"एक आख़िरी बार"
एक वादे की ख़ातिर, पूरी उम्र इंतज़ार,
तुझे देखते ही हो जाता है तुझसे प्यार।
मैं करता रहूं तेरा सदियों तक इंतेज़ार,
मगर क्या तू भी मिलेगा मुझसे एक आख़िरी बार?
तेरे आते ही रौनकें लौट आती हैं,
तेरे आने से क़लियाँ भी मुस्काती हैं।
फिर क्यों नहीं तू मेरी ज़िंदगी में आता?
ऐसा क्या हुआ, जो अब तू कुछ भी नहीं बताता?
जा रहा हूँ मैं ये शहर अब छोड़कर,
पर क्या तू देखेगा मुझे, एक आख़िरी बार मुँह मोड़ कर?
दिल में दबी बातें अब अल्फ़ाज़ बन गईं हैं,
तेरे बिना ये साँसें भी कुछ कम सी लगने लगीं हैं।
अगर मिल सके तो बस इतना बता दे—
क्या तुझे भी कभी मेरी कमी महसूस हुई है?