Shankaran Sir in Hindi Motivational Stories by Devendra Kumar books and stories PDF | शंकरन सर की जिजीविषा

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शंकरन सर की जिजीविषा

शंकरन सर की जिजीविषा

- देवेन्द्र कुमार

शंकरन सर को मैं पिछले लगभग अठारह वर्ष से जानता हूँ, या यह कहें जब से वे दिल्ली की द्वारका की हमारी ग्रुप हाउसिंग सोसाइटी में एक फ्लैट खरीद कर रहने आये थे| शुरू शुरू में उनका स्वभाव, तौर तरीका,रहन-सहन बहुत ही अजीब सा लगता था, दुबले पतले से, औसत कद के  मगर तेजतर्रार, हर चीज़ पर उनकी पैनी नज़र रहती थी, जैसे बाकी सब पहले से रहने वालों पर कुछ शक कर रहे हों,  हर बात को जैसे परख रहे हों,सब लोगों की जांच-पड़ताल कर रहे हों। उनके सोसाइटी में आने पर पहले पहल दिन ही सोसाइटी ऑफिस में हमारी मुलाकात उनसे हुई थी| हाँ इस बात को अब तो बहुत वर्ष हो चुके हैं| 2007 के शुरू ही में वे यहाँ आये थे। मैं उनसे सबसे जल्दी मिलने वाले कुछ लोगों में से एक था| पता नहीं क्यों मुझे वे कुछ विशेष व विलक्षण पहले क्षण से ही लगे थे|

अपनी सोसाइटी की मैनेजमेंट-कमेटी के प्रधान के तौर पर सोसाइटी के ऑफिस में उनके फ्लैट की खरीद के डाक्यूमेंट्स देखने के बाद, मैं और सोसाइटी कार्यकारणी के अन्य सदस्य उनसे उनकी थोड़ी बहुत जानकारी लेने के लिये एक साधारण सा उनका इंटरव्यू लेना चाह रहे थे, ताकि उन को जान ले तथा उनको बाद में सोसाइटी का मेंबर भी बनाना ही था। बातचीत में थोडा ही आगे बढे उन्होंने उलटे हमारा ही ज्यादा इंटरव्यू लेना शुरू कर दिया था| मेरे व अन्य सदस्यों से तरह तरह के प्रश्न पूछना शुरू कर दिया था, और हम बार बार एक दूसरे का मुंह देख रहे थे कि यह क्या हो रहा है?

कहना न होगा इस वार्तालाप में हम सब खूब आनंद व रस भी ले रहे थे। अंग्रेजी व हिंदी भाषाओँ पर मुझे तथा वहां बैठे अन्य सहयोगी सदस्यों को भी अच्छी पकड़ है, सभी भारत सरकार में काम कर चुके थे और दो तो कर भी रहे थे| पर वे तो हर बात का जबाब कुछ ज्यादा ही फर्राटेदार अंग्रेजी में ही दिये जा रहे थे, जैसे यह वाद विवाद प्रतियोगता हो और उसे जीतना हो| स्पष्ट था कि उनका  अंग्रेजी पर हम लोगों से अधिक अधिकार था तथा उसे वे जता भी खूब  रहे थे। लगता था जैसे हमें बताना चाह रहे हैं कि वे हम सब से ज्यादा बेहतर व्यक्तित्व के स्वामी हैं, ज्यादा अनुभवी हैं, और अंग्रेजी भी कहीं ज्यादा जानते हैं| आखिर तक आते आते इसमें कोई संदेह भी नहीं रह गया था। उम्र में तो स्पष्ट रूप से हम सब से बड़े ही थे| हम लोगों ने उन के लिये चाय मंगाई पर उन्होंने बताया कि वे चाय के लिये समय के भी बहुत पाबंद हैं और बेवक़्त नहीं लेते और इसलिए उस टाइम चाय नहीं ले पायेंगे अतः हमें उनकी चाय वापिस भेजनी पड़ी थी।  

पानी का गिलास भी उन्होंने छुआ तक नहीं था, बस लिया और रख लिया था। फ्लैट की खरीद के उनके पेपर बिलकुल दुरुस्त थे,  हर जानकारी  बिलकुल परफेक्ट थी, सब कुछ उन्हें हर तारीख हर अमाउंट हुबे-हूब याद भी था, जैसे पूरी तैयारी से आएं हों या उनका दिमाग ही शायद इतना तेज था कि हर चीज़ याद थी। उनसे पता चला कि वे जनकपुरी के तमिल सीनियर सेकंड्री स्कूल के संस्थापक प्रिंसिपल रह चुके थे| अब बरसों से रिटायर्ड हैं| वहां की अपनी कोठी को बेच कर हमारे यहां फ्लैट लिया हैं, उनकी पत्नी भी दिल्ली के सरकारी स्कूल की पहले प्रिंसिपल तथा बाद में वे दिल्ली सरकार के शिक्षा निदेशालय की डिप्टी डायरेक्टर के उच्च पद से सेवा निवृत हुई थी। दोनों की आयु सत्तर से थोड़ी ज्यादा थी, अंदाज़ा लगाया की रिटायर हुए दस से अधिक वर्ष हो चुके होंगे।उनके कथनानुसार वे दोनों 1957 में दिल्ली आये थे, तब से यहीं हैं,यहीं बस गए हैं यहीं के हो गए हैं।

“बड़ी कोठी छोड़कर फ्लैट में क्यों आ रहे हैं?” हम लोगों ने कौतुहल वश उनसे उनसे पूछा था|

 उनका उत्तर था “फ्लैट में अपनी ज्यादा सुरक्षा व कुछ अन्य व्यक्तिगत कारण से हमें उपयोगी लगा|”  

 क्या व्यक्तिगत कारण था उन्होंने आगे बताना कोई उचित नहीं समझा न हीं हम सब ने आगे पूछने की  धृष्टता की क्योंकि व्यक्तिगत तो भई व्यक्तिगत है कैसे पूछा जा सकता था|

कहना न होगा कि हमने उनका अपनी सोसाइटी में अच्छा स्वागत किया था, मेम्बरशिप के लिये फॉर्म भरवाया और वो जल्दी ही सोसाइटी के मेम्बर भी बन गए थे, साथ ही साथ मेरे तो निकट पडौसी भी क्योंकि उनका खरीदा हुआ फ्लैट और मेरा फ्लैट बराबर बराबर में हो गया थे। कुछ दिन उन्होंने नए मकान में काम कराया फिर रहने के लिये शिफ्ट भी कर लिया था| हमें कई महीने पास में रहते रहते हो गए थे पर दोनों पतिपत्नी काफी रिज़र्व से थे किसी से कोई सम्बन्ध नहीं रखते थे| हमें अगर कभी लिफ्ट में मिल भी जाते तो हमारी नमस्ते, गुड-मोर्निंग ले लेते थे,न करो तो अनजान जैसे खड़े रहते थे। शायद उन्हें मिलना जुलना बिलकुल पसंद नहीं था ऐसा हम समझने लगे थे। ज़ाहिर था वे हमारी सोसाइटी के नए माहौल में अभी एडजस्ट नहीं हो पा रहे थे अपना समय ले रहे थे। 

 उनके आने के चार पांच महीने बाद सोसाइटी की वार्षिक आम बैठक या ऐजीऍम में जब खूब शोर-शराबा, विरोध–प्रतिविरोध चल रहा था, जो ऐसी मीटिंग में एक साधारण या आम बात होती है, और मैं शोर शराबे में बड़ी मुश्किल से ही अध्यक्षता कर पा रहा था| एजेंडे धीरे धीरे आगे बढ़ पा रहे थे| हर साल ऐसा हो जाता था, कुछ लोगों को तो शोर शराबे के बिना आनंद ही कहाँ आता है? साल भर बाद तो सबके सामने अपनों भड़ास निकालने का यह अच्छा अवसर होता है, कुछ लोगों को अपना ज्ञान बघारने और निंदा सुख भी लेना का मौका होता है|

अचानक शंकरन साहेब थोडा उतेजित से होकर खड़े हुए तथा अध्यक्ष से अपनी बात कहने की अनुमति मांगी और फिर बस पंद्रह-बीस मिनट तक धाराप्रवाह अंग्रेजी में सबकी अच्छी खबर ली, लग रहा था कि स्कूल के प्रिंसिपल बच्चों को एसेम्बली में डांट पिला रहें हैं। उन्होंने यहाँ तक कहा अगर वह पहले यह जानते कि सोसाइटी में इस स्तर के लोग रहते हैं इस तरह से मिसबिहेव करते हैं, यहाँ सब कुछ इस बुरी तरह से सभाओं में हंगामा होता है, अनुशासन नहीं है तो वे कभी भी यहाँ फ्लैट न खरीदते| लगता है यहाँ आ कर उन्होंने बड़ी गलती की है। आवेश में आकर काफी कुछ कहते रहे| उनकी अंग्रेजी आधों से भी ज्यादा के सर के ऊपर से गुज़र रही थी| लोगबाग स्तब्ध थे पिन ड्राप चुप| फिर अचानक अपनी बात ख़त्म कर मीटिंग छोड़ कर चले गए। ज्यादातर मेम्बर आश्चर्य में थे कि ये कौन अजीब नया सदस्य था जो पता नहीं क्या क्या बातें सुना कर चला गया? उनके लिये शोर शराबे के बिना क्या कहीं आम मीटिंग हो सकती है? यह तो साल में एक बार अपनी बात सबके सामने बोलने का नायब अवसर होता है, उन्हें लगा कि ये नया मद्रासी तो बस  रंग में भंग कर गया है। कहावत है कि ‘नाई की बारात में सभी ठाकुर’ सो सोसाइटी में तो सभी बराबर के मेम्बर हैं, सब को हल्ला गुल्ला करने का भी पूरा संवेधानिक अधिकार होता है। कुछ लोग इसमें अपना गुबार शोर कर निकाल रहे थे तो इसमें कहाँ कुछ गलत था?

 पर शंकरन सर के अंग्रेजी के भाषण का असर यह अवश्य हुआ कि फिर मीटिंग जल्दी आसानी से संपन्न हो गई तथा बहुत से सदस्यों की बातें अनकही रह गयी उनकी भड़ास नहीं निकल पाई| मैं तो खुश ही था कि शंकरन सर के कारण मेरा काम आसान जो हो गया था, फालतू की बहसबाज़ी से पीछा छुट गया था, बिना समय ज्यादा लिये एजेंडा पॉइंट चले और आसानी से पास हो गए थे|

 ऐसी  हर वर्ष एजीएम मीटिंग के बाद सभी सदस्यों और परिवार के लोगों के लिये लंच भी ही आयोजित किया जाता था| उसमें शामिल होने के लिये शंकरन सर को फ़ोन किया गया तथा उन्हें बताया कि मीटिंग बाद में शांतिपूर्ण सम्पन्न हो गई है। अब लंच के लिये आ जाएँ, वे तुरंत मान गए, जल्दी ही अपनी पत्नी के साथ उनका हाथ पकड़ कर उसे धीरे-धीरे चलाते हुए आ गए थे। उनकी पत्नी के स्वास्थ्य की हालत ज्यादा अच्छी मालूम नहीं दिख रही थी, उन्होंने बिलकुल पूरी तमिल पारंपरिक कांजीवरम की साड़ी, पूरे भारी आभूषण माथे पर बड़ा बिंदा, हाथ में खूब सारी चूड़ियाँ व सोने के भारी भारी कंगन धारण किये हुए थे। सोसाइटी में अधिकतर लोग हिंदी या पंजाबी में बात कर रहे थे, पर यह दोनों हिंदी समझते हुए भी उत्तर केवल अंग्रेजी में ही दे रहे थे। पहली बार बहुत से लोग उनके संपर्क में आये। कुछ लोगों के लिये थोडा अजूबे थे पर एक बात सब को साफ़ हो गई थी कि वो सबसे अलग तरह के इन्सान हैं। उम्र में ज्यादातर लोगों से बड़े थे तथा अभी भी स्कूल के प्रिंसिपल बने हुए थे जैसे सोसाइटी एक स्कूल हो, जहाँ उन्होंने थोडी देर पहले अपने विद्यार्थियों को अनुशासन का सबक सिखाया था। 

