🌸 किताब ज़िंदगी की🌸
बचपन — मासूमियत का अभिनव अंकुर
गोद की पलकों पर लोरी की स्याही,
किलकारियों में झरती चाँदनी गवाही।
नन्हीं उंगलियाँ जब अक्षर छूतीं,
कागज़ की कोरी धरती फूलों-सी झरती।
खिलौनों की टनकार बने ताल का गान,
कहानियों की धुन रचे सपनों का जहान।
यह पन्ना है निर्मल सरिता-सा स्वच्छ,
जहाँ हर शब्द है मोती, हर वाक्य है कंचन कच्छ।
---
यौवन — स्वप्नों का उत्कर्ष
पन्नों पर अब सूरज के रंग उतरते हैं,
इच्छाओं के दीप जलते, ज्वाल बन झरते हैं।
उड़ानें लिखतीं नभ के काव्य अनोखे,
हर पंक्ति में बंधते संकल्प के लोहे।
प्रेम की पहली कविता कलम थाम लेती,
हर छंद में मधुशाला-सी धुन बुन देती।
पर महत्वाकांक्षा की अग्नि दहकती है,
कभी धैर्य, कभी उतावली भड़कती है।
यहाँ पन्ने हैं स्वर्णिम, पर दाग गहरे भी,
जीवन के प्रश्न कठिन, उत्तर अधूरे भी।
पर यौवन यही है—एक ज्वालामुखी प्रवाह,
जो रचता है भविष्य का अमिट इतिहास।
---
प्रौढ़ावस्था — उत्तरदायित्व का गान
अब पुस्तक गंभीर, अक्षर हैं स्थिर,
शब्दों का भार, भावनाएँ गहन निरंतर।
परिवार की डोर, समाज का विधान,
कर्तव्य का है यहाँ शाश्वत गान।
त्याग के छंद, परिश्रम का रस,
अनुभव का छायाचित्र हर पन्ने पर स्पर्श।
कभी पसीने की स्याही गहरी उतर जाती,
तो कभी करुणा की बूँदें अक्षरों में मिल जातीं।
यहाँ जीवन का रस है पक चुका,
मानो कविता का अर्थ अब संपूर्ण हो चुका।
यहीं से समझ आता—
ज़िंदगी केवल भोग नहीं, योग भी है,
केवल संग्रह नहीं, दान भी है।
---
वृद्धावस्था — उपसंहार की गहनता
स्याही अब फीकी, पर पंक्तियाँ प्रखर,
हर शब्द का मूल्य मानो अमर।
धीमी चाल से चलती कलम,
फिर भी गूँजती अनुभूति का आलम।
स्मृतियों की माला गूंथती कथा,
हर पन्ना है अतीत का दर्पण सधा।
कभी हँसी की गूँज से सजती यह भूमि,
कभी पश्चाताप की बूँदें कर देतीं गुमसुम धुंधली।
पर यही अध्याय सबसे पावन है,
जहाँ आत्मा का गान सावन है।
जब अंतिम पन्ना चुपचाप बंद होता,
तो जीवन का ग्रंथ शाश्वत ग्रंथालय में सोता।
---
अमरता
ज़िंदगी की किताब कभी अधूरी नहीं,
उसकी गाथा धरा पर अधरूरी नहीं।
हर हृदय एक ग्रंथ है अनमोल,
हर जीवन एक कविता, एक गीत, एक डोल।
और जब समय सभी ग्रंथ समेट लेगा,
तो यही किताबें मानवता का दीप जलाएँगी।
क्योंकि जीवन का सत्य यही गाता है—
“पढ़ी नहीं जाती यह किताब, जिया जाता है।”
दीपक बुंदेला "आर्यमौलिक"