…साँसें थम-सी गईं।
उसकी उँगलियाँ कबीर की हथेलियों में और कस गईं।
“जीवन और मौत?” नैना की आवाज़ काँप रही थी।
कबीर ने उसकी ओर देखा — उसकी आँखों में अब डर नहीं, बल्कि एक दृढ़ आग थी।
“अगर खेल इतना बड़ा है,” उसने ठंडी आवाज़ में कहा, “तो मैं भी अब बच्चा नहीं खेलूँगा।”
रुही और आदित्य आगे बढ़े।
“कबीर, हम अकेले नहीं हैं,” आदित्य ने कहा, “जो भी ये कर रहा है, उसके पीछे एक पूरा जाल है। हमने CCTV फीड चेक की है — इस आदमी के पीछे और भी लोग हैं।”
कबीर ने तेज़ी से उस छाया की ओर देखा।
“अब बताओ,” उसने कहा, “कौन हो तुम? नाम बताओ।”
छाया हँसी — एक ठंडी, रहस्यमयी हँसी।
“नाम की क्या ज़रूरत है, कबीर? तुम्हें बस इतना जानना चाहिए कि आर्यन कभी मरा नहीं था।”
नैना के मुँह से चीख निकल गई —
“आर्यन?! लेकिन तुम…”
कबीर ने एक पल में सब जोड़ लिया — वही परछाई, वही धमाकों वाले खतरे, वही धमकी भरे लिफ़ाफ़े।
आर्यन — वो अतीत का साया जो अब उनके वर्तमान को निगलने आया था।
“तुम्हें लगता था खेल खत्म हो गया?” आर्यन ने मुस्कराते हुए कहा।
“नैना, तुम्हारा प्यार, तुम्हारी हिम्मत — बस एक प्यादा थी मेरी चाल में। अब मैं वो लूँगा जो मुझसे छीना गया था — तुम्हारा विश्वास, तुम्हारी दुनिया… और कबीर का सब कुछ।”
कबीर आगे बढ़ा,
“तुम्हारी ये बदले की आग अब मेरे प्यार के सामने बुझ जाएगी।”
आर्यन की आँखों में एक ठंडी चमक थी।
“प्यार? हाँ, वही तो सबसे कमजोर हथियार है, कबीर। क्योंकि जब मैं तुम्हारे सबसे करीब वाले को चोट पहुँचाऊँगा, तुम्हारा सारा साहस राख बन जाएगा।”
कबीर का चेहरा कठोर हो गया।
“तुम चाहो तो दुनिया जला दो, लेकिन नैना को छूने की हिम्मत मत करना।”
आर्यन ने मुस्कराते हुए जेब से एक पुरानी फोटो निकाली —
वही फोटो जिसमें नैना और आर्यन कॉलेज फेस्ट में एक साथ थे, मुस्कुराते हुए।
“याद है ये पल? जब तुमने कहा था कि अगर मैं कभी लौटूँ, तो तुम मुझे पहचान लोगी?”
नैना के होंठ सूख गए।
“तुम बदल गए हो… ये आर्यन नहीं, ये कोई और है।”
आर्यन ने धीरे कहा,
“नहीं, नैना। मैं वही हूँ… बस अब मुझे सच्चा चेहरा दिखाने में डर नहीं।”
गार्डन में सन्नाटा छा गया।
रुही ने धीरे से कहा, “कबीर, पुलिस को बुलाना चाहिए।”
कबीर ने सिर हिलाया, “नहीं… अभी नहीं। अभी ये खेल यहीं खत्म होगा।”
कबीर ने आगे बढ़कर आर्यन के करीब कदम रखा।
“तुम जो भी कह रहे हो, वो अब काम नहीं आएगा। तुम्हारी चालें अब पुरानी हो चुकी हैं।”
आर्यन ने हल्की मुस्कान के साथ कहा,
“पुरानी चालें… लेकिन नए दांव। आज रात कुछ ऐसा होगा जो तुम्हारे प्यार को तोड़ देगा।”
“क्या मतलब?” नैना ने डरी हुई आवाज़ में पूछा।
आर्यन ने बस इतना कहा,
“तुम्हें जल्द ही पता चल जाएगा। ‘नज़दीकियाँ’ का ये प्रोजेक्ट अब तुम्हारी ज़िंदगी का सबसे बड़ा इम्तिहान बनेगा।”
वो पलटा और अंधेरे में गुम हो गया।
कबीर ने उसका पीछा करने की कोशिश की, लेकिन गार्डन की लाइट्स फिर से झपकीं और बंद हो गईं।
सब अंधेरे में डूब गया।
कुछ ही सेकंड बाद, जब रोशनी लौटी — आर्यन गायब था।
सिर्फ़ ज़मीन पर एक चिट्ठी पड़ी थी।
कबीर ने उसे उठाया। उस पर सिर्फ़ तीन शब्द लिखे थे —
“अब बारी तुम्हारी।”
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गार्डन के बाद की रात
कबीर अपने कमरे में चुप बैठा था।
रुही, राहुल और आदित्य उसके आस-पास थे।
रुही ने धीरे कहा, “भाई, ये सब किसी प्लान का हिस्सा है। आर्यन अभी खत्म नहीं हुआ।”
कबीर ने मुट्ठी भींची।
“नहीं, अब वो जो भी करेगा, मैं तैयार हूँ। अब मैं सिर्फ़ प्यार के लिए नहीं, अपने परिवार की इज़्ज़त और नैना की सुरक्षा के लिए लड़ूँगा।”
आदित्य ने लैपटॉप की स्क्रीन की ओर इशारा किया।
“भाई, देखो — ये CCTV फुटेज में कुछ दिख रहा है।”
स्क्रीन पर आर्यन की परछाई गार्डन से जाते हुए दिखी — लेकिन उसके पीछे किसी और की आकृति भी थी।
चेहरा अस्पष्ट था, पर ऐसा लग रहा था कि वो किसी अंदरूनी व्यक्ति को इशारा कर रहा हो।
रुही ने चौककर कहा, “मतलब… कोई अंदर का भी शामिल है?”