मेरे से वे उम्र में काफी बड़े थे, निश्चित रूप से पढ़े लिखे और विद्वान थे, मेरे निकटतम पडोसी भी थे अतः में उनको पूरा आदर सम्मान देता था, उनकी बात पर हमेशा गौर करता था| वैसे तो वे नए आये थे तथा मै सोसाइटी का  पुराने संस्थापक सदस्यों में से एक था, साथ ही उस समय मैं सोसाइटी का प्रेसिडेंट भी था, उनका पडोसी भी था, सोचता था कि शिष्टता के रिवाज़ के तौर पर उन्हें ही हम लोगों से मिलने के लिये पहल करनी चाहिए थी, पर जब उन्होंने नहीं की तो फिर इसके लिये हम दोनों ने ही पहल की, कॉल-ऑन के लिये उनके घर आने के बारे में फ़ोन पर समय लिया और मिलने गए। दोनोँ पति पत्नी घर में भी पूरी तरह ऐसे तैयार बैठे थे जैसे किसी बड़े आयोजन के लिये हुआ जाता है, अर्थात पूरे फॉर्मल, चाय व खाने के सामान भी पहले से तैयार थे| उनके घर में काम करने वाली भी दक्षिण भारतीय तमिल थी। सब घर की चीज़े भी बहुत कायदे से सजी थी। बातचीत सब कुछ केवल अंग्रेजी में, हम दोनों तो बीच बीच में हिंदी में भी कुछ कह देते पर वे उत्तर तो हिंदी में न देकर केवल अंग्रेजी में देते। उन्होंने बात-चीत के दौरान अपने बारे में काफी कुछ बताया जैसे कि वे पिछले लगभग पचास वर्ष से भी ज्यादा समय दिल्ली में ही रहते रहे थे, लोधी इस्टेट के डीटीईऐ तमिल संस्था द्वारा संचालित हायर सेकेंडरी स्कूल से उन्होंने अपना अध्यापन का कैरियर शुरू किया था| इस तमिल संस्था के अन्य विभिन्न स्कूलों में पढ़ाते रहे फिर प्रिंसिपल भी रहे, हिंदी समझते हैं पर बोलते नहीं थे।

उनके दो बच्चे, बेटी और बेटा हैं, दोनों ही अमेरिका में बस चुके थे, उनके अनुसार अमेरिका बस पढन और काम करने के लिये बहुत अच्छा है, पर उसके बाद वहां रहना या काम के बगैर रहने के लिये जाना बिलकुल बेकार है| वे दोनों कोई दस बार वहां जा चुके हैं, रह कर देख चुके है, एक बार छः महीने के लिये भी ताकि पूरी तरह जाँच ले कि वहां हमेशा के लिये रह सकते हैं या नहीं| और बाद में दोनों ने यह निष्कर्ष निकाला था कि न तो वे कभी वहां बाद में जायेंगे, न ही कभी वहां बसने की सोचेंगे या किसी को सलाह देंगें। बच्चों को मिलना है वे यहाँ आयें| उनका पुत्र एटलांटा में कंप्यूटर इंजिनियर है, बड़ी पुत्री प्रसिद्ध प्रिन्सटन यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर है| उसने वहीँ देर से अपने आप, अपनी पसंद से शादी की थी तथा अब 25 वर्ष से यूनिवर्सिटी में कार्यरत है, उस के पति की अच्छी बड़ी कंसल्टेंसी कंपनी है आदि आदि। घर में शंकरन सर का पूर्व राष्ट्रपति डा राधाकृष्णन के साथ एक फोटो, एक पति पत्नी का एक साथ फोटो, एक उनके पुत्र शेखरन व एक उनके धेवते का फोटो मेज पर सजे थे। कुल मिलकर अब उनकी यह ही फेमली है। पीछे तमिलनाडु में जो रिश्तेदार छूट गए थे उनसे अब संपर्क नहीं है। केवल श्रीमती शंकरन का छोटा भाई जो फ़ौज से रिटायर है, डिफेन्स कॉलोनी में अकेला रहता है क्योंकि उसका एक मात्र पुत्र भी अमेरिका में है। उनकी पंजाबी भाभी कुछ वर्ष पहले स्वर्ग सिधार चुकी थी| इन सब के बारे में श्रीमती शंकरन ने हमें बताया।

 हाँ चाय के साथ जो भी नाश्ता हमें सर्व किया था, सब उनके घर पर बना हुआ था, सब पर तमिलनाडु की छाप थी। उनसे मिल कर खूब अच्छा लगा था। एक औपचारिकता कहें या हमारे बीच संकोच की दीवार कुछ हद तक टूट गयी थी। पर एक बात साफ़ थी कि शंकरन साहेब का अहम् व अपने को सुपीरियर जताने में कोई कमी नहीं आयी थी जो उनसे बात करते दिखता रहता था| पर उनके और परिवार के बारे बड़ी पॉजिटिव राय बनी थी तथा उनके बारे में जो धारणा बनी थी उसमें परिवर्तन हुआ था| उनकी पत्नी से हम ज्यादा प्रभावित हुए थे| उनमें बनावट नहीं थी|

धीरे धीरे समय का पंछी उड़ता चला जा रहा था, उनसे घनिष्टता होती गई, उनका पुत्र शेखरन दूसरे  तीसरे साल कुछ  दिनों के लिये अकेला आकर चला जाता। श्रीमती शंकरन बाद में हमेशा मेरी पत्नी से शिकायत के अंदाज़ से बताती कि उनका बेटा अमेरिका से आकर या तो दो दिन बस सोता रहा या फिर अपने पुराने दोस्तों को ढूँढ ढूंढ कर उसके साथ घूमता  फिरता रहा था| फिर उनसे यह कह कर कि बिज़नेस के काम से बंगलोर व हैदराबाद  जाना है, जाकर पांच दिनों के बाद आया था फिर अगले दिन की रात को वापिस चला गया था| शिकायत के स्वर में कहती, “हम से क्या मिला? बस यहाँ आ कर सो कर चला गया|”

 उन्होंने शिकायत के अंदाज़ बताया था कि बच्चे चाहे जितने बड़े हों जाएँ माँ के लिये छोटे ही बने रहते हैं पर वे अब इसके लिये तैयार नही हैं इस लिये उनसे डांट खाते रहते हैं। अपने आप कितनी बुराई कर ले पर शंकरन सर कि क्या मजाल बच्चों के बारे में कुछ बोल सकें| उनकी खुद की दस गलतियाँ बताने लगती कि बच्चों से बेकार बहस करते हैं टोकाटाकी करते है| साफ पता लगता था कि घर और बच्चों पर पूरा अधिकार उनका है न कि इन्चार्जे शंकरन सर का| साफ़ था कि असली बॉस वे रहीं है, सर्विस में भी शंकरन सर अगर एक स्कूल के प्रिंसिपल रहे थे तो वे बीस स्कूलों की इन्चार्ज थी| एस तरह वे शंकरन सर से आगे थी केवल स्वास्थ्य को छोड़ कर जो दिन ब दिन गिरता ही जा रहा था| एक दिन  बाथरूम में गिर कर काफी चोट लग गयी उसके बाद कमर में दर्द तथा चलने में दिक्कत होने लगी | बेटे ने दूर से ही एक व्हीलचेयर,एक वाकिंग फ्रेम व एक वाकिंग स्टिक ऑनलाइन खरीद कर घर पर भिजवा दी पर खुद आकर देखने नहीं आया था|माँ तो माँ होती है अपना अधिकार जानती है इस लिये बेटे पर खूब बिगड़ी और आने का हुकुम सुनाया था|

फिर वे बार बार बेटे की बातें याद करती, बताती पढने में कितना अच्छा था, पिता की तरह मनघुन्ना भी है, जो मन में आता है वही करता है, अपनी बात को हमेशा ठीक मानता है, दूसरों की सलाह नहीं मानता, पिता की  तो बिलकुल भी नहीं, दोनों की बनती ही नहीं दोनों में ही अहम् या ईगो ज्यादा ही है। एक दिन आगे बताया, “शेखरन की शादी आईआईटी मद्रास से पढ़ी कंप्यूटर इंजिनीयर मेधावी सुन्दर व बहुत अच्छी लड़की से उन लोगों ने कराई थी, पर दोनों की नहीं बनी, एक साल भी शादी नहीं चल पाई, पहले कहा सुनी फिर लड़ाई, फिर अलग रहने लगे फॉर डिवोर्स फिर फाइनल डिवोर्स। वह भी सरकारी सीनियर ऑफिसर कि बेटी थी, उसकी माँ भी कॉलेज में पढ़ाती थी| बराबर की पढ़ी लिखी थी अच्छे जॉब में थी सो बहू में भी थोडा अहम् कहो या आत्मसम्मान हो सकता हो दबी न हो एसलिये टकराव हो गया। उन दोनों ने भी वहां अमेरिका जाकर रह कर दोनों को, समझाने की भरपूर कोशिश की पर दोनों में से किसी ने भी झुकने की जरा भी कोशिश नहीं की। अब दोनों वहीँ अलग शहरों में रह रहे हैं, बहू भी अच्छा जॉब करती है, बहू का नाम जयंती है, उसके माता पिता ने भी कोशिश की थी पर निष्फल रहे। मैं तो अपने ही बेटे का दोष मैं ज्यादा समझती हूँ एडजस्ट करना नही जानता।

 इस बात को पंद्रह साल हो गए थे डिवोर्स  भी हो चुका था । माता पिता  दूसरी कई तमिल ब्राह्मण कन्याओं को सुझाया पर शेखर को सुनना नहीं था नहीं सुना। उसे यह भी कहा अपने आप किसी को  ढूँढ ले पर कुछ नहीं हो पाया, हम इस काम के लिये पांच महीने उसके पास एटलांटा में रहे, जब भी कुछ नहीं हो कर सके व निराश होकर वापिस आ गए थे| इसके बाद अब कभी भी अमेरिका न जाने का निर्णय कर लिया है|

   कई बार कहती बहुत दुःख होता है कि बेटे को वहां अमेरिका में भेजा ही क्यों? हमेशा पढने बहुत होशियार रहा ,पर घर बसाने में, हमारा ध्यान करने में फेल। उसकी बात हमारी समझ के बाहर, हमारी का तो उसे ध्यान न ख्याल। वह हमें पैसा देना चाहता जो हमें नहीं चाहिए , पता नहीं क्या चाहता है, किस के लिये कमाने के पीछे पड़ा है, न आगे न पीछे ,पता नहीं अमेरिका ने उसे क्या बना दिया हैपता नहीं किस के लिये पैसा जोड़ रहा है क्या उस के मन में है?”

