Tere ishq mi ho jau fana - 15 in Hindi Love Stories by Sunita books and stories PDF | तेरे इश्क में हो जाऊं फना - 15

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तेरे इश्क में हो जाऊं फना - 15

चहल-पहल से भरी जूलरी शॉप

जूलरी शॉप में रौनक थी। महिलाएं गहनों को परख रही थीं, पुरुष दाम पर मोलभाव कर रहे थे। चमचमाते गहनों की जगमगाहट माहौल को और खुशनुमा बना रही थी।

तभी...

"ठक-ठक-ठक!"

भारी बूटों की गूँजती आवाज़ के साथ, कुछ कद्दावर, डरावनी कद-काठी वाले बॉडीबिल्डर दुकान में घुसे। उनकी आँखों में अजीब-सा ठहराव था, चेहरे पर गहरी कठोरता। पर जो चीज़ सबसे ज्यादा खौफनाक थी, वो थी—उनके हाथों में चमचमाती गन।

दुकान में मौजूद लोग सहम गए। कुछ ने अपने बच्चों को कसकर पकड़ लिया, कुछ ने सांसें रोक लीं। एक महिला की चूड़ियां हल्की-सी खनकी और उसने घबराकर अपनी साड़ी का पल्लू मुंह पर रख लिया।

"ग...गन?" किसी ग्राहक ने हकलाते हुए फुसफुसाया।

जैसे ही बॉडीबिल्डरों का झुंड आगे बढ़ा, डर की लहर फैल गई। लोग अपने गहनों की परवाह किए बिना ही दुकान छोड़कर भागने लगे। दरवाजे की ओर धक्का-मुक्की मच गई।

"रुको!" दुकान के मालिक की आवाज़ गूँजी। वो अपना गुस्सा दबाते हुए आगे बढ़ा।

पर तभी—

"टप...टप...टप..."

जूतों की भारी आवाज़ गूंजी। यह आवाज़ उन बॉडीबिल्डरों से अलग थी—ठहराव भरी, ठंडी और भारी। ऐसा लगा मानो ज़मीन भी इस वजन को महसूस कर रही हो।

मालिक ने कदम रोक लिए।

हवा में अचानक एक अजीब-सा सन्नाटा छा गया।

खौफ की परछाइयाँ चारों तरफ मंडराने लगीं...

"डॉन का खौफ"

 एक लंबा, चौड़ा कद वाला शख्स आया। उसकी चाल में ऐसा ठहराव था कि मानो पूरी दुनिया उसकी मुट्ठी में हो। हल्की दाढ़ी, माथे पर एक गहरी लकीर, आँखों में ठंडी लेकिन खतरनाक चमक—वो कोई आम आदमी नहीं था। वह था डॉन, शहर का सबसे बड़ा अपराध सम्राट।

जैसे ही डॉन ने अपने भारी बूट ज़मीन पर टकटकाए, पूरी शाॅप में सन्नाटा छा गया। गार्ड ने घबराकर दुकान के अंदर बैठे जूलर को इशारे से सचेत किया।

"साहब... वो... वो आ गए!"

जूलर,  एकदम चौकन्ना हो गया। उसके हाथों से पेन गिर पड़ा, और पसीने की बूंदें माथे पर छलक आईं।

डॉन ने धीरे-धीरे कांच के दरवाजे को एक हल्के धक्के से खोला। उसकी एंट्री किसी बवंडर से कम नहीं थी। दुकान में हल्की मद्धम रोशनी थी, जो सोने-चाँदी के जेवरों पर पड़कर झिलमिला रही थी। जैसे ही उसने अंदर कदम रखा, दुकान के सारे कर्मचारी अपने-अपने काम छोड़कर किनारे हो गए। जूलर, जो अभी तक काउंटर के पीछे खड़ा था, 

"ड... डॉन साहब!" उसकी आवाज़ काँप रही थी।

डॉन ने एक हल्की मुस्कान दी, मगर वो मुस्कान नहीं, बल्कि चेतावनी थी। उसने एक लंबी साँस ली और चारों ओर नजर दौड़ाई।

"बड़े दिन हो गए, तुम्हारी दुकान आए हुए, मिस्टर शर्मा," डॉन की भारी आवाज़ गूंजी।

जूलर के होंठ काँपने लगे, उसने जल्दी से हाथ जोड़े, "साहब, आप...आप कैसे आना हुआ?"

डॉन ने कोई जवाब नहीं दिया। वह धीरे-धीरे चलते हुए काउंटर के पास आया और फिर एक झटके में अपनी भारी चमड़े की जूती काउंटर पर रख दी। उसकी नुकीली नजरें जूलर की आँखों में गड़ी थीं।

"तुम्हें पता है मैं यहाँ क्यों आया हूँ?"