कबीर ने गहरी साँस ली।
“हाँ… और अब मुझे जानना होगा कि वो कौन है।”
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नैना का डर
दूसरी ओर, नैना अपने कमरे में खिड़की के पास बैठी थी।
बाहर की हवा में एक बेचैनी थी।
शबनम अंदर आईं, “बेटी, तुम ठीक तो हो?”
नैना ने सिर हिलाया, “हाँ, माँ… बस दिल नहीं मान रहा। कुछ बहुत बड़ा होने वाला है।”
शबनम ने उसके कंधे पर हाथ रखा,
“कभी-कभी प्यार हमें परखता है, नैना। लेकिन अगर वो सच्चा है, तो हर अंधेरा हार जाता है।”
नैना ने मुस्कुराने की कोशिश की,
“हाँ माँ… पर आर्यन की वापसी ने सब कुछ बदल दिया है।”
तभी उसका फोन बजा —
अज्ञात नंबर से एक मैसेज आया:
“अगर सच जानना चाहती हो, तो कल आधी रात पुराने चैपल में मिलो — अकेली।”
नैना का चेहरा पीला पड़ गया।
उसने धीरे कहा, “कबीर… अब खेल सिर्फ़ तुम्हारा नहीं, मेरा भी है।”
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अगली सुबह – नई शुरुआत या नया जाल?
कबीर ने सबको बुलाया।
“अब हमें दो मोर्चों पर लड़ना होगा — आर्यन की चाल और अपने परिवारों की जिद।”
रुही ने कहा, “लेकिन अगर नैना खुद खतरे में पड़ जाए तो?”
कबीर ने दृढ़ता से कहा, “तो मैं अपनी जान की बाज़ी लगाऊँगा, पर उसे कुछ नहीं होने दूँगा।”
लेकिन उसे नहीं पता था —
नैना पहले ही आधी रात के उस चैपल की ओर जाने का फैसला कर चुकी थी।
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क्लिफ़हैंगर अंत:
रात के अंधेरे में, पुराना चैपल सन्नाटे में डूबा था।
दरवाज़ा धीरे से खुला।
नैना अंदर कदम रखती है।
मोमबत्तियाँ झिलमिला रही हैं, दीवारों पर परछाइयाँ नाच रही हैं।
एक आवाज़ गूँजती है —
“स्वागत है, नैना। आखिरकार तुम आ ही गईं।”
नैना की साँसें तेज़ हो गईं।
“कौन हो तुम?”
और तभी —
अंधेरे से एक आकृति बाहर आई।
वो चेहरा देखकर नैना की चीख गूँज उठी —
“तुम…?! ये तो मुमकिन ही नहीं!”
नैना के मुँह से निकली चीख चैपल की दीवारों से टकराई और हवा में गूँज उठी।
उसके सामने जो चेहरा था, वो देखकर उसकी रूह काँप गई।
“पापा…?!”
उसकी आवाज़ काँप रही थी।
हवाओं में एक पल को सन्नाटा छा गया।
पुरानी मोमबत्तियों की लौ हिलने लगी, जैसे उन्होंने भी वो सच देख लिया हो जो सालों से छिपा था।
नैना धीरे-धीरे उनके करीब गई।
“आप यहाँ…? आपने तो कहा था कि आप बिज़नेस ट्रिप पर हैं… फिर ये जगह… ये सब क्या है?”
उसके पिता — राजवीर कपूर, जो अब तक एक शांत और सख्त शख्सियत के रूप में जाने जाते थे — आज अंधेरे में कुछ और ही लग रहे थे।
उनकी आँखों में थकान थी, पर उसके पीछे एक डर भी छिपा था।
उन्होंने धीरे कहा,
“नैना… तुम्हें यहाँ नहीं आना चाहिए था।”
“क्यों?”
नैना के सवाल में गुस्सा और डर दोनों थे।
“क्योंकि मुझे किसी ने बुलाया है — और वो कोई ऐसा नहीं लग रहा जो मुझे नुकसान पहुँचाना चाहता हो। आप ही थे न जिन्होंने ये मैसेज भेजा?”
राजवीर ने आँखें झुका लीं।
“नहीं, वो मैं नहीं था।”
नैना का दिल ज़ोर से धड़क उठा।
“मतलब… कोई तीसरा?”
राजवीर बोले,
“हाँ… कोई जो चाहता है कि हमारे बीच दरार पड़े। और वो अब हमारे बहुत करीब है।”
नैना पीछे हटी।
“आपका मतलब… आर्यन?”