उन्होंने जनकपुरी का अपना बड़ा कोठीनुमा मकान बेच कर फ्लैट ले लिया था जिसे वे बेचना नहीं चाहती थी। वे कोठी को उन दोनों ने बड़ी मेहनत से बनवाया था| बहुत पैसा जोड़ जोड़ कर मेहनत का पैसा लगाया था| घर में  उनकी अनेकों यादे थी| वे नयी जगह नहीं आना चाहतीं थीं, शंकरन सर ही बस चाहते थे। ये सब बातें तथा बहुत सी और बातें जयालक्ष्मी शंकरन ने मेरी पत्नी को समय समय पर बतलाई थी, शायद अपने मन का गुबार निकालती हों उस के लिये भी तो कुछ निकास होना चाहिए।

 शंकरन सर की दुनिया तो उनसे कुछ अलग ही थी, वे तो अपने पढाये हुए उन स्टूडेंट्स कि बातें ज्यादा करते जो आईऐएस बन कर बड़े-बड़े पदों पर पहुँच गए थे तथा उनका अभी भी बहुत आदर करते हैं क्योंकि शंकरन सर बेहद अच्छे अध्यापक रहे थे। कभी-कभी बताते थकते नहीं थे कि उनसे मिलने उनके फल पुराने स्टूडेंटआये थे जो पहले होम सेक्रेटरी रह चुके हैं, कभी बताते कि दो  दिन पहले उनसे मिलने सीटीबीटी के चेयरमैन रहे पुराने स्टूडेंट उनसे मिलने आये थे तथा उनकी पत्नी भी आई थी वो भी उनकी विद्यार्थी रह चुकी है। वे गणित और इंग्लिश दोनों विषयों में ऍम.ऐ. थे तथा उनकी लिखी इंग्लिश ग्रामर की पुस्तक भी उन्होंने हमें दिखाई थी। उनके बच्चों के बारे में पूछने पर वो कहते थे  कि उनसे बात होती रहती है दोनों सेटल हैं। उनके अपने व्यक्तिगत जीवन के बारे में बात आने पर जल्दी विषय बदल देते थे।

 उन्होंने बातो बातो में यह भी बताया था कि वे नियमित रूप से योग व मैडिटेशन करते हैं तथा केवल होमियोपैथी या प्रकृति चिकित्सा से इलाज करवाते हैं, कि उनके होमियोपैथ डॉक्टर पास ही जनकपुरी में रहते है। उन्हें क्लासिकल संगीत का शौंक है, एमएस सुब्बालक्ष्मी का गायन उन्हें बड़ा प्रिय है जिसे वे रोजाना सुनते हैं और वे शास्त्रीय संगीत की बारीकियों को खूब अच्छा जानते हैं| योग शिक्षा उन्होंने ऋषिकेश में शिवानन्द जी से ली थी|

   समय बीतता गया और कुछ वर्ष बीत गए शंकरन  साहब में तो कोई परिवर्तन नहीं आया पर उनकी पत्नी शनै शनै कमजोर होती गई, चिडचिडी भी होती जा रही थी, घर से बाहर जाना बिलकुल कम हो गया था,  केवल अपने डॉक्टर के पास जनकपुरी या कभी कभी अपनी नौकरानी के साथ व्हील चेयर पर नीचे, लोगों से बात तो नहीं कर पाती थी क्योंकि किसी से ज्यादा परिचय बढाया नहीं था, पर व्हीलचेयर पर बैठी बैठी लोगों का आवागमन, खुली हवा, फूल पत्ती, हरियाली,सर्दियों कि खिली धूप में उन्हें अच्छा लगता। ऐसे ही कई और साल निकल गए| कोरोना के आतंक का समय आ गया था, लोग-बाग धीरे-धीरे घरों से कम निकलने लगे थे| शंकरन  दम्पति ने तो बिलकुल ही बाहर निकलना छोड़ दिया था,उनकी बहुत पुरानी नौकरानी या कहिये मैड थी जो सुबह से लेकर देर शाम तक रह कर पूरा काम करती थी, रोजाना मेट्रो से आती जाती थी, नाम था पद्मा, वह भी तमिलियन थी। केवल वही बाहर आती-जाती, सामान लाती, दूध के लिये बाहर दरवाजे पर थैला टांग रखा था दूधवाला उसमे दूध का पैकेट डाल जाता था। पद्मा को घर के अन्दर भी फेस मास्क लगा कर रखना होता था ,रहन-सहन का यह तरीका भी बहुत ज्यादा देर नहीं चल पाया।

 कोरोना का कहर बढ़ता जा था जिस से पूरे माहौल में एक अजीब दहशत थी। कुछ ही दिनों में कोरोना का प्रकोप दिन पर दिन बहुत तेज बढ़ता ही जा रहा था| वे दिन भी आ गए थे जब लोगों ने भी बाहर निकलना छोड़ दिया था , बाहर कर्फ्यू जैसी स्थिती आ गई ,सोसाइटी में मैड और दूध सब्जी वाले आने बंद हो गए केवल बाहर गेट पर सामान रख दिया जाता था, गेट पर आकर मास्क पहन कर लोग एक एक कर उठा कर ले जाते, टैक्सी, स्कूटर, इ-रिक्शा भी बंद होने लगी थी। सोसाइटी की महिलाऐं जिन की आदतें मैड पर या नौकरों पर निर्भर थी, अब  सब काम खुद करने में लगी रहती पर कुछ चारा नहीं था। सोसाइटी से भी काफी घरों में लोगों को कोरोना हो गया था। जब तक सवारी मिल रही थी पद्मा को बुलाते रहे टैक्सी से भी बुलाते भेजते रहे पर एक ऐसा भी दिन आया जब घरों से निकलना भी बंद हो गया था, जरुरी काम से निकलने के लिये शासन से ऑनलाइन पास लेना जरुरी कर दिया। केवल पास की दुकानों से सामान लेने निकलना होता, वहां भी सामान की तंगी रहने लगी थी।उनके घर पद्मा नहीं आ पाई| एक दो दिन तो शंकरन सर ने किसी तरह काम चलाया, फिर दो तीन दिन उनके पुराने स्टूडेंट्स के यहाँ से गेट पर उन का खाना बन कर आता रहा था, उससे काम चलाया फिर उसमें कठिनाई आ गयी। खौफ का ऐसा ही कुछ आलम था सब घरों में बंद थे बाहर नहीं निकल रहे थे| मैं तो पूरी सोसाइटी की समस्याओं से बुरी तरह से दिन रात जूझता रहा था, सब को अटेंड ही नहीं कर पा रहा था कैसे कठिन समय को निकाला जाए। सोसाइटी ऑफिस के मेनेजर को कोरोना हो गया था तबीयत ज्यादा ख़राब होने पर हॉस्पिटल में एडमिट किया गया पर उन्हें बचाया नहीं जा सका| इस से और भी भय व्याप्त हुआ| सोसाइटी फण्ड से और चंदा करके उनके परिवार को आर्थिक सहायत दी गयी थी|   

 काफी कठिन दौर था पर शांत रहने तथा बिना संयम खोये काम करने कि स्थितियां तो अपनी नौकरी में भी अनेक बार आयी थी, जब यू.पी. में हिन्दू मुस्लिम दंगों, तमिलनाडु के हिंदी विरोध आन्दोलन के भाषाई दंगे, गुजरात के नव निर्माण ऐजिटेशन,या पंजाब में खालिस्तान आन्दोलन व हिंसा का समय, कश्मीर में विद्रोह की डयूटी में  गुजारे कठिन समय में| ऐसे समय में लगता था कि वहा अब कभी ठीक नहीं होगा पर ऐसे समय में शांत रहने से सब ठीक हो जाता रहा है| कोरोना काल में भी लगता था अब नार्मल समय आना मुश्किल है, मुश्किल समय सारे देशों में था और कोई इससे अछूता नहीं था| पर अनुभव कहता था यह भी कभी न कभी  ठीक हो ही जायेगा। पर सबको अपनी अपनी मुसीबतें बड़ी लगती लोग बाग खूब बातें सुनाते, कोरोना लोगों की जानें लेता जा रहा था, हमारे आस पास कि सोसाइटी में भी कई असमय मोतें हुई।

खौफ और परेशानी के ऐसे ही समय कठिन समय में एक दिन  शंकरन सर का फ़ोन आता है कि उनकी मैड के बिना वे दोनों अगले कुछ दिन में ऐसे ही मर जाने वाले हैं क्योंकि उनके घर में खाना नहीं बन पा रहा था, मैंने उनसे कहा कि आप सबसे वरिष्ठ सदस्य हो क्यों आप ऐसा सोचते हो? पता चला था कि उनकी पत्नी की हालत तो बिलकुल भी ठीक नहीं थी, कमज़ोर तो थी ही बाथरूम में गिर भी गयी थीं| हिलना डूलना भी नहीं हो पा रहा था| उन्हें खाना बना सकना तो दूर उन्होंने कभी चाय तक भी नहीं बनाई थी, गैस को भी  कभी जला कर नहीं देखा था, सो घर में खाना नहीं बन रहा था। तीस साल से उनके साथ रहने वाली मैड और उस के बेटे से बात की कि वे पद्मा मैड को दिनरात की ड्यूटी के लिये भेज दें, वे इसके लिये बिलकुल तैयार नहीं थे। उन्होंने अपने पुराने बड़े पद वालों स्टुडेंट्स से भी कहा पर उन दिनों तो सब लाचार थे, सबको जान का खतरा| फिर यह तय हुआ कि वो मैड को किसी भी कीमत पर तैयार करें तो मैं उसे किसी तरह लाने के लिये एसडीएम से कर्फ्यू परमिट का प्रबंध करता हूँ, पर एसडीऍम ने साफ़ इंकार कर दिया था इस ग्राउंड पर नहीं दिया जा सकता|

 कर्फ्यू पास के बिना कोई आने जाने नहीं दे रहा था, कई दिन तक उनका खाना अपने घर से दे कर आया। उनको इडली सांभर, बड़ा चाहिए  था रोटी दाल, सब्जी से उन्हें बेमन पेट भरना पड़ा था| शंकरन सर ने तीन-चार  दिन बाद सूचना दी कि मैड तैयार हो गई है बशर्ते उसे घर से ले लिया जाये क्योंकि आने के लिये कोई सवारी कोई साधन नहीं है।

अब कैसे लिया जाये यह समस्या तो मेरी बन गयी थी। सुबह शाम का खाना खुद घर से बनवा कर भिजवाता  रहा ,मेरी पत्नी को मेरा इस हद तक जाकर दिन रात सोसाइटी के काम में इस कदर फंसे रहना बिलकुल पसंद नहीं था। कहती क्या तुम अकेले ने सबका ठेका लिया हुआ है? पर ओखली में सिर दिया तो मूसल तो लगने ही थे। मेरे अपने कभी सुनाये बोल मुझे सुनाये, मेरे पिताजी हिंदी से ज्यादा उर्दू जानते थे, उनका एक मुहावरा हुआ करता था, “खुदरा फजियत दिगरा नसीयत’’ यानि अपना तो फजीता संभाल नहीं पाते, दूसरों को  उपाय बताते फिरते है, क्या करना चाहिए। सो खुद कुछ नहीं कर पा रहा था अपना पुराना महकमा याद आया, मेरा  एक पुराना सहयोगी अब थोड़े दिन पहले ही दिल्ली पोस्टिंग पर आया था उस से बात की और उसके कहने पर  महिला बटालियन की कमांडेंट स्वयं सरकारी गाडी में पद्मा को उसके घर से बोरिया बिस्तर समेत लेकर सोसाइटी छोड़ गई थी| मुझे साँस में साँस आयी कि मैं उनके कठिन समय में निमित्त बन गया वर्ना ऐसे समय में कौन पूछता है| अब  शंकरन सर के घर का काम ठीक चल पड़ा था ,बड़े खुश थे कि किसी तरह उनकी जान बची, उनसे ज्यादा उनकी पत्नी जयाजी को संतोष हुआ, जिनका स्वास्थ्य अब दिन पर दिन गिरता ही जा रहा था|

