महात्मा बलदेव दास हनुमान साठिका 4
(भाग 4)
हनुमान चौपदी
मारन तमीचर को ताड़न शनीचर को मोहन चराचर को मूर्छन विकार है।
वशीकर लोकन को हरन सब शोकन को गैर मन्त्र रोकन को वीर बरियार है ।
दोष सिन्धु शोषन को खीन जन पोषन को दीनन के तोषन को धनद उदार है।
व्याघ्र अहि सिंहन को दुष्ट मुख बन्धन को नारी गर्भ थंबन को तेरो अवतार है ॥४१॥
बाधक उच्चाटन को बैरि फन्द काटन को गर्भ उद्घाटन को आरत अधार है।
दानौ दैत्य यक्षन को भूत प्रेत भक्षन को रोगी बाल रक्षन को लक्षन को यार है ।।
सज्जन के रंजन को दुर्जन के गंजन को सर्व भय भंजन को अंजनीकुमार है।
दया दृष्टि वर्षन को सृष्टि हिय हर्षन को विभव आकर्षन को तेरो अवतार है ॥४२॥
बाल रवि लीलन को काल मुख कीलन को सर्व विष पीवन को केशरीकुमार है।
सीता सुधि ल्यावन को लषण जियावन को वृक्ष अहिरावण को खण्डन कुठार है ॥
टोना मूठ झारन को अल्प मृत्यु टारन को आठो ज्वर जारन को दीन रखवार है।
विपति विदारन को सम्पति सँवारन को संकट निवारन को तेरो अवतार है ॥४३।।
पाप ग्रह टारन को कपटी पछारन को चोर बटमारन को करत संहार है।
बेरिन उजारन को अधम उधारन को धर्म के सुधारन को भरन भण्डार है ।।
बलदेव तारन को सेवक सँभारन को दीनन दुलारन को रामजी को प्यार है।
भक्त हित कारन को कारज सँवारन को संकट निवारन को तेरो अवतार है ॥४४॥
- हनुमान सप्तक-
तेरे बल प्रवह चलावे देह मेहन को तेरे बल आवह चलावे शिशुमार को। ।
तेरे बल उद्वह जलद से जलद कांहि दैके जल वृष्टि योग करे बहु धार को ।।
तेरे बल संवह चलावै भिन्न भिन्न यान करे वृष्टि काज औ गिरावें गिरि भार को ।
आदि सप्त पौन है के पूरयो ब्रह्माण्ड जौन वन्दे बलदेव तौन पौन के कुमार को ॥४५॥
तेरे बल निवह चलै जों अति दारुण ह्वे प्रगट बलाहक औ पीड़ित पहार को ।
तेरे बल परिवाह थमि स्वर्ग गंगा नभ चन्द्रपुर क्षीण करै टारे सूर झार को।
तेरे बल सप्तम परावह प्रलय में कोपि नाशे विश्व राखे वश्य काल बरियार को ।
ह्वे ह के पौन रूप जौन पूज्यो ब्रह्माण्ड पार वन्दे बलदेव तौन पौन के कुमार को ॥४६॥
जाके बल विरचे विरंचि भव पाले विष्णु शंकर संहारे शेष धारे महिभार को ।
जाके बल वारिधि रहत मर्यादा माँहि वारिद वरसि वारि पोषत संसार को। ॥
जाके बल अनल दहत, वायु जाके बल तूल से उड़ावे मेरु आदिक पहार को ।
ताके रौद्र रूप को उदार अवतार जौन वन्दै बलदेव तौन पौन के कुमार को ॥४७॥
जाके बल शीत भानु शीतल करत सृष्टि जाके बल भानु हरै घोर अन्धकार को ।
जाके बल शोक तजि पाले लोक-पाल लोक दिग्गज कमठ करै वसुधा सँभार को ।।
जाके बल उड़े ब्रह्माण्ड निराधार सब जाके बल जठर पचावत अहार को ।
ताके रौद्र रूप को उदार अवतार जौन वन्दै बलदेव तौन पौन के कुमार को ॥४८॥
तेरे बल बालि से निकण्टक सुकंठ भयो तेरे बल बाँधे कपि सागर अपार को ।
तेरे बल रामचन्द्र लक्ष्मण को ज्यावे रैनि तेरे बल योधा तरे युद्ध-निधि धार को ।।
तेरे बल बाँचे अहिरावण से दोनो बन्धु तेरे बल दूरि कियो सिय के खंभार को ।
राघव भरत को मिलाय दुख मेटयो जौन वन्दै बलदेव तौन पौन के कुमार को ॥४९॥
तेरो बल पाय रण मामला में जीत होत तेरो बल पाय जन जीते यमद्वार को।
तेरो बल पाय रोकि सकै आगि पानी वायु तेरो बल पाय मोहै राज दरबार को ॥
तेरो बल पाय जल थल में रहै निडर तेरो बल पाय काटै संकट अपार को।
सर्व गुण-भौन सिय राम को पियारो जौन बन्दै बलदेव तौन पौन के कुमार को ।॥५०॥
सुमिरन कीन्हें नाम सिद्ध करे सर्व काम कीन्हे ते प्रणाम, हरे बाधक विकार को ।
भजन किये ते भय भाजत सजत काज गाये गुण बाढ़े गुण, काढ़े दुराचार को ।।
पूजे अर्थ पूजे रूप ध्याये रूप ज्ञान होत कीन्हे इष्ट देत अष्ट सिद्धि फल चार को ।