राजवीर ने सिर हिलाया।
“हाँ, वही — आर्यन सिंह। वो ज़िंदा है, नैना। और अब वो सिर्फ़ तुम्हारे लिए नहीं आया, वो हमारे पूरे परिवार को खत्म करने की साजिश रच रहा है।”
नैना की साँस अटक गई।
“लेकिन उसने ऐसा क्यों किया? आर्यन तो हमें बचाने की कोशिश कर रहा था… उसने कहा था—”
“उसने जो कहा, वो झूठ था।”
राजवीर की आवाज़ भारी हो गई।
“आर्यन ही वो आदमी है जो ‘नज़दीकियाँ’ प्रोजेक्ट के सारे डेटा चुराकर ब्लैक मार्केट में बेच रहा है। और तुम्हें इस्तेमाल कर रहा है हमारे करीब पहुँचने के लिए।”
नैना की आँखों से आँसू छलक गए।
“नहीं पापा… ऐसा नहीं हो सकता…”
तभी पीछे से कदमों की आवाज़ आई —
कबीर वहाँ पहुँच चुका था।
“नैना!”
उसने दौड़कर उसे थामा।
“तुम ठीक हो?”
नैना ने फुसफुसाकर कहा,
“कबीर… पापा कह रहे हैं कि आर्यन ज़िंदा है… और वो हमारे खिलाफ़ है…”
कबीर का चेहरा सख्त हो गया।
“मुझे पता है।”
राजवीर ने हैरानी से कहा, “तुम्हें पता था?”
कबीर ने धीरे कहा,
“हाँ, और मैं तब से उसे ट्रैक कर रहा हूँ। कल रात वो मेरी कंपनी के सर्वर में हैक करने की कोशिश कर रहा था। लेकिन मैंने उसकी लोकेशन ट्रेस कर ली है — वो यहीं, इसी शहर में है।”
नैना ने काँपते हुए पूछा,
“अब क्या करेंगे?”
कबीर ने उसकी आँखों में देखकर कहा,
“अब हम डरेंगे नहीं, नैना।
अब खेल उसी से खेला जाएगा — उसके तरीक़े से।”
राजवीर बोले,
“कबीर, ये खेल आसान नहीं है। आर्यन के पीछे कोई बहुत बड़ा नेटवर्क है। वो अकेला नहीं है।”
कबीर ने जवाब दिया,
“मुझे पता है, अंकल। लेकिन इस बार उसे खुद अपने बनाए जाल में फँसना होगा।”
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🌌 अगले दिन
‘नज़दीकियाँ’ प्रोजेक्ट के लॉन्च इवेंट का दिन था।
कबीर और नैना दोनों मीडिया की नज़रों में थे।
हर कैमरे की फ्लैश उन पर पड़ रही थी — लेकिन दोनों के चेहरों के पीछे तनाव छिपा था।
नैना ने धीरे कहा,
“अगर आर्यन वाकई यहाँ है, तो वो कुछ करेगा… आज ही।”
कबीर ने सिर हिलाया,
“इसलिए सबकुछ ट्रैप की तरह सेट किया गया है।
हर कैमरा, हर माइक्रोफोन… सब हमारी नज़र में है।”
भीड़ में एक आदमी काले सूट में घुसा।
उसने धीरे से कम्युनिकेटर में कहा — “लक्ष्य सामने है।”
वो था आर्यन सिंह।
चेहरे पर नकली मुस्कान, आँखों में आग।
वो मंच की ओर बढ़ा।
“मीडिया के सामने सब सच्चाई आज खुलेगी,” उसने फुसफुसाया।
लेकिन जैसे ही उसने स्टेज पर कदम रखा,
स्पॉटलाइट उस पर टिक गई — और स्क्रीन पर उसका चेहरा साफ़ दिख गया।
कबीर ने माइक उठाया,
“महिलाओं और सज्जनों, ये है वो इंसान जो हमारे सिस्टम को तोड़ने की कोशिश कर रहा था… और आज वो खुद हमारे कैमरों में फँस चुका है।”
आर्यन ने पीछे देखा — गार्ड्स उसकी ओर बढ़ चुके थे।
वो मुस्कराया,
“तुम सोचते हो खेल खत्म हो गया, कबीर? असली खेल तो अब शुरू होगा।”
उसने जेब से एक छोटा डिवाइस निकाला —
और स्क्रीन पर अचानक ब्लैकआउट हो गया।
भीड़ में हड़कंप मच गया।
धुआँ फैला, लाइट्स बुझीं — और जब सब शांत हुआ…
नैना गायब थी।
कबीर ने चारों ओर देखा,
“नैना!!”
उसकी आवाज़ पूरे हॉल में गूँज उठी।
राजवीर आगे बढ़े,
“कबीर! मेरी बेटी कहाँ है?”
कबीर ने चारों ओर नज़र दौड़ाई,
“आर्यन… उसे ले गया।”
राजवीर की आँखों में गुस्सा था,
“अब वो मेरी बेटी को छुएगा तो दुनिया का कोई कोना उसे नहीं बचा पाएगा।”
कबीर ने मुट्ठी भींची,
“मैं अपनी जान की बाज़ी लगा दूँगा, पर नैना को वापस लाकर रहूँगा।”
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अंधेरे में, एक कार शहर से दूर भाग रही थी।
पीछे की सीट पर बैठी थी नैना — बेहोश।
आर्यन ने रियर मिरर में देखा और बुदबुदाया —
“अब देखेंगे, कबीर… प्यार की कीमत कौन चुकाएगा।”
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चारों ओर बस धुआँ और सन्नाटा था।
गाड़ी शहर से बहुत दूर निकल चुकी थी।
काँच के पार दिखता जंगल, अंधेरे में डूबे रास्ते, और इंजन की हल्की गूँज — सबकुछ किसी रहस्यमय कहानी जैसा लग रहा था।
नैना धीरे-धीरे होश में आई।
उसने सिर थाम लिया — उसकी कलाई पर रस्सी बंधी थी।
“कबीर…?” उसने धीमी आवाज़ में कहा, लेकिन कोई जवाब नहीं मिला।
गाड़ी की खिड़की के बाहर चाँद की रोशनी पड़ रही थी।
सामने ड्राइविंग सीट पर बैठा था आर्यन, उसका चेहरा आधा अंधेरे में, आधा रौशनी में।
“आर्यन… ये क्या कर रहे हो तुम?”
