महोत्सव की भीड़ धीरे-धीरे छंटने लगी थी, लेकिन आदित्य की आँखों में अब भी वही छवि बसी थी—संयोगिता, मंच के बीचों-बीच खड़ी, अपनी आवाज़ के जादू से सबको बाँधती हुई।
वह अब भी सोच रहा था, "क्या यह सिर्फ एक संयोग था, या मेरी अधूरी कहानी का पहला अध्याय?"
आदित्य इसी सोच में डूबा ही हुआ था कि तभी संयोगिता भीड़ के पीछे, एक पुरानी हवेली की सीढ़ियों पर, अकेले जाकर बैठ जाती है।
उसके चेहरे पर अब मंच की मुस्कान नहीं थी। उसके लंबे काले बाल हल्की हवा में उड़ रहे थे। उसने अपनी डायरी खोली और कुछ लिखने लगी। उसकी आँखें भावहीन थीं, जैसे किसी अनकही पीड़ा को पन्नों में उतार रही हो।
आदित्य ने ठिठक कर उसे देखा।
"क्या यह वही लड़की है, जिसने कुछ ही देर पहले पूरे जैसलमेर को अपने गीतों से मंत्रमुग्ध कर दिया था?"
वह धीरे-धीरे आगे बढ़ा और हल्की आवाज़ में बोला, "बहुत खूबसूरत गाया आपने।"
संयोगिता ने धीरे से पन्ना पलटते हुए सिर उठाया। उसकी आँखों में सवाल थे, लेकिन होठों पर चुप्पी।
"आप लेखक हैं?" उसने झिझक कर कुछ कहा।
आवाज़ में वही जादू था, लेकिन इस बार कोई संगीत नहीं।
आदित्य मुस्कुरा दिया, "हाँ। मैं कहानियाँ लिखता हूँ, लेकिन लगता है, यहाँ आकर खुद एक कहानी में खो गया हूँ।"
संयोगिता हल्का मुस्कुराई, लेकिन वह मुस्कान उसके मन का हाल बयां नहीं कर रही थी।
"हर कहानी को लिखने से पहले उसे जीना पड़ता है," उसने धीरे से कहा।
"और आप? आप भी कहानियाँ लिखती हैं?" आदित्य ने उसकी डायरी की ओर इशारा किया।
संयोगिता ने डायरी बंद कर दी, जैसे कोई राज़ छुपा रही हो।
"कभी-कभी, जब मन बहुत भारी होता है, तो शब्दों का सहारा लेना पड़ता है," उसने जवाब दिया।
आदित्य अब पूरी तरह संयोगिता के व्यक्तित्व में खो चुका था।
वह कोई साधारण लड़की नहीं थी।
राजस्थानी रंगों से सजी, पारंपरिक गहनों में लिपटी, लेकिन उसकी आँखों में कोई अनकहा रहस्य झलकता था—एक अनजान विरह की परछाई, जो उसकी हर मुस्कान के पीछे छिपी थी।
उसकी आँखों में डूबते हुए आदित्य ने महसूस किया कि वह सिर्फ एक गायिका नहीं, बल्कि किसी अधूरी प्रेम कहानी की चलती-फिरती गूंज थी।
उसने धीरे से कहा, "आपकी गायकी में जो दर्द था, वह किसी अधूरी मोहब्बत की कहानी जैसा लगा।"
संयोगिता के चेहरे पर हल्का-सा कंपन हुआ। उसकी पलकों की कोरों में एक हल्की नमी झिलमिलाई, जिसे उसने झट से छुपाने की कोशिश की।
"आप बहुत गहरे देखते हैं, आदित्य जी," उसने पहली बार उसका नाम लिया।
आदित्य को महसूस हुआ कि उसके नाम का यह पहला उच्चारण किसी गहरे अहसास की दस्तक था।
संयोगिता की आवाज़ धीमी थी, लेकिन उसमें एक अजीब-सी गहराई थी।
"कुछ कहानियाँ सिर्फ कहने के लिए नहीं होतीं, आदित्य जी। उन्हें महसूस किया जाता है।"
उसके शब्दों में एक अजीब-सा दर्द था, जिसे वह चाहकर भी छुपा नहीं पा रही थी।
आदित्य ने महसूस किया कि संयोगिता के दिल में कोई गहरा घाव था, जिसे वह शब्दों के पर्दे से ढँकने की कोशिश कर रही थी।
उसने एक पल के लिए चुप्पी साधी, फिर नरम लहज़े में बोला, "अगर कभी आप चाहें, तो मुझे अपनी कहानी सुना सकती हैं।"
संयोगिता ने कुछ देर उसकी आँखों में झाँका।
जैसे वह देख रही हो कि क्या सच में आदित्य उसकी दास्तान सुनने के काबिल है?
फिर उसने हल्के स्वर में कहा, "कभी-कभी कहानियाँ अधूरी ही अच्छी लगती हैं, आदित्य जी।"
आदित्य कुछ कहना चाहता था, लेकिन उसकी आँखों की गहराई ने उसे रोक दिया।
शब्दों की कोई ज़रूरत नहीं थी।
वह जान गया था कि संयोगिता सिर्फ एक गायिका नहीं, बल्कि एक अनकही दास्तान की जीवंत तस्वीर थी—एक ऐसी कहानी, जो अधूरी होकर भी पूरी थी।