हाँ औरते बहोत बातुनी होती है
क्यूंकी बहोत बोलती है ये औरते
फूर्सत मिलते ही बस शुरु हो जाती है
सहेलीसे,पडोसन तक,मायकेसे ससुराल तक
रस्तेपे,चौकमे,दुकानसे आॕफिस तक
इनकी जुबांन चलती ही रहती है
ये बोलती है
धूप से लेकर छाँव तक
अडोस पडोस के गाँव तक
महंगाई के दाम पर
बर्तनवाली के काम पर
ये बोलती है
चुनाव के नतीजे पर
चचेरे,ममेरे भतीजे पर
बच्चोंके पढाई पर
सास-ससुर की लडाई पर
ये बोलती है
सब्जीके बढते भाव पर
नदी में चल रही नाव पर
देश से लेकर विदेश तक
मेकअपसे लेकर बदलते भेस तक
ये बोलती रहती है और बस बोलती ही रहती है
ये नही बोलती तो बस, खुदपर
ये नही कह पाती उन सपनोंपर
जो आखोंमे आकर, बस बूंदे बनकर छलक जाते है
ये नही कह पाती उन अरमानोंपर
जो बचपन से मनमे सजाकर भी
बस दिलमेंही दबकर रह जाते है
हा ये औरते बोलती नही बस चूप रह जाती है
अपनी आवाज दबाकर खामोश रह जाती है
आखिर खामोश होना भी तो औरत होना है
है ना ??
सविता सातव 30-12-22