-------मुक्त (5)
मुक्त फर्ज से भाग के नहीं होता... फर्ज से भागो, इतना भागो, कि मुक्त हो सकोगे। कही लिखा है, मुक्क्ति का भाग जो खुदा तक जाए। फरजो से आपने किये कामो से मत भागो.... जो बना है उसमे ही चलते हुए खाक मे रल जाओ।
युसफ खान लगातार मस्जिद का रुख करता था... और जा कर घर मे रात की बुसी भारी रोटी जा बड़ा सा ब्रेड पेट भरने तक खा लेता.. दूध बकरी का कभी उटनी का पी लेता था। बहुत चुप था। छोटी बेगम छोटे भाई की कल ही गयी थी।
बेगम को युसफ खान " भाभी कहता था। " छोटे ने टोका था। " छोटे, तेरी हम उम्र है, इतने धर्मिकता मत बनो, सोहने मेरे लाल।"
" आप तो मुझ से बड़े है, फिर.... " उसने अदव से कहा। चुप था। बेगम ने भी सुन लिया था।
एक शाम वो उसके पीछे ही मस्जिद मे चली गयी थी।
औरत जितनी देर पर्दे मे है, है बरखुरदार... जब उसको कोई इग्नोर करे तो शरेआम तमासा होगा।
मस्जिद की सीढ़ी चढ़ने ही लगा था, कुत्ता भोंक पड़ा।
युसफ ने कहा, " इतनी सुबह... पहला पहर भी खत्म नहीं हुआ था, वो भोंक पड़ा.... कयो। "
सीढ़ी उतरा, हैरान काले बुर्के मे छोटे की बेगम... वो हैरान ------ " -------" कुछ कहना चाहता ही था, तभी पकीजा ने पूछा, " बड़ी हेकड़ी है तुमाहरी, मसीती जाते हो, कोई लाट साहब नहीं हो " एक रंग आये, एक जाए।
"जिंदगी मे जिसके घर जा रहे हो, युसफ " फिर चुप, " सुनो दो वकील लड़े, और खुदा ने फैसला हक़ मे किया --" पकीजा रस्तोगी बहुत बड़ी फर्म का नाम फेजलाबाद मे था।
युसफ के नुथने सिर्फ फूल रहे थे।
" तुम कया जानो प्यार, खुदा ने सिखाया है " युसफ चुप था। " पकीजा तेरी हम उम्र थी --- न मर्द हो,जाओ, बहुत हकीम खाने है, मेरे को बताता है, भाभी... " चुप युसफ, कया बोले।
" रिश्ते कैसे बोलते है, अब सुन लिया कि नहीं। " चुप युसफ।
वो मस्जिद मे किसी से न डर रही थी, बोलो कयो, वजन का पथर उसके स्त्रीत्व पर पड़ा था। ऐसा होता है औरत का बेशर्म हो जाना।
"तुम " युसफ कया जान गए हो ,उसकी रजा के बारे,जरा हम भी तो सुने... देखो चेहरा मेरा, बुर्के को ऊपर किया " युसफ ने उसके सिवा कम ही देखा था किसी परायी इस्त्री की और, वो बला की खूबसूरत थी, दिल धड़कना भूल गया था। " माशा आल्हा। " रब के बनाये जी की सिफत,उसके होठो से निकला, " तमीज़ सीखो " ----युसफ ने घुटने टेकते हुए कहा... और आँखो मे बेहया वो भाई की बेगम, और खूब उच्ची रोयेया था।
अब्बा का पाला कुत्ता उसके पास आकर बैठ गया। बस उसके सिवा और मस्जिद के सिवा मेरा कोई नहीं है। " खुदा...... इसे माफ़ करना.... " पकीजा ने ज़ब ये सुना, तो आँखे नम ले कर जल्दी से रुखसत हो गयी थी, आपने मुकाम की और....... घर की और... मगर थी एक बेहद दर्द से भरी कसक... टूट गयी थी आज पकीजा भी.... जैसे चकनाचूर करते करते खुद बेहद दर्द से लहूलुहान हो गयी हो।
सोच रही थी... गुसा कितना ज़ालिम होता है, घरोदे को भी आग से झूलसा देता है। ज़िन्दगी मे ऐसे पता नहीं कितने घाव है जो हरे ज़ख्म बन गए.... और बहुतो के सर क़लम हो गए।
(चलदा ) नीरज शर्मा
शहकोट, जालंधर