 कोरोना का प्रकोप कुछ कम होने लगा। जया जी कई बार धीरे धीरे चल कर हमारे घर आ जाती, कई बार कुछ साउथ इंडियन डिश बनवा कर भिजवाती, कई त्योहारों पर कुछ रोली, चूड़ियाँ,मिठाई आदि सुहागन महिलाओं का  सामान मेरी पत्नी के लिये भेजती रहती थी। जब भी उनकी तबियत बिगडती जरुर याद करती, बुलाती| मेरी पत्नी तथा मुझ को ही अपना सबसे निकटतम मानती, अपनी बात साफ़ साफ बताती, कई काम  बताती जो हम दोनों  कर देते थे या करा देते थे । हम भी उन्हें अपना बड़ा मानने लगे थे, वो मेरी पत्नी से मेरे बारे में कहती  थी ये मेरा भाई है । रात बिरात भी फ़ोन कर देती थी हमें तो बुरा नहीं लगता पर शंकरन सर उन्हें तमिल में  कुछ समझाते जिसे वो सुनती पर बस करती थी अपने मन का। कई बार उनके बच्चों का हमारे सामने फ़ोन आता खूब गुस्सा होती कि उनसे मिलने के लिये क्यों नहीं आते? कई बार  उनसे फ़ोन पर बात करने से इंकार कर देती। कहती आ कर बात करो। हमारे सामने  शंकरन सर उन्हें उनके बिजी होने की, कुछ और कारण बता कर समझाने की व्यर्थ चेष्टा करते थे पर वो कब किनकी सुनाने वाली थी|

पद्मा तो हमेशा से जया जी से बहुत डरती थी, क्योंकि जरा सा गलती होने पर खूब डांट लगाती| जया जी का दिमाग तेज था, निगाह तेज थी, कोई गलती पद्मा छिपाना चाहे यह संभव नहीं था, संक्षेप में घर चलाने का  पूरा कण्ट्रोल जया जी के हाथ में था| उन्होंने ही पद्मा को काम सिखाये थे, जब उसके पति मर गए अपने घर में रखा था उसके बच्चों को पढाया लिखाया था। पद्मा उनके एहसानों को मानती थी इस लिये कान दबा कर उनकी डांट सुन कर अपना काम ठीक से करने कि कोशिश करती थी|

 शंकरन सर तो अंग्रेजी में बड़ी बड़ी बात सुनाते, किन बड़े लोगों से वे मिलते रहे, पुराने उपराष्ट्रपति के हाथ का लिखा उनका अपॉइंटमेंटलैटर दिखाते| उनका फाइल सिस्टम बहुत अच्छा था, यानि किसी को भी प्रभावित करने के लिये उनके पास अच्छा अनुभव व अभ्यास था, पर वो किसी को भी अपना मन नहीं खोलते, एक कठोर  आवरण में निवास करते थे। कोर्रोना का आतंक काफी कम हो जाने पर भी उनका न तो बेटा न ही बेटी आई। जया जी बहुत बिगड़ी , कहती, “मेरी जिन्दगी कि सबसे बड़ी गलती है कि बच्चों को क्यों  इतना पढाया, और फिर यूएसऐ भेजा, वो मेरे अब किस काम के जब मुझे ज़रूरत है| शंकरन सर तो ऐसे समय अम्मा से शुरू कर तमिल में बोलते रहते, संभवत उन्हें कहते रहते कि घर की  बात क्यों बता रही हो? या बच्चों को क्यों बुरा कह  रही हो, वे झुंझुलाजाती कुछ उन्हें डांट जैसा भी बोलती और मामला उस समय के लिये ख़तम हो जाता था।

हम लोग भी उनके घर में ऐसा गर्म माहौल होने पर उठ जाते। यह बहुत बार होने लगा था।

एक दिन वे हमारे घर पद्मा के साथ व्हीलचेयर पर आयी, मैड पद्मा को वापिस घर के काम करने के लिये भेज दिया। थोड़ी देर मैं साथ बैठा फिर कुछ घर के काम से बाहर चला गया था| दोनों महिला बतियाती रहीं, जब  घंटे भर में वापिस आया तब तक वे जा चुकी थी| मेरी पत्नी ने बताया वे अपने बच्चों के व्यवहार से परेशान  थी कि ऐसी औलाद किस काम की जो बुढ़ापे में बिलकुल परवाह न करे| पहले पढाओ, लिखाओ, योग्य बनाओ| फिर बाहर अमेरिका भेजो फिर हमें न पूछे, शादी अपनी मर्जी से, फिर न निभे तो तलाक भी बिना पूछे कर ले , वहां बुलाये पर एक मिनट का समय हमें न दे ,बस पैसा पैसा सब कुछ, कितना बड़ा मकान  चाहिए, कितना बैंक बैलेंस, बीमार माँ को देखने का, मिलने का समय नहीं। पिछली बार जब बेटी, आई दामाद साथ था, घर नहीं बल्कि होटल में ठहरे, दिन में घर आकर मिल जाते। कैसी आदत बिगड़ गयी है। लड़के ने तो पत्नी से बहुत पहले तलाक ले लिया, तबियत  ख़राब रहती थी सो सारा जेवर बेटी को दे दिया था, कहती कि पता नहीं अब कब तक साँस हैं। बच्चों से ही नहीं उन्हें पद्मा से भी शिकायत थी, बताया यह घर में काम करती थी जनक पूरी के पास गाँव में पति के साथ रहती थी| दो छोटे बच्चे थे पति भी शंकरन साहेब के स्कूल में चपरासी था| पर पता नहीं उसने क्या खा लिया था या किसी ने उसे खिले दिया था कि खून की उलटी हुई और इस से पहले किसी हॉस्पिटल में ले जा पाते बेचारा मर गया। कम उम्र दो छोटे बच्चे, कोई रिश्ते दिल्ली में नहीं, जयाजी को दया आई उन्होंने उसे अपने घर में ऊपर एक बरसाती में रख लिया था, इसे भी घर के काम सिखाये, सिलाई सिखवाई, बच्चों को भी स्कूल में पढवाया, 27 वर्ष से साथ है| जब वे जनकपुरी के मकान को बेच कर यहाँ शिफ्ट हुए इसे भी उत्तमनगर में एक छोटा मकान भी खरीद कर दिया हुआ है जिसमें वह अपने लड़के के पास रहती है| अब उसका भी नौकरी करता है, अच्छा पढा-लिखा है| पद्मा की बेटी की भी शादी भी हो गई है| वह अपने पति के साथ चेन्नई में रहती है। कहती अब इसका सब कुछ ठीक हो गया यह भी काम ठीक नहीं करती है, कभी एक बहाने कभी दूसरे बहाने से प्रॉब्लम होती जा रही है। अब कहने लगी है ‘बीमार रहती हूँ, मेरी भी उम्र हो रही है, थाइरोइड हो गया है’।

 जया जी को उसका हर समय घर पर रहना बिलकुल अच्छा नहीं लगता था पर उस के बिना काम भी नहीं चल रहा है। उन्हें दुःख था कि वह भी अब थोडी एहसान फरामोश हो गयी है।

पर उन्हें सबसे अधिक शिकायत और असंतोष और शिकायत अपने बच्चों को लेकर थी। कह रही थीं बच्चों की आयु 60 से ऊपर हो गई है क्यों अब तक नहीं समझते कब अक्ल आएगी? बेटा उन की समझ के बाहर था, किस के लिये पैसा कमा कर जमा कर रहा है? बेटी उसने भी बड़ी देर से शादी की। यहाँ दिल्ली यूनिवर्सिटी में अच्छी खासी प्रोफेसर थी पर नहीं अमेरिका में जाना है।

आगे कहा “हमें रिटायर हुए 27वर्ष हो गए हैं। हम से कहती है कि वहीँ आ जाओ। वहां उन्हें टाइम नहीं होता,  हम ने जाकर देख लिया वहां रहना संभव नहीं। अब वे वहां हम यहाँ। क्योंकि जैसी मेरी आयु और अवस्था है मेरे पास कितना टाइम बचा होगा? कभी भी हमेशा के लिये जाने वाली हूँ?”

जया जी का दर्द उभर कर सामने आ गया था, पर वो अकेले नहीं है आजकल बहुत से बुजुर्ग इस दर्द से गुजर रहें हैं। अकेले दिन गुज़ार है जब कि अब सबसे ज्यदासहारे कि ज़रूरत है| अब जो भी हो पद्मा के बगैर उनका रहना संभव नहीं है। थोडी देर बाद उन्होंने पद्मा को बुलवाया  और व्हील चेयर पर घर लौट गईं। पदमा डरने के साथ, इनका पूरा आदर करती है। पर शिथिलता तो आ गयी थी वह भी अब साठ के आसपास आयु कि होगी। पहले पदमा उन पर निर्भर थी, अब ये उस पर निर्भर हैं।अब उसका बेटा काफी ठीकठाक सर्विस कर रहा है,माँ को अच्छी तरह से रख सकता है, पर वह उनके अहसानों को भूली नहीं थी कैसे उन्होंने मुसीबत से अपने पास रख कर बरसों उसका और बच्चों को पला पोसा था, बच्चों को अच्चा पढाया लिखाया था उसे काम सिखाये थे|

ऐसे ही दो साल और बीत गए उनकी हालत और बिगड़ गयी, सुनना भी धीरे धीरे कम होकर लगभग बंद हो गया। सुनने की मशीन ले कर दी पर उन्हें पसंद नहीं आयी और वे उसका बिलकुल इस्तेमाल नहीं करती थी| एक बार बाथरूम में गिर गईं, हड्डी तो नहीं टूटी थी पर दर्द से कराहती रहती थी, असहाय होकर सब पर गुस्सा करती रहीं, शरीर कमजोर हो गया था पर दिमाग पूरा तेज रहा। पद्मा से पूरा हिसाब लेती, क्या किया सब कुछ पता रहता, बेटे का फ़ोन आता केवल एक बात कहती ‘कम हियर’, बाकी बात करना छोड़ दिया था। बेटे पर गुस्सा था पर उसके फोटो को निहारती रहती और बीच बीच में  बोलती रहती ‘बाबूऊ’ .....बाबू ऊ ...’देख कर दुःख होता पर क्या करें? न माँ ममता छोडती, न केवल बुलाने के अलावा कुछ बात बोलना या सुनना-सुनाना नहीं चाहती, उसे अपने पास बुला कर रखना चाहती थी|

 बेटा काम की बहुतायत होने का कारण न आने पर अडिग रहा, शंकरन सर, बिलकुल अछूते से, अप्रभावित से या तो इस विषय पर बात नही करते या बेटे का पक्ष लेते हुए कहते कि समझदार है, बहुत काम रहता है, सीनियर सिटीजन हो चुका है, मेचौर तरह से डिसीजन ही लेगा। बेटी के बारे में कहते कि जॉब के अलावा वह अपने एकलौते बेटे के यूनिवर्सिटी एडमिशन में व्यस्त है। कहने लगे थे कि उनकी पत्नी अब अपना काफी सोच समझ खो चुकी है, दिन में सोती है रात भर जागती है| वे अपने रूटीन बिगड़ने की बात ही करते तथा पद्मा की  बड़ाई करते नहीं थकते थे, जबकि जयाजी पदमा को देख कर गुस्सा होती रहती  और कहती ,’शी इज प्रोब्लम नाउ’|

एक सुबह सवेरे शंकरन सर का फ़ोन आया ,गुरु गंभीर स्वर में केवल बोले , “हर स्टोरी इस ओवर” ।