जूलर का पूरा शरीर काँपने लगा। उसने घबराकर सिर हिलाया, मगर बोलने की हिम्मत नहीं जुटा पाया।

डॉन ने एक उँगली से काउंटर पर पड़े जेवरों को हिलाया और फिर एक दमकती हुई सोने की चेन उठाकर देखने लगा। उसकी हरकतें शांत, मगर जानलेवा थीं।

"मुझे लगता है, तुमने मेरे पुराने उधार का हिसाब चुकता नहीं किया," डॉन की आवाज़ में लोहे की ठंडक थी।

जूलर के गले से सूखी आवाज़ निकली, "साहब... मैं... मैं कल ही देने वाला था...!"

डॉन ने एक ठहाका लगाया, मगर उसमें कोई खुशी नहीं थी।

"कल?" वह आगे झुका, "क्या मैं तुम्हें कल तक का वक्त दूँ?"

जूलर ने घबराकर सिर हिलाया, "न...नहीं, साहब! मैं... मैं अभी देता हूँ!"

उसने तेजी से गल्ले की ओर हाथ बढ़ाया और नोटों की गड्डियाँ निकालने लगा। उसके हाथों की कंपन से नोट बिखरने लगे। डॉन ने उसे यूँ कांपते देखा और मुस्कुराया।

"डरने की जरूरत नहीं, शर्मा जी," उसने कहा, "मैं सिर्फ अपना हक लेने आया हूँ।"

डॉन ने फिर अपना दूसरा पैर भी काउंटर पर रख दिया और पूरी तरह से उस पर चढ़ खड़ा हुआ। दुकान में मौजूद सभी कर्मचारी इस नज़ारे को देखकर एकदम चुप थे। किसी की हिम्मत नहीं थी कि कुछ बोले।

जूलर ने जल्दी-जल्दी गड्डियाँ उठाईं और कांपते हाथों से डॉन की ओर बढ़ाईं।

"साहब, ये लीजिए... पूरा हिसाब..."

डॉन ने एक नजर पैसों पर डाली, फिर जूलर की तरफ देखा।

"इतनी जल्दी? क्या वाकई पूरा हिसाब दे रहे हो, या कुछ छुपा रहे हो?"

जूलर का चेहरा सफेद पड़ गया, "नहीं साहब! सब यहीं है!"

डॉन ने गड्डियाँ उठाईं और पास खड़े अपने आदमी को थमा दीं। फिर उसने जूलर के काँपते हाथों पर नजर डाली और काउंटर से उतर गया। उसने धीरे से उसकी पीठ थपथपाई।

"शर्मा जी, मैं दोस्ती निभाना जानता हूँ, लेकिन दुश्मनी भी अच्छे से निभाता हूँ। अगली बार, मुझे खुद याद दिला देना, ताकि मैं बार-बार यहाँ आने की तकलीफ न उठाऊँ।"

डॉन के चेहरे पर अब भी हल्की मुस्कान थी, मगर उसके शब्दों में छिपा ज़हर जूलर के लिए किसी फाँसी के फंदे से कम नहीं था।

"अब जाओ, और अपने काम पर लगो," उसने कहा और दरवाजे की तरफ मुड़ गया।

जैसे ही डॉन दुकान से बाहर निकला, 

चलते हुए उसका आदमी बोला, "डाॅन, कुछ ज्यादा तो नहीं हो गया?"

डॉन ने हल्का सा सिर झुका कर देखा, फिर एक लंबी साँस ली।

"अगर डर ना बना रहे, तो लोग इज्ज़त करना भूल जाते हैं," उसने ठंडी आवाज़ में कहा

जूलर अभी भी दुकान के अंदर खड़ा, थर-थर काँप रहा था, 

जूलर का गला सूख चुका था। उसके हाथ अब भी हल्के-हल्के काँप रहे थे। दुकान में मौजूद कर्मचारी अब भी हिलने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहे थे।

उसका सबसे भरोसेमंद कर्मचारी, राकेश, धीरे-धीरे उसके पास आया। उसने धीरे से फुसफुसाया, "सर, आप ठीक हैं?"

जूलर ने थूक गटका और कांपती आवाज़ में बोला, "त.. ठीक हूँ... पर डॉन के जाने के बाद भी उसकी परछाईं यहां से गई नहीं..."

राकेश ने दुकान के दरवाजे की ओर देखा, जहाँ से डॉन और उसके लोग निकले थे।  शायद डॉन अब भी बाहर ही था।

"सर, हमें पुलिस में रिपोर्ट करनी चाहिए," राकेश ने हिम्मत जुटाकर कहा।

जूलर ने एकदम उसकी ओर घूरा, जैसे उसने कोई खतरनाक बात कह दी हो। "तू पागल है क्या? पुलिस? और वो डॉन? तुझे नहीं पता कि जो उसके खिलाफ जाता है, वो जिंदा नहीं बचता!"

राकेश चुप हो गया, मगर उसकी मुट्ठियाँ भींच गईं।

दुकान के बाकी कर्मचारी धीरे-धीरे वापस अपने काम में लगने की कोशिश करने लगे। मगर माहौल अब भी भारी था।