सकल विभूति मौन वन्दत द्रवत जौन बन्दै बलदेव तौन पौन के कुमार को ॥५१॥
रुद्र अवतारी तनुधारी अंजनी के उद्र बाल डरहारी, बाल रवि को अहारी है।
बाल ब्रह्मचारी बालिबन्धु उपकारी, दीन बन्धु सुखकारी सत्यसिन्धु व्रतधारी है ॥
सिन्धु मद हारी, सुरसा को गर्वगारी, बीर सिंहिका पिछारी लङ्किनी को मारि तारी है।
भक्त भय हारी बेगि लागिये गोहारी सुधि लीजिये हमारी जन शरण तिहारी है ॥५२॥
कानन उजारी अक्ष मारी लंक जारी जौन सीता दुःख हारी कालनेमि को पछारी है।
धौल गिरि धारी वीर लक्ष्मण उबारी रक्षि राम हितकारी अहिरावने संहारी है ।।
अवध - बिहारी - काज सकल सुधारी बलदेव बलिहारी वन- कदली विहारी है।
भक्त भय हारी वेगि लागिये गोहारी, सुधि लीजिये हमारी जन शरण तिहारी है ॥५३॥
तेरो गाज भारी सुनि भाजे महामारी नीच काँपति विचारी अल्प मीच ज्यों अपंग है।
देवी देव दानौ देत्य राक्षस गंधर्व यक्ष कुष्माण्ड किन्नर को बाँधि करे तंग है ॥
भूत प्रेत पितर वैताल क्षेत्र पाल घाल काल व्याल व्याघ्र वृक तेज होत भंग है।
योजन पर्यन्त बलदेव वें न आवै त्रास सर्व काल सर्व ठौर रक्षे बजरंग है ॥५४॥
द्विक जन्मरु पंचम सप्त तथा चतुराष्टक द्वादस रन्ध्र धरै ।
रवि राहु शनिश्चर भौम परै धन धान्य हिरण्य विनाश करै ।।
यह ज्योतिष शास्त्र कहै सुनिकै बलदेव न कुण्डलि सोचि डरै ।
अघ झूर दशा ग्रह मेधन को बल पुंज प्रभञ्जन वीर हरै ।॥५५॥
जै कपिनायक रुद्र प्रत्यक्ष सुलक्षण लक्षण रक्षन हारो ।
दूसर चौथ दिवाकर भक्षक जन्मरु अष्टम राहु पछारो ॥
पंचम द्वादश मन्द विमर्दन सप्तम रंध्र कुमंगल टारो ।
श्री धन धान्य भंडार भरो बलदेव को नित्य रहो रखवारो ॥५६॥
चारिहु आठ नवो षट चौदह पूर्ण एकादश रुद्र कहाया ।
श्री भगवान दया के निधान स्वभक्तन हेतु धरे हरि काया ॥
कौन जहान में दुर्गम काज जो ह्वे न सके तुम ते कपिराया ।
दुष्टन को अभिमान हनो हनुमानजी मो पर कीजिये दाया ॥५७॥
को तेहि तौकि के ताकि सके जेहि पे एक बार कियो तुम छाया ।
कौन कमी तब किंकर को जेहि वश्य सदा सियराम अमाया ॥
दीन विनय सुनि वेगि द्रवै बलदेव तेरे शरणागत आया ।
दुष्टन को अभिमान हनो हनुमानजी मो पर कीजिये दाया ॥५८॥
अद्भुत अलौकिक अनेकन जो कीन्हे कर्म आपहू न जानत अगम्य ऐसो उद्र है।
सुधि के दवाये, बढ़े चण्ड ब्रह्माण्ड खंडि कांपै नभ मंडल में मार्तण्ड क्षुद्र है ॥
योगिनि जमात देवी भैरव त्रिदेव आदि जोरि हाथ कहै महावीर महारुद्र है।
सोई वायु-नन्दन को वन्दै बलदेव दास वीर भय रौद्र शान्त रस को समुद्र है ॥५९॥
तू हैं दीनवन्धु हौं तो दीन बलदेव दास पतित उधारन तू, हौं तो पाप ढेरों हौं ।
तू है बन्दी छोर, हौं पर् यो हूँ पञ्चबन्धन में तू है दुष्टदलन, मैं दुष्टन ते घेरो हौं ।॥
राजपूर तेरो धाम, मेरो खटवारो ग्राम संकट मोचन तू, मैं संकट में पेरो हौं।
मेरे तेरे नाते तो घनेरे लीजे राखि मोंहि जैसे बने तैसे अब बारे ही से चेरो हौं ॥६०
दो०
साठ कवित बजरंग के पाठ करें नित कोय ।
आठ सिद्धि नव निधि मिले इष्ट सफल शुभ होय ॥१॥
जो विधिवत आहुति सहित यक यक कवित जगाव ।
मंत्र सदृश सब पर चलिहि श्री बजरंग प्रभाव ॥२॥
लिखत पढ़त जँह छन्द स्वर वर्ण अर्थ रस भंग ।
सो अवगुण छमि बालगुनि सुनिय विनय बजरंग ॥३॥
जिमि शिशु मुख तोतर वचन सुनत मुदित पितुमाय ।
तिमि विनती बलदेव की सुनि गुनि होहु सहाय ।।४।।
पद्य-रागगौरी
पवनसुत संकट कस न हरें ।
सुमिरत नाम अमंगल भाजत मंगल भवन भरें ॥
जो जग भजन करत कौनिहु विधि तेहि यमदूत डरें ।
ताके पाउ परत इच्छित फल जो नित पाउँ परें ।।
जन बलदेव रहै शरणागत निर्भय ताहि करें ।
श्री हनुमान साठिका समाप्त
प्रनवउ पवनकुमार खल-वन-पावक ज्ञान-घन ।
जासु हृदय-आगार बसहिं राम सरचाप-धर ।