 सुन कर एक जोर का झटका लगा। बिलकुल विश्वास सा नहीं हुआ,

हम दोनों तुरंत उनके फ्लैट पर पहुंचे, आज जया जी शांत थी, चेहेरे पर भी पूरी शांति थी,लग रहा था जैसे बहुत अच्छी नींद में हों। कोई अच्छा स्वप्न देख रहीं हैं क्योंकि ओठों पर एक हलकी सी मुस्कान थी, आज चेहरे पर कोई तनाव या खिचांव नहीं था। आत्मा शरीर का पिंजरा छोड़ कर अनंत यात्रा पर जा चुकी थी, दिमाग में आया कि क्या वास्तव में अपने प्रिय स्वजन अंत समय हमें लेने के लिये आते है जैसा माना जाता है। क्या उनको देख कर ही यह हल्की स्मिति ओठों पर है। मेरी पत्नी अचानक खड़े से बैठ गई उसे चक्कर आ गया था। उसे संभाला उसकी तबीयत ख़राब लग रही थी। वो गुमसुम सी जया जी को देखे जा रही थी। उसे पानी पिलाया वह सोफे पर जा कर बैठ गयी। घर में सिर्फ शंकरन सर, पद्मा और हम दोनों थे और थी निष्प्राण जया जी की देह।  

शंकरन सर बिलकुल अप्रभावित से लगे , कोई प्रतिक्रिया नहीं , सुख दुःख में ऐसा समभाव केवल पढ़ा था देखा पहली बार था| मुझ से कहा कि जरुरी फोर्मलिटी करवा दें, आज शाम तक अंतिम संस्कार भी करना है, उनका  65 वर्ष का साथ एक क्षण में समाप्त हो गया था, जीवन संसार में जन्म से मरण तक ही सीमित है। साँस रुकी सम्बन्ध एक दम कट ऑफ। अब जो उनका  सबसे करीब था वही कह रहे है कि शाम से पहले उसकी देह का  अंतिम संस्कार करना है। यह भी बताया है कि उन्होंने दोनों बच्चों को भी सूचित कर दिया है, अगले क्षण बिना पूछे ही बताया कि उन्हें किसी का इंतजार नहीं करना है। फिर उन्होंने चार पांच फ़ोन किये सबसे से केवल संक्षिप्त सी तमिल में बात की। शायद अपने कुछ पुराने विद्यार्थिओं, कुछ मित्रों, शायद कुछ रिश्तेदारों को तमिल पण्डितों को।  सोसाइटी में हमने जयाजी का डेथ सर्टिफिकेट, अंतिम संस्कार के स्थान का बुकिंग, सूचना का नोटिस आदि करा दिए। लोगबाग आ आ कर हाथ जोड़ कर जा रहे थे, पदमा  का बेटा भी आ गया था तथा उस ने काफी जिम्मेदारी संभाल ली थी। थोडी देर में गंजे पर सिर में  मोटी चोटी वाले दो भीमकाय तमिल  पंडित आये। उन्होंने लम्बी मंत्र आदि से अंतिम संस्कार से पहले की प्रक्रियाएं कराई। आश्चर्य की बात यह  थी कि जो भी साज  सामान सामग्री  चाहिए थी सब शंकरन  सर के घर पहले से मौजूद था , जिसे पदमा पंडित जी के कहने से पहले ही प्रस्तुत करती जा रही थी, इस से स्पष्ट था कि जयाजी के अंतिम संस्कार के लिये चाहे वाले सभी सामान को शंकरन सर ने पहले से ही इन तमिल पण्डितों से पूछताछ कर खरीद लिया होगा। यहाँ तक कि जया जी को अंतिम यात्रा पर कौन सी साड़ी व अन्य वस्त्र पहनाये जाना है, श्रृंगार के लिये चूड़ियाँ, रोली और जाने क्या क्या अर्थात शायद पहले से सब तैयारी उनके जीते जी ही कर ली थे। स्वयं शंकरन  सर ने भी जो वेष्टी (धोती) कुरता आदि सब नए नए पहने लिये थे सब पहले से तैयार थे। शायद यह उनकी  दूरदर्शिता ही थी ,साथ साथ पहले से ही अंदाज़ा हो गया था कि कभी भी जया जी का निधन हो सकता है। पर यह  सब  थोडा अटपटा जरूर लग रहा था। सारे समय पदमा का पुत्र पूरी कारगुज़ारिओं का विडियो भी बनाता जा रहा था, उनकी  अमेरिका में बैठी बेटी गौरी भी फ़ोन पर विडियो के ज़रिये आँखों देखा हाल देखती जा रही थी रोटी जा रही थी। ज़रूर अफ़सोस हो रहा होगा कि वे माँ की बच्चो से मिलने कि इच्छा वह पूरी नहीं कर पायी थी उनक| जया जी को अंतिम समय और इसं अंतिम यात्रा के मौके पर भी वह नहीं थी | बेटा शेखर भी शंकर सर की तरह भावनाहीन दृष्टि से अंतिम यात्रा देख रहा था और उसे माँ को कंधा देना चाहिए था यह बात उसके दिमाग में आई नहीं लग रही थी क्योंकि वह ज़रा भी भावुक नज़र नहीं आ रहा था|  

बहुत ज्यादा तो नहीं फिर भी काफी लोग अंतिम संस्कार के लिये पहुचे तथा शंकरन सर के पुराने विद्यार्थिओं ने आगे बढ़ कर कार्य किया। जया जी का 90 वा वर्ष चल रहा था लम्बी उम्र पायी थी, तमिल पण्डितों ने पूरे धार्मिक कर्मकांड के साथ उच्च स्वरों में मन्त्र पढ़ते हुए वह सब कुछ कराया जो दक्षिण भारतीय अय्यर ब्राह्मण के लिये होना चाहिये था घर पर यात्रा से पहले भी तथा श्मशानघाट पर भी| एक सुंदर आत्मा अनंत में विलीन हो गईं थी। शरीर अग्नि को समर्पित, मुखाग्नि शंकरन सर ने की। दोनों बच्चे बाद में भी नहीं आये या आ पाए|

 समय का चक्र घूमता जा रहा था तथा मैं अपनी स्वयं के जीवन की रोज़मर्रा की समस्याओं में लग गया था, बीच बीच में शंकरन सर से मिलता रहता था| वे पहले से बेहतर दिख रहे थे शायद जया जी की दिनरात देखभाल के कारण  थक जाते रहे होंगे, ऐसा मैं सोचता था। पदमा भी खूब प्रसन्न दिखती, पहले से अच्छे कपडे पहने, पर जरुरत न होने के बावजूद अब वह हर समय पूरी तरह से शंकरन सर के साथ ही रहती थी, उनके घर जाने पर देखता कि अब वह बेपरवाह सामने कुर्सी पर बैठ कर अधिकार के साथ  बात करती थी, टीवी देखती, क्रिकेट मैच देखती तथा शंकरन सर खुश हो कर बताते कि उसका क्रिकेट ज्ञान उनसे भी ज्यादा है। यह एक बड़ा परिवर्तन था। जया जी के सामने उसकी ऐसी धृष्टता सोच भी नहीं सकती थी|

बच्चे भी अपनी जन्मदायनी माँ के मरने के बाद भी नहीं आने थे, सो नहीं आये| कई बार यह देख कर थोडा अखरता कि पदमा अब कार में शंकरन सर के साथ अगली  शंकरन सर की बराबर की सीट पर बैठ कर जाने लगी थी। दिल्ली है लोगों को क्या लेना देना पर फिर भी सोसाइटी की कुछ महिलाएं एक दो बार उन्हें साथ- साथ देख कर थोडा कानाफूंसी भी करती।

लगभग 6-7 महीने और निकल गए शंकरन सर से कुछ काम भी नहीं पड़ा, शंकरन सर से मिलना नहीं हुआ  था। अकस्मात एक दोपहर को नीचे ही मिल गए, उनके साथ उनकी पुत्री गौरी थी जो अमेरिका से आई थी। सोसाइटी में चारों और घूम रहे थे। बातों बातों में गौरी ने बताया की वह अभी एक महिना रहेंगी। यह भी बताया कि हो सकता है वे अपने पापा को अपने साथ अमेरिका ले जाएँ क्योंकि दिल्ली में तो भयंकर गर्मी पड़ने वाली है और प्रदुषण भी ज्यादा रहता है। शंकरन सर ने कुछ आपत्ति के साथ  बताया कि वो इस के बारे में सोच कर फैसला करेंगे। मैंने भी सहज समझ कर जाने के लिये समर्थन में कह दिया था कि अच्छा है घूम आयेंगें। पर  मुझे थोडा उनके बारे में पता था कि वे अपने मन की बात आसानी से बताने वाले इन्सान तो नहीं हैं।

 फिर कुछ दिनों के बाद के लिये हम दोनों दिल्ली से बाहर  चले गए हुए थे| रात को लगभग दस बजे गौरी का फ़ोन आता है कि वह एअरपोर्ट पर है वापिस जा रही है तथा उसकी पीठ में बहुत दर्द भी है, मैंने पूछ ही लिया कि  क्या शंकरन सर भी साथ हैं, सुनते ही जोर से बुक्का मार कर रोते हुए बताया,‘’नहीं’’ ।

मैंने पूछा, इसमें रोने कि क्या बात है, आपने तो पूरी कोशिश की होगी ही कोई बात नहीं है, सोसाइटी में हम सब उनका ध्यान रखेंगें।’

उस ने बताया कि उसे दुःख यह है कि वे अपनी बेटी की नहीं बल्कि नौकरानी की बात सुनते हैं, मानते हैं| मुझे थोडा आश्चर्य हो रहा था कि वह यह सब मुझे रात में फ़ोन कर क्यों बता रही है| मेरा और मेरी पत्नी का गौरी से ज्यादा मिलना जुलना नहीं हुआ था, थोडी बहुत बात ज़रूर हुई थी| उसने आगे बताया-

 “पिछले एक सप्ताह से मेरे पापा ने मेरे से बोलचाल बंद कर दी थी,  जिंदगी में अपने ही घर में मेरी इतनी बेईज्ज़त कभी कहीं नहीं हुई थी, पहली बार अपने घर से आ रही हूँ कि दरवाजे पर भी किसी ने विदा नहीं किया, मेरी माँ के सामने यह कभी संभव नहीं था| यह बेइज्जती भी उस इन्सान से जिस का मेरे सिवा कोई ध्यान नहीं करने वाला है। मुझे पता है कि मेरे पिता अलग तरह के इन्सान हैं मेरी माँ ही इन्हें संभाल सकती थी, इनकी ईगो कितनी बड़ी है, इनका फिक्स्ड माइंडसेट है, औरों से तो औरों से हमसे भी गेम खेलते हैं, अपने आप को विक्टिम बना कर पेश करते हैं विक्टिम कार्ड खेलते हैं दूसरों को सता कर अपने आप को सताया बताते हैं ,मेरा  भाई भी ख़राब नहीं है इनका सारा सामान, सारी सुविधाएँ हम दोनों ने बना कर दी हैं पर कभी एकनॉलेज नहीं करेंगे, दुनियां को यह दिखायेंगे कि यह बहुत बड़े स्कॉलर हैं, बहुत सैक्रिफाइस करके बच्चों को योग्य किया और इनके बच्चे इनका बिलकुल ध्यान नहीं करते| सिर्फ माँ के सामने इनकी नहीं चलती थी सारा कुछ मां ने किया , लास्ट में वे बेचारी लाचार हो गयी इन्होने हमेशा अपनी मनमानी की और कर रहें हैं। माँ आपको अपना भाई बताती थी या नहीं  मुझसे पूछा? इसलिए आपको बता कर जा रहीं हूँ| फिर कुछ सोच कर बोला, “सॉरी आप को रात को फ़ोन कर तंग किया|” कुछ देर साँस लेकर फिर और भी बहुत सी चीज़ें उसने कही||