उसकी आवाज़ काँपी, पर आँखों में डर से ज़्यादा सवाल थे।
आर्यन ने कुछ पल चुप रहकर कहा,
“वो सब जो मुझे बहुत पहले करना चाहिए था।”
“मतलब?”
गाड़ी एक पुराने फ़ार्महाउस के सामने रुकी।
वहाँ चारों ओर घना जंगल था, और एक टूटी हुई हवेली जैसी इमारत।
आर्यन ने नैना को बाहर निकाला, रस्सियाँ खोलीं लेकिन हाथ से पकड़कर अंदर ले गया।
“आर्यन, ये क्या है? क्या तुमने अपनी अक्ल खो दी है?”
नैना ने चीखकर कहा।
आर्यन रुक गया।
“अक्ल मैंने नहीं खोई, नैना — दिल खोया था, जब तुमने मुझपर यकीन करना छोड़ दिया था।”
नैना का दिल बैठ गया।
“तुम्हें क्या लगता है? ये सब करके मैं तुमपर यकीन कर लूँगी? तुमने मुझे सबके सामने शर्मिंदा किया, सबके सामने झूठा बना दिया—”
आर्यन ने बीच में रोक दिया,
“तुम्हें क्या पता उस वक्त मेरे साथ क्या हुआ था!”
उसकी आवाज़ फट पड़ी।
“जिस दिन मैं गायब हुआ था, उसी दिन रहमान शाह ने मुझे ज़िंदा गाड़ने की कोशिश की थी! लेकिन मैं बच गया… जला हुआ, टूटा हुआ, और सबसे बड़ा — बदला लेने की आग लिए!”
नैना ने धीरे से कहा,
“रहमान शाह… वही आदमी जो कबीर के साथ प्रोजेक्ट में था?”
आर्यन ने कड़वी हँसी हँसी,
“हाँ, वही। लेकिन तुम नहीं जानती — उसने सिर्फ़ मुझे नहीं, कबीर को भी इस्तेमाल किया था। दोनों को एक-दूसरे के खिलाफ़ भड़का दिया।
और जब मैंने सच बताने की कोशिश की… उसने सबूत मिटा दिए, मेरा नाम अपराधियों की लिस्ट में डाल दिया। कबीर को लगा मैंने धोखा दिया।”
नैना चुप थी, उसकी आँखों में झटका था।
आर्यन आगे बोला,
“मैं कबीर से नफरत नहीं करता, नैना। मैं उससे वो हिसाब चाहता हूँ जो उसने अनजाने में बिगाड़ दिया।
क्योंकि उसने रहमान पर भरोसा किया… और उसने तुम्हारे पापा को भी अपने जाल में फँसा लिया।”
नैना की साँस रुक गई।
“क्या? मेरे पापा?”
“हाँ।”
आर्यन ने अपनी जेब से एक फाइल निकाली — पुराने फोटो, डॉक्यूमेंट्स और ईमेल प्रिंटआउट।
“ये सबूत हैं कि रहमान शाह ने तुम्हारे पिता के नाम पर नज़दीकियाँ प्रोजेक्ट का गलत इस्तेमाल किया।
लाखों लोगों के डेटा को बेच दिया गया… और जब मैंने सच बताया, उन्होंने मुझे ख़त्म करने की कोशिश की।”
नैना ने काँपते हुए कागज़ थामे।
“तो तुम बदला लेने आए हो… या सच दिखाने?”
आर्यन ने कहा,
“दोनों। लेकिन मेरे लिए सबसे बड़ा सच तुम हो, नैना।”
उसने उसकी ओर देखा —
“मैं तुम्हें दर्द नहीं देना चाहता था, लेकिन अगर तुम्हें बचाने के लिए दुनिया से लड़ना पड़े, तो मैं लड़ूँगा।”
नैना ने आँसू पोंछे,
“तो फिर कबीर को क्यों नहीं बताया? उसे दुश्मन क्यों बना दिया?”
आर्यन ने गहरी साँस ली,
“क्योंकि वो अब रहमान के बहुत करीब है।
वो उसे अपना बिज़नेस मेंटर समझता है — लेकिन असल में वही उसकी डोर खींच रहा है।”
उसी वक्त, हवेली के दरवाज़े पर धमाका हुआ।
“आर्यन! बाहर आओ!!”
कबीर की आवाज़ गूँज उठी थी।
आर्यन ने एक लंबी साँस ली।
“देखो… वो आ गया।”
नैना ने कहा,
“आर्यन, प्लीज़… कोई झगड़ा मत करना। अब सच बताओ, छुपाओ मत।”
आर्यन ने उसके माथे पर हाथ रखा,
“अगर मैं सच बोलूँगा तो आज कोई एक मरेगा, नैना। या मैं… या कबीर।”
दरवाज़ा टूटकर खुल गया।
कबीर अंदर आया, उसके पीछे राजवीर और पुलिस थी।
कबीर ने चिल्लाकर कहा,
“आर्यन! उसे छोड़ दो!”
