Ek Kadam Badlaav ki Aur - 7 in Hindi Mythological Stories by Lokesh Dangi books and stories PDF | एक कदम बदलाव की ओर - भाग 7

Featured Books
Categories
Share

एक कदम बदलाव की ओर - भाग 7



अर्चना ने तय किया कि अब उसकी लड़ाई गाँव से बाहर निकलकर एक बड़े स्तर पर लड़ी जाएगी। उसकी सोच यह थी कि अगर उसे सती प्रथा के खिलाफ पूरी तरह से मुहिम छेड़नी है, तो केवल गांव के स्तर तक इसे सीमित नहीं रखा जा सकता। उसे प्रशासन के उच्च अधिकारियों से मिलने की आवश्यकता थी, ताकि इस कुप्रथा को पूरी तरह से खत्म किया जा सके।

अर्चना की यात्रा की शुरुआत

गाँव के कुछ प्रमुख लोग अब भी अर्चना के खिलाफ थे। वे उसे ‘विदेशी विचारधारा का एजेंट’ कहकर उसे बदनाम करने की कोशिश कर रहे थे, लेकिन अर्चना ने अपनी सोच में बदलाव नहीं किया। वह जानती थी कि अगर उसे कुछ बड़ा करना है तो उसकी आवाज़ को प्रशासन के तक पहुँचना जरूरी है।

एक दिन, उसने देवेंद्र, राधा और कुछ अन्य समर्थकों के साथ जिला मुख्यालय जाने का निर्णय लिया। वे अपनी यात्रा के लिए तैयार हुए और सुबह-सुबह गाँव छोड़ दिया।

इस यात्रा में साथ चलने वालों की संख्या थोड़ी कम थी, लेकिन अर्चना के हौसले और इरादे मजबूत थे। वे जानते थे कि यह लड़ाई अब सिर्फ एक गांव तक नहीं, बल्कि समाज के हर कोने तक पहुँच चुकी है।

जिला मुख्यालय में संघर्ष

जिला मुख्यालय पहुँचते ही अर्चना ने सबसे पहले संबंधित अधिकारी से मिलने की कोशिश की। लेकिन जैसे ही वह अफसर के दफ्तर पहुँची, वहाँ एक कर्मचारी ने कहा,

"आपने इस समस्या का हल स्थानीय स्तर पर क्यों नहीं निकाला? यह हमारे कामकाजी विभाग से बाहर की बात है!"

अर्चना ने उत्तर दिया, "जब कानून और परंपराएं अन्याय कर रही हों, तो हमें हर जगह आवाज़ उठानी होगी। सती प्रथा एक हत्या की तरह है, और अगर इस पर कार्रवाई नहीं की जाती, तो यह और भी ज़्यादा महिलाओं की जान ले सकती है।"

अर्चना की बातों को सुनकर कर्मचारी थोड़ा चौंका, लेकिन उसने कहा, "आपके द्वारा उठाया गया मुद्दा गंभीर है, लेकिन इस बारे में उच्च अधिकारियों से अनुमति चाहिए।"

अर्चना ने न घबराते हुए अधिकारी से मिलने का प्रयास जारी रखा। आखिरकार, एक दिन उसे उच्च अधिकारी से मिलने का मौका मिला।

अधिकारी से मुलाकात

अर्चना और उसके साथियों ने अधिकारी के सामने अपनी पूरी बात रखी। अधिकारी ने उनकी बातें ध्यान से सुनीं और कहा,

"यह मामला गंभीर है, और मुझे लगता है कि हमें इस पर तत्काल कदम उठाने चाहिए। लेकिन यह आसान नहीं होगा। आपको प्रशासन के साथ सहयोग करना होगा और हर स्तर पर सहयोग प्राप्त करना होगा।"

अर्चना ने हामी भरते हुए कहा, "हम पूरी तरह से तैयार हैं। हमें प्रशासन का समर्थन चाहिए ताकि हम सती प्रथा जैसी कुप्रथा को समाप्त कर सकें।"

अधिकारी ने फिर कहा, "आपका साहस प्रशंसनीय है। हम इस मामले की गंभीरता को समझते हैं और उचित कार्रवाई करेंगे। अब हमें एक रिपोर्ट तैयार करनी होगी, और इसके बाद यह मुद्दा जिला परिषद में जाएगा।"

अर्चना को यकीन हो गया था कि अब उसकी आवाज़ प्रशासन तक पहुँच चुकी थी।

सती समर्थकों का प्रतिरोध

जैसे ही सती प्रथा के विरोध में प्रशासन की ओर से कदम उठाए जाने की खबर गाँवों तक पहुँची, सती समर्थकों ने विरोध तेज़ कर दिया। उन्होंने इस मुद्दे को धार्मिक सम्मान से जोड़ने की कोशिश की और कहा कि यह प्रथा उनकी संस्कृति का हिस्सा है।

गाँव में कुछ ऐसे लोग थे जो अब भी मानते थे कि सती प्रथा सही है। वे इसे धर्म और सम्मान से जोड़ते थे, और अर्चना को समाज विरोधी करार देने लगे थे।

एक दिन, सती प्रथा के समर्थकों ने एक बैठक बुलाई, जिसमें उन्होंने अर्चना को फिर से धमकी दी,

"तुम्हें समझना होगा कि तुम जो कर रही हो, वह सिर्फ तुम्हारे गाँव के लिए नहीं, पूरे समाज के लिए एक खतरा है। अगर तुमने यह आंदोलन नहीं रोका, तो हम तुम्हारे खिलाफ कार्रवाई करेंगे।"

अर्चना ने संयम से उत्तर दिया, "आप जो कह रहे हैं, वह किसी समाज के लिए नहीं, बल्कि एक कुप्रथा के समर्थन के लिए हो सकता है। मैं इस आंदोलन को तब तक नहीं रोकूँगी, जब तक सती प्रथा पूरी तरह से समाप्त नहीं हो जाती।"

प्रशासन का समर्थन और सती प्रथा का खात्मा

अर्चना के संघर्ष और प्रशासन के सहयोग से, धीरे-धीरे सती प्रथा को समाप्त करने की प्रक्रिया शुरू हो गई। प्रशासन ने एक जन जागरूकता अभियान चलाने का निर्णय लिया, जिसमें सभी गाँवों में सती प्रथा के खिलाफ प्रचार किया गया।

साथ ही, अर्चना और उसके साथी अब उन महिलाओं तक पहुँचने लगे थे, जिन्हें इस प्रथा के बारे में जागरूक किया जा सकता था। उन्होंने कई गाँवों में सभाएँ कीं, जिसमें महिलाओं को बताया गया कि सती प्रथा न केवल उनके जीवन के लिए खतरा है, बल्कि यह समाज के विकास में भी रुकावट डालती है।

नया अध्याय

अर्चना की कोशिशों का असर दिखने लगा। अब और अधिक महिलाएँ इस कुप्रथा के खिलाफ खड़ी हो रही थीं। उनके अंदर साहस था, और वे अब अपनी ज़िंदगी को अपने तरीके से जीने के लिए तैयार थीं।

हालाँकि, पूरी तरह से बदलाव आना अभी बाकी था, लेकिन अर्चना ने एक ऐसी लहर चलाई थी, जो न सिर्फ एक गाँव बल्कि एक पूरे समाज को जागरूक कर रही थी।

अगले भाग में:

सती प्रथा के विरोध में और ज्यादा ठोस कदम

गाँव-गाँव में जागरूकता फैलाना

आंदोलन की मंजिल तक पहुँच