अर्चना और उसके साथियों की कोशिशों से अब सती प्रथा के खिलाफ एक मजबूत जागरूकता की लहर फैलने लगी थी। उन्होंने ना केवल अपने गाँव, बल्कि आस-पास के कई गाँवों में भी इस प्रथा के खिलाफ एक मुहिम छेड़ी थी। प्रशासन ने भी अब सती प्रथा को खत्म करने के लिए और अधिक गंभीर कदम उठाने शुरू किए थे, लेकिन इस बीच गाँवों में विरोध भी बढ़ गया था।
प्रशासन की ओर से ठोस कदम
जिला प्रशासन ने अर्चना के आंदोलन को गंभीरता से लिया और इस मुद्दे को पूरी तरह से उठाने का निर्णय लिया। अब इस प्रथा के खिलाफ एक सशक्त अभियान की शुरुआत की जा रही थी।
अधिकारी ने कहा, "हम यह सुनिश्चित करेंगे कि सती प्रथा के खिलाफ कानूनी कार्रवाई हो। इसके लिए गांव-गांव जाकर लोगों को जागरूक किया जाएगा और साथ ही, जिन लोगों ने इस प्रथा को बढ़ावा दिया है, उनके खिलाफ सख्त कदम उठाए जाएंगे।"
अर्चना की मेहनत और संघर्ष को अब प्रशासन का समर्थन मिल चुका था। वह समझ चुकी थी कि यह केवल उसकी लड़ाई नहीं थी, बल्कि एक पूरे समाज की लड़ाई थी।
आंदोलन का विस्तार
अर्चना ने अपने साथियों के साथ मिलकर कई अन्य गाँवों में जाकर महिलाओं के बीच जागरूकता फैलाना शुरू किया। हर गाँव में सभा आयोजित की गई, जहां सती प्रथा के खतरों के बारे में बताया गया। उन्होंने महिलाओं को यह समझाया कि यह प्रथा न केवल उनके जीवन के लिए खतरे की घंटी है, बल्कि यह समाज के विकास में भी बाधक है।
एक गाँव में, जब अर्चना ने सती प्रथा के खिलाफ सभा की, तो वहाँ की महिलाएँ काफ़ी चौंकी। उनमें से कुछ ने कहा,
"हमने तो यह हमेशा सुना है कि यह प्रथा हमारे धर्म का हिस्सा है, लेकिन अब हमें समझ आ रहा है कि यह सिर्फ एक हत्या है।"
अर्चना ने उन महिलाओं से कहा, "हमारे समाज को बदलने के लिए आपको साहस दिखाना होगा। सिर्फ यह नहीं कि आप सती प्रथा का विरोध करें, बल्कि इसे खत्म करने के लिए हर कदम उठाएं।"
विरोध का एक नया मोड़
हालाँकि, अब तक अर्चना के आंदोलन को काफी समर्थन मिल चुका था, लेकिन सती प्रथा के समर्थकों ने विरोध का एक नया तरीका अपनाया। वे अब अर्चना के खिलाफ खुलकर हिंसा की धमकी देने लगे थे।
एक दिन, अर्चना और उसके साथियों को गांव के बाहर एक सुनसान रास्ते पर घेर लिया गया। वहाँ कुछ सती समर्थक पहले से मौजूद थे। उनमें से एक व्यक्ति ने कहा,
"तुमने हमारी परंपराओं को चुनौती दी है, अब तुम्हें इसकी कीमत चुकानी होगी।"
लेकिन अर्चना ने साहस के साथ उत्तर दिया, "आप मुझसे कुछ भी कर सकते हैं, लेकिन मैं अपनी लड़ाई तब तक नहीं छोड़ूंगी जब तक इस कुप्रथा को समाप्त नहीं कर दिया जाता!"
अर्चना के शब्दों ने उनके विरोधियों को हक्का-बक्का कर दिया। उन्होंने गुस्से में आते हुए, लेकिन फिर भी हिंसा का रास्ता छोड़ दिया। यह घटना अर्चना के लिए एक निर्णायक मोड़ साबित हुई। अब उसे समझ में आ गया था कि उसकी लड़ाई सिर्फ विचारों की नहीं, बल्कि बलिदान और संघर्ष की भी है।
सामाजिक और मानसिक बदलाव
जैसे-जैसे अर्चना का आंदोलन बढ़ा, गाँवों के लोगों में सामाजिक और मानसिक बदलाव देखने को मिला। कई लोगों ने यह समझा कि सती प्रथा केवल महिलाओं के अधिकारों का हनन नहीं है, बल्कि यह समाज की प्रगति में भी रुकावट डालती है।
कुछ जगहों पर, महिलाओं ने अपने परिवारों के खिलाफ जाकर सती प्रथा के खिलाफ आवाज़ उठाई। एक गाँव में, राधा नामक एक महिला ने सती प्रथा के खिलाफ खुलकर बोलते हुए कहा,
"मैं अपने पति की मृत्यु के बाद जीवन जीने का अधिकार रखती हूँ, और मैं अपनी जिंदगी को अपने तरीके से जीने के लिए किसी भी परंपरा का पालन नहीं करूंगी।"
राधा की यह बात उन महिलाओं के लिए प्रेरणा बन गई, जो हमेशा इस प्रथा को मजबूरी मानकर अपनाती रही थीं।
सती प्रथा का धीरे-धीरे अंत
अर्चना का आंदोलन अब हर गाँव में फैल चुका था। प्रशासन ने भी लगातार सख्त कदम उठाए, और अब सती प्रथा के खिलाफ कानूनी रूप से मुकदमे भी चलने लगे थे। कई सती समर्थकों को सजा दी गई और कई गाँवों में इस प्रथा का पूरी तरह से अंत हो गया।
कुछ वर्षों बाद, जब अर्चना की आंखों के सामने यह बदलाव आया, तो उसने महसूस किया कि उसका संघर्ष व्यर्थ नहीं गया। अब गांवों में सती प्रथा को कोई नहीं मानता था, और महिलाएं अपने अधिकारों के लिए खड़ी हो गई थीं।
नई उम्मीदें, नई शुरुआत
अर्चना ने महसूस किया कि सती प्रथा के खिलाफ जीत केवल एक शुरुआत थी। अब उसे समाज के अन्य भेदभावपूर्ण रिवाजों और कुप्रथाओं के खिलाफ भी मुहिम छेड़नी थी।
अर्चना का यह आंदोलन अब सिर्फ एक गांव या एक प्रथा तक सीमित नहीं था; यह एक पूरे समाज को जागरूक करने की शुरुआत थी।
अगले भाग में:
अर्चना का अगला कदम
समाज में और भी बदलाव
अर्चना का संघर्ष दूसरे मुद्दों पर