Chuppi - Part - 4 in Hindi Women Focused by Ratna Pandey books and stories PDF | चुप्पी - भाग - 4

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चुप्पी - भाग - 4

अगले दिन मुकेश सर ने स्कूल आते से ही हॉकी सिखाने की तैयारी शुरू कर दी। बस फिर क्या था उन्होंने फटाफट एक कोच रौनक को ढूँढ लिया और स्कूल के मैदान में हॉकी खेलने की भी पूरी व्यवस्था कर ली। कुछ ही दिनों में स्कूल में हॉकी खेलने की प्रैक्टिस शुरू हो गई। आठवीं और नौवीं कक्षा से लड़कियों का चयन भी कर लिया गया। कोच रौनक ने लड़कियों को सिखाना शुरू कर दिया। वह यह देखकर दंग थे कि क्रांति तो जैसे पहले से खेल के बारे में सब कुछ जानती है। उसका खेल देखकर वह हैरान थे, उन्हें लग रहा था मानो भगवान ने उसे हॉकी खेलने का टैलेंट उपहार स्वरूप दे दिया हो। वह देख रहे थे कि क्रांति बिजली की तरह दौड़ती है और बॉल तो मानो उसका इशारा समझती है। कोच को अब तक यह एहसास हो गया था कि यह लड़की हॉकी जगत में तहलका मचा सकती है। उसे थोड़ा और तराशने के बाद वह हीरा बन सकती है।

एक दिन उन्होंने मुकेश सर से कहा, "मुकेश, यह लड़की तो कमाल का खेलती है। देखना यह हमारे देश की महिला हॉकी टीम का हिस्सा जल्दी ही बन जाएगी और यह मैं पूरे विश्वास के साथ कह रहा हूँ।"

"हाँ रौनक सर, मैं जानता हूँ, उसी ने पीछे पड़कर इस स्कूल में हॉकी खेलने की शुरुआत करवाई है। बस उसके साथ कोई राजनीति ना हो।"

अब कोच ने भी क्रांति के लिए पसीना बहाना शुरू कर दिया। क्रांति भी अपनी पूरी शक्ति के साथ मेहनत करने के लिए तैयार थी। स्कूल ख़त्म होने के बाद भी वह उसे सिखाते रहते। वह जानते थे यदि क्रांति आगे जाएगी तो उनका भी नाम ज़रूर होगा। दो वर्ष की कठिन तपस्या के बाद उनकी स्कूल की टीम को इंटर स्कूल प्रतियोगिता में खेलने का अवसर मिल ही गया। इस प्रतियोगिता में क्रांति का प्रदर्शन देखकर लोग दांतों तले उंगली दबा रहे थे। क्रांति के लाजवाब प्रदर्शन ने उसके लिए आगे की राह खोल दी। उनकी टीम तो फाइनल नहीं जीत पाई लेकिन क्रांति उसके जीवन का क्वार्टर फाइनल अवश्य ही जीत गई। साथ ही रौनक सर के लिए भी यह टूर्नामेंट फायदे का सौदा साबित हुआ।

क्रांति का चयन उनके शहर की हॉकी की टीम में हो गया। इस टीम का कोच भी रौनक सर को ही बनाया गया।

रौनक सर ने क्रांति से कहा, "क्रांति अब तुम्हें खेलने के लिए अपने शहर से बाहर भी जाना पड़ेगा। क्या तुम्हारे पापा इसकी अनुमति देंगे?"

क्रांति ने कहा, "सर चाहे जो भी हो मैं यह सुनहरा अवसर अपने हाथ से नहीं जाने दूंगी। मेरी मम्मी हैं ना, वह मेरा साथ अवश्य देंगी।"

क्रांति ने घर पहुँचते ही रमिया के गले लग कर उसे यह बात बताई तो रमिया का चेहरा उतर गया। ख़ुशी की बात में दुख का साया क्यों आया यह क्रांति भी जानती थी। दरअसल उसके स्कूल में हॉकी खेलने वाली बात अब तक अरुण को नहीं पता थी। रमिया ने अपनी बेटी की ख़ुशी के लिए यह बात उन्हें नहीं बताई थी। लेकिन अब क्रांति को और आगे बढ़ने के लिए, आगे खेलने के लिए, शहर से बाहर जाना होगा। अरुण को पता चल जाएगा तब क्या होगा। यह विचार रमिया और क्रांति को डरा रहे थे।

लगभग 2-3 महीने की जी तोड़ मेहनत करवाने के बाद अब वह समय आ गया था जब उनकी टीम को शहर से बाहर खेलने जाना था जहाँ राज्य के अलग-अलग शहरों से टीमें आने वाली थीं।

क्रांति ने अपने घर जाकर अपनी मम्मी रमिया को इस बारे में बताया। उसने कहा, "मम्मी मैं बहुत खुश हूँ, इस रविवार मुझे शहर से बाहर खेलने जाना है। इसमें लगभग तीन दिन लग जाएंगे। बस वहाँ से आगे भी मेरा चयन हो जाए, आप भगवान से मेरे लिए प्रार्थना करना। लेकिन हम पापा से क्या कहेंगे?"

रत्ना पांडे, वडोदरा (गुजरात)
स्वरचित और मौलिक 
क्रमशः