Tere ishq mi ho jau fana - 20 in Hindi Love Stories by Sunita books and stories PDF | तेरे इश्क में हो जाऊं फना - 20

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तेरे इश्क में हो जाऊं फना - 20

गुलाब के साए में

फूलों की महक से भरी उस छोटी-सी दुकान में समीरा बड़े प्यार से गुलाबों को निहार रही थी। उसकी आँखों में एक अलग-सी चमक थी, जैसे किसी पुराने, अधूरे ख्वाब को फिर से जी रही हो। हल्की मुस्कान के साथ उसने एक गुलाब को छुआ ही था कि अचानक किसी का गर्माहट भरा स्पर्श उसकी उंगलियों से आ मिला।

समीरा का दिल एक पल को तेज़ी से धड़क उठा। घबराकर उसने पीछे मुड़कर देखा, और वहाँ दानिश खड़ा था—वही शख्स जिससे उसे सबसे ज्यादा बचना था, वही जिसकी मौजूदगी उसे विचलित कर देती थी।

उसकी आँखों में एक अजीब-सा खिंचाव था, जैसे किसी गहरे राज़ से भरी हो। समीरा की साँसें तेज़ हो गईं। वह खुद को संभालते हुए मन ही मन बोली,"तू ये क्या कर रही है? ये इंसान बहुत अजीब है। इससे दूर रह, वरना तू बर्बाद हो जाएगी!"

लेकिन उसकी चेतावनी भी उस एक पल के जादू को नहीं तोड़ सकी। उनकी उंगलियाँ अभी भी गुलाब के एक ही फूल पर टिकी हुई थीं। समीरा ने हाथ हटाने की कोशिश की, मगर दानिश की नज़रों के जादू ने उसे रोक दिया।

"तुम्हें गुलाब पसंद हैं?"दानिश की आवाज़ उसके कानों में शहद जैसी गूंज उठी।

समीरा ने खुद को संयत करते हुए नज़रे चुराईं और हल्की आवाज़ में बोली, "मुझे सब फूल पसंद हैं, पर इसका मतलब ये नहीं कि कोई भी मेरे साथ गुलाब छूने लगे।"

दानिश हल्का-सा मुस्कुराया। "तो क्या मैं इसे छू सकता हूँ अगर तुम इसे छोड़ दो?"

समीरा को उसके शब्दों में छिपी शरारत साफ़ महसूस हुई। उसने तुरंत अपना हाथ पीछे खींचा, मगर तब तक देर हो चुकी थी। उसके मन में हलचल मच गई थी। वह खुद से सवाल कर रही थी—आखिर क्यों उसकी मौजूदगी उसे बेचैन कर रही है? क्यों उसकी आँखें उसे घूरने के बजाय सहलाने जैसी लग रही हैं?

दानिश ने गुलाब को धीरे से तोड़ा और समीरा की तरफ बढ़ाया। "अगर ये फूल तुम्हें इतना पसंद है, तो इसे तुम्हारे पास होना चाहिए।"

समीरा ने घबराकर उसकी आँखों में देखा, और पहली बार महसूस किया कि वो घूर नहीं रहा था, बल्कि उसके मन के उन अनकहे एहसासों को पढ़ रहा था जिन्हें वह खुद से भी छिपाने की कोशिश कर रही थी।

"मुझे फूल तो पसंद हैं, लेकिन किसी से तोहफे लेना नहीं।" समीरा ने हल्के तंज के साथ कहा।

दानिश हँस पड़ा, "ये तोहफा नहीं, बस एक एहसास है। अगर न लो, तो भी ये गुलाब तुम्हारे लिए ही रहेगा।"

समीरा का दिल और तेज़ धड़कने लगा। बाहर हल्की बारिश होने लगी थी। उसकी खुशबू हवा में घुली तो जैसे उस पल का जादू और भी गहरा हो गया।

दानिश ने फिर धीरे से पूछा, "क्या तुम मुझसे डरती हो?"

समीरा को नहीं पता था कि इस सवाल का क्या जवाब दे। डर? हाँ, वो डरती थी… पर उससे नहीं, बल्कि खुद से। अपने उन एहसासों से जो धीरे-धीरे उसके दिल के दरवाज़े पर दस्तक देने लगे थे।

"मैं… मुझे देर हो रही है," समीरा ने जल्दी से कहा और पलटकर जाने लगी।

मगर तभी दानिश ने उसके हाथ को हल्के से छुआ। "एक मिनट,"

समीरा ने उसकी ओर देखा। बारिश अब तेज़ हो गई थी, मगर दोनों वहीं खड़े थे—दो अनजाने एहसासों के बीच, एक गुलाब के साए में।

"एक दिन आएगा जब तुम खुद इस गुलाब को मुझसे मांगोगी," दानिश ने धीरे से कहा, उसकी आँखों में वही दिवानगी थी जिससे समीरा बचना चाहती थी, मगर शायद बच नहीं पा रही थी।

समीरा ने उसकी बात का कोई जवाब नहीं दिया। वह बस उसकी आँखों को देखती रही, और पहली बार उसे लगा कि शायद उसकी दुनिया उतनी सादी नहीं थी जितना उसने सोचा था।

बारिश की बूँदें उन दोनों के बीच गिर रही थीं, मगर शायद जो आग जल चुकी थी, उसे बुझा नहीं सकती थीं…

