गुज़रे हुए लोग कहाँ लौटते हैं?
बचपन की रेतें नहीं लौटती,
वो टूटी हुई पेटियाँ नहीं बजतीं।
आंधियाँ लौट के कब आई हैं,
जो शाखें झुकीं, फिर नहीं सजतीं।
जो बिछड़ गए, वो बस यादों में हैं,
ना वो बातें, ना वो वादों में हैं।
"गुज़रे हुए" लौटते हैं कहाँ,
बस नींदों में या फ़रियादों में हैं...!!
–निर्भय शुक्ला....