Vakil ka Showroom - 12 in Hindi Thriller by Salim books and stories PDF | वकील का शोरूम - भाग 12

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वकील का शोरूम - भाग 12

किसी बंदर की तरह उछलता हुआ हनुमान नगर के बाहर स्थित एक ढ़ाबे पर पहुंचा। उस समय शाम के चार बजे थे तथा ग्राहक के नाम पर वहां साधारण-सा कुर्ता पायजामा पहने एक युवक बैठा था। उसके चेहरे पर घनी दाढ़ी-मूंछें तथा आंखों पर सुनहरी तार वाला चश्मा था। हनुमान ने उसके चारों ओर सतर्क दृष्टि से देखा, फिर सीधा उस नौजवान के पास पहुंच गया। उसे देखकर होंठों पर मुस्कराहट आ गई


नौजवान के। उसने हुनमान को बैठने का इशारा किया। हनुमान उसके सामने बेंच पर बैठ गया।


"कैसा है हनुमान?" फिर युवक ने अपना तारों वाला चश्मा उताकर पूछा- "यहां तक पहुंचने में कोई परेशानी तो नहीं हुई?"


"मैं तो ठीक हूं।" हनुमान बोला- "लेकिन जमाना बड़ा खराब है।"


"अब क्या हो गया जमाने को?" नौजवान ने हंसकर पूछा।


"अभी तक तो नहीं हुआ, मगर होने ही वाला है।"


"क्या मतलब? क्या होने वाला है?"


"धमाका। जबरदस्त धमाका।"


"अब कुछ कहेगा भी?"


यहां कुछ नहीं कहूंगा । "तो फिर कहां कहेगा ?"


"जमाना बहुत खराब है। दीवारों के भी कान होते हैं।"


“यानी जो कुछ भी कहना होगा, वहां कहेगा, जहां दीवारें न हों।"


“करेक्ट ।”


"तो फिर उठी।" कहकर युवक उठ खड़ा हुआ। उसने


अपना चश्मा कानों पर टिका लिया और हनुमान सहित ढ़ाबें से बाहर निकल आया।


कुछ ही देर बाद वे एक पेड़ के नीचे खड़े थे, जहां उनके बीच होने वाली बातचीत को सुन सकने वाला कोई नहीं था। "अब बोल ।” फिर युवक बोला ।


प्रत्युत्तर में हनुमान ने किसी भिखारी की तरह अपना हाथ


फैला दिया।


"कितना ?" युवक ने पूछा।


"पांच ।”


"यानी पांच सौ ?”




"खाते में लिख लेना। मिल जाएंगे। मुझ पर यकीन तो है। न?"


"जमाना बहुत खराब है। हनुमान अपने आप पर भी विश्वास नहीं करता, लेकिन ..."


"लेकिन क्या?"


"हनुमान को अपने उधार की चिंता नहीं है। हनुमान का


उधार मारने वाला हमेशा घाटे में रहता है।"


"यानी पैसे खाते में लिख लेगा।"


"हनुमान की खोपड़ी में कम्प्यूटर फिट है। सब अपने आप ही फीड़ हो जाता है।” प्रत्युत्तर में युवक गहरी नजरों से हनुमान की ओर देखने

लगा ।


"तुम बड़े रहस्यमय हो हनुमान मैं तुम्हें आज तक नहीं मझ पाया। “क्या बात कर रहे हो साहब ?" हनुमान बोला- "हनुमान


की जिंदगी तो खुली किताब की तरह है। वह जो कहता है, वही करता है और जो करता है, वही कहता है। रहस्यमय शख्स तो आप हो साहब पूरी दुनिया की खबर इधर से उधर करने वाला हनुमान आज तक आपके बारे में कुछ नहीं जान सका।"


"जानकर करना भी क्या है?"


"सवाल यह नहीं है कि मैंने क्या करना है और क्या नहीं। सवाल यह है कि आप पर आकर मेरी सारी सी.आई.डी. फेल क्यों हो जाती है। लाख कोशिश की मैंने, लेकिन इतना तक न जान सका कि आपका नाम क्या है? आप कौन हैं और किस फिराक में रहते हैं।"


"आम खाने वालों को पेड़ नहीं गिनने चाहिए। वर्ना पेड़ गिनने के चक्कर में वह आम खाने से वंचित रह सकता है।”

"यानी आप नहीं चाहते कि कोई आपके बारे में जाने?"


"यही समझ लो।” नौजवान गंभीर होकर बोला। "अच्छी बात है।"


"अब बताओ, क्या धमाका होने वाला है? मेरा मतलब है, कौन-सा जबरदस्त धमाका होने वाला है।”


"यूं समझ लीजिए कि आसमान के कुछ ग्रह आपस में


टकराने वाले हैं ।”


"अच्छा ?”