आर्यन ने जवाब दिया,
“कबीर, मैं उसे नुकसान नहीं पहुँचाने आया! मैं सच्चाई दिखाने आया हूँ!”
कबीर ने बंदूक सीधी उसकी ओर तान दी।
“तुमने पहले ही काफी झूठ बोला!”
नैना बीच में आ गई —
“कबीर, नहीं!! वो सच बोल रहा है!”
कबीर ठिठक गया।
“क्या?”
नैना ने फाइल उठाई और राजवीर की ओर बढ़ाई,
“पापा, देखिए… इसमें सब कुछ है। रहमान शाह ने आप दोनों को इस्तेमाल किया है!”
राजवीर ने काँपते हुए कागज़ देखे।
“ये… ये तो मेरे सिग्नेचर हैं…”
कबीर ने आर्यन की ओर देखा —
उसकी आँखों में अब गुस्से की जगह उलझन थी।
“तुम कहना क्या चाहते हो?”
आर्यन ने धीरे कहा,
“मैं कहना चाहता हूँ कि दुश्मन मैं नहीं हूँ, कबीर… वो है, जो हम दोनों की ज़िंदगी का खेल बना हुआ है।”
और तभी —
बाहर से गोलियों की आवाज़ आई।
खिड़कियाँ टूटीं।
सायरन गूँज उठे।
रहमान शाह की गाड़ियाँ हवेली के बाहर रुक चुकी थीं।
वो खुद उतरा — मुस्कराते हुए।
“तो… आखिर मेरे प्यादे एक ही जगह मिल गए।”
कबीर और आर्यन दोनों ने उसकी ओर देखा।
अब वो दुश्मन सामने था — वही जिसने सब कुछ बर्बाद किया था।
रहमान ने बंदूक उठाई,
“अब देखता हूँ प्यार जीतता है या बदला।”
कबीर और आर्यन एक-दूसरे के साथ खड़े हो गए — पहली बार एक ही तरफ़।
नैना उनके बीच में थी — आँसू भरी, पर मजबूर।
आर्यन ने कहा,
“कबीर, आज अगर हमें बचना है, तो साथ रहना होगा।”
कबीर ने सिर हिलाया,
“साथ।”
रहमान ने ट्रिगर दबाया —
और गोलियों की आवाज़ गूँज उठी।
धुआँ, चीखें, और टूटते काँच के बीच —
नैना की चीख आखिरी बार सुनाई दी —
“कबीर…!!”
और फिर — सब कुछ अंधेरे में डूब गया।
हवा तेज़ चल रही थी। चैपल के निशान अब भी दीवारों पर ताज़ा थे, लाइटें झकझोर रही थीं और अफरातफरी की गूंज हर ओर फैल रही थी। कबीर के चेहरे पर थकान थी, पर उसकी आँखों में अब भी इक आग जल रही थी — नैना के लिए, उसकी इज़्ज़त के लिए, और जो सच पाँवों के नीचे दबा था उसे उद्घाटित करने के लिए।
नैना ने साँसें गहरी खींचीं। उसका पिता — सलीम शाह — वही थे, अभी अभी घायल तो हुए पर ज़िंदा; वे जमीन पर नाज़ुक सी अवस्था में बैठे थे, शबनम के हाथों में उनका सिर था। काफ़ी ख़ून था पर उनकी आँखों में अभी भी होश था।
सलीम ने धीमे स्वर में कहा, “नैना… सुनो… सच बाहर आना चाहिए… पर संभल कर चलो।”
नैना ने ज़मीन से उठते हुए कहा, “पापा! तुम ठीक हो? किसने?”
कबीर घूमकर देखा — रहमान शाह की सियारनी जैसी मुस्कान खिड़की से अंदर झाँक रही थी। रहमान का समूह अब चैपल के बाहर लगा था; उनके बीच आर्यन भी खड़ा था — आँखों में उभरी पिशाच जैसी तीखी चमक। लेकिन आज कुछ अलग था — आर्यन के हाथ में न तो वही पुराना रिवॉल्वर था बल्कि उसके चेहरे पर टूटे वादों का बोझ भी था।
रुही और आदित्य ने तुरंत सलीम के पास बाँहें डालीं और राहुल बाहर जाकर गार्ड्स को हटा रहा था। हवा में हर एक सेकंड तेज़ हो रहा था — जैसे हर घड़ी में कोई नया सच फूट कर बाहर आएगा।
“रहमान!” कबीर ने घुस कर कहा, आवाज़ में लहज़ा कटु था। “तुम्हें अब और क्या चाहिए?”
