुराने दिनों की मीठी यादों में खो जाते हैं। और अब तो वे अगले महीने शादी के पवित्र बंधन में बंधने जा रहे हैं। आप सभी को भी सादर आमंत्रित किया जाता है। आइए और उनके इस प्यार भरे सफ़र की नई शुरुआत के गवाह बनिए।
उनकी कहानी आज भी सीकर की गलियों में एक मिसाल है – कोचिंग वाला प्यार, जो सपनों के साथ पनपा और जीवन का हिस्सा बन गया।
"दोस्तों, उम्मीद है कि आपको मेरी यह कहानी पसंद आई होगी। अगर हां, तो कमेंट करके जरूर बताएं कि आपको कहानी का कौन-सा अंत ज़्यादा पसंद आया। और अगर आपको मेरे लेखन में कोई कमी लगी हो, तो कृपया मुझे जरूर बताएं, ताकि मैं भविष्य में अपनी गलतियों को सुधार सकूं।"
मेरी इस कहानी को पढ़ने के लिए आपका बहुत-बहुत धन्यवाद।
फिर मिलेंगे एक और कहानी के साथ तब तक के लिए अलविदा।