 मैं सुनता जा रहा था, फ़ोन के बाद सोच रहा था कि यह बात तो सच कही कि जया जी ने एक बार मेरा हाथ पकड़ कर मुझे अपना भाई भी बताया था, आधा घंटा वह यह सब बोलती रही थी  मैं स्तब्ध सुनता रहा था, बीच बीच में पता करती रहती थी सुन रहा हूँ या नहीं।

फिर सांस लेकर कहा “मेरी मज़बूरी का, कोविड का सर्टिफिकेट न होने का, मेरे बीमार होने का, मेरे पिता ने  कभी किसी को कभी नही बताया होगा, सब सोचेंगे माँ बीमार थी और बच्चे वहां अमेरिका में मजे कर रहे हैं, मुझे फॅमिली से दुःख नहीं हैं पर समझ में नहीं आता कि पापा जो इतने आदर्शवादी बनते हैं इस उम्र में इस नौकरानी के साथ इस तरह से कैसे रह रहे है ,बात यह है इनकी अपनी सारी और माँ की फैमिली  पेंशन आती है ,पापा से जो चाहे खर्च  कराती है, इसका खुद का खर्चा ही नहीं, बल्कि इस मैड की शादीशुदा बेटी व बेटे का परिवार पर भी पापा अब खूब खर्च कर रहे हैं तथा मुझ से छुपाते हैं। इस बार मैं अपनी माँ के घर भी उधार जैसी थी और वो मालकिन सी रह रही थी। मेरी माँ जब तक थी जब मैं यहाँ से जाती थी घर के  नीचे तक छोड़ने जाती थी,वह अंतिम समय में पीड़ा में थी, शरीर की भी मानसिक रूप से भी।”

“माँ के अंतिम संस्कार और दर्शन में आने के लिये भी उन्होंने मना कर दिया था कि वे इंतज़ार नहीं करेंगे। बाद में कभी आ जाना, सब सोच रहे होंगे कैसे बच्चे हैं| खैर यह मेरी गलती है कि उनके जीते जागते मुझे समय निकल कर आ जाना चाहिए था|”

 फिर फ़ोन पर  शांत हो गई शायद अपना मन का गुबार किसी को कह कर हल्का कर लिया था, फिर मुझ  से क्षमा माँगी कि रात को डिस्टर्ब किया, चलने से पहले एक काम सोंपा ‘”पापा कैसे भी हैं पर हैं, तो पापा ही इनका ध्यान रखना तथा  कुशलता के लिये बीच बीच में मुझे सूचित करते रहना”। उस के बाद वह न्यू जरसी, यू.एस.ऐ. के लिये रवाना हो गई थी|

 तीन दिन बाद सवेरे सवेरे के समय फ़ोन की घंटी सुन कर सोता हुआ उठा, गौरी का फ़ोन था| उसने बताया  कि उसने आकर अपने पापा को अर्थात शंकरन सर को फ़ोन किये, मेसेज भी किये पर उन्होने कोई जबाब नहीं दिया मेरा फोंन उठाया भी नहीं। मैंने उसे आश्वासन दिया कि यहाँ शंकरन सर के घर सब ठीक है, शंकरन सर को पार्क में घूमते भी देखा था. अपने लिये गौरी ने बताया कि उन्हें परेशानी के अवसाद है जिस के कारण न्यूरोलॉजिस्ट तथा साइकोलोजिस्ट, दोनों से इलाज कराना पड़ रहा है| उसे डर लगता है कि उसके पापा को कभी भी रात में मारा जा सकता है, उसने अपने  दिल्ली के घर में बहुत ज्यादा पॉवर कि नीन्द की गोलियां पायी थी, पूछने पर पद्मा ने बताया था कि वे गोलियां  उसकी माँ के लिये आई होंगी| पापा वैसे ही मुझसे नाराज थे सुन कर और ज्यादा भड़क गए थे। पद्मा और उनका बेटा अगर उन्हें  नींद कि गोली की ओवर डोज़ दे दें, बस सोते ही रह जायेंगे, सब सोचेंगे उम्र तो बड़ी हो ही चुकी है प्राकृतिक मौत हुई होगी|

मैंने उन्हें आश्वासन दिया कि सोसाइटी में हम सब उनका  ध्यान रखेंगे तथा ऐसा कुछ नहीं होगा।अपने मन से ऐसे विचार् ना लाये| पर बात थोडी तो सही थी, अगर शंकरन सर को नीद की गोलियां चुपचाप खिला दी जायें फिर जो मर्जी करो। कोई भी उनकी मौत को उनकी लम्बी उम्र के कारण किसी प्रकार का शक नहीं करेगा।

 यह सब सुन कर सोच विचार कर अगले दिन मैंने पद्मा को ऑफिस बुला कर हिदायत दी कि उन्हें शंकरन साहेब का पूरा ख्याल रखना है, कहीं भी चूक होने पर पुलिस उसी को पकड़ेगी फालतु तंग करेगी, अतः सोसाइटी को उनके बारे में पूरी तरह से सूचित कर के रखना उसकी जिम्मेदारी है। हमारा मकसद केवल इतना था कि शंकरन सर के साथ कोई गड़बड़ करने का दुस्साहस न करे साथ साथ ज्यादा ध्यान रखा जाये| कहते थोडा दुःख भी हो रहा था कि लोग गरीब पर ही शक करते हैं, भले ही वे कितने ईमानदारी से काम करते हों|

 हालांकि मुझे उनकी बेटी की बात सुन जान कर दुःख के साथ शंकरन सर का बेटी बेटे के प्रति इतने सख्त रुख का व्यवहार रखने पर, उनके बारे में सर के बारे में राय काफी बदली हो गई थी। पता चल गया था कि शंकरन सर का बाहर दिखने वाला स्वरुप और अन्दर का असली रूप अलग अलग हैं, इसे ही दोहरा व्यक्तित्व या डबल पर्सनालिटी कहा जाता है। उसके बाद कई बार उनसे मुलाकात हुई अपने आप ही मुझे इम्प्रेस करने तथा अपना निर्णय ठीक समझाने की कोशिश करते कि यूएसए तो भौतिकवादी हैं, उनके पास भारत जैसी कल्चर का नितांत  अभाव है, बस धन चाहिए वही उनका अभीष्ट है| उनके  स्वयं के बच्चे भी वहां रह कर वैसे ही हो गए हैं। बात गलत तो नहीं थी यह मैं जानता हूँ पर उनकी प्रतिक्रिया भी तो शायद ठीक नहीं थी| मैं भी भ्रमित हो जाता था कि क्या ठीक है और क्या गलत? अपनी अपनी जगह दोनों ही ठीक लगते|

“मैंने कई बार वहां जाकर रह कर देख लिया है हम दोनों ने मिल कर ही वहां ना जाने का निर्णय सोच समझ कर किया था, क्योंकि हमारे लिये बच्चों के साथ  भी वहां रहना संभव नहीं है।”

यह बात शंकरन कई बार यह बात दोहराते रहते थे|  

 मैंने उन से बताया कि गौरी तो आप को कुछ समय के लिये जाने का कह रही है न कि वहां बसने के लिये वह भी भयंकर गर्मी के समय जब दिल्ली में बेहद ख़राब मौसम रहता है| उस के बाद उन्होंने अपनी वाक्शक्ति से इतने तर्क दिए कि मुझे चुप हो जाना ही ठीक लगा। उन्होंने यह भी बताया कि गौरी की तबियत ख़राब रहने   के कारण उसे जल्दी कुछ जाना पड़ा है, यह भी कि वे उससे लगभग रोजाना बात करते हैं, कतई आभास नहीं होने दिया कि बाप बेटी के बीच शीतयुद्ध चल रहा है। उनका कहना था कि वहां अधिकतर लोग अपनर बूढ़े माँ- बाप को अपने पास न रख कर ओल्ड एज होम में रखते हैं|  उन्होंने बताया कि गौरी उंनसे भी कर्नाटक के ओल्ड आगे कि बडाई कर रही थी तथा उसे देखने कि बात कर रही थी जो उन्हें बिलकुल पसंद नहीं था|

 साफ़ था कि वो अब गौरी के कथनानुसार विक्टिम कार्ड खेल कर अपने आप को बेबस विक्टिम सिद्ध करना चाहते थे। अपने बच्चो व अमेरिका और उनके सोच को दोषी समझते हैं| शंकरन सर की बात सुनो तो लगता है वे ब्रह्म सत्य, तत्वज्ञान और नेक नियती की मूर्ति है, किसी को जरा भी परेशान नहीं करते होंगे। कभी लगता है कि ये योगी हैं, तत्व ज्ञानी हैं मोह माया से दूर। ‘अयं निज परोवेति’ की भावना से ऊपर उठ कर सोचते हैं पर निश्चित रूप से यह नहीं समझ में आता कि पद्मा को अब दिन रात रखने की क्या मज़बूरी है? जब कि उसका अपना घर पास ही है, क्यों वह महंगी साडियां पहन कर शंकरन सर की बगल में बैठ कर बाहर घूमने लगी है? यहाँ भी वह कहते थे कि वृद्धावस्था में एकाकीपन या लोनलीनेस सबसे ज्यादा तकलीफदेह चीज़है|   

 उनका जन्मदिन आने वाला है यह बेटी ने बताया और अनुरोध किया कि उनके बर्थडे पर उसकी तरफ से फूलों का गुलदस्ता भिजवा दूं, शायद सोचा कि उनके पिता उस दिन उसका फ़ोन उठा लेंगे, बात कर लेंगे, पर उन्होंने तो पसीजना सीखा नहीं सो नहीं उठाया, बेचारी निराशा से अवसाद में में न जाएगी तो कहाँ जाएगी? शंकरन सर को समझना टेढ़ी खीर हैं, उनके मन क्या चल रहा है यह तो लुकमान हकीम भी नहीं जान पायेगा?

पर उनकी बेटी की बात सुनो तब लगता है उनका बाहरी संत रूप तो मुखौटा है तथा असली रूप बहुत कठोर है, हद दर्जे का जिद्दीपन, दूसरे को सता कर आनंद लेते है, जिसे अंग्रेजी में ‘सैडस्टिक प्लेज़र‘ कहते हैं, जिस के लिये वे अपनी बेटी को भी नहीं बख्शते जो उनके व्यवहार से इतनी परेशान है , उसे इतनी मानसिक पीड़ा है कि वह डिप्रेशन में चली गयी है वह अपने पिता के प्रति अपनी ड्यूटी निभाना चाहती है ,उसके लिये एक महीने से ज्यादा रह कर, अपने काम को छोड़ कर आयी, उन्हें कुछ दिन के ले जाना चाहती है, वे अपनी जिद अपनी ईगो पर अड़े हैं तथा बेटी से ज्यादा विश्वास अपनी नौकरानी पर कर रहे हैं। किसी भी दिन कुछ लिखा कर नींद की गोली से हमेशा के लिये सुला देगी, या अपने आप ही चले गए, यह सोच सोच कर वह अवसाद पीड़ित है| वह तो यह भी कहती है कि वह अपने काम से अवकाश लेकर दिल्ली में भी उनके पास रहने को तैयार है, चाहे उसे इस के लिये कितनी भी तकलीफ हो पर उसके पिता इसके लिये भी भी तैयार नहीं है, वह इसके लिये भी तैयार है कि पद्मा भी वहीँ रहे, पद्मा में क्या बात है कि उसके पिता जो पद्मा कहे सब मंजूर और जो उनका अपना खून कहे, चाहे कितना भी ठीक हो, फिर भी वह बिलकुल  नामंज़ूर यह कैसी विचित्र स्थिती है? क्या पिता में जरा भी मेरे लिये संवेदनशीलता नहीं है, या कहती कि उसे किसी बात के लिये दंड दिया जा रहा है.क्या इस लिये कि माँ के मरने पर नहीं आ सकी? – यह भूल जाते हैं उन्होंने खुद इसके लिये मना किया था।

