Mukt - 11 in Hindi Women Focused by Neeraj Sharma books and stories PDF | मुक्त - भाग 11

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मुक्त - भाग 11

     ---------(11वा ससकरण )

               (  मुक्त )

     "  ------  तुम खाना नहीं खा रहे ---"दानिश ने कहा।

"मै कुकड़ी को कैसे खा लू, बता दो।कयोकि मैं खा नहीं सकता... मैंने दर्द देखा है, आपना दर्द कयो, हमें कोई काट दे, मेरी ख़ुशी उसको काट कर कयो,, जाहर की..

बताना पकीजा जी " फिर सनाटा। 

बड़ा बाई बोला.... " मुस्लिम धर्म  है... मास हम खाते है, युसफ खान... ये तुम कया कर रहे हो ---" कुछ बोले बिन ही पकीजा उठ ख़डी हूई," तुम बोलो कया खाना चाहते हो। " दानिश ऐसा मानसिक द्वन्द देख कर बोझिल हो गया। " नहीं पकीजा कुछ नहीं... बस, बता दू... मास से कोई धर्म खुश नहीं होता, ईश्वर जीभ के स्वाद से बहुत दूर है... वोह बस चाहता है सब उसकी रजा मे सुखी रहे। " फिर चुप का एहसास होना शुरू हुआ।

भाई को पता नहीं कया हुआ, उसने सारा मास उठा कर दूर आँगन मे उलाद दिया।और क्षमा दानिश से  मांगी। " तुम बड़े धर्म संकट मे पड़ो गे।, देख लेना। " ---भाई को इतना क्रोध आया," तुम जाओ, सदा के लिए मैंने आपने परवार समेत तुम्हे छोड़ दिया। " दोनों घुटने जमीन पर थे। और आखें नम थी।

वो पल मे उठा,  " मुझे माफ़ करना सब। "  और लगड़ा ता हुआ बाहर निकल गया। दानिश को कहा... भाई मुझे मेरे घर छोड़ दो... दोस्ती का वास्ता।

"---आओ ---दानिश ने कहा... जीप तक दोनों गए। पकीजा भागी आयी... एक सब्जी के साथ उसने दो गर्म रोटी देते काँपते हुए कहा, " युसफ इने माफ़ करना, ये जल्दी छुपा लो, और जाकर खा लेना। "   पकीजा एक दम अँधेरे मे छुपन हो गयी।

                          जीप स्टार्ट हुई, ठंड की वजह से  थोड़ी सी लेट ही स्टार्ट हुई.... गी.. गी.. की आवाज़ करती जीप पहले गेर मे झटका मार के चलती हुई सड़क पे आ गयी... फिर तीसरे और चौथे गेर मे चलते हुए कुछ बंद बड़े शो रूम से आगे निकल रही थी। युसफ बोला--" हम किधर जा रहे है, भैया..." दानिश बस इतना ही बोला, " घर " युसफ कुछ सोच के चुप हो गया। 

                                 "  अच्छा -- आपने घर लिजा रहे हो " एक दम से सपाट बोले। दानिश हस पड़ा। " तुम्हे अच्छे डॉ की जरूरत है, मिया... और घर मे कौन है युसफ तेरे, अकेले दुख मे छोड़ोगा तो खुदा का मामला मेरे को कियामत मे खाक कर देगा। " युसफ ने उसे ऐसे देखा और कहा ---" मेरे से जयादा वाकिफ हो, उस परवरदिगार के। " सुन कर हस पड़ा दानिश। खमोशी शहर की, खोसता शहर जाग रहा था, कम ही सोया लगा... " आपनो के ज़ख्म पे जल्दी महलम लग जाती है, युसफ। " वो जैसे अनुभव से बोला। युसफ चुप ही था। " कौन आपना है, दोस्त, कोई नहीं... अजनबी रिश्तों से कैसी मुहबत... " एक लम्बी सास खींची दानिश ने... युसफ की बात सुन  के एक दम से थोड़ा आवाज़ मे रूह जैसी बात बोला, " रिश्तों से युसफ मिया, संसार है, इसे अजनबी कैसे बोल लेते हो " दानिश ने एक और तीर छोड़ा। " मेरा मतलब जो समझ जाए, उसे तो हम- साथ कहते है, चाये आग का दरया हो। " युसफ ने बड़े लचक ढंग से कहा।

"लो मिया आ गया गरीब खाना " दानिश ने एक खूबसूरत घर के आगे जीप रोकी।

("चलदा )                    ---- नीरज शर्मा 

                               ---- शाहकोट, जलाधर।

                              ----* 144702 पिन कोड ----