गायब हैंडल का रहस्य सुबह के 10 बजे थे। बरेली के एक व्यस्त बैंक में लोगों की ऐसी भीड़ थी, मानो कुंभ का मेला लगा हो। सब अपने-अपने काम में ऐसे डूबे थे, जैसे चींटी शक्कर के दाने पर। किसी का ध्यान एक कोने में खड़े उस दुबले-पतले आदमी पर नहीं गया, जिसका नाम टिमडेबिट था। वह ऐसे साधारण कपड़ों में था, मानो किसी सरकारी दफ्तर का बाबू हो, आँखों पर ऐसा चश्मा था जैसे दूरबीन और चेहरे पर ऐसी शांति थी जैसे बुद्ध भगवान समाधि में हों। लेकिन उसके दिमाग में ऐसी खुराफात पक रही थी, मानो ज्वालामुखी फटने वाला हो।
THIEF BECOME A PRESEDENT - PART 1
भाग 1: गायब हैंडल का रहस्यसुबह के 10 बजे थे। बरेली के एक व्यस्त बैंक में लोगों की ऐसी थी, मानो कुंभ का मेला लगा हो। सब अपने-अपने काम में ऐसे डूबे थे, जैसे चींटी शक्कर के दाने पर। किसी का ध्यान एक कोने में खड़े उस दुबले-पतले आदमी पर नहीं गया, जिसका नाम टिमडेबिट था। वह ऐसे साधारण कपड़ों में था, मानो किसी सरकारी दफ्तर का बाबू हो, आँखों पर ऐसा चश्मा था जैसे दूरबीन और चेहरे पर ऐसी शांति थी जैसे बुद्ध भगवान समाधि में हों। लेकिन उसके दिमाग में ऐसी खुराफात पक रही थी, मानो ज्वालामुखी ...Read More
THIEF BECOME A PRESEDENT - PART 2
भाग 2: रेलवे प्लेटफार्म बेंच की लकड़ी का रहस्यमय मामलाबरेली के पुराने रेलवे स्टेशन पर लोगों की आवाजाही ऐसी हो गई थी, मानो किसी ने भूत भगा दिया हो। टूटी-फूटी बेंचें और उड़ती धूल इसकी ऐसी कहानी बयान कर रही थी, जैसे किसी खंडहर की दीवारें। टिमडेबिट एक कोने में ऐसे बैठा था, जैसे कोई जासूस अपने शिकार का इंतज़ार कर रहा हो, आँखों पर ऐसा चश्मा लगाए जैसे गूगल ग्लास और आस-पास का मुआयना ऐसे कर रहा था, जैसे कोई प्रॉपर्टी डीलर ज़मीन का जायज़ा ले रहा हो। आज उसकी गिद्ध नज़र एक बेंच पर ऐसे पड़ी, जैसे ...Read More