Chuppi - Part - 2 in Hindi Women Focused by Ratna Pandey books and stories PDF | चुप्पी - भाग - 2

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चुप्पी - भाग - 2

क्रांति की हॉकी खेलने की चाह को महसूस करके और उसकी ज़िद को हद से ज़्यादा बढ़ता देखकर रमिया की चिंता बढ़ गई। क्रांति इन दिनों काफी उदास रहने लगी थी और उसकी उदासी का कारण रमिया अच्छी तरह से जानती थी।

इसलिए एक दिन रमिया ने उसे समझाते हुए कहा, "क्रांति बेटा, तुम्हें इस तरह से उदास देखकर मुझे बहुत दुःख होता है। तुम नहीं जानतीं पता नहीं कैसे-कैसे पापड़ बेलने पड़ते हैं और उसकी शुरुआत तो घर परिवार से ही हो जाती है। सबसे पहले तो तुम्हारे पापा, वह तो तुम्हें पहली सीढ़ी पर ही खड़े मिल जाएंगे। वह तुम्हें कभी अनुमति नहीं देंगे बेटा। उसके बाद तुम्हारे दादा-दादी, यदि उन्हें पता चला तो उन्हें तो हॉफ पेंट से ही समस्या हो जाएगी। वह भी अपने संस्कारों के पिटारे को लेकर दूसरी सीढ़ी पर खड़े होंगे। उनकी जीवन शैली और उनके विचार तुम्हें इस खेल में कभी आगे बढ़ने की इजाज़त नहीं देंगे। चलो मान लो तुमने यह सीढ़ियाँ पार कर भी लीं तो फिर आगे ...!"

"आगे क्या मम्मी? यदि पापा हाँ कह दें तो फिर कौन रोक सकता है?"

"बेटा यह सब इतना आसान नहीं होता। सबसे पहले बहुत अच्छा खेलना, फिर चयन होना, जिसमें न जाने कितनी राजनीति होती है। अपना चयन होना एक बड़ी चुनौती होती है। चलो मान लो कि चयन हो भी गया, तो भी खेलने वाली टीम में शामिल हो पाएंगे नहीं, यह चिंता भी हमेशा बनी रहती है। इस सब में पढ़ाई भी नहीं हो पाती, बार-बार इधर-उधर जाना पड़ता है। यदि जीत गए तो थोड़ी बहुत ताली मिल जाती है परंतु यदि हार गए तो बहुत खींचातानी होती है। कुल मिलाकर यह एक बड़े ही संघर्ष से भरी कठिन यात्रा है। इसमें कूद गए तो फिर बाक़ी और कुछ नहीं हो सकता इसीलिए तुम्हारे पापा मना करते हैं। यदि पढ़ाई लिखाई अच्छे से कर लोगी तो एक सुरक्षित भविष्य ज़रूर ही मिल जाएगा।"

"नहीं मम्मी, आप ये कैसी बातें कर रही हैं? यदि देश का हर युवा ऐसा सोचने लगे, तब तो हमारी फ़ौज में भी युवाओं की कमी हो जाएगी। जैसे हजारों युवा अपना सपना पूरा करने के लिए फ़ौज में जाते हैं क्योंकि देश की सेवा करना ही उनका लक्ष्य होता है। हमें सुरक्षा देना वह अपना कर्तव्य समझते हैं। वैसे ही मेरा भी सपना है, मम्मी मैं अपने देश का नाम रौशन करना चाहती हूँ।"

"क्रांति, तुम सपनों की दुनिया में खोई हुई हो। यह तुम्हारा सपना है, इसे हक़ीक़त में लाना इतना आसान नहीं है। मैं तुम्हें कैसे समझाऊँ, तुमने आज तक कभी हाथ में हॉकी नहीं उठाई है और क्या-क्या सोच लिया है। तुम्हें क्या लगता है, बिना सीखे, बिना प्रैक्टिस के तुम अच्छी हॉकी खेल सकती हो?"

तभी क्रांति के पापा कमरे से बाहर आए और उन दोनों की बातें सुनने लगे।

तब क्रांति कह रही थी, "अरे मम्मी, मैं सीखूंगी ना और यह तो मेरा विश्वास है कि मैं बहुत अच्छी हॉकी खेल सकती हूँ।"

उसके पापा ने बीच में कहा, "क्रांति बेटा, हमारा काम है तुम्हें समझाना, सही राह दिखाना। समझ जाओ तो अच्छा है वरना तुम जैसे कितने ऐसे ही झूठे सपनों के पीछे भागते हैं और फिर औंधे मुँह गिर कर पछताते हैं। तुम्हारे साथ भी यदि ऐसा ही कुछ हुआ तब तो तुम यही कहोगी कि मैं तो छोटी थी नासमझ, आप लोगों ने मुझे क्यों नहीं रोका। समय बड़ा महत्त्वपूर्ण होता है बेटा, एक बार निकल गया तो फिर हाथ में कभी नहीं आता। हम किसी भी हालत में तुम्हें मनमानी नहीं करने देंगे और यही मेरा आखिरी फ़ैसला है।"

रत्ना पांडे, वडोदरा (गुजरात)
स्वरचित और मौलिक 
क्रमशः