(9) -------( मुक्त )
ताज़ा खबर.... आज की... " एक युसफ नाम का मौलवी आतकी उड़ा ले गए। " ये खबर आतकी एक आग की तरा था। आतकी युसफ को कयो ले गए, सोच ने पे मजबूर दानिश हो गया था, अब कया हो गया... कया हो गया।
सोचने पे बिलकुल उलट हो गया था.... बहुत ही उलट पुल्टा समय हो गया था। अब कया समय हो गया था।
बड़े भाई को बहुत दुख लगा था, छोटे को भी.... पकीजा को तो बहुत ही... अंदर से टूट गयी थी... कितना कोई समझ सकता था, उतना ही दुखी... बहुत दुखी... आसीम कसक दी थी... एक मानसिक यातना थी पता किसको पकीजा जो उसकी हमउम्र थी। सोचती थी... कितनी कसक... आसीम कसक...
कया देखा था, उसने इस उम्र मे, वो सोचती थी, एक उबला सा खून पर आबूझ बुझारत की तरा... कितना टुटा होगा तेरा बन्दा... जैसे पकीजा के अंदर से आवाज़ आयी।
आतकीयों ने उसे तोड़ कर छोड़ दिया था। और फैजास्थान पे उसे छोड़ दिया गया था। वो एक खेत मे गिरा हुआ मिला... किसी बंदे को... पर वो बिलकुल उसके पास आने से डरता था। वो बंदगी के असर से बोल रहा था..." मुझे उठाओ " वो एकदम चुप था। डर रहा था। " मुझे बहुत मारा है जालिमो ने " उसने गिड़गिड़ा के कहा।
" कौन थे " उसने कहा।
"वो ---- पता नहीं.... आल्हा के बंदे ऐसे नहीं होते..." वो रुक कर बोला, " दोस्त कितना दयालू है, वो... उसके बंदो मे ये भी नहीं है। " एक दम चीखा। वो डरता हुआ आगे आया है। "--- उसने कहा " तुम्हारा नाम कया है, रब के प्यारे। "
ज़ब भी उसने ऐसा कहा युसफ की आँखो मे पानी वेह रहा था, जो अटूट कसक दे रहा था। कितनी दर्द थी....
वो ही जान सकता था... जिसके साथ हुआ हो।
उसके पूछा गया कहा से हो, ये शहर कौन सा है, सब बता कर एक रात मे उसे उसके छोटे भाई के घर भेज दिया गया था... आख़री इलाज होने के बाद.. एम्बुलेंस उसे छोड़ आयी थी।
रिपोर्टर की कंपनी साथ मे थी.... बहुत कुछ पूछा गया... उसे कुछ बताना सही समझा कुछ नहीं भी... कयो.. हलात कुछ भी हो सकते है। कुछ भी किसी के भी कब... पर उसे कयो मारा गया... हर कोई कमजोर को ही मारता है। मरने तक सब झेलना पड़ता है। झेलने वाले बहुत पहले ही दम तोड़ देते है। सच मे.....
उम्र का तकाज़ा भी कोई दम रखता था। भईया घर भाई आया था। वो भी वहा यहां पकीजा हम उम्र को पहले ही न हो चुकी हो। आज पकीजा उसे ऐसे देख रही हो, जैसे एक बून्द गिरी हो सीपी मे, मोती बनने के लिए। शायद कुछ देर तो ठहर ही जायेगा। पकीजा सोच रही थी, मुस्करा रही थी... पानी मे कुछ वस्त्र थे डाले जिसे निचोड़ रही थी।
देसी कुकड़ी को हलाल किया गया... आज उसका देयरो आया था। आज मास का तुड़का लगे गा... सब उसके छिले हुए मास को देख सिसकी निकल गयी... थोड़ा चल लेता था, " ओ खुदा। " उसने सिसकी ली थी। एक कुकड़ी हलाल हुई थी ---कयो???
मुसलमान शेरियत मे मास खा ले, वाह ज़ब आपके काटा चुभे तो चिल्लाये... उसकी गर्दन गयी कोई बोला भी नहीं... कयो जीभी का चस्का।
"(चलदा ) नीरज शर्मा
शाहकोट, जलधर।