 इस बीच थोडी और घटनाएं हुई, शंकरन सर के जन्मदिन से पहले गौरी से हम दोनों से अनुरोध किया कि उन्हें गौरी कि तरफ से एक फूलों का गुलदस्ता भेंट कर बताएं कि वह उसने भिजवाया है, उसके बाद शायद वे कुछ पिघल जाएँ और बंद हुई बात शुरू हो जाए, पर ऐसा नहीं हो पाया था उस दिन भी गौरी का फ़ोन नहीं उठाया था| इतनी आसानी से वे कहाँ बात मानने वाले थे| गतिरोध बना ही रहा था| पर वह भी कह रही थी कि वह अपनी कोशिश करती रहेगी| कह रही थी कि अब वह उनसे अमेरिका आने के लिये अनुरोध नहीं करेगी जब वे उसी तरह से खुश हैं| यह भी कह रही थी कि अब उसे अब पद्मा के उनके पास रहने में कोई एतराज है|

कई बार हम दोनों उनके बारे में बात करते कि हमारे लिये तो शंकरन सर और उनकी पत्नी अपने परिवार के बड़े बूढों जैसा व्यवहार करते आये हैं| अब घर वाले तो दूर रहते हैं अतः हम तो उन्हें पूरा सम्मान देते रहेंगे| गाँव में कहावत है जिसमे बहुत सार है| ‘घर का दूर पडौसी नेड़े’ अर्थात जब घर वाले दूर रहते हों तब  निकट पडौसी ही ज्यादा महत्वपूर्ण होते हैं| वही दुःख सुख में काम आते हैं| बिलकुल प्रैक्टिकल बात है|

 सोचने की बात है यह सब स्थिति, क्या पीढ़ियों के बीच का संत्रास है ? या वयोवृद्ध और नई पीढ़ी के बीच का? या फिर पूर्व और पश्चिम की मान्यताओं और सोच का? या फिर शिक्षित व आधुनिक बेटी और पुरातन शिक्षित पर अड़ियल बाप का था बस?

 जो अब हो रहा है जो पहले नहीं होता था, बड़े  परिवार टूट कर अब छोटे हो गए हैं|  संयुक्त परिवार व्यवस्था  चार मारा गयी है|  पीढ़ी दर पीढ़ी साथ रहे परिवार अपनी जड़ों से उखड उखड कर दूसरी जगह चले गए हैं| पैसा और सम्पति मुख्य मुद्दा बन गए हैं| शंकरन सर भी अपनी दो-अढाई करोड़ के फ्लैट के नॉमिनेशन कई बार बदल चुके हैं| सुना है कि अपनी ‘विल’ में उन्होंने पद्मा को भी शामिल किया हुआ है कि उनके मरने के बाद वह जब तक जीवित वह उसमे रह सकती है

फ्लैट का  नोमिनेशन पहले अपने  सिर्फ बेटे के नाम किया था| बेटे से नाखुश होकर बेटे –बेटी दोनों के नाम किया| फिर केवल बेटी के नाम कर दिया साथ में बेटी के इस बार आकर जाने के बाद उस का नाम भी हटवा दिया तथा अब अपनी एक मात्र तीसरी पीढ़ी के अपने धेवते के नाम कर दी है| उनके दिमाग या मन में क्या क्या चल रहा है किसी को मालूम नहीं है? जो उनको ठीक लगता है बस कर देते हैं| उनकी लाईफ पोजीशन है मैं जो करता हूँ वही ‘ओ के है‘ व ‘ ‘दूसरे सब नोट ओ के हैं’|

उन्हें पूरा विश्वास है कि वे सौ वर्ष तक आराम से जियेंगे तथा इस के लिये प्रयास भी करते रहते हैं जैसे नयमित जीवन, नापा तुला भोजन|  उसका परिणाम है इस उम्र में भी कार में पद्मा को बैठा कर कभी कभी घूम आते हैं, कोई आँख का चश्मा भी नहीं लगाते क्योंकि ज़रूरत ही नहीं है| अपने डी.एन.ऐ.अच्छे वाले बताते है कि उनके माता पिता लगभग सौ साल तक जीये हैं|

  युधिष्टर ने यक्ष-प्रश्न संवाद के दौरान जब यह पूछ गया कि दुनिया में सबसे बड़ा आश्चर्य क्या है तब प्रश्न के उत्तर में बताया था कि  विश्व में इसे ही सबसे बड़ा आश्चर्य है कि सब को पता है कि म्रत्यु निश्चित है पर लोग ऐसे जीते हैं कि जैसे उन्हें कभी मरना नहीं है|

.’शंकर सर को उनकी प्रबल जिजीविषा व जीने के अंदाज़ को बड़ा सलाम देना तो जरूर बनता है| नब्बे कि आयु तक भी कितने बिरले होते हैं| उनका यह मानना कि वे 100 वर्ष तक अवश्य जियेंगे बड़ी मुश्किल बात है जब हमें अगले ही क्षण का मालूम नहीं है क्या होने वाला है? किसी कवि की पंक्तियाँ मन में आती हैं,”कौन गया निश्चय से सोने देखेगा वह जाग सवेरा|”

किस्सा ख़त्म नहीं हुआ पर इस के आगे क्या आने वाला है, भविष्य के गर्भ में है उसका इंतजार करना पड़ेगा।  

फ़िल्मी अंदाज़ में कहें कि ‘अभी तो इस कहानी का ये ट्रेलर है, पिक्चर अभी बाक़ी है|

अभी तो  शंकरन सर पद्मा को बराबर में बैठा कर कार चलाते नज़र आते थे, पहले से ज्यादा रंगीन शर्ट या टी-शर्ट पहन रहे थे, जैसे कहीं उन्हें पुनःयौवन का कोई फार्मूला च्यवन ऋषि की तरह तो नहीं मिल गया था, हमारे  हरियाणा के देशी सोसाइटी मेम्बर बलबीर सिंह कहते सुने गए थे कि भाई लोगों ‘ये मद्रासी बुजुर्ग तो सींग कटा कर बछड़ों में मिलना चाह रहा है, इसे अब बुढ़ापे में अंघाई सूझ रही है|”

’एक पंजाबी मित्र हंसते हँसते कह रहे थे ‘चढ़ी जवानी बूढ़े नू अभी जनानी नु मरे साल ही हुआ है|” किस किस के मुंह बंद कराते|

 लोगों की छीटाकसी सुन कर हंसी आती साथ साथ दुःख भी होता था कि सोसाइटी के वरिष्ठतम सदस्य और सम्मानित हैं, अगर उन्हें ‘शरदः शतम्’ जीने की जिजीविषा है,अच्छी तरह कमउम्र वालों की तरह के कपडे पहिनते हैं तो इस में तो इसमें बुराई क्या है? थोडा उनमें सुपरयरटी कॉम्पेक्स है,अंग्रेजी में ऐसे व्यक्ति के लिये जो अपने को सब से अच्छा व प्रतिभावान समझते को, कर्स ऑफ़ जीनियस  या प्रतिभावान शाप भी कहा जाता है| पर मेरा मन नहीं समझता  कि था कि शंकरन सर ऐसे हैं| वे अपने को जीनियस नहीं तो बेहतर तो समझते हैं, बाकि उन्हें क्या समझते है| पर ज्यादातर सोसाइटी वाले उन दिनों उन के बारे में क्या राय रखते हैं| वे भी महिलाओं के बारे में अच्छी राय नहीं रखते थे वह अलग बात है| वे जर्मन लेखिका एस्थर फिलर की मशहूर पुस्तक ‘मेनिपुलेटे मैन’ के बारे में बताते कि उसे पढ़ें जिसमे लेखिका ने शोध के बाद नतीजा निकाला कि किस प्रकार पुरुषो कि देखभाल करके स्त्रियाँ उनका शोषण करती आयी हैं| वे अपने लिये और अपने बच्चों की ताउम्र देखभाल  उनसे करवाती आई हैं| लेखिका के अनुसार यह आदिकाल से होता आया है| विद्वान् लेखिका की यह बात सच हो या ना हो आप मानों या ना मानो तो इतना तो सच है कि पद्मा भी उनकी देखभाल के एवज में अपने बच्चो और नातियों के लिये शंकरन सर से खूब खर्च करवाती रहती है और स्वयं भी खानपान और रहने का स्तर ऊँचे                   से ऊँचा करती जा रही थी|                                                                                                                         

 खैर दूसरी से सोचें यह सहजीविता भी है जिससे दोनों ही पक्षों को लाभ हो रहा है| जिसे अंग्रेजी में सिम्बायोसिस कहते है| विज्ञानं में भी इसी शब्दावली का प्रयोग होता है वहां दो जीवधारी ‘म्यूच्यूअल गेन’ के कारण साथ रहते हैं|

आजकल समाज में परिस्थितियां व मान्यताएं तेज़ी से बदली है| आजकल जब बच्चे विदेशों में जाकर बस गए हैं और माँ बाप अकेले रह गए हैं, अब जोइंट फॅमिली बची ही नहीं हैं| इस से बहुत परिवारों में दो पीढ़ियों के बीच  भारी संत्रास हो रहा है| यह बड़ा शॉक बहुत परिवारों को तंग कर रहा है| तब यह कहानी केवल शंकरन सर की ही नहीं रह जाती, उन सब परिवारों की हकीकत है, जिसमें वृद्ध यहाँ पड़े हैं संतान विदेश में| अकेले बुज़ुर्ग क्या करें उन्हें भी कुछ ऐसा ही रास्ता मजबूरी में ही निकालना ही पडेगा, जिससे उनका अंतिम समय का जीवन चलता रहे | केवल बच्चो पर निर्भर न रहे| शंकरन सर को ही ले लीजिये तीन साल पहले जब इनकी पत्नी का निधन हुआ दोनों बच्चों में से एक भी तो नहीं आकर फटका था| ऐसे मुसीबत के समय जो काम आया वही तो महत्त्वपूर्ण है| बेटी के सोचने का तरीका और है पिता का और है पिता की पीढ़ी और संस्कार और हैं पुती के कुछ और| पिता और बेटे में तो कभी ज्यादा बनी ही नहीं थी| बेटा तो उतने पचड़े में भी नहीं पड़ा जितनी पुत्री, उस के हिसाब से उसकी यह  ‘प्रॉब्लम’ नहीं है जो उसके हिसाब से कोरे ‘सेंटीमेंटलइस्म’ के अलावा कुछ नहीं है| उसको तो माँ ही थोडा खींच देती थी, वह तो निरंकुश ही रह रहा है|

इसी तरह का डेडलॉक पिता पुत्री में चलते लगभग एक साल हो गया था, दोनों में कोई भी झुकने को तैयार नहीं था| लगता था की अब कभी सुलह समझौता संभव नहीं होगा|

मैं पडोसी होने के नाते बीच बीच में शंकरन सर से मिल लेता था, मुझे स्वयं के बारे में बताते रहते थे कि वे बहुत नियम से रहते हैं, सावधानी बरतते हैं, खाना सिर्फ़ अपना दक्षिण भारतीय डोसा, बड़ा, इडली सांबर, कर्ड  राइस खाते हैं| इसी लिये कभी बुखार भी नहीं आया, न ही एलॉपथी की दवाई लेते हैं, ज़रूरत पड़ने पर या तो प्राकृतिक चिकित्सा या होम्योपैथी का ही प्रयोग करते हैं, वे कभी कोई वेक्सिनेशन नहीं लेते हैं कोविड का भी  नहीं लिया था| पर उनकी बातों से कभी कभी लगता था कि वे अपनी बेटी से शायद जुड़ना तो चाह रहे हैं पर  पहल नहीं करना चाहते, न ही बिलकुल भी अमेरिका जाना चाहते|

