हनुमान साठिका
लेखक महात्मा बलदेव दास
दोहा- श्री गणपति मंगल करण हरण अमंगल मूल । मंगल मूरति मोहि पर रहहु सदा अनुकूल ॥१॥ संवत सर श्रुति खंड विधु कार्तिक शुभ सित पक्ष । छठि मंगल बलदेव कृत हनुमत विनय प्रत्यक्ष ॥२॥(
दोहे के अनुसार इस कृति का रचना काल है: कार्तिक शुक्ल ६ संवत् १९४१)
अथ रुद्राष्टपदी सवैया
जो परते पर, कारण हूँ कर-कारण केवल, कोउ न जाना । एक अनीह अरूप अनाम अजी ! सत चेतन आनन्द माना!व्यापक विश्व-स्वरूप अखण्डित,भक्तन हेतु सोई भगवाना ।देह अनेक धरें जग में, बलदेव सो रुद्र नमो हनुमाना ॥१॥
जौन महा कल्पान्त के अन्त में, श्याम भयानक उग्र महाना । कोटि दिनेश से देह दिपै द्युति, कोटिन दामिनि पुञ्ज समाना ॥ पंच मुखान ते ज्वाल कड़े , हग-तीन, भुजा दश हैं बलवाना । तीव्र त्रिशूल दलै खल को, बलदेव सो रुद्र नमो हनुमाना ॥२॥
श्याम अकार अकाश महा, अहंकार समष्टि प्रताप निधाना । ज्ञान की इन्द्रिय पञ्च मुखै, कर्मेन्द्रिय देव भुजा दश जाना ॥ त्रैगुण, तीनिहुँ काल, अग्नि त्रिनेत्र त्रिलोक त्रिशूल बखाना । तेज दहै ब्रह्मण्डन को, बलदैव सो रुद्र नमो हनुमाना ॥३॥
जो दिग्पाल के मुण्डन के ब्रह्माण्डन के सजि , माल सुजाना । दिग्गज नाथि त्रिशूल के अग्र, नचे करिके श्रुति छंद को गाना ।।जासुके रूप से शक्ति कड़े, अतिशय महिमा जेहि वेद बखाना । सम्भव पालन लय करता, बलदेव सो रुद्र नमो हनुमाना ॥४॥
कोटिन्ह गाज से गाज भयङ्कर, टूटि परै ध्रुव चक्र विमाना । नाक उसाँस प्रलय जल क्षोभित, खेंचि करै पल में तेहि पाना ।। अन्त में आपु अकेल रहे, यक हौत सो सूक्षम अन्तर्धाना । कारण कारज काल वही, बलदेव सो रुद्र नमो हनुमाना ।।५।।
जौन महेश महीश मही, सुरभी सुर साधु विनय सुनि काना । अंजनि गर्भ से जन्म लियो, रवि भक्षि हन्यो पविमान गुमाना ।। मानि कै स्तुती भानु तज्यौ, गुरुदेव बनाइ कियो सनमाना । देखि त्रिदेव प्रसन्न भये, बलदेव सो रूद्र नमो हनुमाना ॥६॥
रामहि लाइ सुकंठ मिलाय अभय करिकै कपिराय प्रमाना। ले मुंदरी सिय-सोध चल्यो मग, प्यासे कपीन्ह के राखेहु प्राना।। लाँघत सिंधु हन्यौ सुरसा-मद, सिंहिका मारि उड्यो जिमि वाना। लंकिनि को हनि लंक धँस्यो, बलदेव सौ रुद्र नमो हनुमाना ॥७॥
बाग उजारि के अक्ष पछारि के, जारि के लंक सिया सुधि आना। लाय सजीवन ज्याई के लक्ष्मण राम को किन्हो पाताल में, त्राना। दीन्ह विजय रण में प्रभु को, प्रिय होहु अगम्य लह्यो वरदाना । सोच हरयो मुनि देवन को, बलदेव सो रुद्र नमो हनुमाना॥८॥
पश्चमुख हनुमद्ध-ध्यान धनाक्षरीपूरब बिकट मुख मर्कट संहारे शत्रु, दक्षिण नृसिंह जारै दानव बपुष को। पश्चिम गरुड़ मुख सकल नेवारे दिसि(विष) उत्तर वराह आने सर्व देव सुख को ॥उर्ध्व हयग्रीव पर मंत्र यंत्र तंत्रन को, करत उचाट बलदेव दीह दुख को । बूत (सामर्थ्य) करतूत सुनि भाजै यमदूत भूत, बन्दों सो सुपूत पौन पूत पञ्चमुख को ॥९॥
कैधौं मार्तण्डन के झुण्ड एक ठौर भयो, कैधौं पञ्चमुखी मुख मंडले विशाल है। कैधौं विज्जुसूर्य बड़वानल के कुंड नैन, काल को कोदंड कैंधौ भृकुटी कराल है ॥ कैछौं युग मेरु के उदंड भुजदंड चंड, इन्द्र धनु कैंधौ लूम लाल पटज्वाल है। कैंधो बलदेव ब्रह्माण्ड में भर यो गुलाल, कैंधों लाल पूरि रह्यो अंजनी को लाल है।॥१०॥
कैधौं मार्तण्डन के झुण्ड एक ठौर भयो, कैधौं पञ्चमुखी मुख मंडले विशाल है। कैधौं विज्जुसूर्य बड़वानल के कुंड नैन, काल को कोदंड कैंधौ भृकुटी कराल है ॥ कैछौं युग मेरु के उदंड भुजदंड चंड, इन्द्र धनु कैंधौ लूम लाल पटज्वाल है। कैंधो बलदेव ब्रह्माण्ड में भर यो गुलाल, कैंधों लाल पूरि रह्यो अंजनी को लाल है।॥१०॥