समीरा ने अपने भीतर उमड़ते भावों को अनदेखा करने की कोशिश की, मगर दानिश की आँखों की गहराई में कुछ ऐसा था जो उसे जकड़ रहा था। वह वहाँ से जाना चाहती थी, मगर उसके पैरों ने जैसे ज़मीन पकड़ ली थी।

दानिश ने धीरे से गुलाब को उसकी ओर बढ़ाया, मगर इस बार बिना कोई शब्द कहे। समीरा ने एक पल के लिए उस गुलाब को देखा, फिर उसकी उंगलियों को कसकर बंद कर लिया, जैसे खुद को किसी एहसास से बचाने की कोशिश कर रही हो।

"मुझे जाना चाहिए," उसने धीरे से कहा और कदम आगे बढ़ा दिए।

दानिश कुछ नहीं बोला, बस हल्की मुस्कान के साथ उसे जाते हुए देखता रहा। मगर जैसे ही समीरा दुकान के बाहर निकली, बारिश की तेज़ फुहारों ने उसे रोक लिया। वह सकपका गई और अपने दुपट्टे को कसकर पकड़ लिया।

"बारिश में भीगने का शौक है?" दानिश की आवाज़ उसके पीछे से आई।

समीरा ने कोई जवाब नहीं दिया। वह बस एक छत की ओट में जाकर खड़ी हो गई। बारिश और तेज़ हो गई थी। आसमान में गड़गड़ाहट गूंज रही थी। दानिश ने हल्के कदमों से उसके पास आकर कहा, "अगर इंतज़ार करना ही है, तो अंदर आ जाओ।"

समीरा ने उसे घूरा, "मुझे तुम्हारी दुकान में खड़े होने की कोई जरूरत नहीं।"

दानिश हल्का-सा मुस्कुराया, "ये दुकान मेरी नहीं, अंकल की है। मैं तो बस… यहाँ कुछ काम से आया था।"

समीरा ने झिझकते हुए उसकी ओर देखा। वह अब भी गुलाब पकड़े खड़ा था। बारिश का पानी उसके बालों में उलझ रहा था, और उसकी आँखें अब भी वैसी ही गहरी थीं।

"तुम हर बार ऐसे ही अचानक आ जाते हो?" समीरा ने गहरी सांस लेते हुए पूछा।

"हर बार?" दानिश ने हल्के से सिर झुकाया, जैसे उसके शब्दों में छिपी सच्चाई को महसूस कर रहा हो। "तो इसका मतलब तुम मुझे पहले से ही नोटिस  कर रही हो ?"

समीरा चौंक गई। उसने खुद को कोसा। यह लड़का उसकी भावनाओं को इतनी आसानी से कैसे पढ़ लेता है?

"नहीं, मेरा मतलब वो नहीं था," उसने तुरंत सफाई दी।

"तो क्या मतलब था?" दानिश ने कदम आगे बढ़ाए।

समीरा ने पीछे हटने की कोशिश की, मगर अब उसके पीछे दीवार थी। उसकी सांसें तेज़ हो गईं। बारिश की ठंडक और दानिश की गर्माहट के बीच वह कहीं उलझ गई थी।

"मुझे नहीं पता तुम क्या साबित करना चाहते हो," उसने नजरें चुराते हुए कहा।

दानिश ने उसकी आँखों को पढ़ने की कोशिश की, मगर वह दूर देख रही थी।

"मैं कुछ भी साबित नहीं करना चाहता, समीरा। मैं बस महसूस करना चाहता हूँ।"

उसका यह सीधा-साधा जवाब समीरा के दिल की धड़कनों को और तेज़ कर गया।

"तुम्हें किस चीज़ को महसूस करना है?"

"तुम्हें," दानिश ने बिना रुके कहा।

समीरा का दिल एक पल के लिए रुक सा गया। उसने गहरी सांस ली और खुद को संभालने की कोशिश की।

"तुम गलत समझ रहे हो। मेरे लिए ये सब सिर्फ… सिर्फ एक संयोग है।"

दानिश हल्का-सा हंसा। "संयोग? शायद… लेकिन कुछ चीज़ें इतनी बार होती हैं कि वे सिर्फ संयोग नहीं रह जातीं।"

समीरा ने खुद को और कठोर किया।

"तुम मुझसे क्या चाहते हो, ?"

दानिश ने कुछ पल उसे देखा, फिर गुलाब को धीरे से उसकी तरफ बढ़ाया।

"सिर्फ यह कि तुम खुद से भागना बंद कर दो।"

समीरा कुछ कहने ही वाली थी कि अचानक उसके फोन की घंटी बज उठी। उसने जल्दी से फोन निकाला और देखा—रिया का कॉल था।

"हाँ, रिया?"

"तू कहाँ रह गई? बहुत देर हो गई है।"

"मैं… मैं बस निकल रही हूँ," समीरा ने जल्दी से कहा और फोन काट दिया।

"तुम्हें जाना है?" दानिश ने पूछा।

"हाँ," समीरा ने खुद को संयत करते हुए कहा।

दानिश ने एक गहरी सांस ली, फिर धीरे से मुस्कुराया। "ठीक है। मगर समीरा…"

वह रुका।

"क्या?"

"अगर एक दिन तुम खुद मेरे पास आओ, तो मुझे हैरानी नहीं होगी।"

समीरा का दिल एक बार फिर तेज़ धड़क उठा। वह कुछ नहीं बोली।