Ek Kadam Badlaav ki Aur - 4 in Hindi Mythological Stories by Lokesh Dangi books and stories PDF | एक कदम बदलाव की ओर - भाग 4

Featured Books
  • Schoolmates to Soulmates - Part 11

    भाग 11 – school dayनीतू जी तीनो को अच्छे से पढाई करने की और...

  • बजरंग बत्तीसी – समीक्षा व छंद - 1

    बजरंग बत्तीसी के रचनाकार हैं महंत जानकी दास जी । “वह काव्य श...

  • Last Wish

    यह कहानी क्रिकेट मैच से जुड़ी हुई है यह कहानी एक क्रिकेट प्र...

  • मेरा रक्षक - भाग 7

    7. फ़िक्र "तो आप ही हैं रणविजय की नई मेहमान। क्या नाम है आपक...

  • Family No 1

    एपिसोड 1: "घर की सुबह, एक नई शुरुआत"(सुबह का समय है। छोटा सा...

Categories
Share

एक कदम बदलाव की ओर - भाग 4



गांव में अर्चना के आंदोलन को लेकर हंगामा मचा हुआ था। उसकी बातें अब केवल महिलाओं तक सीमित नहीं रहीं, बल्कि कुछ पुरुष भी उसकी विचारधारा से प्रभावित हो रहे थे। लेकिन जैसे-जैसे उसके समर्थकों की संख्या बढ़ रही थी, विरोध करने वाले भी उतने ही उग्र होते जा रहे थे। कुछ रूढ़िवादी लोग, जो धर्म और परंपरा के नाम पर इस कुप्रथा का समर्थन कर रहे थे, अर्चना को हर हाल में रोकने का प्रयास करने लगे।

पुरानी सोच का विरोध

गांव के चौपाल पर एक दिन बैठक बुलाई गई, जहाँ गांव के पंडित, मुखिया और अन्य प्रमुख लोग उपस्थित थे। अर्चना और राधा भी वहाँ पहुँचीं। जैसे ही अर्चना ने अपनी बात रखनी शुरू की, गांव के एक वृद्ध पंडित ने उसे डांटते हुए कहा,

"लड़की, तुम क्या समझती हो? हमारी परंपराओं से खिलवाड़ करोगी? सती होना ही स्त्री का धर्म है। इससे न केवल उसका उद्धार होता है बल्कि कुल की प्रतिष्ठा भी बनी रहती है। जो स्त्री सती नहीं होती, वह अपवित्र मानी जाती है।"

अर्चना ने निडर होकर जवाब दिया, "पंडित जी, क्या आपने कभी किसी आदमी को पत्नी की मृत्यु के बाद जलते देखा है? अगर पत्नी के बिना पति जी सकता है, तो पति के बिना पत्नी क्यों नहीं? क्या यह धर्म है कि एक जीवित व्यक्ति को जबरदस्ती मार दिया जाए? धर्म वह होता है जो न्याय दे, जो प्रेम सिखाए, न कि जो किसी का जीवन छीन ले।"

वहाँ उपस्थित लोगों के बीच हलचल मच गई। कुछ लोग अर्चना की बातों से प्रभावित हो गए, लेकिन कुछ को यह अपमानजनक लगा। एक बुजुर्ग आदमी खड़ा होकर बोला, "लड़की, ज्यादा मत बोल! यह सदियों पुरानी परंपरा है, इसे बदला नहीं जा सकता।"

अर्चना ने दृढ़ स्वर में कहा, "अगर परंपरा अन्यायपूर्ण हो, तो उसे बदलना ही होगा।"

एक और स्त्री का संघर्ष

इसी दौरान गांव में एक और घटना घटी, जिसने अर्चना के आंदोलन को और भी अधिक बल दिया। गांव की एक अन्य महिला, सुजाता, जिसका पति एक बीमारी के कारण चल बसा था, उसे भी सती होने के लिए मजबूर किया जा रहा था।

