“सच्ची पत्नी का रिश्ता क्यों बुरा कहा जाता है?”
घर में सबसे ज्यादा इम्तिहान अगर किसी का होता है, तो वह होती है सच्ची पत्नी का।
कितनी भी ईमानदार, कितनी भी समर्पित क्यों न हो, समाज में, रिश्तेदारों में, यहां तक कि अपने ही पति की नज़रों में भी उसका संघर्ष किसी को दिखाई नहीं देता।
एक छोटी सी चूक, या किसी और की ग़लतफहमी, और सारा ठप्पा उसके माथे पर लग जाता है – “बुरी” या “घर तोड़ने वाली”।
आज के समय में पतियों के इर्द-गिर्द सिर्फ उनका परिवार ही नहीं, बल्कि उनके बाहर के रिश्ते और सोशल मीडिया का दबाव भी होता है।
अगर पति किसी और औरत की तरफ झुक जाए, तो भी समाज का पहला सवाल पत्नी से ही होता है – “तुमने ऐसा क्या किया कि वो दूर हो गया?”
यहां तक कि अगर पति की प्रेमिका खुलेआम पोस्ट डाले, पत्नी की छवि खराब करे, तो भी दोषी पत्नी ही बनती है।
पति पहले परिवार और प्रेमिका की बात सुनता है, पत्नी की सफाई बाद में।
फिर भी पत्नी चुप रहती है, रिश्ते को बचाने की कोशिश करती है।
एक तरफ घर के संस्कार, दूसरी तरफ पति के बदलते व्यवहार, तीसरी तरफ समाज और सोशल मीडिया का दबाव — इन सबके बीच एक सच्ची पत्नी ही है जो अपने मन, आंसुओं और आत्मसम्मान से लड़ते हुए भी सब कुछ संभालने की कोशिश करती है।
कितनी बार वह अपनी बात कह भी नहीं पाती, क्योंकि डर होता है – कहीं यह घर, यह रिश्ता टूट न जाए।
वह जानती है कि अगर वह हार गई, तो सबसे पहले उसी को दोषी ठहराया जाएगा।
सच्ची पत्नी का संघर्ष किसी चुनौती से कम नहीं होता।
वह अपने बच्चों, अपने घर, अपने रिश्ते और अपने आत्मसम्मान के बीच संतुलन बनाने की कोशिश करती है।
कई बार वह खुद टूट जाती है, लेकिन घर को टूटने नहीं देती।
फिर भी उसकी वफ़ादारी, उसका त्याग और उसका मौन समाज के लिए “सामान्य” हो जाता है।
लोग सोचते हैं कि यह तो उसका कर्तव्य है।
लेकिन कोई नहीं देखता कि इस कर्तव्य के नाम पर उसने कितने अपने सपने, कितने अपने हक़, और कितनी बार अपने आंसू कुर्बान किए हैं।
सच्ची पत्नी वही है जो अपने पति को समझने की कोशिश करती है, यहां तक कि तब भी जब पति उसे समझने की कोशिश नहीं करता।
सच्ची पत्नी वही है जो अपने रिश्ते को बचाने के लिए अपने घाव छुपाती है।
सच्ची पत्नी वही है जो बिना कहे अपने घर को थामे रहती है, और लोगों की नज़रों में “बुरी” बन जाती है।
> “सच्ची पत्नी जितना कौन संघर्ष करता है?
वह अपने रिश्ते, अपनी गरिमा और अपने घर के लिए रोज़ लड़ती है,
फिर भी उसी को दोषी कहा जाता है।”
यह बात दोनों पर लागू है स्त्री और पुरुष जो सच में दिल से निभाते हैं