भाग 4: प्रहरी की आहट
घंटे के गिरने की ऐसी धड़ाम की आवाज़ सुनकर, जैसे किसी ने बम फोड़ दिया हो, नगर पालिका का प्रहरी, बूढ़ा रामू, अपनी ऐसी छोटी सी कोठरी से लाठी टेकता हुआ ऐसे बाहर निकला, जैसे कोई बूढ़ा योद्धा लड़खड़ाता हुआ निकलता है। रात ऐसी गहरी थी, जैसे किसी ने काली चादर ओढ़ ली हो, और चाँद बादलों में ऐसे छिपा हुआ था, जैसे कोई बच्चा माँ के आँचल में। इसलिए ज़्यादा कुछ ऐसा दिखाई नहीं दे रहा था, जैसे दिन में तारे नहीं दिखते। रामू ने कान लगाकर आवाज़ की दिशा में ऐसे सुना, जैसे कोई शिकारी जंगल में आहट सुनता है। आवाज़ नगर पालिका भवन के पीछे की ओर से ऐसी आई थी, जैसे कोई भूत फुसफुसा रहा हो।
"कौन है रे?" रामू ने अपनी ऐसी भारी आवाज़ में पूछा, जैसे बादल गरज रहा हो, लेकिन सन्नाटे में उसकी आवाज़ ऐसी गूँजकर रह गई, जैसे खाली कुएं में आवाज़ गूँजती है। कोई ऐसा जवाब नहीं आया, जैसे किसी ने सुना ही न हो। रामू धीरे-धीरे उस दिशा में ऐसे बढ़ा, जैसे कछुआ रेंगता है। उसकी नज़र ज़मीन पर ऐसे पड़ी, जैसे कोई जासूस सुराग ढूंढ रहा हो, जहाँ धूल ऐसी उड़ी हुई थी, जैसे किसी ने झाड़ू लगाई हो, और कुछ घास ऐसी कुचली गई थी, जैसे किसी हाथी ने रौंद दिया हो। उसे ऐसा शक हुआ, जैसे किसी को बुरा सपना आता है, कि ज़रूर कुछ गड़बड़ है, जैसे दाल में कुछ काला।
घंटे के पास ऐसे पहुँचकर, जैसे कोई खजाने के पास पहुँचता है, रामू ने टॉर्च ऐसी निकाली, जैसे कोई जादूगर अपनी छड़ी निकालता है, और ज़मीन पर ऐसी रोशनी डाली, जैसे सूरज की किरणें अँधेरे में पड़ती हैं। उसे ऐसा बड़ा सा पीतल का घंटा ज़मीन पर पड़ा हुआ दिखाई दिया, जैसे कोई गिरा हुआ तारा। "अरे बाप रे! यह घंटा यहाँ ऐसे कैसे गिरा?" वह ऐसा हैरान होकर बोला, जैसे किसी ने उसे भूत दिखा दिया हो। उसने आस-पास ऐसा देखा, जैसे कोई खोई हुई चीज़ ढूंढ रहा हो, लेकिन उसे कोई ऐसा नज़र नहीं आया, जैसे दिन में तारे नहीं दिखते।
उधर, घंटे के नीचे ऐसे दुबका हुआ, जैसे चूहा बिल में, टिमडेबिट अपनी साँस ऐसे रोके हुए था, जैसे कोई पानी में डूब रहा हो। वह रामू की ऐसी भारी आवाज़ और उसके कदमों की ऐसी आहट साफ़ सुन सकता था, जैसे कोई पास में चल रहा हो। उसकी धड़कन ऐसी तेज़ हो रही थी, जैसे ढोल बज रहा हो। उसे ऐसा लग रहा था कि अब वह ऐसे पकड़ा जाएगा, जैसे जाल में फंसा पक्षी।
रामू ने घंटे के चारों ओर ऐसे चक्कर लगाया, जैसे शिकारी अपने शिकार को घेरता है। उसने ध्यान से ऐसा देखा कि घंटा दीवार से ऐसे कैसे अलग हुआ, जैसे किसी ने उसे तोड़ दिया हो। उसे टूटे हुए कीलें ऐसी दिखाई दीं, जैसे किसी बूढ़े के टूटे हुए दांत। "कोई ज़रूर इसे ऐसे तोड़कर ले जाने की कोशिश कर रहा था," रामू ने मन में ऐसा सोचा, जैसे कोई जासूस किसी केस को सुलझा रहा हो।
अचानक, रामू को घंटे के एक किनारे पर कुछ ऐसा अजीब सा दिखाई दिया, जैसे अँधेरे में चमकती कोई चीज़। वह झुककर ऐसे देखने लगा, जैसे कोई कीमती पत्थर ढूंढ रहा हो। यह किसी के जूते का ऐसा निशान था, जैसे किसी ने अभी-अभी यहाँ कदम रखा हो, और वह निशान ऐसा ताज़ा लग रहा था, जैसे सुबह की ओस। रामू ऐसा मुस्कुराया, जैसे किसी को कोई बड़ी कामयाबी मिली हो। "तो मतलब चोर यहीं कहीं आस-पास ही ऐसे छुपा हुआ है, जैसे साँप घास में!"
रामू ने अपनी लाठी ऐसी मज़बूती से पकड़ी, जैसे कोई योद्धा अपनी तलवार पकड़ता है, और धीरे-धीरे घंटे के चारों ओर ऐसे घूमना शुरू कर दिया, जैसे शिकारी अपने शिकार को ढूंढ रहा हो, अपनी टॉर्च की रोशनी हर कोने में ऐसे डालता हुआ, जैसे कोई खजाने की तलाश कर रहा हो। टिमडेबिट ऐसा समझ गया कि अब उसका ऐसे बचना मुश्किल है, जैसे मछली का जाल से बचना।
भाग के अंत में रहस्य: क्या रामू अपनी टॉर्च की रोशनी में टिमडेबिट को ऐसे देख लेगा, जैसे शिकारी झाड़ियों में छिपे जानवर को देख लेता है? क्या टिमडेबिट के पास ऐसे भागने का कोई रास्ता बचेगा, जैसे भूत हवा में गायब हो जाता है? और अगर वह ऐसे पकड़ा गया, जैसे चूहा पिंजरे में, तो रामू उससे ऐसे क्या कहेगा, जैसे कोई बड़ा भाई छोटे भाई को डाँटता है? जानने के लिए अगले भाग का इंतज़ार कीजिए, अगर आपकी किस्मत में रोमांच का काँटा लगा है तो!
अगला भाग: क्या टिमडेबिट अपनी ऐसी अज़ीब चोरी की आदत से पीछा छुड़ा पाएगा, जैसे कोई नशेड़ी नशे से? या फिर यह आदत उसे और भी ऐसी मुश्किलों में डालेगी, जैसे कोई दलदल में फंस जाता है? जानने के लिए पढ़ते रहिए, अगर आपकी उत्सुकता आपको सोने दे तो!