मुलाक़ात - एक अनकही दास्तान

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रात का दूसरा पहर था। जैसलमेर का सोनार किला चाँदनी में नहाया हुआ था, और रेगिस्तान की ठंडी हवा रेत के कणों को हल्के-हल्के उड़ा रही थी। दूर से लोक-संगीत की धुनें आ रही थीं—रावणहत्था की करुण तान और ढोलक की थाप रेगिस्तान की नीरवता को संगीतमय कर रही थी। आदित्य, एक प्रसिद्ध उपन्यासकार, किले की एक संकरी गली में धीमे कदमों से चलता जा रहा था। वह महीनों से एक प्रेम-कहानी लिखने की कोशिश कर रहा था, लेकिन उसका हर प्रयास अधूरा महसूस होता था। शब्द थे, भाव थे, लेकिन कहीं न कहीं एक असली जज़्बात की कमी थी। उसे किसी ऐसी प्रेरणा की तलाश थी, जो उसकी कहानी को जीवंत बना दे।

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मुलाक़ात - एक अनकही दास्तान - 1

रात का दूसरा पहर था। जैसलमेर का सोनार किला चाँदनी में नहाया हुआ था, और रेगिस्तान की ठंडी हवा के कणों को हल्के-हल्के उड़ा रही थी। दूर से लोक-संगीत की धुनें आ रही थीं—रावणहत्था की करुण तान और ढोलक की थाप रेगिस्तान की नीरवता को संगीतमय कर रही थी।आदित्य, एक प्रसिद्ध उपन्यासकार, किले की एक संकरी गली में धीमे कदमों से चलता जा रहा था। वह महीनों से एक प्रेम-कहानी लिखने की कोशिश कर रहा था, लेकिन उसका हर प्रयास अधूरा महसूस होता था। शब्द थे, भाव थे, लेकिन कहीं न कहीं एक असली जज़्बात की कमी थी। उसे ...Read More

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मुलाक़ात - एक अनकही दास्तान - 2

महोत्सव की भीड़ धीरे-धीरे छंटने लगी थी, लेकिन आदित्य की आँखों में अब भी वही छवि बसी थी—संयोगिता, मंच बीचों-बीच खड़ी, अपनी आवाज़ के जादू से सबको बाँधती हुई।वह अब भी सोच रहा था, "क्या यह सिर्फ एक संयोग था, या मेरी अधूरी कहानी का पहला अध्याय?" आदित्य इसी सोच में डूबा ही हुआ था कि तभी संयोगिता भीड़ के पीछे, एक पुरानी हवेली की सीढ़ियों पर, अकेले जाकर बैठ जाती है।उसके चेहरे पर अब मंच की मुस्कान नहीं थी। उसके लंबे काले बाल हल्की हवा में उड़ रहे थे। उसने अपनी डायरी खोली और कुछ लिखने लगी। उसकी ...Read More

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मुलाक़ात - एक अनकही दास्तान - 3

धीरे-धीरे जैसलमेर की वो पुरानी गलियाँ आदित्य के लिए सिर्फ शहर की गलियाँ नहीं रहीं। वे उसके दिल की बन गई थीं—और उस कहानी की सबसे खास कड़ी थी संयोगिता।दिन ढलते ही वे दोनों अक्सर रेगिस्तान की रेत पर बैठकर घंटों बातें किया करते। कभी ढोला-मारू की प्रेमकथा पर चर्चा होती, तो कभी संयोगिता आदित्य को लोकगीतों के मायने समझाती।आदित्य उसकी हर बात को महसूस करता, जैसे वह शब्द नहीं, कोई अधूरी कविता हो।"अगर मेरी कहानी के लिए नायिका चुननी हो..."उस दिन वे दोनों जैसलमेर के पुराने किले की सबसे ऊँची दीवार पर बैठे थे। सूरज धीरे-धीरे रेत के ...Read More

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मुलाक़ात - एक अनकही दास्तान - 4

संयोगिता के जाने के बाद आदित्य के मन में एक बेचैनी घर कर गई। वह जानता था कि उसकी में जो दर्द था, वह कोई साधारण चिंता नहीं थी—वह किसी गहरे ज़ख्म की परछाई थी।वह पूरी रात सो नहीं पाया। उसकी आँखों के सामने बार-बार संयोगिता का चेहरा आ जाता, उसकी आवाज़ कानों में गूंजती—"कभी-कभी कुछ कहानियाँ पूरी नहीं होतीं।"लेकिन क्यों?सुबह की हल्की धूप जब खिड़की से अंदर आई, तो आदित्य की बेचैनी और भी बढ़ गई। कमरे की सफेद दीवारें अब उसे एक बंद दायरे की तरह महसूस हो रही थीं। वह जानता था कि जब तक संयोगिता ...Read More

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मुलाक़ात - एक अनकही दास्तान - 5

सूरज अपनी अंतिम किरणों को धरती पर बिखेरते हुए धीरे-धीरे क्षितिज की ओर ढल रहा था। जैसलमेर की सोनाली पर पसरी वह शाम मानो किसी पुराने प्रेमगीत का अंतिम अंतरा हो, जिसमें हर साया एक कहानी कहता हो। गढ़ीसर झील के किनारे बहती ठंडी हवा, पानी की सतह को छूकर लौटती तो ऐसे लगती जैसे कोई खोई हुई याद हल्के से मन को सहला रही हो।झील का पानी चाँदी की परत की तरह चमक रहा था, और उसके किनारे फैले बबूलों की छाया में सिहरन सी थी, जो मन के भीतर तक उतर रही थी। उस ठंडी सांझ में, ...Read More

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मुलाक़ात - एक अनकही दास्तान - 6

जैसलमेर की हवाएं उस दिन कुछ ज़्यादा ही उदास थीं। जैसे रेत के कणों में भी एक दर्द समाया और हवाओं में एक बिछड़ते लम्हे की गूँज हो।आदित्य ने सुबह उठते ही फैसला कर लिया था—अब और नहीं। जितना वो संयोगिता को समझने की कोशिश करता, उतना ही उलझता चला जाता। और अब, उसे खुद को बचाना था।"शायद प्यार सिर्फ पाने का नाम नहीं होता..." उसने खुद से कहा था।लेकिन जाने से पहले वो एक बार और उससे मिलना चाहता था—बस एक आख़िरी बार। न कोई शिकायत, न कोई उम्मीद। सिर्फ एक विदा, जो बिना कहे अधूरी लगती।शाम ढलने ...Read More