गरिमा यह सब कुछ सहन कर ही रही थी क्योंकि हर्ष का जिस तरह का स्वभाव था उसके कारण यह सब होना कोई बड़ी बात नहीं थी। इस बात को गरिमा भी भली भांति समझ रही थी। उसने सब कुछ समय के ऊपर छोड़ दिया था। वह जानती थी वक़्त सब कुछ ठीक कर देगा। परंतु ठीक कर देगा वाला उसका इंतज़ार बहुत लंबा हो चुका था। उसका इंतज़ार अब कई बार उसे रुलाने भी लगा था। हर्ष की बेरुखी अब उससे सहन नहीं हो रही थी। एक दिन तो गरिमा को बहुत गुस्सा आया। उसने सोचा यूँ चुपचाप रहने से बात नहीं बनेगी। उसे साम, दाम, दंड, भेद का रास्ता अपनाना ही पड़ेगा।
आज पहली बार गरिमा ने उसकी और हर्ष के बीच वर्षों से चली आ रही वह सारी बातें अपनी सास को बताते हुए कहा, "माँ अब यह मुझसे पहले की तरह प्यार नहीं करते। ना ही पत्नी की तरह मुझसे सम्बंध ही रखते हैं।"
"क्या ...?" चेतना ये सब सुनकर हैरान थी।
उसने गरिमा से पूछा, "तुम यह क्या कह रही हो गरिमा?"
"हाँ माँ मैं सच कह रही हूँ।"
इस समय चेतना को हर्ष पर बहुत गुस्सा भी आ रहा था। उसने गरिमा को समझाते हुए कहा, "तू चिंता मत कर बेटा, मैं हर्ष को समझाऊँगी।"
चेतना को आज विमल की वह बातें याद आ रही थीं जो वह हर्ष के बचपन में कहा करते थे कि हर्ष के लिए बार-बार उसकी तारीफ होना बहुत घातक होगा। परंतु उसने कभी भी उनकी बातों को गंभीरता से नहीं लिया था। आज गरिमा की बातें सुन कर चेतना बहुत दुखी थी और उसे बहुत गहरा सदमा लगा था। चेतना ने फिर अपने पति विमल को भी यह सारी सच्चाई बता दी।
विमल भी यह सोचने पर मजबूर हो गए कि ऐसी मानसिकता? हर्ष से यह उम्मीद नहीं थी। तब उन्हें याद आ रहा था कि बचपन से हर्ष ख़ुद के रूप रंग की तारीफ सुनकर बड़ा हुआ है। उसने अपने जीवन में सुंदरता को ही सबसे महत्त्वपूर्ण बना लिया है। कुछ तो करना पड़ेगा। विमल को यह भी याद आ रहा था कि हर्ष ने गरिमा से पहले कितनी लड़कियों को रिजेक्ट कर दिया था, सिर्फ़ इसलिए कि वे बहुत ज़्यादा सुंदर नहीं थीं।
चेतना और विमल ने सोचा वे दोनों हर्ष को समझा बुझा कर रास्ते पर ले आएंगे।
अगले दिन चेतना ने हर्ष को अपने कमरे में बुलाया।
हर्ष ने अंदर आकर पूछा, "क्या हुआ माँ?"
"हर्ष आ बैठ मेरे पास।"
हर्ष बैठ गया तब चेतना ने कहा, " हर्ष एक बात पूछूं?"
"हाँ माँ पूछो ना, आज क्या हो गया? आप कुछ गंभीर लग रही हो।"
"हाँ गंभीर तो हम दोनों ही हैं क्योंकि बात ही कुछ ऐसी है। मैं तुझसे पूछ रही थी कि जब हम दोनों बूढ़े हो जाएंगे, हमारे चेहरे पर झुर्रियाँ आ जाएंगी, तब तू हमसे प्यार नहीं करेगा क्या?"
"माँ, यह कैसा प्रश्न है तुम्हारा?"
"सही और सीधा प्रश्न ही तो पूछ रही हूँ। सफेद बाल, ढीली लटकती झुर्रियों वाली चमड़ी तू कैसे देख पाएगा?"
"माँ आप दोनों मेरे माता-पिता हो और बुढ़ापा तो सभी को आता है।"
चेतना ने समझाते हुए कहा, “हाँ हर्ष बुढ़ापा सभी को आता है। जवानी और सुंदरता हमेशा साथ नहीं देती। जैसे बुढ़ापा आता है तो शरीर पहले जैसा नहीं रहता वैसे ही औलाद को जन्म देने के बाद माँ के शरीर में भी बदलाव आता ही है।”
रत्ना पांडे, वडोदरा (गुजरात)
स्वरचित और मौलिक
क्रमशः