"पहला ग्रह है सी.आई.डी. इंस्पेक्टर ममता मोंगिया।


दूसरा ग्रह है जस्टिस राजेंद्र दीवान, तीसरा डॉक्टर प्रकाश सोनेकर और चौथा...।"


"चौथा कौन है?"


"बैरिस्टर विनोद ।"


"अच्छा ?"


"अब आपका नाम तो मैं जानता नहीं।” हनुमान उसे गहरी नजरों से देखते हुए बोला- वर्ना पांचवें ग्रह का नाम मैं वही बताता।"


"भला मुझे इस जंग में क्यों शामिल कर रहे हो?" युवक हंसकर बोला- "मुझमें ऐसा क्या दिखाई दिया तुम्हें जो मेरे बारे में ऐसी धारणा बना रहे हो?"


"इसके दो कारण हैं। पहला यह कि आप इस पूरे मामले पर नजर रखे हुए हों, और दूसरा ..." दूसरा क्या?"


"आपने अंजुमन को उस शोरूम में भेज रखा है।"


सुनकर हैरत से उछल पड़ा वह शख्स कहने लगात... तुम यह भी जानते हो?"


"जमाना बहुत खराब है।" हनुमान बोला जो जमाने के साथ नहीं चलता, जमाना उसका बंटाधार कर देता है।"


तुम अंजुमन को कैसे जानते हो?"

जो सामान पूरी दुनिया के लिए बिकाऊ हो और खूबसूरत हो, उसके बारे में जान लेना कौन-सी बड़ी बात है।"


"जब तुम अंजुमन के बारे में सबकुछ जानते हो तो मेरे बारे में कैसे नहीं जानते?"


“यही तो बात है। मैं आपके बारे में जितना जान पाया हूँ, वह सब गलत है, झूठ है, धोखा देने वाला है।" “मैं कुछ समझा नहीं?"


"राजा मंडी के निकट आपका एक शानदार बंगला है। उसमें आप अकेले रहते हैं। अंजुमन आपके पास अक्सर आती जाती है। जो लोग आपको जानते हैं, वे आपको राज बहादुर के नाम से जानते हैं। दुनिया की नजरों में आप ऐसे व्यवसायी हैं, जिसका पूरा परिवार कहीं और रहता है और आपको बिजनेस के लिए यहां रहना पड़ता है, मगर... " “मगर क्या?"


"सच्चाई यह है कि आपका नाम राज बहादूर नहीं है। आप कौन हैं, क्या करते हैं, कोई नहीं जानता। बहुत कोशिश की मैंने, मगर आपकी हकीकत नहीं जान पाया।”

"लगे रहो ।” युवक मुस्कराकर बोला- "एक-न-एक दिन जरूर कामयाब हो जाओगे।"


हनुमान ने सहमति में गर्दन हिलाई।


"अब धमाके की बात करो। क्यों भिडेंगे आसमान के ग्रह उसका नतीजा क्या होगा?"


"नतीजा सौ प्रतिशत उनके वजूद का सवाल उस होगा। भिड़ेंगे इसलिए क्योंकि


"कब भिड़ेंगे?"


“ठीक दो दिन बाद! जिस दिन कानून के शोरूम का उद्घाटन होगा।"


“क्या इस स्थिति का फायदा उठाया जा सकता है 

"अब यह सोचना मेरा काम नहीं ।" हनुमान तनिक रूखे


स्वर में बोला- "मेरा काम सिर्फ सूचनाएं एकत्रित करना और उन्हें आगे सप्लाई करना है।"


"लेकिन इस सूचना के लिए पांच सौ रुपए लेना कुछ ज्यादा नहीं?"

"कतई ज्यादा नहीं ।” एकाएक हनुमान सपाट स्वर में बोला- क्योंकि यह सूचना आपके लिए महत्त्वपूर्ण है। अगर मैं आपको यह सूचना नहीं देता तो आपको स्थिति का पता न चलता और आप अपनी आगामी रणनीति तैयार नहीं कर पाते ।”


"वाकई बड़ा खडूस दिमाग पाया है तुमने ।" युवक प्रशंसा भरे स्वर में बोला- “खैर छोड़ो, अब मेरे सिर्फ एक सवाल का जवाब दे दो।”


क्या?”


"तुम्हें क्या लगता है, दो दिन बाद शोरूम में क्या होगा?" "भविष्य के गर्भ में क्या छिपा है, कोई नहीं जानता, लेकिन मु लगता है कि उस दिन कोई ऐसी कहानी जन्म लेगी, जो आने वाले दिनों में उलझती चली जाएगी।"


युवक की चश्मे के पीछे से झांक रही आंखों में आश्चर्य व उत्तेजना के भाव उभर आए। वह हनुमान को घूरने लगा।