दो सप्ताह पहले कुछ अचानक एक अप्रत्याशित हो गया| रविवार का दिन था लगभग 11 बजे की बात है मैं अपने फ्लैट मैं अपने  तीन पडौसी मित्रों के साथ बैठा था| हम आराम से चाय पी रहे , बातचीत कर रहे थे| खुश नुमा दिन था गुलाबी ठण्ड में आज अच्छी धुप खिली हुई थी|  एक सप्ताह पहले मैं अपने पुत्र के पास देहरादून में रह कर आया था| तीन दिन पहले शंकरन सर की कड़क कॉफ़ी पर उनका कुशल क्षेम भी पूछा था| हमेशा की तरह ही स्वस्थ और ठीक ठाक थे| उनकी लगभग वहीँ बातें थी|  वे न सावन सूखे न फागुन हरे थे मौसम और प्रदुषण की शिकायत भे उन्होंने की| पर इस बार उन्होंने अमेरिका का ज़िक्र किया और कहने लगे अगर डायरेक्ट फ्लाइट से बिज़नेस क्लास में किसी के साथ जाएँ तो ज्यादा मुश्किल नहीं होना चाहिए| मैंने उनसे पूछ भी लिया था कि उनका कुछ प्रोग्राम या विचार है क्या?  तो एक दम मुकर गए| कहा है कि अब तो उन्होंने न पासपोर्ट न वीसा रिन्यू कराया न ही करायेंगे बस यूं ही पूछ रहे थे|

हां तो जब रविवार को चाय पीना शुरू ही किया था, दो चार ही घूँट गले के नीचे गई थी कि शंकरन सर की पद्मा मैड हाँफती दरवाजे पर आई और बोला, “अंकल जल्दी आओ”,और कह कर वापिस भागती हुई सी चली गयी| मैं और मेरे मित्र चाय छोड़ छाड़ कर उनके फ्लैट में लपक कर पहुँच गए| शंकरन सर अपने पलंग पर बुरी   हालत में पड़े थे, उनका शरीर बिलकुल अकड़ा हुआ था, उनकी आँखे पीछे की और उलटी चढ़ी थी और ब्लेंक थी, साँस खड खड की उखड़ी आवाज़ के साथ बड़ी कठिनाई के साथ आ पा रही थी| लग रहा था उनका अंतिम समय आ गया था| साथ आये पडौसी ने उनके सीने को दबा कर पीसीआर शुरू कर दिया| एक मित्र ने दूसरे ब्लाक में एक रिटायर्ड डॉक्टर हैं, उन्हें फ़ोन लगाया पर घंटी बजती रही उठाया नहीं|

 मेरे फ्लैट के ठीक ऊपर भी एक युवा परिवार रहते हैं, पति इंजीनियर और पत्नी हॉस्पिटल में कार्डियोलॉजी विशेषज्ञ डॉक्टर हैं, उन्हें अच्छी  मैंने जाकर उनकी घंटी बजाई, लेडी डॉक्टर साहिबा ने ही दरवाजा खोला, मैंने घबराई आवाज़ में बताया की मेडिकल इमरजेंसी है, साथ चलें| वह भी जैसी हालत में थी तुरंत नीचे शंकरन सर के यहाँ आ गयी, मेरे मित्र उन्हें पीसीआर दे रहे थे, डॉक्टर ने आते ही उन्हें रोका| उन्होंने मरीज़ को अच्छी तरह से देखा परखा, उनके पैरों के नीचे तकिये लगवाये, उनके कान के पास जाकर जोर से कहा ”अंकल, आप मुझे सुन सकते हो तो अपनी एक ऊँगली हिलाओ|” पर शंकरन सर, निश्चेष्ट रहे वे पूरी तरह से बेहोश थे, पर साँस की खडखड़ाहट कुछ कम सी हुई लग रही थी| डॉक्टर ने धीरे से बताया “हार्ट अटैक या कार्डियक अरेस्ट नहीं लग रहा है बल्कि ब्रेन स्ट्रोक लग रहा है|” डॉक्टर ने फिर पूछा, “अंकल सुन रहे हो तो ऊँगली हिलाओ|” इस बार उँगलियों में थोडी सी हरकत हुई| डॉक्टर ने उनकी मैड से पूछा, “ कैसे हुआ, उसने बताया कि वे रात को देर से सोते हैं और सुबह में भी देर से उठते हैं, आज जब मैं बाहर से आई वे जगे हुए थे, मुझे काफी बनाने के लिये कहा, और बाथ रूम जाने के लिये जैसे ही उठे एक कदम ही लिया होगा की लडखडा कर गिर पड़े, उनसे  पूछना चाहा कि क्या हुआ पर उनकी एक दम बेहद हालत ख़राब देख कर बहुत घबरागयी थी उन्हें पलंग पर लिटा कर तुरंत अंकल को बुलाने भगी थी|

 उनकी हालत धीरे धीरे कुछ सुधर रही हैं, डॉक्टर ने सोच कर सलाह दी कि लग रहा है उन्हें सीज़र हुआ था उससे बाहर निकल रहे हैं| उन्हें तुरंत हॉस्पिटल इमरजेंसी में एम्बुलेंस बुला कर दिखाए| हॉस्पिटल को तुरंत एम्बुलेंस भेजने के लिये फ़ोन किया गया| इस बीच डॉक्टर ने उनसे बात कर ने की कोशिश जारी रखी  हुई थी, उन्होंने आँख खोल कर आश्चर्य से चारों तरफ देखा, पर वे कोशिश कर कुछ कहना चाहा पर बोल नहीं सके आवाज़ नहीं निकल रही थी| डॉक्टर ने बताया कि थोडी देर में काफी ठीक हो जायेंगे पर हॉस्पिटल में दिखाना आवश्यक है|  

मैंने बाहर ड्राइंग रूम में जाकर उनकी बेटी गौरा को फोन मिला कर सूचित करना चाहा पर देर बज़ कर घंटी बंद हो गयी, दूसरी बार मिलाया उनकी बेटी ने उठाया, मेरा नंबर देख कर पूछा,” पापा ठीक हैं ना?” मैंने बताया नहीं ठीक नहीं हैं, उसने तुरंत विडियो पर दिखाने के कहा, मैंने उन्हें अपने फ़ोन पर दिखाया वह जोर से रोती हुए पापा पापा कह रही थी, शंकरन सर ने फ़ोन पर बेटी को देखा उनकी आँखों के कोर से आसूं निकल कर उनके तकिये पर लुढ़क गए थे,  डॉक्टर ने  उन्हें बताया कि उन्हें मेस्सीव ब्रेन स्ट्रोक लग रहा है, उसके कारण सीज़र हुआ था अब ठीक हो रहे हैं हॉस्पिटल से एम्बुलेंस आती ही होगी टेस्टों और जांचों के बाद ही गंभीरता का पता चल पायेगा, ऐसे में कई बार एक के बाद दूसरा स्ट्रोक आने का खतरा होता है|

पिता पुत्री दोनों ही एक दूसरे को देखते हुए रो रहे थे, बेटी तमिल में कुछ बोलती भी जा रही थी,इंग्लिश में भी कहा, कहा “टेल हिम प्लीज़ आई ऍम कमिंग, ही शुड वेट फॉर मी|” रो रो कर बता रही थी कि फ़ोन आने से पहले वे उससे मिलने के लिये सपने में आये हुए थे| जाने कि बात कर रहे थे दिल्ली से फ़ोन आने पर समझ गयी थी कि कुछ बहुत गंभीर स्थिति में हैं| दोनों के आँसूओं से फालतू बीच के बाँध, शिकवे शिकायत बह गए थे, ख़त्म हो गए थे|

उसके बाद हॉस्पिटल में पहले उन्हे इमरजेंसी में रखा गया वहां उन्हें दूसरा अटैक भी आया पर वह उतना गंभीर नहीं था उसके लिये पहले से ही डॉक्टर्स द्वारा जरूरी दवाईयों उन्हें चढ़ाई जा रही थी|

 रात में ‘आईसीयू’ में लेकर रखा गया, उनकी तबियत ठीक होती गयी फिर एक रात रूम रखा गया फिर छुट्टी| कोई कारण नहीं मिला था सभी पैरामीटर ठीक निकले थे| बस डॉक्टरों ने तो ‘एज रिलेटेड’,कुछ दवाईयों और कुछ सावधानियां बता कर डिस्चार्ज कर दिया था| जिस दोपहर बाद वे हॉस्पिटल से डिस्चार्ज हो कर फ्लैट में पहुंचे उसी रात उनकी बेटी और दामाद भी वहां पहुच गए|  यह भी बताया की हॉस्पिटल में भी उन्हें हल्का स्ट्रोक आया था| कमजोर हो गए है शंकरन सर, पर बेहद खुश हैं|   

शंकरन साहेब के बचने में बहुत सी चीज़ें बड़े संयोग हुए, रविवार का दिन के समय स्ट्रोक आया था, मैड उसी कमरे में थी हम कई लोग खुले दरवाजे के साथ उपलब्ध थे, डॉक्टर घर पर ही थी, और सबसे सहयोग मिलता रहा| कहीं रात में स्ट्रोक होता, आवाज़ निकल नहीं रही थी, या हम घर पर नहीं मिलते, सब तरफ से सब उपलब्ध थे| हॉस्पिटल में भी पूरी देखभाल अच्छी हुई, दूसरा स्ट्रोक हॉस्पिटल पहुँचने ही पहले हो जाता| सबसे बड़ी बात थी कि मैड ने कोई समय नही खोया, अगर बाथ रूम जाने से एन पहले स्ट्रोक न होकर एक मिनट बाथ रूम के अन्दर आता तो कैसे बचते या बचाए जाते|

ऐसा नहीं लगता कि बाप बेटी की दूरियां कम नहीं हो पा रही थी तब नियति ने ऐसा खेल खेला एक झटके में सब लाइन में आगये सब ठीक हो गया यहाँ तक कि शंकरन साहेब भी यूएस हो आये भले ही भौतिक शरीर से  नहीं सूक्ष्म रूप में, बेटी के सपने में सही| या सच में ही उनकी आत्मा जाने से पहले बेटी से मिलने गयी थी? आजकल सब पिता बेटी मैड सब में अच्छी सुलह हो गयी है|  

ठीक ही कहा गया है, “ईश्वर यत करोति शुभम करोति”  बाकि सब तो बस जैसा वह ऊपरवाला हम सब को हिलाता है वैसे हे करते जाते हैं| कई बार लगता है जैसे जिंदगी में सब कुछ पूर्व निर्धारितही तो है| इस तरह एक तरह का जो शीतयुद्ध जो बाप बेटी के बीच चल रहा था एक सुखांत नोट के साथ समाप्त हो गया| ना बेटी ने जिक्र किया कि पिता इनके पास अमेरिका चले जाए न बेटी ने विरोध किया कि मैड को इतना महत्त्व किस लिये दिया जा रहा है| जहाँ तक उन सब का सवाल है कि शंकरन सर की कैसे सहायता हुई और वे दूसरे लोक पहुँचने से पहले लौट आये वे सब तो निमित्त मात्र थे, करवाने वाली तो कोई और ही शक्ति थी जो सारी सृष्टि को कंट्रोल कर रही है|

अब अगर शंकरन सर की सौ वर्ष तक जीने कि प्रबल इच्छा है तो इसमें क्या बुराई है?