गौतम बुद्ध की प्रेरक कहानियां

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गौतम बुद्ध के पिता का नाम शुद्धोधन था। वे कपिलवस्तु के राजा थे। बात उस समय की है, जब गौतम बुद्ध का जन्म भी नहीं हुआ था। राजा शुद्धोधन के कोई संतान ना थी। इसी कारण संतान प्राप्ति की चाह में वे सदैव विचार मग्न रहते थे। संतान प्राप्ति की चाह में ही उन्होंने दो विवाह किए थे। राजा शुद्धोधन की बड़ी रानी का नाम महामाया और छोटी का नाम प्रजावति था। धीरे–धीरे समय व्यतीत हो रहा था। राजा शुद्धोधन अधेड़ अवस्था से वृद्धावस्था की ओर अग्रसर होने लगे थे। देवी–देवताओं की पूजा–अर्चना और दान–पुंय आदि करने के बाद भी उन्हें संतान का सुख न मिल सका। समय बितने के साथ-साथ राजा की तृष्णा भी बलवती होती जा रही थी। ऐसा प्रतीत होता था, जैसे भाग्य के देवता राजा शुद्धोधन से कुपीत हो गए हैं, तभी तो उनकी श्रद्धा और निष्ठा भी कोई रंग न ला सकी थी। अब राजा की तृष्णा चिंता और गहन चिंता में बदलने लगी थी। राज्य में चारों ओर सुख, शांति और समृद्धि थी, किंतु अपना उत्तराधिकारी न होने के कारण यह सब कुछ राजा को निरर्थक की प्रतीत होता था।

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गौतम बुद्ध की प्रेरक कहानियां - भाग 1

गौतम बुद्ध के पिता का नाम शुद्धोधन था। वे कपिलवस्तु के राजा थे। बात उस समय की है, जब बुद्ध का जन्म भी नहीं हुआ था। राजा शुद्धोधन के कोई संतान ना थी। इसी कारण संतान प्राप्ति की चाह में वे सदैव विचार मग्न रहते थे। संतान प्राप्ति की चाह में ही उन्होंने दो विवाह किए थे। राजा शुद्धोधन की बड़ी रानी का नाम महामाया और छोटी का नाम प्रजावति था। धीरे–धीरे समय व्यतीत हो रहा था। राजा शुद्धोधन अधेड़ अवस्था से वृद्धावस्था की ओर अग्रसर होने लगे थे। ...Read More

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गौतम बुद्ध की प्रेरक कहानियां - भाग 2

गौतम बुद्ध का नामकरणअसित ऋषि का आशीर्वाद और वक्तव्य सुनकर राजा शुद्धोधन को बड़ी प्रसन्नता हुई। उन्होंने बहुत सा शिशु के ऊपर न्योछावर करके निर्धनों में वितरित कर दिया। बड़े हर्ष और प्रसन्नता के वातावरण में शिशु के नामकरण संस्कार का समारोह आयोजित किया गया। शिशु राजकुमार के लिए 'सिद्धार्थ' नाम उपयुक्त माना गया। जब से सिद्धार्थ का जन्म हुआ था, राजमहल के वातावरण में एक अनोखी सी प्रसन्नता का भाव समाहित था। चारों ओर जैसे शिशु सिद्धार्थ का स्पर्श कर मंद-सुगंध समीर के झोंके राजमहल में अठखेलियाँ कर रहे थे। काल की ...Read More

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गौतम बुद्ध की प्रेरक कहानियां - भाग 3

धनी और निर्धन का अंतरराजा शुद्धोधन राजकुमार के लिए वैभव-विलास के जितने साधन कुट रहे थे, उतने ही वे विमुख होते जा रहे थे। एक दिन सिद्धार्थ का बालसखा बसंतक सिद्धार्थ में बोला, "राजकुमार आपके माता-पिता अपने कितना प्रेप और स्नेह करते है। उन्होंने आपके लिए संसार में लगभग सभी सुख उपलब्ध करा दिए हैं।""बसंतक" सिद्धार्थ बोले, "संगार के सभी माता-पिता अपनी संतान में प्रेम और स्नेह करते हैं। जिनके माता-पिता की जितनी सामध्ये होती है, वे अपनी मंडान को मुख-सुविधाएँ उपलब्ध कराते हैं, किंतु यहाँ पर एक गंभीर प्रश्न उठता है।""वह क्या?""संसार में सभी लोग एक समान क्यों ...Read More

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गौतम बुद्ध की प्रेरक कहानियां - भाग 4

देवदत्त का विरोधदेवदत्त के मुख पर गहरे विषाद और क्षोभ के भाव थे। वह शीघ्रता से चलकर यशोधरा के के पास पहुँचा और उनसे बोला, "राजन! आपने तो यह प्रतिज्ञा की थी कि जो भी वीर पुरुष अस्त्र-शस्त्र के संचालन में प्रतियोगिता का मुख्य विजेता रहेगा, उसी के साथ राजकुमारी यशोधरा का विवाह होगा।" देवदत्त की बात सुनकर यशोधरा के पिता निरुत्तर हो गए। वास्तव में वे अपनी यह प्रतिज्ञा विस्मृत कर बैठे थे। अब उन्होंने तुरंत राजा शुद्धोधन से बात की और अस्त्र-शस्त्र की प्रतियोगिता आयोजित करने का अनुरोध किया। राजा शुद्धोधन ने अनुरोध स्वीकार कर ...Read More

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गौतम बुद्ध की प्रेरक कहानियां - भाग 5

मृत्यु ही अटल सत्यएक दिन पुनः राजकुमार सिद्धार्थ को नगर-भ्रमण की इच्छा हुई। राजकुमार के आदेश पर छंदक ने तैयार किया और सिद्धार्थ को लेकर नगर-भ्रमण को चल पड़ा। बहुत सावधानी के बाद भी मार्ग में एक करुणाजनक दृश्य दिखाई पड़ ही गया। वह व्यक्ति रोग की अधिकता के कारण निर्बल हो गया था। वह काँपता-कराहता एक ओर को चल रहा था। उसे कराहते देख सिद्धार्थ ने पूछा, "इस व्यक्ति को क्या कष्ट है? यह कराह क्यों रहा है?" "राजकुमार! यह व्यक्ति कभी बहुत शक्तिशाली था, किंतु रोग ने इसे निर्वल बना दिया है ...Read More