रहस्यमयी तस्वीर
संजना वही खड़ी थी, हल्की ठंडी हवा उसके चेहरे से टकरा रही थी। चारों ओर घना अंधकार था, सिर्फ वहां एक छोटा सा बल्ब था उसकी हल्की रोशनी ही थी, जो जगह-जगह पर गिर रही थी। अचानक, उसे अपने कंधे पर एक हल्का सा स्पर्श महसूस हुआ। उसकी धड़कन तेज़ हो गई। उसने तुरंत पलटकर देखा और एक झटके में पीछे हटी। यह क्या? उसके ठीक पीछे हर्षवर्धन खड़ा था।
हर्षवर्धन की आँखों में हल्की शरारत थी, लेकिन संजना के चेहरे पर उड़ी हवाइयाँ देखकर वह मुस्कुराया और हल्के मज़ाकिया लहजे में बोला,"इतनी घबराहट? जैसे मैंने तुम्हें रंगे हाथों पकड़ लिया हो।"
संजना ने अपनी घबराहट को छुपाने की कोशिश की और झूठी सहजता से बोली,"ऐसा तो कुछ नहीं है! मैं तो बस अकेले बोर हो रही थी, तो सोचा टहल लूँ और फिर यहाँ आ गई।"
उसने अपनी मुट्ठी में पकड़ी तस्वीर को थोड़ा और कसकर पकड़ लिया। कुछ पलों तक चुप्पी रही, फिर उसने धीरे से तस्वीर को देखते हुए कहा,"वैसे, यहाँ मुझे एक तस्वीर मिली... शायद तुम्हारे बचपन की है।"
हर्षवर्धन ने भौंहें चढ़ाई और संजना की आँखों में देखा,"तुम्हें कैसे पता कि वो मेरी ही तस्वीर थी? किसी और की भी तो हो सकती है।"
संजना ने हल्की मुस्कान के साथ सिर हिलाया और चुटकी लेते हुए बोली,"रहने दीजिए, मिस्टर हर्षवर्धन! उसके हाव-भाव तुम्हारे ही जैसे हैं। बचपन में भी तुम एकदम खतरनाक लगते थे। मैंने आज तक किसी बच्चे के चेहरे पर ऐसे भाव नहीं देखे!"
इतना कहते ही संजना ने सिर दूसरी ओर घुमा लिया और धीरे-धीरे मुस्कुराने लगी। शायद वह हर्षवर्धन को चिढ़ाने की कोशिश कर रही थी। हर्षवर्धन ने गहरी साँस ली और अपने हाथ बाँधकर खड़ा हो गया। उसने बिना किसी भाव के बस संजना को देखा।
संजना अब भी हल्का मुस्कुरा रही थी, पर जैसे-जैसे हर्षवर्धन की चुप्पी बढ़ने लगी, वह थोड़ा असहज होने लगी। उसने उसकी ओर देखा। हर्षवर्धन की आँखें अब भी उसी पर टिकी थीं। न कोई हँसी, न कोई गुस्सा—बस एक गहरी नजर, जो उसके अंदर तक उतर रही थी।
कुछ देर तक दोनों के बीच सिर्फ खामोशी रही। हवा अब और तेज़ हो चुकी थी। संजना को लगा कि उसने हद से ज़्यादा बोल दिया। वह हल्के से खाँसी और तस्वीर उसकी ओर बढ़ा दी।"लो, रख लो। वैसे भी, यह तुम्हारी है।"
हर्षवर्धन ने धीरे से तस्वीर ली और एक पल के लिए उसे देखा। यह एक पुराने समय की धुंधली तस्वीर थी—एक छोटे बच्चे की, जो ज्यादा बड़ा नहीं था। उसके चेहरे पर गहरी आँखें और एक गंभीर सा भाव था। एक मासूमियत तो थी, पर उसके अंदर कुछ और भी छिपा था—कुछ ऐसा जिसे समझना मुश्किल था।
संजना अब उसकी प्रतिक्रिया का इंतजार कर रही थी, पर हर्षवर्धन अब भी तस्वीर को देख रहा था। संजना को अब और ज़्यादा जिज्ञासा हो रही थी। उसने हिम्मत जुटाई और पूछा,"क्या हुआ? कोई पुरानी यादें ताजा हो गईं?"
हर्षवर्धन ने तस्वीर से नजरें हटाई और संजना की ओर देखा। अबकी बार उसके चेहरे पर हल्की मुस्कान थी, पर उसके पीछे कहीं न कहीं कुछ अधूरी बातें छुपी थीं।
"इस तस्वीर को देखकर बहुत सी बातें याद आ रही हैं, लेकिन तुम क्यों इतनी दिलचस्पी ले रही हो?"
संजना ने कंधे उचका दिए,"बस यूँ ही! कभी-कभी पुरानी चीज़ें बहुत कुछ कह जाती हैं।"
हर्षवर्धन ने सिर हिलाया और तस्वीर को पलटकर देखा। उसके पीछे कुछ लिखा था—धुंधले अक्षरों में एक नाम और तारीख।
"साल 2000…," हर्षवर्धन ने धीरे से बुदबुदाया।
संजना ने भी झुककर देखा,"तुम्हारे जन्म का साल?"
"नहीं," हर्षवर्धन ने हल्के से सिर हिलाया, "इस तस्वीर का साल...