रहमान ने ठंडी हंसी के साथ सिर टिकाया, “बस एक आख़िरी कदम, कबीर — जब तुम्हारा सब कुछ उजागर होगा, तब तुम्हारी सच्चाई और भी खूबसूरत होगी।”
आदित्य ने मोबाइल स्क्रीन दिखाते हुए कहा, “कबीर — यह लोकेशन फ्लिकर कर रही है। बाहर कई वाहने हैं। वे भागने की तैयारी में हैं।”
कबीर ने आँसू और गुस्से को एक जगह पर थामते हुए कहा, “तब भागने ना पाओगे। आज सच्चाई रोशन होगी, और मैं कोई बहाना स्वीकार नहीं करूँगा।”
शबनम ने सलीम के कान में कुछ कहा — उनकी आँखें धीरे-धीरे खुली और एक नाम फुसफुसाई: “अर्यन… उसने…”
नैना के हाथ काँप गए। तारों की तरह शब्द टूटकर गिरे — अब सब चीज़ें एक धुंधली रेखा से ऊपर निकलकर साफ़ हो रही थीं: अर्यन का अतीत, रहमान की साज़िश और सलीम पर जो दबाव था — सब किसी बड़े षड्यंत्र से जुड़े थे।
रहमान ने उस पल चुप्पी तोड़ी, “तुम सब सच जानते हो — पर क्या तुमने सोचा था कि सलीम शाह अपने नाम की सफाई खुद नहीं कर पाएँगे? मैंने उनका कारोबार हिला दिया था… और जब उन्होंने सवाल उठाए — मैंने वार किया। आज जो यहाँ हुआ, वो बस शुरूआत थी।”
कबीर ने कदम बढ़ाकर कहा, “तुमने मेरे और उसकी ज़िंदगी को क्यों छलनी किया? क्यों?”
रहमान ने धीरे से कहा, “क्योंकि ताक़त वही जानती है जो दिखती है, कबीर। और तुम लोगों की प्रेम कहानी उस ताक़त के रास्ते में आई।”
तभी बाहर से चीख आई — राहुल ने भागते हुए कहा, “कबीर! मुख्य गली में कुछ लोग रहमान की गाड़ियाँ पकड़ने लगे हैं — पर उनमें से एक नकाबधारी अंदर आ चुका है!”
सबका ध्यान उस ओर गया — एक नकाबधारी ने कमरे की खिड़की से अचानक प्रवेश किया और सीधे सलीम की तरफ़ रुख किया। नकाब हटते ही चेहरा दिखा — और वो चेहरा किसी अजनबी का नहीं था। सब चौंककर रह गए — वह अर्यन जैसा ही दिखता था, पर उसकी आँखों में वो पुरानी आशंका और टूटन थी जिसने उसे पहले अलग कर दिया था।
“अरी...?” नैना ने नाम फुसफुसाया। पर अर्यन ने आँखें झपकाते हुए कहा, “नैना — मैं तुम्हें दिखाना चाहता हूँ कि मैंने कबीर के खिलाफ क्यों कदम उठाया। पर मैं तुम्हें नुकसान नहीं पहुँचाऊँगा।”
पर रहमान ने हँसते हुए कहा, “सब खेल रहे हैं — तुम भी। पर समझ लो कि जो सच तुम सोच रहे हो, वो उस सच से बड़ा है जो मैं पकड़कर रखा है।”
तब अचानक — गोली की आवाज़ फिर गूँजी। कमरे का एक हिस्सा धुँधला गया और शबनम छटपटा कर गिर पड़ी। सलीम ने खुद को झटकते हुए ढाल बनाते हुए कहा, “बाहर से अटैक है — ढक्कन कर लो।”
कबीर और अर्यन, दोनों एक ही दिशा में खड़े हो गए — आँखों में अब कोई दूरी नहीं रही, सिर्फ़ मिशन। दोनों ने मिलकर उस नकाबधारी की ओर बढ़े जो अभी भी कमरे में था — पर नकाबदार ने जो अगला कदम उठाया, उसने सबको चौंका दिया: उसने अपने हाथ पर लिखी एक छोटी सी चिप दिखाई — और कहा, “आप सब बस थियेटर के सितारे हो। असली गेम तो ऊपर के लोगों के बीच है।”
अचानक लिंक खुली — चिप से एक लाइव फीड निकला जिसमें रहमान के ऑफिस के कुछ रिकॉर्ड खेल रहे थे — जिसमें दिख रहा था कि कई सरकारी और बिज़नेस नाम रहमान के साथ जुड़े हुए थे। और फिर फ़ीड ने एक और नाम दिखाया — एक ऐसा नाम जिसे कोई उम्मीद नहीं कर रहा था: किसी बड़े नेता का या किसी करीबी का — और वह नाम सलीम से जुड़ा हुआ दिखा।
नैना की साँस थम गई। सब ने रिकॉर्ड में झाँका — वहाँ पर सलीम की ही आवाज़ थी, पर वह आवाज़ एक दबाव में कही गई बात सी लग रही थी — जैसे उसे मजबूर किया गया हो।
रुही ने कंप्यूटर झटक कर कहा, “तो सच्चाई ये है कि सलीम ने सब कुछ अकेले नहीं किया — उसे फँसाया गया था।”
कबीर ने तेज़ी से कहा, “तो लक्ष्य बदलो — जो हमें फँसा रहा है, उसे पकड़ो।”
वही पल एक दूसरी गोली ने खिड़की तोड़ दी — और कमरे में धुंध का गुब्बारा भर गया। किसी ने कहा, “उस नकाबधारी ने हमें सर्टन्ट कर दिया — अब बाहर से भारी गनमेन आ रहे हैं।”
लेकिन तब — सबसे अनपेक्षित क्षण आया। नकाबधारी ने अपना मुखछेदन किया — और वह राहुल बन गया। सब चौंक गए। राहुल ने देखा कि सबकी आँखें उस पर थीं। उसने गहरी साँस ली और कहा, “मैंने ऐसा क्यों किया? क्योंकि अंदर का षड़यंत्र बड़ा था — और अगर हम सब को सच में बचाना है तो कभी-कभी खुद को खतरे में डालना पड़ता है।”
रुही चिल्लाई, “राहुल! तुमने हमें क्यों धोखा दिया?”
