खूबसूरत टकराव

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“तुम जैसे लोग दूसरों की ज़िंदगी से खेलते हो, और सोचते हो सबकुछ ख़रीद सकते हो… लेकिन याद रखना, मैं बिकने वालों में से नहीं हूँ।” उसकी आवाज़ धीमी थी, मगर हर लफ्ज़ में आग थी। सामने खड़ा था कबीर मल्होत्रा — ठंडी निगाहें, बेमिसाल आत्मविश्वास, और वो खामोशी जो किसी तूफ़ान से कम नहीं लगती थी। कबीर ने हल्की मुस्कान के साथ जवाब दिया, > “और तुम जैसे लोग हमेशा ये भूल जाते हो कि दुनिया सिर्फ़ सच से नहीं, राज़ों से चलती है…”

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खूबसूरत टकराव - 1

“तुम जैसे लोग दूसरों की ज़िंदगी से खेलते हो, और सोचते हो सबकुछ ख़रीद सकते हो… लेकिन याद रखना, बिकने वालों में से नहीं हूँ।”उसकी आवाज़ धीमी थी, मगर हर लफ्ज़ में आग थी।सामने खड़ा था कबीर मल्होत्रा — ठंडी निगाहें, बेमिसाल आत्मविश्वास, और वो खामोशी जो किसी तूफ़ान से कम नहीं लगती थी।कबीर ने हल्की मुस्कान के साथ जवाब दिया,> “और तुम जैसे लोग हमेशा ये भूल जाते हो कि दुनिया सिर्फ़ सच से नहीं, राज़ों से चलती है…”नैना शाह ने पलटकर कहा,> “तो फिर आज मैं तुम्हारा सबसे बड़ा राज़ खोलने आई हूँ।”कमरे में सन्नाटा छा गया।सिर्फ़ ...Read More

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खूबसूरत टकराव - 2

कबीर उठा और बाहर गया।बरामदे में खून की एक बूंद टपकी हुई थी…और वहाँ पड़ा था — वही लिफ़ाफ़ा।उसने —अंदर लिखा था,“अब सिर्फ़ नैना नहीं… तुम भी मेरे खेल का हिस्सा हो।”कबीर ने मुट्ठी भींची।“आर्यन… अब खेल खत्म होगा।”---रात में, नैना कबीर के पास आई।“मैंने आज सपना देखा… आर्यन मुझे बुला रहा था।”कबीर ने उसे कसकर थाम लिया,“अब कोई तुम्हें छू नहीं पाएगा।”पर बाहर, हवा में जैसे कोई ठंडी हँसी गूँज उठी।पर्दे हिलने लगे, और मोमबत्ती बुझ गई।नैना ने कबीर को कसकर पकड़ लिया।“कबीर… क्या वो सच में यहाँ है?”कबीर ने बस एक बात कही —“अगर वो जिंदा है… ...Read More