सुजाता के ससुराल वालों ने उसे घर में बंद कर दिया और जोर डालने लगे कि वह अगले पूर्णिमा के दिन सती हो। गांव के कुछ लोग, जिनमें मुखिया भी शामिल था, इस बात को सुनिश्चित कर रहे थे कि वह भाग न सके।

जब अर्चना को इस बारे में पता चला, तो वह तुरंत अपने समर्थकों के साथ सुजाता के घर पहुँची।

"सुजाता दीदी, तुम अपने जीवन को यूँ मत गंवाओ। यह प्रथा तुम्हें जीने नहीं देगी, लेकिन मैं तुम्हें बचाने आई हूँ," अर्चना ने कहा।

सुजाता रोने लगी, "मैं क्या कर सकती हूँ, अर्चना? अगर मैंने मना किया, तो ये लोग मुझे जीने नहीं देंगे।"

"अगर तुम डरोगी, तो यह प्रथा कभी खत्म नहीं होगी। लेकिन अगर तुम हिम्मत दिखाओगी, तो शायद तुम्हारी लड़ाई किसी और स्त्री को इस घिनौनी प्रथा से बचा सके," अर्चना ने समझाया।

गांव में विद्रोह की ज्वाला

अर्चना के इस हस्तक्षेप से गांव में हंगामा मच गया। अगले दिन गांव की सभा में मुखिया और पंडितों ने अर्चना के खिलाफ कठोर निर्णय लिया।

"यह लड़की समाज के नियमों के खिलाफ जा रही है। इसे रोका जाना चाहिए, नहीं तो यह पूरे समाज को नष्ट कर देगी!" एक वृद्ध पंडित ने घोषणा की।

मुखिया ने भी समर्थन किया, "अगर इसे नहीं रोका गया, तो हमारी परंपराएँ समाप्त हो जाएँगी। अर्चना को गांव से बाहर निकाल देना चाहिए!"

लेकिन तभी सभा में कुछ युवा लड़के और पुरुष खड़े हुए। उनमें से एक, देवेंद्र, ने कहा,

"मुखिया जी, हम भी इस गांव के ही हैं। हम भी परंपराओं का सम्मान करते हैं, लेकिन हमें यह समझना होगा कि जो गलत है, उसे खत्म करना ही होगा। महिलाओं को भी जीने का हक है।"

सभा में एक और आवाज आई, "अर्चना सही कह रही है। सती प्रथा ने कई महिलाओं की ज़िंदगी बर्बाद कर दी है। अब इसे खत्म होना चाहिए!"

धीरे-धीरे गांव के कुछ और लोग भी अर्चना के समर्थन में आ गए। यह पहली बार था जब पुरुषों ने भी खुलकर इस कुप्रथा के खिलाफ आवाज उठाई।

संघर्ष की अगली कड़ी

मुखिया और रूढ़िवादी लोग यह देखकर बौखला गए कि अर्चना के विचार समाज में फैलने लगे थे। उन्होंने उसके परिवार पर दबाव डालने की कोशिश की, लेकिन उसकी माँ शारदा देवी ने स्पष्ट कह दिया,

"अगर मेरी बेटी सच्चाई की राह पर चल रही है, तो मैं उसका साथ दूँगी।"

अब अर्चना को समझ में आ गया था कि यह लड़ाई आसान नहीं थी। गांव में दो धड़े बन चुके थे—एक वे जो परंपरा को बचाने के लिए अड़े थे, और दूसरे वे जो बदलाव के लिए खड़े हुए थे।

सुजाता को बचाने के लिए अर्चना और उसके समर्थकों ने योजना बनाई। उन्होंने प्रशासन से संपर्क किया और अधिकारियों को गांव बुलाने का निर्णय लिया। यह पहला मौका था जब किसी ने कानूनी रूप से इस प्रथा का विरोध किया।

लेकिन अब सवाल यह था कि प्रशासन सही समय पर आएगा या नहीं? और अगर प्रशासन आया भी, तो क्या वह सुजाता को बचा पाएगा?