राहुल ने आँखों में आँसू लिए कहा, “मैंने नहीं धोखा दिया — मैंने खेल खेला ताकि रहमान के अरेंजमेंट्स और अंदरूनी कनेक्शन बाहर आ सकें। जो चिप तुमने अभी देखी — वह मेरी ही तरफ़ से आई है — मैंने उसकी मदद से लाइव-लीक करवा दिया।”
रहमान का चेहरा सख़्त हो गया। उसने अपने आदमी बाहर बुलाए — पर पुलिस का सायरन पास से आने लगी — रुही और आदित्य ने तुरंत सबको सुरक्षित जगह पर खींचा।
अब माहौल बदल चुका था — गेम पब्लिक में आने लगा था। रिकॉर्ड्स, चिप, लाइव फ़ीड — सब कुछ रहमान की पकड़ से बाहर निकल रहा था। रहमान पहले की तरह शांत नहीं रह सका — उसकी चालें फैलने लगीं।
कबीर ने निकट आकर सलीम का हाथ थामा। सलीम ने आँसू भरी हल्की हँसी में कहा, “मेरा इरादा बेटी को सुरक्षित रखना था… पर मैं तुम्हारे लिए झूठ सह गया।”
नैना ने ज़ोर से कहा, “अब कोई झूठ काम नहीं करेगा। सच सामने आ गया — और अब जवाबदेही बाकी है।”
रहमान ने आख़िरी कोशिश में घोषणा की, “तुम जीत रहे हो? शोर मचाओ! पर जब असली लोग सामने आएँगे, तुम समझ जाओगे
रात भर बरसात होती रही।
छत से टपकते पानी की बूँदें ज़मीन पर गिरकर जैसे हर बार एक नया राज़ कह रही थीं।
सुबह की हल्की धूप कमरे में दाखिल हुई तो नैना रसोई में खड़ी चाय बना रही थी।
उसके हाथ काँप रहे थे, पर वो कोशिश कर रही थी खुद को संभालने की।
कबीर कमरे के दरवाज़े पर चुपचाप खड़ा था — जैसे कुछ कहना चाहता हो, मगर शब्द उसके गले में अटक गए हों।
“चाय लोगे?”
नैना ने बिना उसकी तरफ देखे पूछा।
कबीर ने धीरे कहा, “तुम्हारा मूड देखकर तो लगता है चाय में जहर डाल दूँ तो भी तुम मुझे पिला दोगी।”
नैना ने उसकी तरफ घूरा,
“तुम्हें मज़ाक सूझ रहा है, कबीर? कल रात जो हुआ उसके बाद भी?”
कबीर ने पास आकर कहा,
“नैना, मैं जो कुछ भी कर रहा हूँ, वो तुम्हारे पापा की वजह से…”
नैना ने गुस्से में कप ज़ोर से मेज़ पर रख दिया,
“मेरे पापा का नाम मत लो! तुम नहीं जानते, वो कैसे इंसान हैं!”
कबीर चुप हो गया।
कमरे में सन्नाटा छा गया — बस प्रेशर कुकर की सीटी बज रही थी।
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💔 तभी बाहर से आवाज़ आई –
“नैना…”
नैना के कदम जैसे ज़मीन से जकड़ गए।
उसने मुड़कर देखा — दरवाज़े पर सलीम शाह खड़े थे।
चेहरे पर थकान, बालों में सफ़ेदी, मगर आँखों में वही अपनापन।
नैना की साँसें तेज़ हो गईं।
“अब्बू…”
वो दौड़कर उनके गले लग गई।
दोनों की आँखों से आँसू बह निकले।
कबीर पीछे हट गया।
वो समझ नहीं पा रहा था कि अब क्या कहना चाहिए।
सलीम शाह ने उसके सिर पर हाथ फेरा,
“बेटा, जब खुदा चाहता है कि इंसान अपनी ग़लती सुधार ले, तो वो उसे दूसरा मौका देता है… मुझे वही मौका मिला है।”
नैना ने आँसू पोंछे,
“अब्बू, आप ज़िंदा कैसे हैं? सबको तो लगा था कि…”
सलीम ने गहरी साँस ली,
“कुछ सच्चाइयाँ वक्त से छुपानी पड़ती हैं, बेटी। मेरी मौत एक नाटक थी — ताकि मैं उन लोगों को पकड़ सकूँ जिन्होंने मेरे खिलाफ साजिश रची थी।”
कबीर ने पूछा,
“मतलब आप जानते हैं कि वो लोग कौन हैं?”
सलीम शाह ने उसकी तरफ देखा,
“जानता हूँ… और उनमें तुम्हारा नाम भी शामिल है, कबीर।”
नैना का चेहरा उतर गया।
“अब्बू… क्या कह रहे हैं आप?”
सलीम ने कहा,
“कबीर कभी तुम्हारे करीब यूँ ही नहीं आया, नैना। उसे मेरे खिलाफ सबूत इकट्ठे करने भेजा गया था।”
नैना ने पीछे हटते हुए कहा,
“कबीर… ये झूठ है, है ना?”
