Chuppi - Part - 3 in Hindi Women Focused by Ratna Pandey books and stories PDF | चुप्पी - भाग - 3

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चुप्पी - भाग - 3

क्रांति अपने पिता का आखिरी फ़ैसला सुनकर निराश अवश्य हुई लेकिन उसका अटल इरादा ना बदला। वह तो हॉकी खेल कर अपने देश का सर शान से ऊंचा करके दिखाना चाहती थी। उसका मन, दिल और दिमाग़ दिन रात उसी दुनिया में खोया रहता जिसमें वह जाना चाहती थी। अब बस उसे यह तलाश थी कि वह किससे और कैसे हॉकी खेलना सीखे।

क्रांति के स्कूल में हर शनिवार को खेलकूद का पीरियड होता था। आज जब वह खेलने के लिए मैदान पर गई तो उसे मुकेश सर को देखते ही ख़्याल आया कि क्यों ना वह उनसे बात करे।

यह ख़्याल आते ही वह तुरंत उनके पास गई और बोली, "सर मैं आपसे कुछ कहना चाहती हूँ।"

"हाँ बोलो क्रांति क्या कहना चाहती हो?"

"सर हम यहाँ मैदान में खेलने आते हैं लेकिन टाइम पास और मस्ती करके वापस चले जाते हैं। यदि हम सीरियस होकर कोई खेल खेलें तो?"

"क्या खेलना चाहती हो क्रांति? चल क्या रहा है तुम्हारे दिमाग़ में?"

क्रांति के मुंह से अनायास ही निकल गया, "सर मेरे दिमाग़ में हॉकी चल रही है?"

"क्या ...?"

"जी सर, यदि हम हॉकी की दो टीम बनाकर खेलें तो?"

"अच्छा तो तुम्हारे दिमाग़ में यह चल रहा है।"

"हाँ सर, फिर हम इंटर स्कूल भी खेलने जा सकेंगे। वैसे भी सर, हॉकी हमारे देश का राष्ट्रीय खेल है और इसे पहले जितना ही मान-सम्मान मिलना चाहिए।"

क्रांति की बात सुनकर मुकेश सर आश्चर्यचकित रह गए। वह सोच रहे थे कि इतनी छोटी उम्र में ऐसी सोच ...? इस बच्ची में दम तो है। उन्होंने कहा, "देखो क्रांति मैं जानता हूँ तुम खेल कूद में बहुत तेज हो। तुम्हारा सुझाव भी बहुत अच्छा है लेकिन यह स्कूल का मामला है इसमें मैं कुछ भी नहीं कर पाऊंगा। तुम्हें प्रिंसिपल मैम से बात करनी होगी।"

"ठीक है सर आप चलेंगे मेरे साथ?"

कुछ देर सोचने के बाद मुकेश सर ने कहा, "ठीक है, चलो चलते हैं।"

क्रांति और मुकेश सर प्रिंसिपल मैम के पास गए। वहाँ जाकर मैडम को उन्होंने अपनी बात से अवगत कराया। क्रांति की बात और उसका विश्वास देखकर उन्होंने मुकेश से कहा, "सर, मुझे नहीं लगता कि इसमें कुछ भी ग़लत या पेचीदा है। सुझाव अच्छा है, हमें ज़रूर आज़माना चाहिए। आप तैयारी शुरू कीजिये।"

क्रांति की ख़ुशी इस समय ऊंची-ऊंची छलांगे मार रही थी। मुकेश सर भी बहुत खुश थे।

आज जब क्रांति स्कूल से घर पहुँची तो उसका खिला हुआ चेहरा देखकर रमिया ने पूछा, "क्या हुआ क्रांति आज तो तुम्हारे चेहरे की चमक अलग ही दिखाई दे रही है? क्या हुआ है जो तुम इतनी ज़्यादा खुश लग रही हो?"

"मम्मी बात ही कुछ ऐसी है पर आप पापा को कुछ नहीं बताओगी। आप वचन दो, यदि वचन दोगी तभी मैं आपको बताऊँगी।"

"क्रांति लगता है बात हॉकी की है।"

"आपको कैसे मालूम मम्मी?"

"तुम्हारी ख़ुशी ने मुझे बता दिया बेटा।"

अपनी मम्मी के गले से लिपटकर क्रांति ने कहा, "मम्मी आप पापा को ...?"

"अरे नहीं बताऊँगी क्रांति, तू मुझे तो बता?"

"मम्मी हमें स्कूल में हॉकी खेलने की अनुमति मिल गई है और यह सब मेरे कहने पर हुआ है।"

"तुम्हारे कहने से? वह कैसे?" रमिया की जिज्ञासा बढ़ती ही जा रही थी।

तब क्रांति ने स्कूल की पूरी घटना का आँखों देखा हाल उन्हें बता दिया। उसने आगे कहा, "मम्मी अब तो मुझे भी हॉकी खेलने का अवसर मिलेगा।"

रमिया अपनी बेटी की ख़ुशी से ख़ुश थी, पर मन में कहीं ना कहीं एक डर छुपा बैठा था। क्या होगा? कैसे होगा? यदि इसके पापा को मालूम पड़ गया तब क्या होगा? लेकिन क्रांति की ख़ुशी ने उसके मुंह पर ताला लगा दिया।

रत्ना पांडे, वडोदरा (गुजरात)
स्वरचित और मौलिक 
क्रमशः