कबीर की आँखें झुक गईं।
“शुरुआत में हाँ, लेकिन अब… अब नहीं। मैं तुमसे सच में प्यार करता हूँ, नैना।”
सलीम ने सख़्त लहजे में कहा,
“प्यार झूठ से शुरू होकर सच्चाई में खत्म नहीं हो सकता, कबीर।”
कमरे में फिर सन्नाटा।
चाय ठंडी हो चुकी थी।
सिर्फ़ दिलों में उबाल बाकी था।
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🌆 शाम – घर का आँगन
नैना पुराने झूले पर बैठी थी।
सलीम शाह अख़बार पढ़ते हुए उसकी तरफ़ देख रहे थे।
“बेटी, कुछ बातें दिल में रख लेने से इंसान हल्का नहीं होता… कबीर से बात कर ले,” उन्होंने कहा।
नैना ने धीरे कहा,
“वो सब कुछ जानता था अब्बू, फिर भी मुझसे छुपाया। अब मैं कैसे भरोसा करूँ?”
सलीम ने मुस्कराते हुए कहा,
“बेटी, हर झूठ पाप नहीं होता… कुछ झूठ उस सच्चाई की रखवाली करते हैं जो इंसान टूट जाने से बचाता है।”
नैना ने सिर उठाया।
“क्या आप उसे माफ़ कर सकते हैं?”
सलीम ने कहा,
“अगर वो सच में बदल गया है… तो हाँ।”
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🌙 रात – रसोई का कोना
नैना रसोई में थी, चूल्हे पर दूध चढ़ा रही थी।
पीछे से आवाज़ आई,
“थोड़ा शक्कर ज़्यादा डालना, वरना तुम्हारे जैसा कड़वा हो जाएगा।”
वो पलटी — कबीर मुस्करा रहा था।
“तुम्हें शर्म नहीं आती?” नैना ने झुँझलाकर कहा।
कबीर ने कहा,
“शर्म अब आती है, जब तुम्हारी आँखों में दर्द देखता हूँ।”
वो पास आया,
“नैना, तुम्हारे अब्बू सही हैं… मैंने बहुत बड़ी गलती की थी। लेकिन अब मैं सिर्फ़ एक मौका चाहता हूँ — तुम्हारे और उनके भरोसे का।”
नैना ने दूध के उबलते बर्तन को देखा,
“भरोसा उस दूध जैसा होता है, कबीर… एक बार उबल जाए तो निशान छोड़ जाता है।”
कबीर ने कहा,
“तो मुझे वो निशान मिटाने दो।”
कुछ देर दोनों चुप रहे।
फिर नैना ने धीरे से कहा,
“एक शर्त पर…”
“क्या?”
“अब झूठ नहीं, चाहे सच कितना भी तकलीफ़देह क्यों न हो।”
कबीर ने सिर झुका लिया,
“कसम है, अब हर बात सबसे पहले तुम्हें बताऊँगा।”
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💫 आख़िरी सीन
आँगन में हवा चल रही थी।
सलीम शाह बालकनी में खड़े थे।
उनके हाथ में एक पुराना फ़ाइल कवर था, जिस पर लिखा था —
“ऑपरेशन नूर”
उन्होंने धीरे से फाइल खोली, और अंदर से कबीर की तस्वीर निकाली…
नीचे लाल स्याही में लिखा था —
“TARGET REVERSED”
सलीम शाह ने आसमान की तरफ देखा,
“अब वक्त है, असली खेल शुरू करने का…”
सुबह की अज़ान की आवाज़ पूरे मोहल्ले में गूँज रही थी।
सलीम शाह नमाज़ के बाद अपने कमरे में बैठे थे। सामने खुली फाइल, बगल में एक पुराना टेप रेकॉर्डर और मेज़ पर बिखरे कागज़।
हर पन्ना किसी पुराने गुनाह का सबूत था।
दरवाज़े पर दस्तक हुई —
नैना अंदर आई, हाथ में नाश्ते की ट्रे थी।
“अब्बू, कुछ खा लीजिए… रात से कुछ खाया नहीं आपने।”
सलीम ने उसकी तरफ देखा और मुस्कराए,
“जब तक सच ज़ुबान से निकल न जाए, तब तक रोटी का स्वाद नहीं आता, बेटी।”
नैना ने बैठते हुए कहा,
“आप ये ‘ऑपरेशन नूर’ क्या है, अब्बू? कल से आपको इसी में डूबे देखा है।”
सलीम ने गहरी साँस ली,
“‘ऑपरेशन नूर’ ही वो सच है, जिसकी वजह से मेरी ज़िंदगी बर्बाद हुई, और तुम्हारी माँ… हमें छोड़कर चली गई।”
नैना की आँखें फैल गईं,
“अम्मी? पर उन्होंने तो कहा था कि आप...”
“हाँ,” सलीम ने सिर झुकाया, “उन्होंने कहा था कि मैं मर चुका हूँ — क्योंकि वो खुद रहमान शाह के इशारों पर चल रही थीं।”
नैना के हाथ से चम्मच गिर पड़ा।
“क्या… अम्मी… रहमान के साथ…?”
सलीम ने हाँ में सिर हिलाया,
“वो सब कुछ जानती थीं। रहमान चाहता था कि मैं उस सरकारी मिशन से हट जाऊँ जिसमें ‘नूर डेटा सिस्टम’ नाम की फाइल थी —
उस फाइल में उन सब लोगों के नाम थे जो देश के खिलाफ काम कर रहे थे।
Be Continued